अविकारी शब्द

जो शब्द जैसे होते है तथा जिनमें कोई परिवर्तन नहीं होता। जो शब्द लिंग, वचन, कारक, पुरूष और काल के कारण नहीं बदलते, वे अविकारी शब्द कहलाते हैं|

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अविकारी शब्द के भेद- (Avikari Shabd ke Bhed)

                                          Avikari Shabd Chart

1.क्रिया विशेषण

2.सम्बन्ध बोधक

3.समुच्चय बोधक

4.विस्मयादि बोधक

अविकारी शब्दों की पहचान कैसे करें

1. क्रियाविशेषण:

वे शब्द जो क्रिया की विशेषता को प्रकट करते हैं. उन्हें क्रिया-विशेषण कहते हैं |

उदाहरण- जब ,जहां, जैसे, जितना, आज, कल, अब इत्यादि.

क्रिया विशेषण के चार भेद हैं-

i. कालवाचक क्रिया विशेषण–:

जिससे क्रिया को करने या होने के समय (काल) का बोध हो वह कालवाचक क्रिया विशेषण कहलाता है 

जैसे – परसों मंगलवार हैं, आपको अभी जाना चाहिए,

यहां पर जाने के समय का पता चल रहा है, इसलिए यह कलावाचक क्रिया विशेषण है।

ii. स्थान वाचक क्रिया विशेषण–:

क्रिया के होने या करने के स्थान का बोध हो, वह स्थानवाचक क्रिया विशेषण कहलाता है.

जैसे– यहाँ, वहाँ, इधर, उधर, नीचे, ऊपर, बाहर, भीतर, आसपास आदि.

तुम बाहर जाओ। यहां पर जाने के स्थान का पता चल रहा है।

3.परिमाणवाचक क्रिया विशेषण–:

जिन शब्दों से क्रिया के परिमाण या मात्रा से सम्बन्धित विशेषता का पता चलता है.उसे परिमाणवाचक क्रिया विशेषण कहते है.

जैसे –

 वह दूध बहुत पीता है। यहां पर दूध के परिणाम(पीना) का बोध हो रहा है।

 वह थोड़ा ही चल सकी। यहां पर चलने की मात्रा का पता चल रहा है।

iv. रीतिवाचक क्रिया विशेषण–:

जिससे क्रिया के होने या करने के ढ़ग का पता चलता हो उन्हें रीतिवाचक क्रिया विशेषण कहते हैं.

जैसे –

 सहसा बम फट गया। यहां पर बम के फटने (ढंग) का पता चल रहा है।

  मैं यह काम निश्चिय पूर्वक करूंगा। यहां पर काम के निश्चय पूर्वक(ढंग)होने का पता चल रहा है।

2. सम्बन्धबोधक :

जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम का वाक्यों का दूसरे शब्दों के साथ सम्बन्ध बताते हैं उन्हें सम्बन्धबोधक कहा जाता है। ये संज्ञा या सर्वनाम के बाद प्रयुक्त होते हैं और इसके साथ किसी न किसी प्रत्यय का प्रयोग भी किया जाता है।

जैसे- ‘के ऊपर’, ‘के बजाय’, ‘की अपेक्षा’, ‘के पास’, के आगे’, ‘की ओर’ इत्यादि

रोहित ‘के बजाय’ रैना को खिलाओ। यहां के बजाय का उपयोग किया है।

रोहन ‘के पीछे’ पुलिस पड़ी है। यहां पर के पीछे का प्रयोग किया गया है।

3. समुच्चयबोधक अविकारी शब्द:

जो अविकारी शब्द दो शब्दों, दो वाक्यों अथवा दो वाक्य खण्डों को जोड़ते हैं, उन्हें समुच्यबोधक कहते हैं.

जैसे– और, तथा, एवं, मगर, लेकिन, किन्तु, परन्तु, इसलिए, इस कारण, अतः, क्योंकि, ताकि, या, अथवा, चाहे आदि.

समुच्चयबोधक अलग अलग प्रकार के होते हैं.

क) सजातीय या समानाधिकरण समुच्चयबोधक

यह वह शब्द होते है जो स्थिति या जाती वाले दो या दो से अधिक शब्दों, वाक्यों या उपवाक्यों को जोड़ने या विभाजित करने का काम करते हैं.

जैसे-

और – मोहित और कल्पना अच्छे मित्र हैं। यहां पर दो शब्दों को और के माध्यम से जोड़ा गया है।

तथा – श्वेता, अरुणा, तथा रोमेश घूमने गए। यहां पर दो शब्दों को तथा के माध्यम से जोड़ा गया है।

ख) विजातीय या व्यधिकरण समुच्चयबोधक –

यह वह शब्द होते हैं जो किसी मुख्य को गौण अंश से जोड़ने का काम करते हैं.

जैसे-

कि – उसने वह फिल्म इसलिए नहीं देखी कि वह खराब थी

यहां पर कि के द्वारा गौण अंश को जोड़ा गया है।

यदि/तो – यदि तुम मन लगाकर पढोगे तो अवश्य सफल होगे। 

यहां पर यदि और तो लगाकर वाक्य को पूरा किया गया है।

मानो – धूप पर पड़ी ओस ऐसी लग रही थी मानो मोती जगमगा रहे हों।

यहां पर मानो के द्वारा वाली पूरा किया गया है।

जो– मैं इतना उदार नहीं जो तुम्हें इस जघन्य अपराध के लिए क्षमा कर दूँ।

यहां पर जो लगाकर वाक्य के गौण अंश को जोड़ा गया है।

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4. विस्मयादिबोधक अव्यय

जिन अविकारी शब्दों से हर्ष, शोक, आश्चर्य घृणा, दुख, पीड़ा आदि का भाव प्रकट हो उन्हे विस्मयादि बोधक अव्यय कहा जाता है। इसके द्वारा मनुष्य के भावों और भावनाओं का ज्ञान होता है की वह किस अंदाज और किस तरह से किसी के बारे में बताता है।

जैसे – ओह!, हे!, वाह!, अरे!, अति सुंदर!, उफ!, हाय!, धिक्कार!, सावधान!, बहत अच्छा!, तौबा-तौबा!, अति सुन्दर आदि।

उफ! कितनी गर्मी है। यहां पर गर्मी से परेशान होकर उफ! का प्रयोग किया गया है।

वाह! कितना स्वादिष्ट भोजन है। यहां पर खाने की प्रसंशा करते हुए वाह का प्रयोग किया गया है।

अधिकतर पूछे गए प्रश्न               

1.अविकारी शब्द किस कहते है?

उत्तर:जो शब्द लिंग, वचन, कारक, पुरूष और काल के कारण नहीं बदलते, वे अव्यय या अविकारी शब्द कहलाते हैं.

2.अधिकारी शब्द के कितने भेद है?

उत्तर: अधिकारी शब्द के चार भेद है

1.क्रिया विशेषण

2.सम्बन्ध बोधक

3.समुच्चय बोधक

4.विस्मयादि बोधक

3.परिमाणवाचक अविकारि शब्द किसे कहते है?

उत्तर:जिन शब्दों से क्रिया के परिमाण या मात्रा से सम्बन्धित विशेषता का पता चलता है.उसे परिमाणवाचक क्रिया विशेषण कहते है।

4. क्रिया विशेषण  के कितने भेद है?

उत्तर: क्रिया विशेषण के चार भेद है।

5.और, अगर, मगर समुच्यबोधकअविकरी शब्दों का प्रयोग कब किया जाता है?

उत्तर: शब्दों, दो वाक्यों अथवा दो वाक्य खण्डों को जोड़ते हैं, उन्हें समुच्यबोधक कहते हैं।

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सर्वनामसंज्ञा
प्रत्ययअलंकार
वर्तनीपद परिचय
वाक्य विचारसमास
लिंगसंधि
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क्रिया

क्रिया का अर्थ होता है कार्य करना। भाषा के वाक्य को पूरा करने के लिए क्रिया का होना जरूरी है। किसी भी वाक्य को पूरा करने के लिए क्रिया का होना जरूरी है। क्रिया किसी भी कार्य को होने या करने के बारे में दर्शाती है। क्रिया को करने वाला कर्ता कहलाता है। क्रिया एक विकारी शब्द है जिसके रंग, रूप, लिंग और पुरुष कर्ता के अनुसार बदलते है।

जिस शब्द से किसी कार्य के करने या होने का बोध होता है, उसे क्रिया कहते है। संस्कृत में क्रिया रूप को धातु कहते है। हिंदी में इन धातुओं के साथ ना लगता है।

उदाहरण–: खाना, पीना, सोना, रहना आदि|

1.रोहन ने खाना खाया।

इस वाक्य में खाना खाने का काम रोहन के द्वारा हो रहा है। इसलिए इस वाक्य में रोहन कर्ता और खाया क्रिया है।

2.मोहन नाचता है। 

इस वाक्य में नाचने का काम मोहन के द्वारा किया जा रहा है। इसमें मोहन कर्ता और नाचना क्रिया है।

3.उसने अपना स्कूल देखा

इस वाक्य में देखने का कार्य ‘उसने’ द्वारा हो रहा है। इसलिए इसमें उसने कर्ता और देखना क्रिया है।

क्रिया के भेद (kriya ke kitne bhed hote hain )

क्रिया के भेद दो आधारों पर किए गए हैं-

1) कर्म के आधार पर।

2) प्रयोग के आधार पर।

1) कर्म के आधार पर क्रिया के दो भेद है

  1. अकर्मक क्रिया
  2. सकर्मक क्रिया

1.अकर्मक क्रिया

वाक्य में जिस क्रिया के प्रयोग में कर्म / कार्य की आवश्यकता नहीं होती है उसे अकर्मक क्रिया कहते है। इसमें क्रिया का प्रभाव सीधे कर्ता पर पड़ता है। 

जैसे-(क) राकेश खेलता है।

      (ख) अमन दौड़ता है।

उपर्युक्त वाक्यों में “खेलता है”, “दौड़ता है” क्रिया पदों के साथ कर्म नहीं है। क्रिया का फल अथवा प्रभाव कर्ता पर पड़ता है। 

2. सकर्मक क्रिया

वाक्य में जिस क्रिया के प्रयोग में कर्म की आवश्यकता होती है, सकर्मक क्रिया कहलाती है। सकर्मक क्रिया कर्म के बिना अपना भाव पूर्ण रूप से प्रकट नहीं कर पाती।

जैसे-(क) मामा जी बाजार जाते हैं।

      (ख) सोनिया खाना खाती है।

उपर्युक्त वाक्यों में जाते हैं, खाती है क्रियाओं का फल क्रमशः सोनिया, मामा जी, पर न पड़कर बाजार, खाना पर पड़ रहा है। बाजार, खाना कर्म हैं। ये सभी सकर्मक क्रियाएँ हैं।

क्रिया से क्या और किसको लगाकर प्रश्न पूछा जाता है और फिर जो उसका उत्तर मिलता है उसे कर्म कहते हैं। जैसे सोनिया क्या खाती है। खाना इसके जवाब के रूप में मिलता है। इसलिए यह सकर्मक क्रिया है।

सकर्मक क्रिया के भेद

सकर्मक क्रिया के निम्नलिखित दो भेद हैं:

(क) एककर्मक क्रिया

(ख) द्विकर्मक क्रिया

एककर्मक क्रिया

जिन क्रियाओं का एक ही कर्म होता है, एककर्मक क्रिया कहलाती है। 

जैसे- वह अखबार पढ़ता है।

यहाँ ‘अखबार’ एक ही कर्म है। इसलिए यह एककर्मक क्रिया है।

द्विकर्मक क्रिया

जिन सकर्मक क्रियाओं के दो कर्म हों, उन्हें द्विकर्मक क्रिया कहते हैं।

जैसे- पिता ने पुत्र को पुस्तक पढ़ाई।

यहाँ “पुत्र” और “पुस्तक” दो कर्म हैं। इसलिए यह द्विकर्मक क्रिया है।

 

2)प्रयोग के आधार पर क्रिया के चार भेद है

1)संयुक्त क्रिया

2)सहायक क्रिया

3)प्रेरणार्थक क्रिया

4)पूर्वकालिक क्रिया

1. संयुक्त क्रिया

वाक्य में जब क्रिया दो या दो से अधिक धातुओं के मेल से बनी हो तो उसे संयुक्त क्रिया कहते है।

