संबंधबोधक

जो शब्द किसी एक शब्द का संबंध किसी दूसरे शब्द से बताते है उसे संबंध बोधक कहते है।

संबंध बोधक में संज्ञा या सर्वनाम का संबंध वाक्य के अन्य शब्दों से दर्शाया जाता है उसे संबंधबोधक अव्यय कहते हैं।

 जैसे: के ऊपर, के बाद, हेतु, लिए, कारण, मारे, चलते, संग, साथ, सहित, बिना, बगैर, अलावा, अतिरिक्त, के बाद, बदले, पलटे, आगे, पीछे, इधर, उधर पास-पास इत्यादि संबंधबोधक अव्यय हैं।

उदाहरण: ‘पेड़ पर बिल्ली बैठी है।’

 ‘मोहन गीता के साथ घूमने गया।’

इन वाक्यों में पर, के साथ आदि संबंध बोधक शब्दों का प्रयोग किया गया है। जो संज्ञा और सर्वनाम का वाक्य के दूसरे शब्दो से संबंध बताता है।

हिंदी में बहुत से संबंधबोधक अव्यय उर्दू और संस्कृत से आए हैं. जैसे:

उर्दू से आए हुए संबंधबोधक अव्यय –  भर, रूबरू, नजदीक, सबब, बदौलत, बाद, तरह, खिलाफ, खातिर, बाबत, जरिए, बदले, सिवा इत्यादि।

संस्कृत से आए हुए संबंधबोधक अव्यय – संभव,  समक्ष, सम्मुख, निकट, समीप, कारण, उपरांत, अपेक्षा, भांति, विपरीत, निमित्त, हेतु, द्वारा, विषय, बिना, अतिरिक्त इत्यादि।

उदाहरण-  ‘सैनिक अपने देश की खातिर अपने प्राण भी दे देते हैं।’

‘रात भर जागना अच्छा नहीं होता।’

‘जल के बिना जीवन संभव नहीं है।’

‘विद्यालय में बच्चे अनेक विषय पढ़ते है।’

वाक्यों में की खातिर,भर, संभव और विषय उर्दू और संस्कृत भाषा के संबंध बोधक शब्दों का प्रयोग किया गया है।

सम्बन्ध बोधक अव्यय के भेद –( Sambandh Bodhak Avyay ke Bhed)

प्रयोग के आधार पर सम्बन्धबोधक अव्यय दो प्रकार के होते 

संबद्ध सम्बन्धबोधक अव्यय

अनुबद्ध सम्बन्धबोधक अव्यय

1. संबद्ध सम्बन्धबोधक अव्यय –

किसी वाक्य में संज्ञा शब्दों की विभक्तियों के पीछे इन अव्यय पदों का प्रयोग किया जाता है, उन्हें संबद्ध सम्बन्धबोधक अव्यय कहते हैं। 

सम्बन्धबोधक अव्ययों का प्रयोग किसी कारक चिन्ह के बाद किया जाता है

जैसे: घर के बिना, भोजन से पहले आदि।

 उदाहरण:  ‘ज्ञान के बिना मुक्ति नहीं मिलती है।’

               ‘धन के बिना जीवन मुश्किल है।’

इन शब्दों में के बिना बोधक शब्द का प्रयोग किया गया है।

2. अनुबद्ध सम्बन्धबोधक अव्यय –

 इन शब्दों का प्रयोग संज्ञा के विकृत रूप के साथ किया जाता है उन्हें अनुबद्ध सम्बन्धबोधक अव्यय कहते हैं। 

जैसे: दोस्तों सहित, किनारे तक,पुत्रों समेत आदि।

उदाहरण: ‘नहर का पानी किनारे तक आ गया।’

             ‘अवनी मित्रों सहित शिमला घूमने गई है।’

इन शब्दों में किनारे तक, सहित आदि बोधक शब्दों का प्रयोग किया गया है।

हिंदी में मुख्य रूप से प्रयोग किए जाने वाले संबंध बोधक शब्द दस प्रकार के होते हैं-

  1. कालवाचक संबंधबोधक अव्यय
  2. स्थानवाचक संबंधबोधक अव्यय।
  3. दिशावाचक संबंधबोधक अव्यय।
  4. साधनवाचक संबंधबोधक अव्यय।
  5. हेतुवाचक संबंधबोधक अव्यय।
  6. समतावाचक संबंधबोधक अव्यय।
  7. पृथकवाचक संबंधबोधक अव्यय।
  8. विरोधवाचक संबंधबोधक अव्यय।
  9. संगवाचक संबंधबोधक अव्यय। 
  10. तुलनवाचक संबंधबोधक अव्यय।

1. कालवाचक संबंधबोधक अव्यय

जिन शब्दों के द्वारा वाक्यों में समय का पता चलता है उसे काल वाचक अव्यय कहते है।

जैसे: के बाद, से पहले, 

उदाहरण: वह मोहन से पहले घर पहुंच गया था।

2. स्थानवाचक संबंधबोधक अव्यय

जिन वाक्यों में किसी की स्थिति या स्थान का पता चलता है, उसे स्थानावाचक बोधक कहते है।

जैसे: के बीच में, के पास में

उदाहरण: अमित के पास एक कुत्ता खड़ा है।

3. दिशावाचक संबंधबोधक अव्यय

जिस शब्दों के द्वारा किसी की स्थिति का ज्ञान या उसकी दिशा का पता चलता है, उसे दिशा वाचक बोधक कहते है।

जैसे: की तरफ, के सामने, के पास, 

उदाहरण: सूर्य पूर्व की ओर से उगता है।

4. साधनवाचक संबंधबोधक अव्यय

इन शब्दों के द्वारा किसी साधन या जरिए का बोध होता है।

जैसे: के जरिए, के माध्यम, के द्वारा, के साथ

उदाहरण: अरुणा रेलगाड़ी के माध्यम से दिल्ली पहुंची

5. हेतुवाचक संबंधबोधक अव्यय

इन शब्दों के द्वारा वाक्य में किसी कारण का बोध होता है।

जैसे: के लिए, के वास्ते, के खातिर

उदाहरण: राज में मां के लिए शराब पीना छोड़ दिया।

6. समतावाचक संबंधबोधक अव्यय

जिन शब्दों के द्वारा वाक्य में समानता का बोध होता है, उसे समता वाचक बोधक कहते है।

जैसे:  के बराबर, के तरह, के जैसा

7. पृथकवाचक संबंधबोधक अव्यय

जिन शब्दों के द्वारा किसी से अलग या भिन्न होने का पता चलता है, उसे पृथकवाचक बोधक कहते है।

जैसे: से अलग, से हटकर, से दूर)

उदहारण: तुम अपनी बहन से अलग हो।

8. विरोधवाचक संबंधबोधक अव्यय

इन शब्दों के द्वारा वाक्य में विरोध का ज्ञान होता है।

जैसे: के विरोध, के विपरीत

उदाहरण: तुम अपने पिता की बातों से विपरीत काम क्यों करते हो।

9. संगवाचक संबंधबोधक अव्यय

इन शब्दों के द्वारा वाक्यों में साथ नजर आता है।

जैसे: के साथ, के संग

उदाहरण: मैं अपने पिता के साथ गई थी

10. तुलनवाचक संबंधबोधक अव्यय

इन शब्दों के द्वारा वाक्यों। में तुलना की जाती है।

जैसे: के अपेक्षा, के सामने

उदाहरण: ताज महल के सामने कोई भी इमारत सुंदर नहीं है।

अधिकतर पूछे गए प्रश्न:

1. संबंध बोधक किसे कहते है?

