साहित्य समाज का दर्पण हैं

साहित्य वह है, जिसमें प्राणी के हित की भावना निहित है। साहित्य मानव के सामाजिक सम्बन्धों को दृढ़ बनाता है; क्योंकि उसमें सम्पूर्ण मानव जाति का हित निहित रहता है। साहित्य द्वारा साहित्यकार अपने भाव और विचारों को समाज में प्रसारित करता है, इस कारण उसमें सामाजिक जीवन स्वयं मुखरित हो उठता है।साहित्य का जन्म मनुष्य के भाव जगत के साथ हुआ है. अपनी अदम्य मनोभावनाओं को मनुष्य ने विविध विधाओं के माध्यम से व्यक्त किया हैं. साहित्य भी उनमें से एक हैं.साहित्य मानव समाज का प्रतिबिम्ब होता हैं. साहित्यकार स्वयं भी एक सामाजिक प्राणी होता है. अतः उसकी कृतियों में समाज का हर पक्ष, हर तेवर और हर आयाम मूर्त हुआ करता हैं। 

साहित्य समाज का दर्पण हैं

साहित्य की विभिन्न परिभाषाएँ – डॉ० श्यामसुन्दरदास ने साहित्य का विवेचन करते हुए लिखा है, “भिन्न-भिन्न काव्य- -कृतियों का समष्टि संग्रह ही साहित्य है।” मुंशी प्रेमचन्द ने साहित्य को “जीवन की आलोचना” कहा है। उनके विचार से साहित्य चाहे निबन्ध के रूप में हो, कहानी के रूप में हो या काव्य के रूप में हो, साहित्य को हमारे जीवन की आलोचना और व्याख्या करनी चाहिए।आंग्ल विद्वान् मैथ्यू आर्नोल्ड ने भी साहित्य को जीवन की आलोचना माना है—“Poetry is, at bottom, a criticism of life.” पाश्चात्य विद्वान् वर्सफील्ड ने साहित्य की परिभाषा देते हुए लिखा है- “Literature is the brain of humanity.” अर्थात् साहित्य मानवता का मस्तिष्क है।

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साहित्य को समाज का दर्पण कहा जाता है। क्योंकि समाज की गतिविधियों से साहित्य प्रभावित होता हैl एक साहित्यकार जो कुछ अपने साहित्य में लिखता है, वह समाज का ही एक प्रतिबिंब होता है। साहित्य और समाज का एक अटूट संबंध है। साहित्य के मदद से एक साहित्यकार अपनी भावनाओं को समlज के सामने लाता है। साहित्यकार समाज में रहता है समाज में होने वाली सारी घटनाओं का उस पर परिणाम होता है । यही सारी सामाजिक घटना कहीं ना कहीं उसके साहित्य पर प्रभाव डालती है। यह सारी घटनाएं राग , प्रेम ,उत्साह आदि भावनाओं से संबंधित होती है। यही सारी भावनाएं एक साहित्यकार् की साहित्य में झलकती है तथा उसके साहित्य में जान बनती है। साहित्य समाज का दर्पण है और इस दर्पण में समाज के हर छवि चाहे वह अच्छी हो या बुरी हो वह दिखाई देती है।

कूँसाहित्यकार ने अपने जीवन में जो कुछ अनुभव किया है वह उसे साहित्य में पिरोता है। साहित्य यह युगो युगो से चली आ रही साहित्यकारों के अनुभव की प्रतिलिपि होता है। यह अच्छे या बुरे अनुभव साहित्यकार अपने साहित्य द्वारा व्यक्त करते हैं। अपने भावनाओं को बहुत साहित्य द्वारा प्रकट करते हैं। साहित्य में मानव जाति का हित निहित होता है l साहित्य यह साहित्यकार के भाव तथा विचारों को समाज में प्रकट करने का एक उत्तीर्ण मार्ग है। साहित्यकार अपने शब्द द्वारा अपने भाव व्यक्त करते हैं।

साहित्यकार समाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। साहित्य समाज का मुख् होता है। समाज में होने वाली सारी घटनाएं हमें साहित्य से पता चलती है चाहे वह प्राचीन काल की क्यों ना होl समाज में चल रही घटनाओं तथा रूढ परंपराओं को समझने में साहित्य हमारी मदद करते हैं। साहित्य से समाज की भावना प्रकट होती है तथा हम समाज के दिल तक सिर्फ और सिर्फ साहित्य के द्वारा पहुंच सकते हैं। यदि हमें समाज को समझना है तो हमें साहित्य को समझना जरूरी है। साहित्य के हर शब्द यह समाज का दर्पण और प्रतिबिंब होते हैं।