जैसे- मेने पत्र लिख दिया है।

इस वाक्य में क्रिया लिख दिया दो धातुओं से मिलकर बनी है इसलिए इस वाक्य में संयुक्त क्रिया है।

2. सहायक क्रिया

 सहायक क्रियाएं मुख्य क्रिया के रूप में अर्थ को स्पष्ट करने में और उसे पूरा करने में सहायक होती है। वाक्य में एक या एक से अधिक क्रिया सहायक होती है। इसके प्रयोग से क्रिया में काल को बदला जा सकता है।

 जैसे- तुम खेल रहे थे।

 इस वाक्य में खेल मुख्य क्रिया है और रहे थे सहायक क्रिया के रूप में कार्य कर रही है  जो वाक्य के अर्थ को पूरा कर रही है, और इसके कारण काल में बदल गया है।

-वह नाचता है।

इस वाक्य में नाचना मुख्य क्रिया है और है सहायक क्रिया है जो वाक्य के अर्थ को पूरा करती है।

3.प्रेरणार्थक क्रिया

वाक्य में जिन शब्द के माध्यम से पता चलता है कि करता स्वयं कार्य न करके किसी अन्य को कार्य करने को प्रेरित कर रहा है या किसी अन्य से कार्य करवा रहा है तो उसे प्रेणार्थक क्रिया कहते है। 

जैसे- मोहन नौकर से काम करवाया।

इस वाक्य में मोहन ने नौकर से काम करवाया है खुद काम नहीं किया है। इसलिए काम प्रेरणार्थक क्रिया है।

-राधा ने सीता को पढ़ने के लिए कहा।

इस वाक्य में राधा सीता को पढ़ने के लिए प्रेरित कर रही है, इसलिए पढ़ना एक प्रेरणार्थक क्रिया है।

4. पूर्वकालिक क्रिया 

वाक्य में जब कर्ता एक क्रिया समाप्त कर उसी समय दूसरी समय दूसरी क्रिया में बदल जाता है तो पहले वाली क्रिया पूर्वकालिक क्रिया कहलाती हो।

जैसे-  मोहन पढ़कर खेलने चला गया।

इस वाक्य में पढ़कर क्रिया पूर्वकालिक क्रिया है। क्योंकि इस क्रिया को छोड़कर कर्ता दूसरी क्रिया खेलने में परिवर्तित हो गया है।

अधिकतर पूछे गए प्रश्न

1. क्रिया के भेद कितने आधार पर किया गए है?

उत्तर: क्रिया के भेद दो आधारों पर किए गए है।

1) कर्म के आधार पर 

2) प्रयोग के आधार पर

2. बच्चे खेल रहे थे। इस वाक्य में कौन की क्रिया है

उत्तर: दिए गए वाक्य में खेलना मुख्य क्रिया है और रहे थे सहायक क्रिया है जो वाक्य के अर्थ को पूरा करती है। इसलिए वाक्य में सहायक क्रिया है।

3. प्रयोग के आधार पर क्रिया के कितने भेद है?

उत्तर: प्रयोग के आधार पर क्रिया के चार भेद है–: 

1)संयुक्त क्रिया

2)सहायक क्रिया

3)प्रेरणार्थक क्रिया

4)पूर्वकालिक क्रिया

4. अमित ने अन्नू से खाना बनवाया। दिए गए वाक्य में कौन सी क्रिया है

उत्तर: दिए गया वाक्य में अमित ने खाना स्वयं नहीं बना कर अन्नू से बनवाया है इसलिए इस वाक्य में प्रेरणार्थक क्रिया है।

5. कर्म के आधार पर क्रिया के कितने भेद है?

उत्तर: कर्म के आधार पर क्रिया के दो भेद है

1)अकर्मक क्रिया

2) सकर्मक क्रिया।

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सर्वनामसंज्ञा
प्रत्ययअलंकार
वर्तनीपद परिचय
वाक्य विचारसमास
लिंगसंधि
विराम चिन्हशब्द विचार
अव्ययकाल

सर्वनाम

सर्वनाम का अर्थ है– सब का नाम। जिस प्रकार संज्ञा में केवल किसी विशेष का ही नाम प्रयोग होता है उसी प्रकार सर्वनाम में संज्ञा के स्थान प्रयुक्त सर्वनाम सभी के लिए प्रयोग होता है। किसी विशेष के लिए नहीं होता।

उदाहरण: “हम सभी स्कूल जा रहे हैं।”

इस वाक्य में “हम” सभी के लिए प्रयोग किया गया है, इसलिए इस वाक्य में हम सर्वनाम है। यह संज्ञा के स्थान पर प्रयोग किया गया है।

संज्ञा के स्थान पर प्रयोग किए जाने वाले शब्द को सर्वनाम कहते है। यह शब्द किसी व्यक्ति, वस्तु, स्थान, जाति आदि के स्थान के नाम पर प्रयोग किए जाते है। सर्वनाम संज्ञा के प्रयोग को बार-बार करने या दोहराने से रोकने के लिए भी किया जाता है। इसमें अनेक सर्वनाम शब्दों का प्रयोग किया जाता है।

जैसे–: यह, तुम, उसने, वहाँ, उन्होंने,आदि शब्दों का प्रयोग संज्ञा के स्थान पर किया जाता है,जिन्हें सर्वनाम कहते है।

उदाहरण: “उसने काम कर लिया है।”

इस वाक्य में “उसने” शब्द संज्ञा के स्थान पर प्रयोग किया गया है। इसलिए यह “उसने” शब्द सर्वनाम है।

सर्वनाम के 6 भेद होते हैं-(sarvanam ke bhed)

1)पुरूषवाचक – मैं, तू, वह, हम, मैंने

2) निजवाचक – आप

3) निश्चयवाचक – यह, वह

4) अनिश्चयवाचक – कोई, कुछ

5) संबंधवाचक – जो, सो

6) प्रश्नवाचक – कौन, क्या

1)पुरूषवाचक सर्वनाम

पुरुषवाचक सर्वनाम वक्ता और श्रोता तथा किसी अन्य के लिए प्रयुक्त होता है, उसे पुरुषवाचक सर्वनाम कहते है। इसमें मैं, वह, तुम आदि शब्दों का प्रयोग किया जाता है।    

उदहारण–: “मैं जा रहा हूँ|”

इस वाक्य में “मैं” वक्ता के लिए प्रयोग किया गया है, इसलिए इसमें पुरुषवाचक सर्वनाम है।            

– “वह खेल रही है।”

इस वाक्य में “वह” किसी अन्य के लिए प्रयोग किया गया है, इसलिए इस वाक्य में पुरुषवाचक सर्वनाम है।    

–”तुमने गाना गया।”

इस वाक्य में “तुमने” श्रोता के लिए प्रयोग किया गया है, इसलिए इस वाक्य में “तुमने” पुरुषवाचक सर्वनाम है।

पुरुषवाचक सर्वनाम के तीन भेद होते हैं

  • उत्तम पुरुष– जिस सर्वनाम का प्रयोग वक्ता स्वयं के लिए करता है, उसे उत्तम पुरुष कहते हैं।

जैसे– मैं, हम, मुझे आदि सर्वनाम प्रयोग होते हैं।

  • मध्यम पुरुष– जब श्रोता ( सुनने वाला) संवाद करते समय जिन सर्वनाम का प्रयोग करता है, उसे मध्यम पुरुष कहते हैं।

जैसे– तू, तुम, तुम्हारा आदि सर्वनाम प्रयोग होते हैं।

  • अन्य पुरुष– जब सर्वनाम के शब्दों के प्रयोग से वक्ता और श्रोता के अतिरिक्त किसी अन्य का संबोधन प्रतीत हो तो उसे अन्य पुरुष कहते हैं।

जैसे– यह, वे, उनका, उन्हें आदि सर्वनाम का प्रयोग होता है।

2) निजवाचक सर्वनाम

जो सर्वनाम तीनों पुरूषों (उत्तम, मध्यम और अन्य) में निजत्व/अपनत्व का बोध कराता है, उसे निजवाचक सर्वनाम कहते हैं। इस सर्वनाम में कोई भी कार्य खुद करने का बोध होता है।

जैसे- “मैं खुद लिख लूँगा|”

इस वाक्य में “मैं” उत्तम पुरुष है जो निजत्व का बोध करवाया है, इसलिए इस वाक्य में निज्वाचक सर्वनाम है।

–तुम अपने आप चले जाना। 

इस वाक्य में “तुम” मध्यम पुरुष है, इसलिए इस वाक्य में निजवाचक सर्वनाम है।

–”वह स्वयं गाडी चला सकती है।”

 उपर्युक्त वाक्यों में “स्वयं” उत्तम पुरुष है तथा “स्वयं” शब्द निजत्व का बोध करवाता है इसलिए इस वाक्य में निजवाचक सर्वनाम हैं। 

3)निश्चयवाचक सर्वनाम

जो सर्वनाम निकट या दूर की किसी वस्तु की ओर संकेत करे और जिसमे कुछ भी कार्य या क्रिया निश्चित हो उसे निश्चयवाचक सर्वनाम कहते हैं। 

जैसे- “यह लड़की है।” 

इस वाक्य में “यह” शब्द निकट के व्यक्ति को और संकेत के लिए प्रयोग किया गया है। इसलिए यह निश्चयवाचक सर्वनाम है।

-“वह पुस्तक है।”

इस वाक्य में “वह’ दूर को वस्तु की ओर संकेत करने के लिए प्रयोग किया गया है। इसलिए इस वाक्य में निश्चयवाचक सर्वनाम है। 

-‘वे हिरन हैं।’

इस वाक्य में “वे” शब्द दूर के प्राणी की ओर संकेत करने के लिए प्रयोग किया गया है, इसलिए इस वाक्य में निश्चयवाचक सर्वनाम हैं।

4)अनिश्चयवाचक सर्वनाम 

किसी अनिश्चित व्यक्ति, वस्तु या घटना के लिए प्रयुक्त होने वाले सर्वनाम अनिश्चयवाचक सर्वनाम कहलाते हैं। इसमें कोई भी वस्तु, व्यक्ति या घटना निश्चित नहीं होती है, उसके बारे में सिर्फ अनुमान लगाया जाता है।

जैसे– “शायद वह कल आएँ।”

       “थोड़ा पानी देना।” 

       ‘कोई बात तो है।” 

इन सभी वाक्यों में शायद, थोड़ा, कोई आदि प्रयोग किए गए शब्द निश्चितता का बोध नहीं कराते है, इसलिए यह अनिश्चयवाचक सर्वनाम है।

5)संबंधवाचक सर्वनाम

यह सर्वनाम किसी दूसरी संज्ञा या सर्वनाम से संबंध दिखाने के लिए प्रयुक्त होता है, संबंधवाचक सर्वनाम कहते हैं।। संबंधवाचक सर्वनाम का प्रयोग वाक्य में दो शब्दों को जोड़ने के लिए भी किया जाता है।

 जैसे- जो, वो, सो, जैसे-वैसे, जिसकी-उसकी, जितना-उतना, आदि।”

उदाहरण- “जो करेगा सो भरेगा।जैसे वो कहेंगे वैसे हम करेंगे।”

इस वाक्य में एक संज्ञा का दूसरी संज्ञा से संबंध बताया गया है, इसलिए इस वाक्य में संबंधवाचक सर्वनाम है।

6)प्रश्नवाचक सर्वनाम

जिस सर्वनाम से किसी प्रश्न का बोध होता है उसे प्रश्नवाचक सर्वनाम कहते हैं। इसमें वाक्य प्रश्न पूछा जाता है।

जैसे- “तुम कौन हो?” “तुम्हें क्या चाहिए?” इन वाक्यों में “कौन” और “क्या” शब्द प्रश्रवाचक सर्वनाम हैं। “कौन” शब्द का प्रयोग प्राणियों के लिए और “क्या” शब्द का प्रयोग जड़-पदार्थों के लिए होता है।

 

अधिकतर पूछे गए प्रश्न–

1)सर्वनाम का प्रयोग कहाँ होता है?

उत्तर: संज्ञा के स्थान पर प्रयोग होने वाले शब्द को सर्वनाम कहते है। यह सर्वनाम सभी के लिए प्रयोग होता है। किसी विशेष व्यक्ति या वस्तु के लिए नहीं होता।

2.किस सर्वनाम में प्रश्न पूछने का बोध होता है?