उत्तर: जो शब्द किसी एक शब्द का संबंध किसी दूसरे शब्द से बताते है उसे संबंध बोधक कहते है।

संबंध बोधक में संज्ञा या सर्वनाम का संबंध वाक्य के अन्य शब्दों से दर्शाया जाता है उसे संबंधबोधक अव्यय कहते हैं।

 जैसे: के ऊपर, के बाद, हेतु, लिए, कारण, मारे, चलते, संग, साथ, सहित, बिना, बगैर, अलावा, अतिरिक्त, के बाद आदि।

2. संबंध बोधक के कितने भेद है?

उत्तर: प्रयोग के आधार पर सम्बन्धबोधक अव्यय दो प्रकार के होते 

संबद्ध सम्बन्धबोधक अव्यय

अनुबद्ध सम्बन्धबोधक अव्यय

3. हिंदी में कितने प्रकार के संबंध बोधक प्रयोग किए जाते है?

उत्तर: हिंदी में मुख्य रूप से प्रयोग किए जाने वाले संबंध बोधक शब्द दस प्रकार के होते हैं।

  1. कालवाचक संबंधबोधक अव्यय
  2. स्थानवाचक संबंधबोधक अव्यय।
  3. दिशावाचक संबंधबोधक अव्यय।
  4. साधनवाचक संबंधबोधक अव्यय।
  5. हेतुवाचक संबंधबोधक अव्यय।
  6. समतावाचक संबंधबोधक अव्यय।
  7. पृथकवाचक संबंधबोधक अव्यय।
  8. विरोधवाचक संबंधबोधक अव्यय।
  9. संगवाचक संबंधबोधक अव्यय। 
  10. तुलनवाचक संबंधबोधक अव्यय।

4. अरुणा की अपेक्षा करुणा सुंदर है।

दिए गए वाक्य में कौन सा बोधक शब्द है?

उत्तर: दिए गए वाक्य में अरुणा की अपेक्षा करुणा शब्दों के माध्यम से अरुणा की तुलना करुणा से की गई है। इसलिए इस वाक्य में तुलनाबोधक शब्द है।

5. समता वाचक बोधक में कौन से शब्दों का प्रयोग किया जाता है?

उत्तर: समता वाचक बोधक शब्द वाक्य में समानता को दर्शाते है। इसलिए इसके लिए की तरह, के जैसा आदि शब्दों का प्रयोग किया जाता है।

इन्हे भी पढ़िये

सर्वनामसंज्ञा
प्रत्ययअलंकार
वर्तनीपद परिचय
वाक्य विचारसमास
लिंगसंधि
विराम चिन्हशब्द विचार
अव्ययकाल

    समुच्चयबोधक

वे शब्द जो दो शब्दों अर्थात एक शब्द को दूसरे शब्द से वाक्यांशों या वाक्यों, एक वाक्य को दूसरे वाक्य से जोड़ते हैं समुच्चयबोधक कहते हैं।

जैसे: और, बल्कि, तथा, अथवा, यदि, किंतु, अन्यथा, हालांकि, लेकिन, इसलिए आदि|      

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 उदाहरण: 

  1. ‘अमित और देव सो रहे हैं।’

इस वाक्य में अमित, देव को एक दूसरे से जोड़ा गया है। इन्हे जोड़ने के लिए और शब्द का प्रयोग किया गया है।            

  1. ‘वह प्यासा था, इसलिए उसने पानी पिया।’

इस वाक्य में दो वाक्यों को इसलिए शब्द से जोड़ा गया है। यह समुच्चय बोधक शब्द है।

  1. समानाधिकरण समुच्चयबोधक
  2. व्यधिकरणसमुच्चयबोधक

1. समानाधिकरण समुच्चयबोधक

जो समुच्चयबोधक अव्यय दो स्वतंत्र वाक्यों या उपवाक्यों को जोड़ते हैं, उन्हें समानाधिकरण सममुच्चबोधक अव्यय कहा जाता है। 

जैसे: परंतु, अन्यथा, अत:, किंतु, और, या, बल्कि, इसलिए, व, एवं, लेकिन आदि।

उदाहरण:-  ‘विराट और रोहित भाई है।’

इस वाक्य में विराट, रोहित दो स्वतंत्र शब्दों को और शब्द से जोड़ा गया है, जो समानाधिकरण समुच्चय बोधक शब्द है।

समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय चार प्रकार के होते हैं-

क) संयोजक

ख) विकल्पसूचक

ग) विरोधसूचक

घ) परिमाणसूचक

1. संयोजक:– जिन शब्दों से दो शब्दों या दो वाक्यों को आपस में जोड़ते हैं तथा इसमें शब्दों के द्वारा वाक्यों और वाक्यांशो को इकट्ठा करते हैं। उसे संयोजक सम्मुच्यबोधक कहते है।

 वे शब्द जिनके द्वारा शब्दों और वाक्यों को इक्कठा किया जाता है, वे है–: तथा, जोकि, अर्थात्, और, एवं शब्द संयोजक कहलाते हैं।

उदाहरण:-‘राहुल और अंजली वहां खड़े है|’

इस वाक्य में राहुल, अंजली को जोड़ने के लिए और शब्द का प्रयोग किया गया है, जोकि संयोजक शब्द है।

2. विकल्पसूचक: जिन शब्दों के द्वारा वाक्य में विकल्प, दो या दो अधिक का चयन दिया जाता है, उसे विकल्प सूचक कहते है। इन शब्दों से विकल्प का पता चलता है।

जैसे–: या, वरना, अथवा, वा, चाहे शब्द विकल्पसूचक कहलाते हैं।

उदाहरण:- “मोहन यहां सो सकता है अन्यथा श्याम सो जाएगा|’