साहित्यकार यह समाज का हितकारी होता है वह अपने साहित्य में हमेशा समाज का हित हो ऐसी चीजें लिखता है। कई साहित्यकारों ने अपने शब्दों से समाज बदल डाला। समाज में नई चेतना तथा प्रेरणा उन्होंने निर्माण की। अंग्रेजों के काल में साहित्यकारों ने समाज में चल रही अंग्रेजों की दादागिरी के बारे में वर्णन किया। अंग्रेजों के विरुद्ध समाज जागृति में साहित्य का बहुत बड़ा योगदान रहा है। रविंद्र नाथ टैगोर ,मुंशी प्रेमचंद, बंकिम चंद्र चटर्जी तथा आदि साहित्यकारों ने समाज को प्रेरित किया है। प्राचीन काल से समाज में जागृति लाने में साहित्य का बहुत बड़ा योगदान है। साहित्य हमारे विचारों तथा जीवन पर गहरा प्रभाव डालतl हैं। भारतीय आंदोलन के समय साहित्यकारों ने समाज का वर्णन किया जिससे समाज में चल रहे पाखंड का पता सर्व साधारण नागरिकों को चला।

साहित्य यह एक प्रवाह है जो सदियों से चला आ रहा है। समाज के परिस्थितियों के अनुसार कई बार साहित्य में भी परिवर्तन हुए हैं। साहित्य में शराब का दो तथा विजय की शाश्वत दोनों होती है। साहित्य यह समाज में चल रही घटनाओं का ही दूसरा रूप है। साहित्य और समाज को अलग करना यह संभव है। साहित्य और समाज एक दूसरे के पूरक है।अन्त में हम कह सकते हैं कि समाज और साहित्य में आत्मा और शरीर जैसा सम्बन्ध हैं। समाज और साहित्य एक-दूसरे के पूरक हैं, इन्हें एक-दूसरे से अलग करना सम्भव नहीं है अतः आवश्यकता इस बात की है कि साहित्यकार सामाजिक कल्याण को ही अपना लक्ष्य बनाकर साहित्य का सृजन करते रहें।

प्रश्न/उत्तर

प्रश्न 1. साहित्य का अर्थ क्या होता है? 

उत्तर: साहित्य” लैटिन से आता है, और इसका मूल अर्थ ” अक्षरों का उपयोग ” या “लेखन” था। लेकिन जब यह शब्द लैटिन से निकली रोमांस भाषाओं में प्रवेश किया, तो इसने “पुस्तकों को पढ़ने या अध्ययन करने से प्राप्त ज्ञान” का अतिरिक्त अर्थ ग्रहण कर लिया। तो हम इस परिभाषा का उपयोग “साहित्य के साथ … को समझने के लिए कर सकते हैं।

प्रश्न 2. एक साहित्यकार का क्या महत्व है? 

उत्तर: कवि और लेखक अपने समाज के मस्तिष्क भी हैं और मुख भी। साहित्यकार की पुकार समाज की पुकार है। साहित्यकार समाज के भावों को व्यक्त कर सजीव और शक्तिशाली बना देता है। वह समाज का उन्नायक और शुभचिन्तक होता है। उसकी रचना में समाज के भावों की झलक मिलती है। उसके द्वारा हम समाज के हृदय तक पहुँच जाते हैं।

प्रश्न 3.साहित्य हमें क्या सिखाता है?

उत्तर: साहित्य हमें भावनाओं की एक विस्तृत श्रृंखला तक खोलता है । हम खुद को दूसरों की जगह रखकर अपना नजरिया बदलना सीखते हैं। हम सीखते हैं कि हम कौन हैं और हम कौन बनना चाहते हैं। और हम विकल्पों के दूसरे क्रम के परिणामों का अनुभव करते हैं बिना उन्हें स्वयं जीने के।

प्रश्न 4.साहित्य के 5 प्रकार कौन से हैं?

उत्तर: कविता, कथा, गैर-काल्पनिक, नाटक और गद्य साहित्य की पाँच प्रमुख विधाएँ हैं। लेखक तब अपने साहित्य को उपजातियों में वर्गीकृत कर सकते हैं।

प्रश्न 5.भाषा और साहित्य में क्या अंतर है?

उत्तर: जबकि साहित्य बौद्धिक विचारों और चिंतन के साथ लेखकों के लिखित कार्य होते हैं, भाषा सभी ध्वनियों, संकेतों, प्रतीकों, शब्दों और व्याकरण के बारे में होती है।