उत्तर: प्रश्नवाचक सर्वनाम में प्रश्न पूछने का बोध होता है। इसमें कौन, क्या, कहाँ, कैसे आदि सर्वनाम का प्रयोग किया जाता है।

3. शायद वह मुंबई जाएगा–

 ऊपर दिए गए वाक्य में कौन सा सर्वनाम है?

उत्तर: ऊपर दिए गया वाक्य में अनिश्चयवाचक सर्वनाम हैं, क्योंकि इसमें मुंबई जाना निश्चित नहीं है और शायद अनिश्चितता के लिए प्रयोग किया गया है।

4.पुरुषवाचक सर्वनाम के कितने भेद है?

उत्तर: पुरुषवाचक सर्वनाम में तीन भेद होते है–

1)उत्तम पुरुष 2)मध्यम पुरुष 3)अन्य पुरुष।

पुरुषवाचक सर्वनाम में इनके आधार पर सर्वनाम की पहचान की जाती है।

5.निश्यवाचक सर्वनाम किसे कहते है?

उत्तर:जो सर्वनाम निकट या दूर की किसी वस्तु की ओर संकेत करे और जिसमे कुछ भी कार्य या क्रिया निश्चित हो उसे निश्चयवाचक सर्वनाम कहते हैं।

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सर्वनामसंज्ञा
प्रत्ययअलंकार
वर्तनीपद परिचय
वाक्य विचारसमास
लिंगसंधि
विराम चिन्हशब्द विचार
अव्ययकाल

संज्ञा

संज्ञा एक ऐसा शब्द है जो एक विशिष्ट वस्तु या वस्तुओं के समूह के नाम के रूप में कार्य करता है।जैसे- जीवित प्राणी, स्थान, कार्य, गुण, अस्तित्व की स्थिति या विचार।

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संज्ञा की परिभाषा

किसी व्यक्ति, वस्तु, स्थान, गुण, जाति, भाव, क्रिया, द्रव्य आदि का ज्ञान कराने वाले शब्द या नाम को संज्ञा कहा जाता है। संज्ञा के कारण हम किसी वस्तु, व्यक्ति, स्थान और जाति के बारे में सही जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

उदाहरण–: सीता (व्यक्ति), आगरा (स्थान), पुस्तक (वस्तु), सोना (क्रिया), क्रोधित (भाव) आदि। ये दिए गए सभी नाम संज्ञा है। जिसके कारण हमें किसी के बारे में जानकारी मिलती है।

1- ताजमहल आगरा में स्थित है।

 इस वाक्य में आगरा किसी स्थान का नाम है। इसलिए यह संज्ञा है

2- मोहन ने पुस्तक को मेज पर रख दिया।

इस वाक्य में मोहन (किसी व्यक्ति का नाम), पुस्तक (वस्तु), और मेज (वस्तु) संज्ञा का बोध करवाते है।

संज्ञा पाँच प्रकार की होती है–:

  1. व्यक्तिवाचक संज्ञा
  2. जातिवचक संज्ञा
  3. भाववाचक संज्ञा
  4. द्रव्यवाचक संज्ञा
  5. समूहवाचक संज्ञा

1)व्यक्तिवचक संज्ञा

जिस शब्द से किसी विशेष व्यक्ति, वस्तु, स्थान, प्राणी आदि के नाम को व्यक्तिवाचक संज्ञा कहते है। इस संज्ञा में व्यक्तियों के नाम, वस्तुओं के नाम, दिशाओं के नाम, देशों के नाम, समुद्रों के नाम, पुस्तकों के नाम, पर्वतों के नाम, समाचार पत्रों के नाम आदि शामिल होते हैं।

उदहारण-  दिल्ली (जगह का नाम), सुभाष चंद्र बोस ( किसी विशेष व्यक्ति का नाम), मेज (वस्तु का नाम)।

1- मोहन स्कूल जा रहा है।

इसमें मोहन एक व्यक्ति का नाम है, इसलिए यह व्यक्तिवाचक संज्ञा है।

2- गीता दिल्ली घूमने गई है।

इस वाक्य में गीता एक विशेष व्यक्ति और दिल्ली एक स्थान का नाम है। इसलिए यह व्यक्तिवाचक संज्ञा है।

2) जातिवाचक संज्ञा

जिस शब्द या संज्ञा से किसी एक ही व्यक्ति या वस्तु की पूरी जाति या वर्ग के बारे में जानकारी मिलें, उसे जातिवाचक संज्ञा कहते है। यह संज्ञा किसी एक विशेष की बातें नहीं करती है बल्कि पूरी जाति का बोध करवाती है। इसमें पशु – पक्षियों, प्राकृतिक तत्वों, वस्तुओं तथा किसी काम आदि के वर्ग को शामिल किया जाता है।

उदाहरण- लड़का, नदी, गाड़ी, पर्वत, पेड़ आदि।यह सभी शब्द अपने वर्ग व पूरी जाति का बोध कराते हैं। इसलिए यह जातिवाचक संज्ञा हैं।

1-हमारे देश में अनेक पर्वत है।

इस वाक्य में पर्वत से उसकी पूरी जाति व वर्ग का ज्ञान हो रहा है, इसलिए यह जातिवाचक संज्ञा है।

2-हमारे बगीचे में पेड़ लगे हुए है।

इस वाक्य में पेड़ से सारी जाति और वर्ग का बोध होता है, इसलिए यह जातिवाचक संज्ञा है।

3) भाववाचक संज्ञा

जिस संज्ञा से किसी व्यक्ति या वस्तु के भाव, गुण, धर्म, भाव और दशा का ज्ञान हो, उसे भाववाचक संज्ञा कहते है। इससे उन सभी की अवस्था का भी पता चलता है। प्रत्येक पदार्थ का धर्म होता है जैसे मिठाई में मिठास, वीरों के वीरता, बच्चों में चंचलता, पानी में शीतलता आदि।

उदाहरण-खुशी, बचपन, कठोर, प्रेम, मिठास आदि के बोध को भाववाचक संज्ञा कहते है।

1- मुझे ठंडा पानी पीना है।

इस वाक्य में पानी के गुण और धर्म (ठंडा) का बोध हो रहा है, इसलिए इस वाक्य में भाववाचक संज्ञा है।

2- लड्डू मीठे है।

इस वाक्य में लड्डू के धर्म(मीठे) का बोध हो रहा है, इसलिए इस वाक्य में भाववाचक संज्ञा है।

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4) द्रव्यवाचक संज्ञा 

 संज्ञा के जिस शब्द से किसी पदार्थ के द्रव्य तथा वस्तु के नाप–तोल का बोध हो उसे द्रव्यवाचक संज्ञा कहते है।  इस संज्ञा में वस्तु को गिना नहीं जा सकता है, उसका परिणाम होता है। यह पदार्थ तरल रूप में होता है।

उदाहरण–: तेल, पेट्रोल, घी, पानी आदि।

1-नदियों में पानी बहता है।

इस वाक्य में पानी के बहने अर्थात द्रव्य का बोध हो रहा है। इसलिए इस वाक्य में द्रव्यवाचक संज्ञा है।

2- गाड़ी में एक लीटर पेट्रोल डलवा देना।

इस वाक्य में पेट्रोल के नाप तोल का बोध हो रहा है, इसलिए इस वाक्य में द्रव्यवाचक संज्ञा है।

5) समूहवाचक संज्ञा

संज्ञा के जिस शब्द से किसी समूह का बोध हो तो उसे समूहवाचक संज्ञा कहते है। यह अलग-अलग या एक-एक व्यक्ति का बोध नहीं करवाता।

उदहारण– टीम, सेना, कक्षा, 

1- भारतीय सेना देश की रक्षा करती है।

इस वाक्य में सेना से पूरे समूह का बोध होता है, इसलिए इस वाक्य में समूहवाचक संज्ञा है।

2- सभी खिलाड़ियों ने मिलकर एक टीम बना ली है।

इस वाक्य में टीम से खिलाड़ियों के समूह का बोध होता है, इसलिए इस वाक्य में समूहवाचक संज्ञा है।

अधिकतर पूछे गए प्रश्न–:

1.संज्ञा कितने प्रकार की होती है?

उत्तर: संज्ञा पाँच प्रकार की होती है। जिससे हम किसी वस्तु या व्यक्ति के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

1.व्यक्तिवाचक संज्ञा

2.जातिवचक संज्ञा

3.भाववाचक संज्ञा

4.द्रव्यवाचक संज्ञा

5.समूहवाचक संज्ञा

2. किसी पदार्थ के द्रव्य का बोध किस संज्ञा में होता है?

उत्तर: द्रव्यवाचक संज्ञा में किसी पदार्थ के द्रव्य का बोध होता है साथ ही वस्तु के नाप – तोल का भी बोध होता है। इसमें सभी पदार्थ द्रव्य के रूप में होते हैं।

उदाहरण: हलवाई को एक लीटर तेल चाहिए।

इस वाक्य में एक लीटर शब्द से तेल के नाप तोल का बोध हो रहा है, इसलिए इस वाक्य में द्रव्यवाचक संज्ञा है।

3. दिए गए वाक्य में कौन सी संज्ञा है?

“वह सभी टीम में खेल रहे हैं।”

उत्तर: इस वाक्य में टीम समूहवाचक संज्ञा है। क्योंकि टीम खिलाड़ियों के एक समूह का बोध करवा रही है। इसलिए इस वाक्य में समूहवाचक संज्ञा है।

4. “अमित घर जा रहा है।”

दिए गए वाक्य में कौन सी संज्ञा है?

उत्तर: इसमें अमित व्यक्तिवाचक संज्ञा है क्योंकि इसमें किसी व्यक्ति के नाम का बोध हो रहा है तथा घर जातिवाचक्र संज्ञा है क्योंकि इसमें घर के सभी जाति का बोध हो रहा है। इसलिए इसमें दो संज्ञा है।

5. भाववाचक संज्ञा किसे कहते है?

उत्तर: जिस संज्ञा से किसी व्यक्ति या वस्तु के भाव, गुण, भाव और दशा का ज्ञान हो, उसे भाववाचक संज्ञा कहते है। इससे उन सभी की अवस्था का भी पता चलता है। इन सभी को हम अनुभव कर सकते है।

उदाहरण: भारतीय सीमा की रक्षा करने वाले सभी वीरों में वीरता भरी हुई है। इस वाक्य में वीरता शब्द से वीरों के गुण का बोध होता है। इसलिए इसमें भाववाचक संज्ञा है।

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सर्वनामसंज्ञा
प्रत्ययअलंकार
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वाक्य विचारसमास
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अव्ययकाल

शब्द विचार

शब्दों की जानकारी और उस शब्द का पूर्ण ज्ञान होना शब्द विचार कहलाता है। शब्द विचार हिन्दी व्याकरण का दूसरा भाग है। इसके अंतर्गत ध्वनियों के मेल से बने सार्थक वर्ण समूह जैसे-भेद-उपभेद, संधि-विच्छेद आदि को पढ़ा जाता है।

इसके अंतर्गत शब्द की परिभाषा, भेद-उपभेद, संधि, विच्छेद, रूपांतरण, निर्माण आदि से संबंधित नियमों पर विचार किया जाता है।

शब्द की परिभाषा

वर्णों या अक्षरों से बना ऐसा स्वतंत्र समूह जिसका कोई अर्थ हो, वह समूह शब्द कहलाता है। जैसे: लड़का, लड़की आदि।

शब्द विचार का वर्गीकरण

शब्द विचार चार्ट
                                                                        शब्द विचार का चार्ट

–:अर्थ के आधार पर

–:बनावट या रचना के आधार पर

–:प्रयोग के आधार पर

–:उत्पत्ति के आधार पर

अर्थ के आधार पर शब्द के भेद

1. सार्थक शब्द:

वे शब्द जिनसे कोई अर्थ निकलता हो, सार्थक शब्द कहलाते हैं। जैसे: गुलाब, आदमी, विषय आदि।

2. निरर्थक शब्द :

वे शब्द जिनका कोई अर्थ ना निकल रहा हो या जो शब्द अर्थहीन हो, निरर्थक शब्द कहलाते हैं। जैसे: देना-वेना, मुक्का-वुक्का आदि।

रचना (बनावट) के आधार पर शब्द के भेद

रचना के आधार पर शब्द के निम्नलिखित तीन भेद होते हैं:

1. रूढ़ शब्द :

ऐसे शब्द जो किसी विशेष अर्थ को प्रकट करते हैं लेकिन अगर उनके टुकड़े कर दिए जाएँ तो निरर्थक हो जाते हैं। ऐसे शब्दों को रूढ़ शब्द कहते हैं। जैसे: जल, कल, जप आदि।