इस वाक्य में मोहन के सोने के साथ साथ श्याम के सोने का भी विकल्प दिया गया है। इस अन्यथा शब्द से जोड़ा गया है जो विकल्पसूचक शब्द है।

3. विरोध सूचक: यह शब्द दो वाक्यों या दो विरोध करने वाले कथनों को आपस में जोड़ते है। इन वाक्यों में आपस में विरोध दिखाई देता है।

किंतु, लेकिन, परंतु, पर, बल्कि, अपितु शब्द विरोध सूचक कहलाते हैं।

उदाहरण:- ‘वह अमीर है परंतु बेईमान है।’

इस वाक्य में दो विरोधाभास वाक्य है। फला की वह अमीर है और दूसरा की वह बेईमान है। इन शब्दों की परंतु शब्द से जोड़ा गया है जो विरोध सूचक शब्द है।

4. परिमाणसूचक:- जिन शब्दों से वाक्य में किसी के परिमाण का पता चले तथा जो शब्द परिमाण दर्शाने वाले वाक्यों को जोड़ते हैं, उसे परिमाण सूचक कहते है।

जैसे: इसलिए, ताकि, अतः, अन्यथा, नहीं तो शब्द परिणामदर्शक कहलाते हैं।

उदाहरण:- ‘उसने अपना कार्य पूरा किया ताकि उसको डांट न पड़े।’

इस वाक्य में डांट न पड़े वाक्य को उसने कार्य पूरा किया से ताकि के द्वारा जोड़ा गया है। यह परिमाण सूचक शब्द है|

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2. व्यधिकरण समुच्चयबोधक

 जो शब्द एक या एक से अधिक आश्रित उपवाक्यों को आपस में जोड़ते हैं, उन्हें व्यधिकरण समुच्चयबोधक कहते हैं। इसमें एक प्रधान और दूसरा आश्रित वाक्य होता है।

जैसे: यदि तो, क्योंकि, ताकि, कि, यद्यपि तथापि आदि।

उदाहरण:- ‘मां ने कहा कि तुम अपना काम करो।’

इस वाक्य में मां ने कहा वाक्य तुम अपना काम करो पर आश्रित है, जिसे कि शब्द से जोड़ा गया है। यह व्यधि कारण बोधक शब्द है।

व्याधिकरण समुच्चयबोधक भी चार प्रकार के होते हैं

क)कारण बोधक

ख)संकेतबोधक

ग)स्वरूपबोधक

घ)उद्देश्यबोधक

(क) कारण बोधक

 जिन शब्दों के द्वारा किसी वाक्य के कार्य करने के कारण का बोध होता है, उसे कारण बोधक कहते है।

जैसे :चूँकि, क्योंकि, कि, इसलिए, इस कारण शब्द हेतुबोधक हैं।

उदाहरण:- ‘वह सुंदर है इसलिए मुझे पसंद है।’

इस वाक्य में पसंद करने का कारण उसका सुंदर होना है। जिसे इसलिए शब्द से जोड़ा गया है, जो कारण बोधक शब्द है।

(ख) संकेतबोधक:- जिन वाक्यों में किसी घटना या कार्य के बारे में संकेत मिलते हैं, उसे ‘संकेतवाचक’ कहते हैं। इसमें पहले वाक्य का दूसरे वाक्य की शुरुआत में संकेत मिलते है।

जैसे: यदि, तो, चाहे भी, यद्यपि, तथापि शब्द संकेतबोधक है।

उदाहरण:– ‘यदि तुम कामयाब होना चाहते हो तो तुम्हें मेहनत करनी पड़ेगी।’

 इस वाक्य में कामयाब होने के लिए मेहनत करना का संकेत किया है जिसे इसने यदि और तो से जोड़ा है, को संकेतबोधक शब्द है।

(ग) स्वरूपबोधक:- जिन वाक्यों में किसी उपवाक्य का अर्थ पूर्ण रूप से स्पष्ट होता है। उन्हें ‘स्वरूपबोधक’ कहते हैं। इन शब्दों में स्पष्टीकरण आता है।

जैसे: अर्थात, यानि, मानो, यहाँ, तक, शब्द स्वरूपबोधक हैं।

उदाहरण:- ‘पंछी उन्मुक्त है अर्थात स्वतंत्र हैं।’

इस वाक्य में उन्मुक्त शब्द को स्पष्ट करने के लिए अर्थात शब्द का प्रयोग किया गया है, जोकि स्वरूपबोधक शब्द है।

(घ) उद्देश्यबोधक: जिन दो शब्दों को जोड़ने से उसका उद्देश्य स्पष्ट होता है, उसे उद्देश्यबोधक कहते हैं।इन अव्यय शब्दों से उद्देश्य का पता चलता है।

जैसे: ताकि, जिससे कि शब्द ‘उद्देश्यबोधक’ हैं।

उदाहरण:– ‘खाना खा लो ताकि भूख न लगे।’

इस वाक्य में पहला वाक्य खाना खा लो का उद्देश्य भूख न लगने से बताया जा रहा है। उद्देश्य को जोड़ने के लिए ताकि शब्द का प्रयोग किया गया है जोकि उद्देश्य बोधक शब्द है।

अधिकतर पूछे गए प्रश्न

1.समुच्चय बोधक किसे कहते है।

उत्तर:वे शब्द जो दो शब्दों अर्थात एक शब्द को दूसरे शब्द से वाक्यांशों या वाक्यों, एक वाक्य को दूसरे वाक्य से जोड़ते हैं समुच्चयबोधक कहते हैं।

2.समुच्चय बोधक के कितने भेद है।

उत्तर:समुच्चयबोधक के निम्नलिखित दो भेद होते हैं-

  1. समानाधिकरण समुच्चयबोधक
  2. व्यधिकरणसमुच्चयबोधक

3.व्याधिकरण समुच्चयबोधक के कितने भेद है।

उत्तर:

व्याधिकरण समुच्चयबोधक भी चार प्रकार के होते हैं-

क)कारण बोधक

ख)संकेतबोधक

ग)स्वरूपबोधक

घ)उद्देश्यबोधक

4. तुम जाना चाहो तो जाओ वरना रोहन चला जायेगा।

इस वाक्य में कौनसा का समुच्चय बोधक है।

उत्तर: इस वाक्य में विकल्प समुच्चय बोधक है। क्योंकि उसके जाने के साथ साथ रोहन के जाने का भी विकल्प दिया गया है और वरना शब्द का बोध किया गया है को विकल्प बोधक शब्द है।

5.समानाधिकरण समुच्चयबोधक के कितने भेद है।

उत्तर: समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय चार प्रकार के होते हैं-