2. यौगिक शब्द

ऐसे शब्द जो किन्हीं दो सार्थक शब्दों के मेल से बनते हों वे शब्द यौगिक शब्द कहलाते हैं। इन शब्दों के खंड भी सार्थक होते हैं। जैसे: स्वदेश : स्व + देश, देवालय : देव + आलय, कुपुत्र : कु + पुत्र आदि।

3. योगरूढ़ शब्द

ऐसे शब्द जो किन्हीं दो शब्द के योग से बने हों एवं बनने पर किसी विशेष अर्थ का बोध कराते हैं, वे शब्द योगरूढ़ शब्द कहलाते हैं। जैसे: दशानन : दस मुख वाला अर्थात रावण , पंकज : कीचड़ में उत्पन्न होने वाला अर्थात कमल आदि

बहुब्रिही समास ऐसे शब्दों के अंतर्गत आते हैं।

प्रयोग के आधार पर शब्द के भेद

प्रयोग के आधार पर शब्द के दो भेद होते हैं :

1. विकारी शब्द :

ऐसे शब्द जिनके रूप में लिंग, वचन, कारक के अनुसार परिवर्तन होते हैं, वे शब्द विकारी शब्द कहलाते हैं। जैसे:

लिंग : बच्चा पढता है। –बच्ची पढ़ती है।

वचन : बच्चा सोता है। – बच्चे सोते हैं।

कारक : बच्चा सोता है। – बच्चे को सोने दो। बच्चा शब्द है यह लिंग, वचन वचन एवं कारक के अनुसार परिवर्तित हो रहा है। अतः यह विकारी शब्दों के अंतर्गत आएगा।

2. अविकारी शब्द :

ऐसे शब्द जिन पर लिंग, वचन एवं कारक आदि से कोई फर्क नहीं पड़ता एवं जो अपरिवर्तित रहते हैं। ऐसे शब्द अविकारी शब्द कहलाते हैं। जैसे: तथा, धीरे, किन्तु, परन्तु, तेज़, अधिक आदि।

 शब्द लिंग, वचन कारक आदि बदलने पर भी अपरिवर्तित रहेंगे। अतः ये उदाहरण अविकारी शब्दों के अंतर्गत आएँगे।

उत्पत्ति के आधार पर शब्द के भेद

उत्पत्ति के आधार पर शब्द के चार भेद होते हैं:

1. तत्सम शब्द :

तत् (उसके) + सम (समान) यानी ऐसे शब्द जिनकी उत्पत्ति संस्कृत भाषा में हुई ओर वे हिन्दी भाषा में बिना किसी परिवर्तन के प्रयोग में आने लगे, ऐसे शब्द तत्सम शब्द कहलाते हैं। जैसे: पुष्प, पुस्तक, पृथ्वी, क्षेत्र, कार्य, मृत्यु, कवि, माता, विद्या, नदी, फल, अग्नि, पुस्तक आदि।

2. तद्भव शब्द :

ऐसे शब्द जिनकी उत्पत्ति संस्कृत भाषा से हुई थी लेकिन वो रूप बदलकर हिन्दी में आ गए हों, ऐसे शब्द तद्भव शब्द कहलायेंगे। जैसे:

दुग्ध – दूध

अग्नि – आग

कार्य –काम

कर्पूर–  कपूर

हस्त – हाथ

3. देशज शब्द

ऐसे शब्द जो भारत की विभिन्न स्थानीय बोलियों में से हिंदी में आ गए हैं, वे शब्द देशज शब्द कहलाते हैं। जैसे: पेट, डिबिया, लोटा, पगड़ी, थैला, इडली, डोसा, समोसा, चमचम, गुलाबजामुन, लड्डु, खटखटाना, खिचड़ी आदि।

ऊपर दिए गए सभी उदाहरण भारत की ही विभिन्न स्थानीय बोलियों में से क्षेत्रीय प्रभाव के कारण परिस्थिति व आवश्यकतानुसार बनकर प्रचलित हो गए हैं। ये अब हिन्दी में आ गए हैं। अतः यह शब्द देशज शब्द कहलाएँगे।

4. विदेशी शब्द

ऐसे शब्द जो भारत से बाहर की भाषाओं से हैं लेकिन ज्यों के त्यों हिन्दी में प्रयुक्त हो गए, वे शब्द विदेशी शब्द कहलाते हैं। मुख्यतः यह विदेशी जातियों से हमारे बढ़ते मिलन से हुआ है। ये विदेशी शब्द उर्दू, अरबी, फारसी,अंग्रेजी, पुर्तगाली, तुर्की, फ्रांसीसी, ग्रीक आदि भाषाओं से आए हैं।

विदेशी शब्दों के उदाहरण निम्न हैं :

अंग्रेजी–: कॉलेज, पैंसिल, रेडियो, टेलीविजन, डॉक्टर, लैटरबक्स, पैन, टिकट, मशीन, सिगरेट, साइकिल आदि।

फारसी–: अनार,चश्मा, जमींदार, दुकान, दरबार, नमक, नमूना, बीमार, बरफ, रूमाल, आदमी, चुगलखोर, आदि।

अरबी–:औलाद,अमीर, कत्ल, कलम, कानून, खत, फकीर, रिश्वत, औरत, कैदी, मालिक, गरीब आदि।

अधिकतर पूछे गए प्रश्न–:

1.शब्द विचार को कितने आधार पर बाँटा गया है?

उत्तर:शब्द विचार को 5 आधार पर बाँटा गया है-

1.अर्थ के आधार पर

2.बनावटया रचना के आधार पर

3.प्रयोगके आधार पर

4.उत्पत्ति के आधार पर

5.अर्थ के आधार पर 

2. रूढ़ शब्द किसे कहते है?

उत्तर: ऐसे शब्द जो किसी विशेष अर्थ को प्रकट करते हैं लेकिन अगर उनके टुकड़े कर दिए जाएँ तो निरर्थक हो जाते हैं। ऐसे शब्दों को रूढ़ शब्द कहते हैं। जैसे: जल, कल, जप आदि।

3.किसी अन्य भाषा और देश के शब्द किस वर्ग में आते है?

उत्तर:ऐसे शब्द जो भारत से बाहर की भाषाओं से हैं लेकिन ज्यों के त्यों हिन्दी में प्रयुक्त हो गए, वे शब्द विदेशी शब्द कहलाते हैं।

4.हिंदी व्याकरण का दूसरा भाग किसे कहते है?

उत्तर: हिंदी व्याकरण का दूसरा भाग शब्द विचार को कहा जाता है।

5. ‘दंत’ कैसा शब्द है?

उत्तर: दंत ‘तद्भव’ शब्द है।जिनकी उत्पत्ति संस्कृत भाषा से हुई थी लेकिन वो रूप बदलकर हिन्दी में आ गए हों, ऐसे शब्द तद्भव शब्द होते हैं।

इन्हे भी पढ़िये

सर्वनामसंज्ञा
प्रत्ययअलंकार
वर्तनीपद परिचय
वाक्य विचारसमास
लिंगसंधि
विराम चिन्हशब्द विचार
अव्ययकाल

विराम

 विराम का अर्थ है “रुकना या ठहरना” किसी भी वाक्य को लिखते या बोलते समय बीच में कुछ पल का ठहराव आता है यही ठहराव या रुकना उस वाक्य को स्पष्ट, अर्थवान, भावपूर्ण बनाती है। लिखित भाषा में वाक्य प्रयोग के समय कुछ चिन्हों का प्रयोग किया जाता है वाक्य में कुछ पल के ठहराव के लिए प्रयुक्त होने वाले चिन्ह को विराम चिन्ह  कहा जाता है।

विराम चिन्ह को सरल भाषा में “रुकना या ठहरना” कहते हैं ,जो चिन्ह लिखते, बोलते या पढ़ते समय रुकने का संकेत देते हैं या ठहराव के लिए प्रयोग किये जाते हैं उन्हें “विराम चिन्ह” कहा जाता है। विराम चिन्ह को अंग्रेजी में punctuation marks कहा जाता है।

यदि विराम चिन्ह का प्रयोग न किया जाए तो अर्थ का अनर्थ हो जाता है। उदहारण के रूप में नीचे दिए गए वाक्य के विराम चिन्ह के स्थान से अलग लगाने पर वाक्य का अर्थ अलग निकल कर आता है ; जैसे –

  1. रोको मत जाने दो। (इस वाक्य में अर्थ स्पष्ट नहीं है )
  2. रोको, मत जाने दो। (इस वाक्य में अर्थ स्पष्ट है इसमें “रोको” के बाद अल्पविराम का प्रयोग किया गया है जिसमे रोकने के लिए कहा गया है।)
  3. रोको मत ,जाने दो। (इस “रोको मत” के बाद अल्पविराम लगाने से किसी को न रोक कर जाने के लिए कहा गया है। )

इस प्रकार से विराम चिन्ह के प्रयोग से दूसरे तथा तीसरे वाक्य का अर्थ अच्छे से स्पष्ट होता है किन्तु पहले वाक्य का अर्थ स्पष्ट उतने अच्छे से नहीं हो पाता है।

हिन्दी के विराम चिन्ह और उनके संकेत

विराम चिन्ह चार्ट
                                                                   viram chinh chart

1. पूर्ण विराम या विराम  [ । ]

हिंदी भाषा में पूर्ण विराम ऐसा चिन्ह है जिसका प्रयोग अधिकतर किया जाता है। पूर्ण विराम चिन्ह हिंदी का सबसे प्राचीन चिन्ह है।पूर्ण विराम को अंग्रेजी में full stop कहा जाता है। इसे (।) चिन्ह से दर्शाया जाता है ;पूर्ण विराम वाक्य के पूर्ण रूप से आशय प्रकट हो जाने के बाद लगता है।

 इस चिन्ह का प्रयोग प्रश्नवाचक तथा विस्मयादिबोधक वाक्यों को छोड़कर अन्य सभी सरल ,संयुक्त ,मिश्र वाक्यों के अंत में होता है जैसे –

  1. वह घर जा रहा है।
  2. वह स्कूल जाने वाला है।
  3. लड़का छत से नीचे गिर गया।
  4. मेने पढ़ा लिया है।

दोहा, श्लोक, चौपाई आदि की पहली पंक्ति के अंत में इसका प्रयोग होता है और दूसरी पंक्ति में दो पूर्ण विराम लगाए जाते हैं; जैसे –

रहिमन पानी रखिए बिन पानी सब सून।

पानी गए न उबरे मोती,मानुस,चून।।

किसी व्यक्ति ,वस्तु का सजीव वर्णन करते समय वाक्य के अंत में; जैसे –

  1. हट्टा कट्टा शरीर।
  2. सुन्दर काया।

2. अर्द्धविराम [ ; ]

अर्द्धविराम को अंग्रेजी में semicolon कहा जाता है। अर्द्धविराम का अर्थ है आधा विराम यानि पूर्ण विराम से थोड़ा कम विराम का समय जिस वाक्यों में लगता है वहां इस चिन्ह का प्रयोग होता है। अल्पविराम से अधिक रुकने और पूर्ण विराम से थोड़ा कम रुकने वाले वाक्य में इस चिन्ह का प्रयोग किया जाता है। आम तौर पर अर्ध विराम दो उपवाक्यों को जोड़ने का काम करता है ऐसे वाक्य जिन्हें “और” से नहीं जोड़ा जा सकता वहां अर्द्धविराम का प्रयोग किया जाता है; जैसे –

  1. फलों में आम को सर्वश्रेष्ठ फल मन गया है ;किन्तु श्रीनगर में और भी किस्म के फल विशेष रूप से पैदा होते हैं।
  2. उसने अपने बालक को बचाने के कई प्रयास किये; किन्तु सफल न हो सका

3. अल्पविराम  [ , ]

अर्द्धविराम से कम देर तक जिन वाक्यों में ठहराव होता है या जिनमे अर्द्धविराम की अपेक्षा थोड़ी देर ही रुकना पड़ता है उन वाक्यों में इस चिन्ह का प्रयोग होता है। इस चिन्ह को अंग्रेजी में comma कहा जाता है और इसे ( , ) चिन्ह के रूप में दर्शाया जाता है।

एक ही प्रकार के कई शब्दों का प्रयोग होने पर प्रत्येक शब्द के बाद में इस चिन्ह का प्रयोग होता है किन्तु अंतिम शब्द से पहले “और” का प्रयोग किया जाता है।

उदहारण -1. सीमा अपने घर ,परिवार और बच्चों को खो चुकी है।

‘हाँ’ ,’नहीं’, अतः, ‘वस्तुतः’ ,अच्छा ,जैसे शब्दों से शुरू होने वाले वाक्यों में इन शब्दों के उपरांत ;जैसे –

उदहारण -1. नहीं ,मैं नहीं आ सकता।

2. हाँ , तुम जाना चाहते हो तो जाओ।

उपाधियों  के लिए ;जैसे :

बी.ए , एम.ए., पी.एच. डी. ,बी.एस.सी।

सम्बोधन सूचक शब्दों में भी कभी कभी अल्पविराम चिन्ह का प्रयोग होता है ;जैसे –

उदाहरण -1. आशा ,तुम वहां जाओ।

युग्म शब्दों में अलगाव दर्शाने के लिए ;जैसे –

उदाहरण -1. सच और झूठ , कल और आज ,पाप और पुण्य।

पत्र सम्बोधन के उपरान्त ;जैसे

उदहारण -1. मान्यवर ,महोदय ,पूज्य पिताजी ,आदरणीय माताजी

कभी भी पत्र के अंत में भवदीय,आज्ञाकारी आदि के बाद अल्पविराम नहीं लगाया जाता है। 

किन्तु, परन्तु, क्योंकि आदि समुच्यबोधक शब्दों से पूर्व अल्पविराम लगाया जाता है ;जैसे –

उदाहरण – मैं आज खाना नहीं खाऊंगा ,क्योंकि मेरा मन नहीं है।

मैंने बहुत परिश्रम किया ,किन्तु सफल न हो पाया।

तारीख के साथ महीने का नाम लिखने के बाद तथा सन्, सम्वंत के पहले अल्पविराम का प्रयोग होता है ;जैसे –

उदाहरण– 15 अगस्त ,सन् 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ।

4.प्रश्नवाचक चिन्ह [ ? ]

प्रश्नवाचक चिन्ह को अंग्रेजी में MARK OF INTERROGATION कहा जाता है तथा इसे (?) चिन्ह से दर्शाया जाता है; वे सभी वाक्य जिनमे सवाल किये जा रहे हों या कुछ पूछा जा रहा हो प्रश्नवाचक चिन्ह का प्रयोग किया जाता है।

(a) ऐसे वाक्यों के अंत में प्रश्नवाचक चिन्ह का प्रयोग होता है; जैसे –

उदहारण –1. तुम कौन हो ?

2. तुम कहाँ जा रहे हो ?

3. तुम कल क्यों नहीं आये ?

 इस चिन्ह का प्रयोग संदेह प्रकट करने के लिए भी उपयोग में लाया जाता है ;जैसे–

क्या कहा वह ईमानदार ?है।

5. विस्मयादिबोधक चिन्ह [ ! ]

विस्मयादिबोधक चिन्ह को अंग्रेजी में mark of exclamation कहा जाता है और इसे (!)चिन्ह से दर्शाया जाता है।

 वाक्य में हर्ष, विवाद, विस्मय, घृणा, आश्रर्य, करुणा, भय आदि भावनाओं का बोध करने के लिए इस चिह्न का प्रयोग किया जाता है ;जैसे –

उदाहरण– 1. हे भगवान ! ऐसा कैसे हो गया।

2. छी:छी ! कितनी बदसूरत औरत है।

3 .आह ! कितना अच्छा मौसम है।

4 . वाह! आप कैसे पधारे।

 संबोधनसूचक शब्दों के बाद इसका प्रयोग किया जाता है ;जैसे –

उदाहरण -1. मित्रों !आज की सभा में आप सभी स्वागत है।

2. मेरे भाइयों बहनो ! आज में यहाँ आप सभी के सामने उपस्थित हूँ।

6. उद्धरण चिन्ह  [ ” ” ] [ ‘ ‘ ]

उद्धरण चिन्ह जिसे अंग्रेजी में inverted commas कहा जाता है इसे (” “) चिन्ह से दर्शाया जाता है। किसी महान व्यक्ति की उक्ति या किसी और के वाक्य या शब्दों को ज्यों का त्यों रखने में तथा खास शब्द पर जोर डालने के लिए अवतरण चिह्न ,उद्धरण चिन्ह (” ”) का प्रयोग किया जाता है ;जैसे :

तुलसीदास जी ने कहा –

“रघुकुल रीत सदा चली आई। प्राण जाए पर वचन न जाई।।”

“साहित्य राजनीती से आगे चलने वाली मशाल है। “

7. योजक [ – ]

योजक चिन्ह जिसे अंग्रेजी में hyphen कहा जाता है इसका प्रयोग दो शब्दों को जोड़ने के लिए किया जाता है जिन दो शब्दों को जोड़ने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है।

–:इसका प्रयोग सामासिक पदों या पुनरुक्ति ,युग्म शब्दों के मध्य में किया जाता है; जैसे

  1. माता -पिता
  2. जय-पराजय
  3. लाभ -हानि
  4. राष्ट्र-भक्ति।

–:तुलनवाचक ‘सा’, ‘सी ‘, ‘से’ के पहले इस चिन्ह का प्रयोग किया जाता है; जैसे –

  1. चाँद -सा मुखड़ा ,
  2. फूल-सी मुस्कान
  3. मोरनी-सी चाल

–:एक अर्थ वाले सहचर शब्दों के बीच में इस चिन्ह का प्रयोग होता है ;जैसे –

  1. मान- मर्यादा
  2. कपडा-लत्ता

–:सार्थक-निरर्थक शब्द युग्मो के बीच ;जैसे–

  1. काम -वाम
  2. खाना-वाना

8. निर्देशक  [ — ]

यह निर्देशक जिसे अंग्रेजी में dash कहा जाता है इसको (—) चिन्ह से दर्शाया जाता है। यह योजक चिन्ह से थोड़ा बड़ा होता है। इस चिन्ह का प्रयोग संवादों को लिखने के लिए ,कहना ,लिखना बोलना बताना शब्दों के बाद इसका प्रयोग होता है और किसी भी प्रकार की सूची से पहले इसका प्रयोग होता है।

–: संवादों को लिखने के लिए ;जैसे –

महेश — तुम यहाँ कब आये ?

सीमा — मैं कल सुबह यहाँ आ गयी थी।

–:कहना ,बोलना ,लिखना बताना इन शब्दों के बाद ;जैसे –

सुभाष चंद्र बॉस ने कहा —”तुम मुझे खून दो में तुम्हें आज़ादी दूंगा।”

गाँधी जी ने कहा— हिंसा मत करो।

–: किसी भी प्रकार की सूची से पहले इस चिन्ह का प्रयोग होता है ;जैसे –

आज की परीक्षा में शामिल होने वाले छात्रों के नाम निम्नलिखित है—प्रतिभा ,अर्चना ,स्वाति ,महिमा।

9. कोष्ठक  [ ( ) ]

कोष्ठक को अंग्रेजी में brackets कहा जाता है और इसे [( )] से दर्शाया जाता है। कोष्ठक के भीतर उस सामग्री को रखा जाता है जो मुख्य वाक्य का अंग होते हुए भी पृथक किया जा सके।

–: किसी कठिन शब्द को स्पष्ट करने के लिए इस चिन्ह का प्रयोग किया जाता है ;जैसे –

आपका सामर्थ्य (शक्ति) हर कोई जानता है।

–: नाटक में अभिनय करने वालों के निर्देशों को कोष्ठक में रखा जाता है ;जैसे –

सीता —(आगे बढ़ते हुए) हे धरती माँ मुझे अपनी गोद में समा ले।

10. हंसपद (त्रुटिबोधक)  [ ^ ]

हंसपद (त्रुटिबोधक) को अंग्रेजी में caret कहा जाता है और इसे (^ )चिन्ह से है ,इसका नाम हंसपद इसलिए है क्योंकि इस चिन्ह की आकृति हंस के पैर के सामान दिखाई देती है। जब किसी वाक्यॉंश या वाक्य में कोई शब्द या अक्षर लिखते समय छूट जाता है तो उस शब्द या अक्षर को लिखने के लिए वाक्य के जिस स्थान में वह शब्द छूटा था वहाँ से इस लगाकर वह शब्द या अक्षर लिखा जाता है छूटे हुए वाक्य के नीचे हंसपद चिन्ह का प्रयोग करके छूटे शब्द या अक्षर को ऊपर लिख दिया जाता है; जैसे –

उदहारण – तुम मुझे ^ दो मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा।यहाँ पर तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा होना था। आप जिस स्थान पर छूटे हुए शब्द को डालना चाहते हैं वहां पर हंसपद का प्रयोग करके उस शब्द को चिन्ह के ऊपर लिख देंगे ।

11. रेखांकन [ ____ ]

रेखांकन को अंग्रेजी में underline कहा जा जाता है इसको ( ___)चिन्ह से दर्शाया जाता है। वाक्य में महत्वपूर्ण शब्द या पद ,वाक्य को रेखांकित कर दिया जाता है ; जैसे –

हम सभी दिवाली पर माँ लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा करते हैं।

प्रेमचंद्र द्वारा लिखा गया उपन्यास गोदान सर्वश्रेष्ठ कृति है।

12. लाघव चिन्ह  [ ० ]

लाघव चिन्ह को अंग्रेजी में sign of abbreviation कहा जाता है इसको (० ) चिन्ह से दर्शाया जाता है। किसी भी शब्द या वाक्य को छोटे रूप में लिखने के लिए इस चिन्ह को प्रयोग में लाया जाता है ;जैसे –

  1. कृ० प० उ० जो की कृपया पृष्ठ उलटिये का संक्षिप्त रूप है।
  2. उ० न० नि० = उत्तराखंड नगर निगम
  3. उ० पा० का० लि० =उत्तराखंड पावर कारपोरेशन लिमिटेड

13. लोप चिन्ह  [ ….. ]

जब वाक्य में कुछ अंश को छोड़ना हो या उस अंश को छोड़कर वाक्य को लिखना हो तो लोप चिन्ह का किया जाता है। इसको डॉट-डॉट से दर्शाया जाता है। जैसे -महात्मा गाँधी ने कहा ,”परीक्षा की घडी आए चुकी है ……..हम करेंगे या मरेंगे”।

अधिकतर पूछे गए प्रश्न–

1. लाघव चिन्ह का प्रयोग किस लिए किया जाता है?

उत्तर: अक्षरों को छोटे रूप में लिखने के लिए लाघव चिन्ह का प्रयोग किया जाता है।

2. विराम का अर्थ क्या है?

उत्तर: विराम का अर्थ रुकना या ठहरना है। वाक्य में कुछ समय का ठहराव आता है।

3.तुम कहाँ जा रहे हो वाक्य में विराम चिन्ह लगाओ।

उत्तर: तुम कहाँ जा थे हो? वाक्य में प्रश्नवाचक चिन्ह आयेगा क्योंकि इसमें प्रश्न पूछा गया है।

4. हिन्दी में विराम चिन्ह के कितने भेद है?

उत्तर: हिंदी में विराम चिन्ह के 13 भेद है। जिनका प्रयोग वाक्य में किया जाता है।

5. विराम चिन्ह (punctuation) में कौन-सा विराम चिन्ह है?