क)संयोजक

ख)विकल्पसूचक

ग)विरोधसूचक

घ)परिमाणसूचक

सर्वनामसंज्ञा
प्रत्ययअलंकार
वर्तनीपद परिचय
वाक्य विचारसमास
लिंगसंधि
विराम चिन्हशब्द विचार
अव्ययकाल

 क्रिया विशेषण

जिस शब्द से किसी वस्तु, व्यक्ति, क्रिया, संज्ञा, और सर्वनाम की विशेषता का पता चलता है, उसे विशेषण कहते हैं। 

जिस शब्द से किसी क्रिया की विशेषता का पता चलता है उसे क्रिया विशेषण कहते है। यह विशेषण क्रिया से तुरंत पहले प्रयोग किए जाते है। 

इसमें लिंग, कारक, वचन, काल के कारण कोई भी बदलाव नहीं होता है। यह अपने मूल रूप में ही प्रयोग होते हैं। इसलिए इनको अविकारी शब्द कहते है।

इन वाक्यों में केवल क्रिया की विशेषता बताई जाती है। इसमें संज्ञा, सर्वनाम, व्यक्ति आदि की विशेषता नहीं बताई जाती बल्कि इनके द्वारा की गई क्रियाओं की विशेषता बताई जाती है।

जैसे: तेज, गरम, जल्दी, धीरे, नहीं, प्रतिदिन, अभी, वहां, थोड़ा, अवश्य, उधर, ऊपर, नीचे, ऊँचा, केवल, यहीं, फिलहाल, कल, पीछे, आज आदि|

उदाहरण–:

शेर तेज भागता है।

इस वाक्य में भागना क्रिया है। इस क्रिया की विशेषता तेज के द्वारा बताई गई है। इसलिए यह तेज क्रिया विशेषण है।

मैं वहाँ  नहीं आऊँगा।

इस वाक्य में आना क्रिया है। इस क्रिया की विशेषता नहीं के द्वारा बताई गई है। इसलिए नहीं क्रिया विशेषण है।      

वह अभी गया है।

इस वाक्य में गया क्रिया है। इस क्रिया की विशेषता “अभी” शब्द  के द्वारा बताई गई है। इसलिए अभी सहायक क्रिया है।               

क्रिया विशेषण के भेद (kriya visheshan ke bhed)

क्रिया विशेषण के चार भेद है-

  1. कालवाचक क्रियाविशेषण
  2. रीतिवाचक क्रियाविशेषण
  3. स्थानवाचक क्रियाविशेषण
  4. परिमाणवाचक क्रियाविशेषण

1. कालवाचक क्रिया विशेषण

जिस क्रिया विशेषण से क्रिया के होने के समय का पता चलता है उसे कालवाचक क्रिया विशेषण कहते हैं। 

जैसे- अब, तब, जब, कब, परसों, कल, पहले, पीछे, कभी, अब तक, अभी-अभी, बार-बार।

उदाहरण–:

  मैं कल देव के घर जाऊंगा।

 इस वाक्य में जाना क्रिया है और कल विशेषण से जाने का समय पता चल रहा है, इसलिए कल शब्द काल वाचक विशेषण है।

वह अब पानी पी रहा है।

इस वाक्य में पीना क्रिया है और अब शब्द के माध्यम से पानी पीने के समय का पता चल रहा है। इसलिए अब काल वाचक विशेषण है।

वह बार-बार बैठ रहा है।

इस वाक्य में बैठना क्रिया है। बैठना क्रिया का समय बार बार शब्द के द्वारा बताया जा रहा है। इसलिए बार-बार शब्द काल वाचक क्रिया विशेषण है।

रीतिवाचक क्रिया विशेषण

जो अविकारी शब्द किसी क्रिया के होने या करने के तरीके का बोध कराते हैं, उन्हें रीतिवाचक क्रिया विशेषण कहते हैं।

जैसे- गलत, ध्यान से, सचमुच, ठीक, अवश्य, यथासम्भव, ऐसे, वैसे, सहसा, तेज़, सच, अत:, इसलिए, क्योंकि, नहीं, मत, कदापि, तो, हो, मात्र, भर आदि।

उदाहरण–:

अमित ध्यान से चलता है।

 इस वाक्य में चलना क्रिया है और चलने की विशेषता या तरीका ध्यान शब्द के द्वारा बताया गया है। इसलिए ध्यान शब्द रीति वाचक क्रिया विशेषण है।

विधि हमेशा सच बोलती है।

 इस वाक्य में बोलना क्रिया है, और बोलने की विशेषता सच शब्द के द्वारा बताई गई है। इसलिए यह सच शब्द रीति वाचक क्रिया विशेषण है।

 वह नहीं नाचेगा।

इस वाक्य में नाचना क्रिया है। नाचना क्रिया का तरीका नहीं शब्द के द्वारा बताया गया है। इसलिए नहीं शब्द रीति वाचक विशेषण है।

स्थानवाचक क्रिया विशेषण

जो अविकारी शब्द किसी क्रिया के होने के स्थान का बोध कराते हैं, उन्हें स्थानवाचक क्रिया विशेषण कहते हैं।

जैसे- यहाँ, वहाँ, कहाँ, जहाँ, सामने, नीचे, ऊपर, आगे, भीतर, बाहर आदि।

उदाहरण-

 राधा आगे चल रही है।

 इस वाक्य में चलना क्रिया है। चलना क्रिया को विशेषता या स्थान आगे शब्द से बताया गया है। इसलिए यह स्थान वाचक क्रिया विशेषण है।

 कबीर बाहर जा रहा है।

इस वाक्य में जाना एक क्रिया है। जाना की विशेषता या स्थान बाहर के द्वारा बताई गई है। इसलिए यह स्थान वाचक क्रिया विशेषण है।

 गेंद ऊपर उछल रही है।

इस वाक्य में उछलना क्रिया है। उछलने का स्थान ऊपर शब्द के द्वारा बताया गया है। इसलिए ऊपर शब्द स्थान वाचक विशेषण है।

परिमाणवाचक क्रिया विशेषण

जो अविकारी शब्द जो क्रिया के परिमाण अथवा संख्या और मात्रा का बोध कराते हैं, उन्हें परिमाणवाचक क्रिया विशेषण कहते हैं।

जैसे- बहुत, अधिक, अधिकाधिक, पूर्णतया, सर्वथा, कुछ, थोड़ा, काफ़ी, केवल, यथेष्ट, इतना, उतना, कितना, थोड़ा-थोड़ा, तिल-तिल, एक-एक करके, पर्याप्त; आदि ,जितना कुछ ।

उदाहरण–:

नितिन अधिक खाना खाता है।

  इस वाक्य में क्रिया खाना है। खाना क्रिया की मात्रा अधिक शब्द से बताई गई है। इसलिए यह परिमाण वाचक क्रिया विशेषण है।  

उसने थोड़ा थोड़ा लिखा।

  इस वाक्य में लिखना क्रिया है। लिखना क्रिया की मात्रा का बोध थोड़ा थोड़ा के माध्यम से बताई गई है। इसलिए यह परिमाण वाचक क्रिया विशेषण है।

 तुम बहुत दौड़े।

इस वाक्य में दौड़ना क्रिया है। दौड़ना क्रिया की विशेषता या परिमाण बहुत शब्द से बताई गई है। इसलिए बहुत शब्द परिमाण वाचक विशेषण है।

अधिकतर पूछें गए प्रश्न

1. क्रिया विशेषण किसे कहते हैं?

उत्तर:जिस शब्द से किसी क्रिया की विशेषता का पता चलता है उसे क्रिया विशेषण कहते है। यह विशेषण क्रिया से तुरंत पहले प्रयोग किए जाते है। इसमें लिंग, कारक, वचन, काल के कारण कोई भी बदलाव नहीं होता है। यह अपने मूल रूप में ही प्रयोग होते हैं। इसलिए इनको अविकारी शब्द कहते है।

जैसे: तेज, गरम, जल्दी, धीरे, नहीं, प्रतिदिन, आदि|

2. क्रिया विशेषण के कितने भेद है?

उत्तर:क्रिया विशेषण के चार भेद हैं।

1.कालवाचक क्रियाविशेषण

2.रीतिवाचक क्रियाविशेषण

3.स्थानवाचक क्रियाविशेषण

4.परिमाणवाचक क्रियाविशेषण

3.घर में एक बच्चा रो रहा है? इस वाक्य में कौन सा क्रिया विशेषण है?

उत्तर: इस वाक्य में परिमाण वाचक क्रिया विशेषण है क्योंकि रोना क्रिया है और एक बच्चे के द्वारा इसकी संख्या का बोध करवाया गया है।

4.रीति वाचक क्रिया विशेषण किसे कहते है?

उत्तर:रीतिवाचक क्रिया विशेषण-जो अविकारी शब्द किसी क्रिया के होने या करने के तरीके का बोध कराते हैं, उन्हें रीतिवाचक क्रिया विशेषण कहते हैं।

जैसे- गलत, ध्यान से, सचमुच, ठीक, अवश्य, यथासम्भव, ऐसे, वैसे, सहसा, तेज़, सच, अत:,

5.काल वाचक क्रिया विशेषण किसे कहते है?

उत्तर:कालवाचक क्रिया विशेषण–:जिस क्रिया विशेषण से क्रिया के होने के समय का पता चलता है उसे कालवाचक क्रिया विशेषण कहते हैं। 

जैसे- अब, तब, जब, कब, परसों, कल, पहले, पीछे, कभी, अब तक, अभी-अभी, बार-बार।

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सर्वनामसंज्ञा
प्रत्ययअलंकार
वर्तनीपद परिचय
वाक्य विचारसमास
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अव्ययकाल

प्रत्यय

प्रत्यय दो शब्दों से मिलकर बना है, ‘प्रति’ और ‘अय।’ प्रति का अर्थ है साथ में, लेकिन अंत में और अय का अर्थ है चलने वाला। इसलिए प्रत्यय का अर्थ है साथ में लेकिन अंत में चलने वाला। वे शब्द जो किसी अन्य शब्द के अंत में जुड़कर अपनी प्रकृति के अनुसार शब्द का अर्थ बदल देते है, उसे प्रत्यय कहते है। यह शब्द किसी शब्द के अंत में लगाए जाते है। इनका अपना कोई अर्थ नहीं होता है और न ही ये स्वंतत्र शब्द होते हैं।

प्रत्यय के प्रयोग से मूल शब्द के अनेक अर्थों को प्राप्त किया जा सकता है। यौगिक शब्द बनाने में प्रत्यय का महत्त्वपूर्ण स्थान है, इसलिए प्रत्यय भाषा में महत्वपूर्ण है।

प्रत्यय को मुख्य तीन भागों में बाँटा गया है–:

  1. हिंदी के प्रत्यय
  2. संस्कृत के प्रत्यय
  3. उर्दू के प्रत्यय

1. हिंदी के प्रत्यय

हिंदी के प्रत्यय के दो भेद है–

  • कृत प्रत्यय
  • तद्धित प्रत्यय

1.कृत प्रत्यय-:

कृत प्रत्यय वह प्रत्यय जो क्रिया पद के मूल रूप के साथ लगकर एक नए शब्द का निर्माण करते हैं। कृत प्रत्यय से मिलकर जो प्रत्यय बनते हैं, उन्हे कृदंत प्रत्यय कहते हैं। यह प्रत्यय क्रिया और धातु को एक नया अर्थ देते हैं। 

उदाहरण के लिए 

लेखक, गायक –: दिए गए शब्द के मूल रूप के अंत में ‘एक’ प्रत्यय लगाया गया है। जिससे क्रिया पद लेख और गाय के मूल रूप में परिवर्तन हो गया है।

लुटेरा, बसेरा–: दिए गए शब्द के मूल रूप के अंत में ‘एरा’ प्रत्यय लगाया गया है। जिससे क्रिया पद लूट और बस के मूल रूप में परिवर्तन हो गया है।

तैराक, लड़ाक –: दिए गए शब्द के मूल रूप में  अंत में आक प्रत्यय लगाया गया है। जिससे क्रिया पद तैर और लड़ के मूल रूप में परिवर्तन हो गया है।

लटकाई, चढ़ाई –: दिए गए शब्द के मूल रूप में आई प्रत्यय लगाया गया है। जिससे क्रिया पद उसके लटक और चढ़ के मूल रूप में परिवर्तन हो गया।

कृत प्रत्यय के भेद–;