उत्तर: इसमें कोष्ठक विराम चिन्ह का प्रयोग किया गया है क्योंकि ()के अंदर मुख्य वाक्य का अंग है।

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लिंग

जिससे शब्द की जाति का बोध होता है तथा उनका अलग अलग वर्गीकरण किया जाता है, उसे लिंग कहते है। 

हिंदी में दो लिंग होते है– 

स्त्रीलिंग और पुल्लिंग।

1.स्त्रीलिंग- 

स्त्री और लिंग दो शब्दों से मिलकर बना हुआ है, इसलिए जो शब्द स्त्री जाति का बोध कराते हैं, उन्हें स्त्रीलिंग कहा जाता है। 

जैसे- राधा, पुत्री, लड़की, शेरनी, चिड़िया।

दिए गए शब्दों से स्त्री जाति का बोध होता है,इन्हें पुरुष जाति के शब्दों से अलग रखा है।

2. पुल्लिंग- 

पुल्लिंग पुरुष और लिंग दो शब्दों से मिलकर बना है, इसलिए स्त्रीलिंग के विपरीत जो शब्द पुरुष जाति का बोध कराते हैं, उन्हें पुल्लिंग कहते है।

जैसे– कृष्ण, शेर, लड़का।

दिए गए शब्दों से पुरुष जाति का बोध होता है, इन्हें स्त्री जाति के शब्दों से अलग रखा जाता है।

कुछ शब्द जो स्त्रीलिंग होते हैं–

1. ईकारांत शब्द– चिट्ठी, पत्री, बोली, गोली।

(ईकारांत शब्दों में अंत में ई की मात्रा लगाई जाती है।)

2.नदियों के नाम– गंगा, यमुना।

3.राशियों, तिथियों और नक्षत्रों के नाम– मेष, तुला, अश्विन, रोहिणी।

4.धातुओं के नाम– चांदी, मिट्टी।

5.संस्कृत के स्त्रीलिंग और नपुंसक लिंग– आशा, माता

संस्कृत भाषा में तीन लिंग (नपुंसक लिंग) होते है। लेकिन हिंदी भाषा में दो ही लिंग होते है।

6. समुदाय वाचक संख्याएँ – सेना, टीम, सभा फोज

जिसमें अनेक मनुष्य मिलकर एक चीज का बोध करवाते हैं, उसे समुदाय वाचक संख्या कहते है।

7.अनाज दालें – अरहर, मकई।

8.कुछ प्राणिवाचक शब्द– गाय, कोयल, मैना, बिल्ली।

कुछ शब्द जो पुल्लिंग होते हैं–

1.पर्वतों के नाम– हिमालय, शिवालिक।

2. भावनावाचक संज्ञाएँ – जिनके अंत में आव, पन, पा, त्व हो – बहाव, बचपन, बुढ़ापा।

3. महीने और दिनों के नाम– मंगलवार, चैत्र।

4. ग्रहों के नाम– बुध, राहु।

5.संस्कृत में नपुंसक लिंग– दही, मधु।

6. पेड़, अनाज, संबंधी शब्द– पीपल, आम, गेहूँ।

7.द्रव्यवाचक शब्द– सोना, तांबा।

पुल्लिंग से स्त्रीलिंग बनाने के नियम

1. अकारांत(अकारांत शब्द वे होते है जिन शब्दों के अंत में अ की ध्वनि आती है) और आकारांत शब्दों के अंत में ‘ई’ जोड़ देने से स्त्रीलिंग बन जाता है–

नाना– नानी

दादा–दादी

पुत्र–पुत्री

देव– देवी

कबूतर– कबूतरी

लड़का– लड़की

2.कुछ अकारांत शब्दों के अंत में ‘आ’ हटाकर ‘इया’ जोड़ दिया जाता है–

डिब्बा– डिबिया

बेटा–बिटिया

बूढ़ा –बुढ़िया

चूहा– चुहिया

3.कुछ व्यापार सूचक शब्दों के पीछे ‘इन ’ प्रत्यय लगाया जाता है।

जुलाहा– जुलाहीन

धोबी– धोबिन

ग्वाला– ग्वालिन

ठेठेरा– ठठेरिन

4.कुछ प्राणिवाचक शब्दों के पीछे ‘नी’ या ‘इनी’ लगाया जाता है।

हंस–हंसिनी

शेर–शेरनी

हाथी– हथिनी

5.कुछ प्राणिवाचक शब्दों के पीछे ‘आनी’ प्रत्यय लगाया जाता है।

नौकर– नौकरानी

देवर–देवरानी

जेठ– जेठानी

सेठ– सेठानी

6.कुछ अकारांत शब्दों के पीछे ‘आ’ प्रत्यय लगाया जाता है।(अकारांत शब्द वे होते है जिन शब्दों में पीछे आ की ध्वनि आती है)

शिव–शिव

सुत – सुता

बाल–बाला

शुद्र– शुद्रा

प्रिय– प्रिया

7. कुछ शब्दों के अंत में ‘वती’ या ‘मती’ लगाया जाता है

गुणवान– गुणवती

बुद्धिमान– बुद्धिमती

रूपवान–रूपवती

भगवान– भगवती

धनवान– धनवती

श्रीमान– श्रीमती

8.कुछ उपनाम संबंधी शब्दों के अंत में आइन प्रत्यय लगाया जाता है

लाला– ललाइन 

ठाकुर–ठकुराइन

पंडित– पंडिताइन

दुबे– दुबाइन

बाबू– बबुआइन

9.कुछ शब्दों के अंत में अक आता है उन्हें  स्त्रीलिंग बनाने के लिए ‘अक’ प्रत्यय का ‘इका’ कर लिया जाता है।

अध्यापक– अध्यापिका

नायक–नायिका

बालक–बालिका

लेखक– लेखिका

प्रेषक– प्रेषिका

सेवक– सेविका

10.कुछ शब्दों के अंत में ‘त्रि’ लगाया जाता है-

कवि–कवयित्री

कर्ता– कत्री

11.कुछ इकारांत शब्दों के अंत में ‘ई ’ प्रत्यय को ‘इ’ लगाकर ‘णी’ लगाया जाता है।

परोपकार– परोपकारिणी

अधिकार–अधिकारिणी

कल्याण–कल्याणकारिणी

सहधर्म– सहधर्मिणी

12.कुछ पुल्लिंगो के स्त्रीलिंग सर्वथा भिन्न होते हैं

वर –वधू

माता–पिता

राजा–रानी

विद्वान– विदुषी

अधिकतर पूछे गए प्रश्न

1. हिंदी में लिंग कितने प्रकार के होते?

उत्तर: हिंदी में लिंग दो प्रकार के होते है। जिससे किसी शब्द की जाति का बोध कराया जाता है।

पुल्लिंग और स्त्रीलिंग

2. ‘मैम’ का पुल्लिंग क्या होगा?

उत्तर:’मैम’ का पुल्लिंग ‘सर’ होगा क्योंकि इन शब्दों के लिंग सर्वथा भिन्न होते है। इनमें कोई नियम नहीं लगता है।

3.महीनों और दिनों के नामों को कौन से लिंग में रखा गया है?

उत्तर: महीनों और दिनों के नामों को पुल्लिंग में रखा गया है। इनसे पुरुष जाति का बोध होता है।

4.चाचा’ का स्त्रीलिंग क्या होता है?

उत्तर: चाचा का स्त्रीलिंग चाची होता है क्योंकि अकारांत और आकारांत शब्दों के अंत में ‘ई’ जोड़ दिया जाता है।

5.संस्कृत में कितने प्रकार के लिंग होते है?

उत्तर: संस्कृत में तीन प्रकार के लिंग होते है।

स्त्रीलिंग, पुल्लिंग, नपुंसक लिंग।

सर्वनामसंज्ञा
प्रत्ययअलंकार
वर्तनीपद परिचय
वाक्य विचारसमास
लिंगसंधि
विराम चिन्हशब्द विचार
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संधि

सन्धि (सम् + धि) शब्द का अर्थ है ‘मेल’ या जोड़। दो निकटवर्ती वर्णों के परस्पर मेल से जो विकार (परिवर्तन) होता है वह संधि कहलाता है।संस्कृत, हिन्दी एवं अन्य भाषाओं में परस्पर स्वरो या वर्णों के मेल से उत्पन्न विकार को सन्धि कहते हैं। 

जैसे– सम् + तोष = संतोष 

         देव + इंद्र = देवेंद्र

         भानु + उदय = भानूदय

संधि के भेद

sandhi ke bhed
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1. स्वर संधि 

दो स्वरों के मेल से होने वाले विकार (परिवर्तन) को स्वर-संधि कहते हैं।

जैसे- विद्या + आलय = विद्यालय

स्वर-संधि पाँच प्रकार की होती हैं 

1.दीर्घ संधि

2.गुण संधि

  1. व्यंजन संधि  
  2. विसर्ग संधि

3.वृद्धि संधि

4.यण संधि

5.अयादि संधि

1. दीर्घ संधि

ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ के बाद यदि ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ आ जाएँ तो दोनों मिलकर दीर्घ आ, ई और ऊ हो जाते हैं। 

जैसे –

(क) अ/आ + अ/आ = आ

 धर्म + अर्थ = धर्मार्थ 

 हिम + आलय = हिमालय 

पुस्तक + आलय = पुस्तकालय

विद्या + अर्थी = विद्यार्थी 

विद्या + आलय = विद्यालय

(ख) इ और ई की संधि

रवि + इंद्र = रवींद्र 

मुनि + इंद्र = मुनींद्र

गिरि + ईश = गिरीश 

मुनि + ईश = मुनीश

मही + इंद्र = महींद्र 

नारी + इंदु = नारींदु

नदी + ईश = नदीश 

मही + ईश = महीश .

(ग) उ और ऊ की संधि

भानु + उदय = भानूदय 

 विधु + उदय = विधूदय

लघु + ऊर्मि = लघूर्मि 

 सिधु + ऊर्मि = सिंधूर्मि

 वधू + उत्सव = वधूत्सव

वधू + उल्लेख = वधूल्लेख

भू + ऊर्ध्व = भूर्ध्व 

 वधू + ऊर्जा = वधूर्जा 

2. गुण संधि

इसमें अ, आ के आगे इ, ई हो तो ए ; उ, ऊ हो तो ओ तथा ऋ हो तो अर् हो जाता है। इसे गुण-संधि कहते हैं। जैसे –

(क) अ + इ = ए ; नर + इंद्र = नरेंद्र

अ + ई = ए ; नर + ईश= नरेश

आ + इ = ए ; महा + इंद्र = महेंद्र

आ + ई = ए महा + ईश = महेश

(ख) अ + उ = ओ– ज्ञान + उपदेश = ज्ञानोपदेश 

आ + उ = ओ महा + उत्सव = महोत्सव

अ + ऊ = ओ जल + ऊर्मि = जलोर्मि ;

आ + ऊ = ओ महा + ऊर्मि = महोर्मि।

(ग) अ + ऋ = अर् देव + ऋषि = देवर्षि

(घ) आ + ऋ = अर् महा + ऋषि = महर्षि

3.वृद्धि संधि

अ, आ का ए, ऐ से मेल होने पर ऐ तथा अ, आ का ओ, औ से मेल होने पर औ हो जाता है। इसे वृद्धि संधि कहते हैं। जैसे –

(क) अ + ए = ऐ ; एक + एक = एकैक ;

अ + ऐ = ऐ मत + ऐक्य = मतैक्य

आ + ए = ऐ ; सदा + एव = सदैव

आ + ऐ = ऐ ; महा + ऐश्वर्य = महैश्वर्य

(ख) अ + ओ = औ वन + औषधि = वनौषधि ; आ + ओ = औ महा + औषधि = महौषधि ;

अ + औ = औ परम + औषध = परमौषध ; आ + औ = औ महा + औषध = महौषध

4. यण संधि

(क) इ, ई के आगे कोई असमान स्वर होने पर इ ई को ‘य्’ हो जाता है।

(ख) उ, ऊ के आगे किसी असमान स्वर के आने पर उ ऊ को ‘व्’ हो जाता है।

(ग) ‘ऋ’ के आगे किसी विजातीय स्वर के आने पर ऋ को ‘र्’ हो जाता है। इन्हें यण-संधि कहते हैं।

इ + अ = य् + अ ; यदि + अपि = यद्यपि

ई + आ = य् + आ ; इति + आदि = इत्यादि।

ई + अ = य् + अ ; नदी + अर्पण = नद्यर्पण

ई + आ = य् + आ  देवी + आगमन = देव्यागमन

उ + अ = व् + अ ; अनु + अय = अन्वय

उ + आ = व् + आ ; सु + आगत = स्वागत

उ + ए = व् + ए ; अनु + एषण = अन्वेषण

ऋ + अ = र् + आ ; पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा

5.अयादि संधि

ए, ऐ और ओ औ से परे किसी भी स्वर के होने पर क्रमशः अय्, आय्, अव् और आव् हो जाता है,इसे अयादि संधि कहते हैं।

(क) ए + अ = अय् + अ ; ने + अन = नयन

(ख) ऐ + अ = आय् + अ ; गै + अक = गायक

(ग) ओ + अ = अव् + अ ; पो + अन = पवन

(घ) औ + अ = आव् + अ ; पौ + अक = पावक

औ + इ = आव् + इ ; नौ + इक = नाविक

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2.व्यंजन संधि

व्यंजन का व्यंजन से अथवा किसी स्वर से मेल होने पर जो परिवर्तन होता है, उसे व्यंजन संधि कहते हैं। 