  1. कृत् वाचक
  2. कर्म वाचक
  3. करण वाचक
  4. भाव वाचक
  5. क्रिया वाचक

(1) कृत् वाचक 

कर्ता का बोध कराने वाले प्रत्यय कृत् वाचक प्रत्यय कहलाते है। 

उदाहरण –

हार पालनहार, राखनहार

वाला रखवाला, लिखनेवाला

रक्षक, शोषक

अक लेखक, गायक, नायक

ता दाता, माता,  नाता

इन सभी प्रत्यय से कर्ता का बोध होता है।

(2) कर्म वाचक कृत् प्रत्यय 

कर्म का बोध कराने वाले कृत् प्रत्यय कर्म वाचक कृत् 

प्रत्यय कहलाते हैं।

उदाहरण – 

औना खिलौना, बिछौना

नी ओढ़नी, मथनी, छलनी

ना पढ़ना, लिखना, गाना

इन सभी प्रत्यय से कर्म या काम का बोध होता है।

(3) करण वाचक कृत् प्रत्यय 

साधन का बोध कराने वाले कृत् प्रत्यय करण वाचक कृत प्रत्यय कहलाते हैं।

 उदाहरण –

अन पालन, सोहन

नी चटनी,  

ऊ  झाडू, चालू

खाँसी,  फाँसी

(4) भाव वाचक कृत् प्रत्यय 

क्रिया के भाव का बोध कराने वाले प्रत्यय भाववाचक कृत् प्रत्यय कहलाते हैं।

 उदाहरण –

आप मिलाप, विलाप

आवट सजावट, मिलावट, लिखावट

आव खिंचाव, तनाव

आई लिखाई, खिंचाई, चढ़ाई

(5) क्रियावाचक कृत् प्रत्यय 

क्रिया शब्दों का बोध कराने वाले कृत् प्रत्यय क्रिया वाचक कृत प्रत्यय कहलाते हैं

 उदाहरण –

या आया, बोया, खाया

कर गाकर,  सुनकर

सूखा, भूला

ता पीता, लिखता

2. तद्धित प्रत्यय 

वह शब्द जो क्रिया को छोड़कर संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण आदि शब्दों में अंत में जोड़े जाते हैं तथा एक नए शब्द की रचना करते हैं, उन शब्दांश को तद्धित प्रत्यय कहते हैं। तध्दित प्रत्यय आठ प्रकार के होते है।

उदाहरण –: आत्मजा, छात्रा । इसमें आत्मजा और सर्वनाम छात्रा में आ प्रत्यय लगाया गया है।

मिठास, खट्टास–: इन विशेषणों में आस प्रत्यय लगाया गया है।

अपनापन, पागलपन –: इन शब्दों में पन प्रत्यय लगाया गया है।

बुराई, खुदाई–: इन शब्दों में आई प्रत्यय लगाया गया है।

तद्धित प्रत्यय के भेद 

  1. कर्तृवाचक तद्धित प्रत्यय
  2. भाववाचक तद्धित प्रत्यय
  3. सम्बन्ध वाचक तद्धित प्रत्यय
  4. गुणवाचक तद्धित प्रत्यय
  5. स्थानवाचक तद्धित प्रत्यय
  6. ऊनतावाचक तद्धित प्रत्यय
  7. स्त्रीवाचक तद्धित प्रत्यय

(1) कर्तृवाचक तद्धित प्रत्यय 

कर्ता का बोध कराने वाले तद्धित प्रत्यय कर्तृवाचक तद्धति प्रत्यय कहलाते हैं।

उदाहरण –

आर लुहार, कुम्हार

माली, तेली

वाला गाङीवाला, टोपीवाला,

(2) भाववाचक तद्धित प्रत्यय 

भाव का बोध कराने वाले तद्धित प्रत्यय भाववाचक तद्धित प्रत्यय कहलाते हैं।

 उदाहरण –

आहट कङवाहट

ता सुन्दरता, मानवता, दुर्बलता

आपा मोटापा, बुढ़ापा, बहनापा

गर्मी, सर्दी, गरीबी

(3) सम्बन्ध वाचक तद्धित प्रत्यय 

सम्बन्ध का बोध कराने वाले तद्धित प्रत्यय सम्बन्ध वाचक तद्धित प्रत्यय कहलाते हैं।

उदाहरण –

इक शारीरिक, सामाजिक, मानसिक

आलु कृपालु, श्रद्धालु, ईर्ष्यालु

ईला रंगीला, चमकीला, भङकीला

तर कठिनतर, समानतर, उच्चतर

(4) गुणवाचक तद्धित प्रत्यय 

गुण का बोध कराने वाले तद्धित प्रत्यय गुणवाचक तद्धित प्रत्यय कहलाते हैं

 उदाहरण –

वान गुणवान, धनवान, बलवान

ईय भारतीय, राष्ट्रीय, नाटकीय

सूखा, रूखा, भूखा

क्रोधी, रोगी, भोगी

(5) स्थानवाचक तद्धित प्रत्यय 

स्थान का बोध कराने वाले तद्धित प्रत्यय स्थानवाचक तद्धित प्रत्यय कहलाते हैं।

 उदाहरण –

वाला शहरवाला, गाँववाला, कस्बेवाला

इया उदयपुरिया, जयपुरिया, मुंबइया

रूसी, चीनी, राजस्थानी

(6) ऊनतावाचक तद्धित प्रत्यय 

लघुता का बोध कराने वाले तद्धित प्रत्यय ऊनतावाचक तद्धित प्रत्यय कहलाते हैं।

जैसे –

इया लुटिया

प्याली, नाली, बाली

ङी चमङी, पकङी

ओला खटोला, संपोला, मंझोला

(7) स्त्रीवाचक तद्धित प्रत्यय 

स्त्रीलिंग का बोध कराने वाले तद्धित प्रत्यय स्त्रीवाचक तद्धित प्रत्यय कहलाते हैं।

 उदाहरण –

आइन पंडिताइन, ठकुराइन

इन मालिन, कुम्हारिन, जोगिन

नी मोरनी, शेरनी, नन्दनी

आनी सेठानी, देवरानी, जेठानी

2. संस्कृत प्रत्यय 

हिंदी भाषा में संस्कृत के प्रत्यय भी प्रयोग किया जाए हैं।

इत गर्वित, लज्जित, 

इक मानसिक, धार्मिक, , पारिश्रमिक

ईय भारतीय,  राष्ट्रीय, स्थानीय

एय पाथेय, राधेय, कौंतेय

तम अधिकतम, महानतम, श्रेष्ठतम

वान् बलवान, गुणवान, दयावान

मान् शक्तिमान, बुद्धिमान

त्व लघुत्व, बंधुत्व, नेतृत्व

शाली वैभवशाली, गौरवशाली, प्रभावशाली

तर श्रेष्ठतर, उच्चतर, लघूत्तर

3. उर्दू के प्रत्यय

भाषा का हिन्दी के साथ लम्बे समय तक प्रचलन में रहने के कारण हिन्दी भाषा में उर्दू भाषा प्रत्यय भी प्रयोग में आने लगे हैं।

जैसे –

गी ताजगी, बानगी, सादगी

गर कारीगर, बाजीगर, सौदागर

ची नकलची, तोपची, अफीमची

दार हवलदार, जमींदार, किरायेदार

खोर आदमखोर, चुगलखोर, रिश्वतखोर

गार खिदमतगार, मददगार, गुनहगार

नामा बाबरनामा, जहाँगीरनामा, सुलहनामा

बाज धोखेबाज, नशेबाज, चालबाज

मन्द जरूरतमन्द, अहसानमन्द, अकलमन्द

आबाद सिकन्दराबाद, औरंगाबाद, मौजमाबादइन्दा – बाशिन्दा, शर्मिन्दा, परिन्दा

इश साजिश, ख्वाहिश, फरमाइश

गाह ख्वाबगाह, ईदगाह, दरगाह

गीर आलमगीर, जहाँगीर, राहगीर

आना नजराना, दोस्ताना, सालाना

इयत इंसानियत, खैरियत, आदमियत

ईन शौकीन, रंगीन, नमकीन

कार सलाहकार, लेखाकार, जानकार

दान खानदान, 

अधिकतर पूछें गए प्रश्न–:

1.प्रत्यय किसे कहते है?

उत्तर:  वे शब्द जो किसी अन्य शब्द के अंत में जुड़कर अपनी प्रकृति के अनुसार शब्द का अर्थ बदल देते है उसे प्रत्यय कहते है। यह शब्द किसी शब्द के अंत में लगाए जाते है। इनका अपना कोई अर्थ नहीं होता है और न ही ये स्वंतत्र शब्द होते हैं।

2.प्रत्यय के कितने भेद होते हैं?

उत्तर: प्रत्यय को मुख्य तीन भागों में बांटा गया है–:

1.हिन्दी के प्रत्यय

  1. संस्कृत के प्रत्यय
  2. उर्दू के प्रत्यय

3. “कृत प्रत्यय” किसे कहते हैं ?

उत्तर: कृत प्रत्यय, वह प्रत्यय जो क्रिया पद के मूल रूप के साथ लगकर एक नए शब्द का निर्माण करते हैं। कृत प्रत्यय से मिलकर जो प्रत्यय बनते हैं, उन्हे कृदंत प्रत्यय कहते हैं। यह प्रत्यय क्रिया और धातु को एक नया अर्थ देते हैं। 

4.तद्धित प्रत्यय किसे कहते हैं ?

उत्तर: वह शब्द जो क्रिया को छोड़कर संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण आदि शब्दों के अंत में जोड़े जाते हैं तथा एक नए शब्द की रचना करते हैं, उन शब्दांश को तद्धित प्रत्यय कहते हैं। तद्धित प्रत्यय आठ प्रकार के होते है।

5. हिंदी के प्रत्यय के कितने भेद होते हैं?

उत्तर: हिंदी के प्रत्यय के दो भेद होते हैं

1.कृत प्रत्यय

  1. तद्धित प्रत्यय
सर्वनामसंज्ञा
प्रत्ययअलंकार
वर्तनीपद परिचय
वाक्य विचारसमास
लिंगसंधि
विराम चिन्हशब्द विचार
अव्ययकाल

उपसर्ग

उपसर्ग दो शब्दों ‘उप’ और ‘सर्ग’ से जुड़कर बना हुआ है। उपसर्ग का अर्थ है किसी शब्द के पास आ कर नया शब्द बनाना।

उपसर्ग किसी भी शब्द के आरंभ में लगाया जाता है, जिससे उस शब्द का अर्थ बदल जाता है और एक नया शब्द बनता है। उपसर्ग किसी शब्द के आरंभ में जुड़ने पर उसका अर्थ बदल देता है। 

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उपसर्ग का खुद का एक अर्थ होता है जो उस शब्द के अर्थ को बदल देता है।एक उपसर्ग का एक से अधिक अर्थ भी निकल सकता है। यह जुड़ने वाले शब्द पर निर्भर करता है कि वह किस तरह किसी बात को प्रस्तुत करता है।

उदाहरण – आ + हार = आहार

इस शब्द में ‘हार’ का अर्थ है ‘आभूषण’ लेकिन इसके आगे ‘आ’ उपसर्ग जोड़ने से इसका अर्थ खाने के भोजन में बदल जाता है। इस प्रकार उपसर्ग लगने से शब्द का अर्थ बदल जाता है।

अप + मान = अपमान 

इस शब्द में ‘मन’ का अर्थ है ‘सम्मान’ लेकिन इसमें ‘अप’ उपसर्ग लगा हुआ है, जिससे यह ‘अपमान’ बन गया जिसका अर्थ है सम्मान न करना या बेइज्जती।

आ + दान = आदान

इस शब्द में ‘दान’ का अर्थ है किसी वस्तु को देना लेकिन ‘आ’ उपसर्ग को इसमें जोड़कर इसका अर्थ बदलकर किसी वस्तु को लेना बन गया है, जिससे इसका वास्तविक अर्थ बदल गया।

प्रति + वर्ष = प्रतिवर्ष

इस शब्द ‘वर्ष’ को ( कोई भी वर्ष ) विशेष वर्ष नहीं बताया गया है, लेकिन ‘प्रति’ उपसर्ग लगाकर प्रत्येक वर्ष ले रूप में अंकित कर दिया गया है। प्रति का अर्थ होता है प्रत्येक।

वि+ धायक = विधायक।

इस शब्द में ‘वि’ उपसर्ग धायक शब्द के साथ जोड़ा गया है जिससे एक नया शब्द और एक नया अर्थ निकलकर आ रहा है और पुराना अर्थ और पुराना शब्द लुप्त हो गया है।

उपसर्ग के तीन प्रकार होते हैं

1) संस्कृत उपसर्ग

 जिनकी संख्या 22 है।

अति, अधि, अनु, अप, अभि, अव, आ, उत्, उप, दुर, नि, परा, परि, प्र, प्रति, वि, सम्, सु, निर्, दुस्, निस्, अपि।

2) हिंदी उपसर्ग 

इनकी संख्या 10 है।

अ, अध, ऊन, औ, दु, नि, बिन, भर, कु, सु।

3) उर्दू उपसर्ग 

इनकी संख्या 19 है।

अल, ऐन, कम, खुश, गैर, दर, ना, फ़िल्, ब, बद, बर, बा, बिल, बिला।

1)संस्कृत उपसर्ग

अति, अधि, अनु, अप, अभि, अव, आ, उत्, उप, दुर, नि, परा, परि, प्र, प्रति, वि, सम्, सु, निर्, दुस्, निस्, अपि ।

अति –  अतिशय, ( अति का अर्थ अधिक होता है)

अधि – अधिपति, अध्यक्ष ,अध्यापन

अनु –  अनुक्रम, अनुताप, अनुज;  अनुकरण, अनुमोदन.