जैसे-शरत् + चंद्र = शरच्चंद्र

(क) किसी वर्ग के पहले वर्ण क्, च्, ट्, त्, प् का मेल किसी वर्ग के तीसरे अथवा चौथे वर्ण या य्, र्, ल्, व्, ह या किसी स्वर से हो जाए तो क् को ग् च् को ज्, ट् को ड् और प् को ब् हो जाता है। 

जैसे –क् + ग = ग्ग ,दिक् + गज = दिग्गज

 क् + ई = गी ,वाक + ईश = वागीश

च् + अ = ज् ,अच् + अंत = अजंत 

ट् + आ = डा,षट् + आनन = षडानन

प + ज + ब्ज ,अप् + ज = अब्ज

(ख) यदि किसी वर्ग के पहले वर्ण (क्, च्, ट्, त्, प्) का मेल न् या म् वर्ण से हो तो उसके स्थान पर उसी वर्ग का पाँचवाँ वर्ण हो जाता है। 

जैसे –क् + म = ं ,वाक + मय = वाङ्मय 

च् + न = ं ,अच् + नाश = अंनाश

ट् + म = ण् ,षट् + मास = षण्मास 

त् + न = न् ,उत् + नयन = उन्नयन

प् + म् = म् ,अप् + मय = अम्मय

(ग) त् का मेल ग, घ, द, ध, ब, भ, य, र, व या किसी स्वर से हो जाए तो द् हो जाता है।

 जैसे –त् + भ = द्भ ,सत् + भावना = सद्भावना 

त् + ई = दी ,जगत् + ईश = जगदीश

त् + भ = द्भ ,भगवत् + भक्ति = भगवद्भक्ति

 त् + र = द्र ,तत् + रूप = तद्रूप

त् + ध = द्ध ,सत् + धर्म = सद्धर्म

(घ) त् से परे च् या छ् होने पर च, ज् या झ् होने पर ज्, ट् या ठ् होने पर ट्, ड् या ढ् होने पर ड् और ल होने पर ल् हो जाता है। 

जैसे –त् + च = च्च, उत् + चारण = उच्चारण 

त् + ज = ज्ज ,सत् + जन = सज्जन

त् + झ = ज्झ, उत् + झटिका = उज्झटिका 

त् + ट = ट्ट ,तत् + टीका = तट्टीका

त् + ड = ड्ड, उत् + डयन = उड्डयन 

त् + ल = ल्ल, उत् + लास = उल्लास

(ङ) त् का मेल यदि श् से हो तो त् को च् और श् का छ् बन जाता है।

 जैसे –त् + श् = च्छ ,उत् + श्वास = उच्छ्वास 

त् + श = च्छ, उत् + शिष्ट = उच्छिष्ट

त् + श = च्छ, सत् + शास्त्र = सच्छास्त्र

(च) त् का मेल यदि ह् से हो तो त् का द् और ह् का ध् हो जाता है। 

जैसे –त् + ह = द्ध, उत् + हार = उद्धार 

त् + ह = द्ध, उत् + हरण = उद्धरण

त् + ह = द्ध ,तत् + हित = तद्धित

(छ) स्वर के बाद यदि छ् वर्ण आ जाए तो छ् से पहले च् वर्ण बढ़ा दिया जाता है। 

जैसे –अ + छ = अच्छ, स्व + छंद = स्वच्छंद 

आ + छ = आच्छ ,आ + छादन = आच्छादन

इ + छ = इच्छ ,संधि + छेद = संधिच्छेद

 उ + छ = उच्छ ,अनु + छेद = अनुच्छेद

(ज) यदि म् के बाद क् से म् तक कोई व्यंजन हो तो म् अनुस्वार में बदल जाता है।

जैसे –म् + च् = ं ,किम् + चित = किंचित 

म् + क = ं, किम् + कर = किंकर

म् + क = ं, सम् + कल्प = संकल्प 

म् + च = ं ,सम् + चय = संचय

म् + त = ं ,सम् + तोष = संतोष 

म् + ब = ं ,सम् + बंध = संबंध

म् + प = ं, सम् + पूर्ण = संपूर्ण

(झ) म् के बाद म का द्वित्व हो जाता है।

जैसे –म् + म = म्म, सम् + मति = सम्मति

 म् + म = म्म ,सम् + मान = सम्मान

(ञ) म् के बाद य्, र्, ल्, व्, श्, ष्, स्, ह् में से कोई व्यंजन होने पर म् का अनुस्वार हो जाता है।

जैसे –म् + य = ं ,सम् + योग = संयोग

म् + र = ं ,सम् + रक्षण = संरक्षण

म् + व = ं ,सम् + विधान = संविधान 

म् + व = ं ,सम् + वाद = संवाद

म् + श = ं ,सम् + शय = संशय 

म् + ल = ं, सम् + लग्न = संलग्न

म् + स = ं, सम् + सार = संसार

(ट) ऋ, र्, ष् से परे न् का ण् हो जाता है। परन्तु चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग, श और स का व्यवधान हो जाने पर न् का ण् नहीं होता।

 जैसे –र् + न = ण ,परि + नाम = परिणाम

 र् + म = ण ,प्र + मान = प्रमाण

(ठ) स् से पहले अ, आ से भिन्न कोई स्वर आ जाए तो स् को ष हो जाता है।

जैसे –भ् + स् = ष ,अभि + सेक = अभिषेक 

नि + सिद्ध = निषिद्ध ,वि + सम + विषम

3.विसर्ग संधि

विसर्ग (:) के बाद स्वर या व्यंजन आने पर विसर्ग में जो विकार होता है उसे विसर्ग-संधि कहते हैं। 

जैसे- मनः + अनुकूल = मनोनुकूल

(क) विसर्ग के पहले यदि ‘अ’ और बाद में भी ‘अ’ अथवा वर्गों के तीसरे, चौथे पाँचवें वर्ण, अथवा य, र, ल, व हो तो विसर्ग का ओ हो जाता है। 

जैसे -मनः + अनुकूल = मनोनुकूल

अधः + गति = अधोगति 

मनः + बल = मनोबल

(ख) विसर्ग से पहले अ, आ को छोड़कर कोई स्वर हो और बाद में कोई स्वर हो, वर्ग के तीसरे, चौथे, पाँचवें वर्ण अथवा य्, र, ल, व, ह में से कोई हो तो विसर्ग का र या र् हो जाता है।

 जैसे -निः + आहार = निराहार 

 निः + आशा = निराशा 

निः + धन = निर्धन

(ग) विसर्ग से पहले कोई स्वर हो और बाद में च, छ या श हो तो विसर्ग का श हो जाता है।

 जैसे -निः + चल = निश्चल 

 निः + छल = निश्छल 

दुः + शासन = दुश्शासन

(घ) विसर्ग के बाद यदि त या स हो तो विसर्ग स् बन जाता है। 

जैसे -नमः + ते = नमस्ते 

 निः + संतान = निस्संतान 

 दुः + साहस = दुस्साहस

ङ) विसर्ग से पहले इ, उ और बाद में क, ख, ट, ठ, प, फ में से कोई वर्ण हो तो विसर्ग का ष हो जाता है। 

जैसे –निः + कलंक = निष्कलंक 

 चतुः + पाद = चतुष्पाद 

निः + फल = निष्फल

(च) विसर्ग से पहले अ, आ हो और बाद में कोई भिन्न स्वर हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है।

 जैसे -निः + रोग = नीरोग 

        निः + रस = नीरस

(छ) विसर्ग के बाद क, ख अथवा प, फ होने पर विसर्ग में कोई परिवर्तन नहीं होता। 

जैसे -अंतः + करण = अंतःकरण

अधिकतर पूछें गए प्रश्न–:

1. ‘परमाणु’ शब्द का संधि विच्छेद करें।

उत्तर: परम+अणु=परमाणु

यहाँ पर दो स्वर मिलकर ‘अ+ अ=आ’ बना रहे है।

2. ‘सदैव’ में कौन– सी संधि है?

उत्तर: ‘सदैव’ में दीर्घ संधि है,क्योंकि इसमें आ+ए=ऐ बन रहे हैं।

3. संधि के कितने भेद है?

उत्तर: संधि के तीन भेद है–

1.स्वर संधि 2.व्यंजन संधि  3.विसर्ग संधि

4. ‘निष्कपट’ में कौन सी संधि है?

उत्तर: नि:+कपट=निष्कपट

इसमें विसर्ग संधि है, क्योंकि इसमें विसर्ग (:)+क= ष् बनते हैं।

सर्वनामसंज्ञा
प्रत्ययअलंकार
वर्तनीपद परिचय
वाक्य विचारसमास
लिंगसंधि
विराम चिन्हशब्द विचार
अव्ययकाल

कारक

संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से वाक्य का सम्बन्ध किसी दूसरे शब्द के साथ जाना जाए, उसे कारक कहते हैं। कारक का सीधा सम्बन्ध क्रिया से ही होता है। किसी कार्य को करने वाला कारक यानि जो भी क्रिया को करने में मुख्य भूमिका निभाता है, वह कारक कहलाता है।

कारक को प्रकट करने के लिए संज्ञा और सर्वनाम के साथ जो चिन्ह लगाये जाते हैं, उन्हें विभक्तियाँ कहते हैं।

जैसे –पेड़ पर फल लगते हैं। इसमें ‘पर’ विभक्ति है।

कारक और उनकी विभक्तियाँ इस प्रकार है

                कारक विभक्तियाँ

                  कर्ता   ने

                   कर्म   को

                 करण   से, द्वारा

            सम्प्रदान     को, के लिये, हेतु

            अपादान     से {अलग होने के अर्थ में}

              सम्बन्ध     का, की, के, रा, री, रे

          अधिकरण     में, पर

            सम्बोधन       हे! अरे! ऐ! ओ! हाय!

1.कर्ता कारक 

संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से क्रिया के करने वाले का बोध हो, उसे कर्ता कारक कहते हैं। इसका चिन्ह ’ने’ कभी कर्ता के साथ लगता है, और कभी वाक्य में नहीं होता है अर्थात लुप्त होता है। 

 उदाहरण

1. रमेश ने पुस्तक पढ़ी।

 इसमें ‘ने’कर्ता कारक की विभक्ति है।

 2.सुनील खेलता है।

 इसमें कर्ता कारक की विभक्ति लुप्त है।

2.कर्म कारक

संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप पर क्रिया का प्रभाव या फल पङे, उसे कर्म कारक कहते हैं। कर्म के साथ ’को’ विभक्ति आती है। इसकी यही सबसे बड़ी पहचान होती है। कभी-कभी वाक्यों में ’को’ विभक्ति का लोप भी होता है। 

उदाहरण

1.उसने सुनील को पढ़ाया ।   

इसमें ‘को’ विभक्ति का प्रयोग किया गया है, इसलिए यह कर्म कारक है।

2.मोहन ने चोर को पकड़ा।

इसमें ने विभक्ति का प्रयोग भी है लेकिन इसमें क्रिया का प्रभाव ‘को’ विभक्ति पर है, इसलिए यह कर्म कारक है।

3.करण कारक

जिस साधन से अथवा जिसके द्वारा क्रिया पूरी की जाती है, उस संज्ञा को करण कारक कहते हैं। इसकी विभक्ति ’से’ अथवा ’द्वारा’ है।    

उदाहरण

1.रहीम गेंद से खेलता है।

इसमें ‘से’ विभक्ति का प्रयोग किया गया है, इसलिए यह करण कारक है।

2.आदमी चोर को लाठी द्वारा मारता है।यहाँ ‘द्वारा विभक्ति का प्रयोग किया गया है, इसलिए यह करण कारक है।

4.सम्प्रदान कारक

जिसके लिए क्रिया की जाती है, उसे सम्प्रदान कारक कहते हैं। इसमें कर्म कारक ’को’ भी प्रयुक्त होता है, किन्तु उसका अर्थ ’के लिये’ होता है। 

उदाहरण

1.सुनील रवि के लिए गेंद लाता है।

यहाँ ‘के लिए’ विभक्ति का प्रयोग किया गया है, इसलिए यह संप्रदान कारक है।          

2.हम पढ़ने के लिए स्कूल जाते हैं। यहाँ पर ‘के लिए’ विभक्ति का प्रयोग किया गया है, इसलिए यह संप्रदान कारक है।         

5.अपादान कारक

अपादान का अर्थ है- अलग होना। जिस संज्ञा अथवा सर्वनाम से किसी वस्तु का अलग होना मालूम चलता हो, उसे अपादान कारक कहते हैं। करण कारक की तरह अपादान कारक का चिन्ह भी ’से’ है, परन्तु करण कारक में इसका अर्थ सहायता होता है और अपादान में अलग होना होता है।

उदाहरण

1. हिमालय से गंगा निकलती है।

यहाँ पर गंगा को हिमालय से अलग करने के लिए ‘से’ विभक्ति का प्रयोग किया गया है, इसलिए यह अपादान कारक है।             

2. वृक्ष से पत्ता गिरता है।

यहाँ पर भी पत्ते को वृक्ष से अलग करने के लिए ‘से’ विभक्ति का प्रयोग किया गया है, इसलिए यह अपादान कारक है।

6.सम्बन्ध कारक

संज्ञा अथवा सर्वनाम के जिस रूप से एक वस्तु का सम्बन्ध दूसरी वस्तु से जाना जाए, उसे सम्बन्ध कारक कहते हैं। इसकी मुख्य पहचान है – ’का’, ’की’, के। 

उदाहरण 

1. राहुल की किताब मेज पर है।

राहुल का संबंध किताब से बताने के लिए ‘की’ विभक्ति का प्रयोग किया गया है, इसलिए यह संबंध कारक है।

2. सुनीता का घर दूर है।

सुनीता का संबंध घर से बताने के लिए ‘का’ विभक्ति का प्रयोग किया गया है, इसलिए यह संबंध कारक है।

7.अधिकरण कारक

संज्ञा के जिस रूप से क्रिया के आधार का बोध होता है, उसे अधिकरण कारक कहते हैं। इसकी मुख्य पहचान ’में’, ’पर’ होती है । 

 उदाहरण 

1.घर पर माँ है।

 यहाँ ‘पर’ विभक्ति का प्रयोग किया गया है, इसलिए यह अधिकरण कारक है।         

2.घोंसले में चिङिया है।

 यहाँ पर ‘में’ विभक्ति का प्रयोग घोंसले का आधार बताने के लिए किया गया है इसलिए यह अधिकरण कारक है।

8.सम्बोधन कारक

संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से किसी को पुकारने तथा सावधान करने का बोध हो, उसे सम्बोधन कारक कहते हैं। इसका सम्बन्ध न क्रिया से और न किसी दूसरे शब्द से होता है। यह वाक्य से अलग रहता है। इसका कोई कारक चिन्ह भी नहीं है।

 उदाहरण

1.खबरदार ! रीना को मत मारो।

यहाँ पर किसी को सावधान किया गया है, इसलिए यह संबोधन कारक है।

2.लड़के! जरा इधर आ।

यहाँ पर किसी को पुकारने का कार्य किया गया है, इसलिए यह संबोधन कारक है।

अधिकतर पूछें गए प्रश्न–:

1. ’मछली पानी में रहती है’ इस वाक्य में किस कारक का चिह्न प्रयुक्त हुआ है?

उत्तर : अधिकरण। यहाँ पर मछली के रहने के आधार का बोध ‘में’ विभक्ति के द्वारा किया गया है, इसलिए यह अधिकरण कारण है।

2. किस कारक में किसी भी विभक्ति का प्रयोग नहीं होता?

उत्तर: संबोधन कारक में किसी भी विभक्ति का प्रयोग नहीं होता। इसमें किसी को पुकारने या सावधान करने का कार्य किया जाता है।

3. हिंदी व्याकरण में कितने कारक होते है?

उत्तर: हिंदी व्याकरण में आठ कारक होते है।

4.अपादान कारक की पहचान क्या है?

उत्तर:अपादान का अर्थ है- अलग होना। जिस संज्ञा अथवा सर्वनाम से किसी वस्तु का अलग होना मालूम चलता हो, उसे अपादान कारक कहते हैं।

5. करण कारक में कौन सी विभक्तियों का प्रयोग किया जाता है?

उत्तर: करण कारक में ‘से’ या ‘द्वारा’ विभक्तियों का प्रयोग किया जाता है।

सर्वनामसंज्ञा
प्रत्ययअलंकार
वर्तनीपद परिचय
वाक्य विचारसमास
लिंगसंधि
विराम चिन्हशब्द विचार
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अलंकार

अलंकार दो शब्दों “अलम+कार” से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है सजाना या आभूषण। जिस प्रकार स्त्रियाँ अपने शरीर को सजाने के लिए आभूषणों का प्रयोग करती हैं, उसी प्रकार काव्य को सजाने और उसे आकर्षित बनाने के लिए अलंकारों का प्रयोग किया जाता है।

अलंकार मुख्यत: दो प्रकार के होते हैं

1.शब्दालंकार  2. अर्थालंकार

अलंकार दो शब्दों "अलम+कार" से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है सजाना या आभूषण।
                                                              अलंकार का चार्ट

1.शब्दालंकार

जहाँ वर्णों की पुनरावृत्ति अथवा समान शब्दों का एक से अधिक बार प्रयोग करने पर भाषा में लय उत्पन्न हो, उसे शब्दालंकार कहते है।

शब्दालंकार के तीन भेद है

1. अनुप्रास   2. यमक   3. श्लेष

1.अनुप्रास अलंकार 

अनुप्रास शब्द दो शब्दों अनु और प्रास से मिलकर बना है। जिसका अर्थ है चमत्कारित ढंग से बार-बार आवृति। इस प्रकार जहाँ पर एक ही वर्ण की बार-बार आवृति हो, वहाँ पर अनुप्रास अलंकार होता है। 

  उदाहरण–: “रघुपति राघव राजा राम”

यहाँ पर एक ही वर्ण ‘र’ की बार-बार आवृति हो रही है, इसलिए यहाँ पर अनुप्रास अलंकार है।

2) यमक अलंकार

यमक अलंकार में एक ही शब्द एक से अधिक बार प्रयोग होता है, लेकिन प्रत्येक बार उसका अर्थ अलग होता है। एक शब्द अलग अर्थ के रूप में अधिक बार प्रयोग होता है।

 उदाहरण–:“कनक कनक ते सौगुनी, मादकता अधिकाय।

वह पाए बोराय नर, वह खाए बोराय”।

इसमें यमक अलंकार है, क्योंकि यहाँ पर कनक शब्द दो बार प्रयोग किया गया है, जिसमें एक का अर्थ सोना और दूसरे का अर्थ धतूरा है।

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3) श्लेष अलंकार

 श्लेष अलंकार में शब्द एक ही बार प्रयोग किया जाता है, लेकिन उसके अर्थ दो निकलते है। इसमें एक ही शब्द के अनेक अर्थ निकलते है, जिससे एक ही शब्द के द्वारा पूरे वाक्य का अर्थ निकल सकता है।

उदाहरण–: “रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून पानी गए न ऊबरे मोई मानस चून।”

यहाँ पर पानी के तीन अर्थ ‘कान्ति’, ‘आत्मसम्मान’ और ‘जल’ निकलते है, इसलिए यह श्लेष अलंकार है।

2.अर्थालंकार

 जहाँ शब्द के आंतरिक अर्थ से भाषा या वाणी का सौंदर्य बढ़े अर्थात जहाँ पर किसी वाक्य का सौंदर्य उसके शब्दों से नहीं बल्कि अर्थ से निकले वहाँ पर अर्थालंकार होता है।

अर्थालंकार के पांच भेद है

1)उपमा  2)रूपक  3)उत्प्रेक्षा  4)अतिशयोक्ति  5)मानवीकरण

1)उपमा (Upma Alankar)

जहाँ दो वस्तुओं में अंतर होते हुए भी आकृति और गुण में समानता दिखाई देती है,वहाँ उपमा अलंकार होता है। उपमा अलंकार में सा, सम, सरिस, समान आदि वाचक शब्दों का प्रयोग किया जाता है। इसमें एक वस्तु की दूसरी वस्तु से तुलना की जाती है।

उदाहरण–: 1)कर कमल–सा कोमल।।

 यहाँ पर हाथों की तुलना कमल से की गई है तथा इसमें ‘सा’ वाचक शब्द का प्रयोग किया गया है, इसलिए यह उपमा अलंकार है।

2)रूपक(Rupak Alankar )

 जहाँ उपमेय में उपमान का आरोप हो अर्थात जहाँ दोनों में कोई भी अभिन्नता ना हो, एक समान दिखें वहाँ पर रूपक अलंकार होता है। 

उदाहरण–: 1)मैया मैं तो चंद्र खिलौना लैहों।।

यहाँ पर खिलौने को चंद्र बता दिया गया है और खिलौने और चंद्र के बीच का अंतर खत्म कर दिया गया है, इसलिए यह रूपक अलंकार है।

3)उत्प्रेक्षा(Utpreksha Alankar)

जब उपमेय में उपमान की होने की संभावना या कल्पना की जाती है तो वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। इस अलंकार में मन, मानों, मनुह, जनु, जानहु, ज्यों आदि वाचक शब्दों का प्रयोग किया जाता है।

उदाहरण–:1)उसका मुख मानो चंद्र के समान है।।

यहाँ पर मुख चंद्रमा के समान होने की कल्पना की गई है तथा यहाँ पर मानो वाचक शब्द का प्रयोग किया गया है, इसलिए यह उत्प्रेक्षा अलंकार है। 

4)अतिशयोक्ति (Atishyokti Alankar)

जब किसी की प्रसंशा करते समय बात को इतना बढ़ा-चढ़ा कर कहा जाए जो संभव न हो तथा किसी बात की अति की जाए वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है।

उदाहरण–:1) हनुमान की पूंछ में, लग ना पाई आग। लंका सिगरी जलि गई, गए निशाचर भाग।।

यहाँ पर बात को बढ़ा चढ़ाकर कहा गया है की हनुमान की पूँछ में आग भी नही लगी और सारी लंका जल गई और राक्षस भाग गए, इसलिए यहाँ अतिशयोक्ति अलंकार है।

5) मानवीकरण (Manvikaran Alankar)

जहाँ पर प्रकृति चीजों और जड़ वस्तुओं पर मानवीय आरोप किया जाए या वस्तुओं को मानव जैसा सजीव वर्णन कर दें, वहाँ पर मानवीकरण अलंकार होता है। 

उदाहरण  1) फूल हँसे कलियां मुस्कुराई।

यहाँ पर फूलों के हँसने और कलियों के मुस्कुराने पर मानवीय आरोप किया गया है, इसलिए यहाँ मानवीकरण अलंकार है।

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अधिकतर पूछे गए प्रश्न

1.“तरनी तनुजा तट तमाल तरुवर बहु छाए” इस पंक्ति में कौन-सा अलंकार है।

उत्तर–: इस पंक्ति में अनुप्रास अलंकार है।यहाँ ‘त’ वर्ण की बार बार आवृति है, इसलिए यह अनुप्रास अलंकार है।

2. जहाँ पर प्रकृति चीजों और जड़ वस्तुओं पर मानवीय प्रभाव हो वहाँ कौन-सा अलंकार है?

उत्तर–: जहाँ पर प्रकृति चीजों और जड़ वस्तुओं पर मानवीय प्रभाव हो वहाँ मानवीकरण अलंकार होता है।

3. ‘पीपर पात सरिस मन डोला’ पंक्ति में कौन-सा अलंकार है?

उत्तर–: उपमा अलंकार। क्योंकि इसमें मन की तुलना पीपल के पत्ते से की गई है और इस वाक्य में सरिस वाचक शब्द का भी प्रयोग किया गया है।

4. यमक और श्लेष अलंकार में क्या अंतर है?

उत्तर–: यमक अलंकार में एक शब्द एक से अधिक बार प्रयोग होता है लेकिन उसका अर्थ हर बार अलग होता है। श्लेष अलंकार में शब्द एक ही बार प्रयोग होता है लेकिन उनके अर्थ अनेक निकलते है।

5. नीचे दी गई पंक्ति में कौन-सा अलंकार है? ‘सिर फट गया उसका मानों अरुण रंग का घड़ा।’

उत्तर–: इस पंक्ति में उत्प्रेक्षा अलंकार है, क्योंकि सिर फटने पर लाल रंग का घड़ा होने की कल्पना की गई है और इसमें मानों वाचक शब्द का भी प्रयोग किया है।

सर्वनामसंज्ञा
प्रत्ययअलंकार
वर्तनीपद परिचय
वाक्य विचारसमास
लिंगसंधि
विराम चिन्हशब्द विचार
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