अप – अपकर्ष, अपमान; अपकार, अपजय.

अपि –  अपिधान 

अभि –  अभिनंदन, अभिलाप अभिमुख, अभिनय

अव – अवगणना, अवतरण;अवगुण.

आ – आगमन, आदान; आकलन.

उत् –  उत्कर्ष, उत्तीर्ण, 

उप –  उपाध्यक्ष, उपदिशा; उपग्रह, उपनेत्र

दुर्,  दुस् –  दुराशा, दुरुक्ति, 

नि – निमग्न, निबंध निकामी, 

निर् – निरंजन, निराषा

निस् –निष्फळ, निश्चल, 

परा (परा का अर्थ कमी होता है) – पराजय, 

परि – परिपूर्ण,परिश्रम, परिवार

प्र –  प्रकोप,  प्रबल

प्रति – प्रतिकूल, प्रतिच्छाया,  प्रतिदिन, प्रतिवर्ष, प्रत्येक ( प्रति का अर्थ प्रत्येक या हर एक होता है।)

वि –  विख्यात,  विवाद,  विफल, विसंगति (वि का अर्थ अधिक होता है।)

सम् –  संस्कृत, संस्कार, संगीत, संयम, संयोग, संकीर्ण.

सु – सुभाषित, सुकृत, सुग्रास; सुगम, सुकर, स्वल्प;

सु – (अधिक) सुबोधित, सुशिक्षित।

एक उपसर्ग के एक से अधिक अर्थ भी होते है। यह नियम उसके साथ जुड़ने वाले शब्द पर निर्भर करता है कि वह किस अर्थ के रूप में उस से जुड़ रहा है।

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ये सभी उपसर्ग है जो शब्द के आरंभ में लगाए गए है। इनके प्रयोग से शब्द का वास्तविक अर्थ बदल गया है और एक नया अर्थ उत्पन्न हुआ है।

2)हिंदी उपसर्ग–:

अ, अध, ऊन, औ, दु, नि, बिन, भर, कु, सु।

अ – अनेक

ऊन – उन्नति

अध – अधूरा, अधम

दु – दुश्मन, दुष्प्रभाव

नि – निर्भय, निराला

भर– भरपूर, भरा ( भर का अर्थ पूरा या भरा हुआ होता है)

कु – कुकर्म, कुशलता (कुकर्म में कु उपसर्ग गलत अर्थ हो दर्शाता है जबकि कुशलता अर्थ में कु उपसर्ग अच्छी और निपुणता को दर्शाता है) 

सु – सुस्वागत, सुइच्छा ( सु का अर्थ अच्छा होता है)

इस प्रकार शब्द के आरंभ में हिंदी के उपसर्ग को लगाया जाता है। यह उपसर्ग लगाने के बाद शब्द के मूल अर्थ में परिवर्तन आ जाता है।

3)उर्दू-फारसी के उपसर्ग –:

अल, ऐन, कम, खुश, गैर, दर, ना, फ़िल्, ब, बद, बर, बा, बिल, बिला।

अल – अलविदा, अलबत्ता

कम – कमसिन, कमअक्ल, कमज़ोर

खुश – खुशबू, खुशनसीब, खुशकिस्मत, खुशदिल, खुशहाल, खुशमिजाज

ग़ैर ( गैर का अर्थ किसी चीज की मनाही होता है)-  ग़ैरहाज़िर ग़ैरकानूनी ग़ैरवाजिब ग़ैरमुमकिन ग़ैरसरकारी,  ग़ैरमुनासिब

दर – दरअसल दरहकीकत

ना – (अभाव) – नामुमकिन नामुराद नाकामयाब नापसन्द नासमझ नालायक नाचीज़ नापाक नाकाम

फ़ी – फ़ीसदी फ़ीआदमी

ब – बनाम, बदस्तूर , बमुश्किल , बतकल्लुफ़

बद – (बुरा)- बदनाम , बदमाश, बदकिस्मत,बददिमाग, बदहवास, बददुआ,

बर – (पर,ऊपर, बाहर) – बरकरार, बरअक्स ,बरजमां

बा – ( बा का अर्थ सहित होता है) – बाकायदा, बाकलम, बाइज्जत, बाइन्साफ, बामुलाहिजा

बिला -(बिला का अर्थ बिना होता है)- बिलावज़ह, बिलालिहाज़ 

बे – (बे का अर्थ बिना/ नहीं होता है) – बेबुनियाद , बेईमान , बेवक्त , बेरहम बेतरह बेइज्जत , बेअक्ल , बेकसूर,  बेमानी,  बेशक

ला -( ला का अर्थ बिना, नहीं होता है) – लापता , लाजबाब,  लावारिस लापरवाह।

इस प्रकार उर्दू के उपसर्गों को शब्दों के आरंभ में जोड़कर एक नया शब्द बनाया जाता है। जिससे पुराने शब्द का अर्थ बदल जाता है।

प्रत्यय – परिभाषा, भेद और उदाहरण

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अधिकतर पूछें गए प्रश्न–:

 1.उपसर्ग का प्रयोग कहाँ होता है?

उत्तर: उपसर्ग का प्रयोग शब्द के आरंभ में किया जाता है। जिसमें उपसर्ग के प्रयोग से वास्तविक शब्द का अर्थ बदल जाता है।

2.हिंदी में उपसर्ग के कितने भेद है?

उत्तर: व्याकरण में उपसर्ग को तीन भागों में बाँटा गया है, जिसमें हिंदी में उपसर्ग के 10 भेद है।

अ, अध, ऊन, औ, दु, नि, बिन, भर, कु, सु।

3. ‘पराक्रम’ में कौन-सा उपसर्ग है?

उत्तर: ‘पराक्रम’ में ‘परा’ उपसर्ग लगाया गया है। इसमें ‘क्रम’ शब्द का अर्थ है ‘अंक’ लेकिन पराकर्म का अर्थ है शक्तिशाली। इसमें उपसर्ग लगाकर वास्तविक अर्थ को बदल दिया गया है।

4.संस्कृत में उपसर्ग के कितने भेद है?

उत्तर: व्याकरण में उपसर्ग के तीन भेद है जिसमे से संस्कृत में उपसर्ग के 22 भेद है।

अति, अधि, अनु, अप, अभि, अव, आ, उत्, उप, दुर, नि, परा, परि, प्र, प्रति, वि, सम्, सु, निर्, दुस्, निस्, अपि।

5. अनुग्रह में कौन सा उपसर्ग है?

उत्तर: अनुग्रह में अनु उपसर्ग है। इसमें उपसर्ग लगाकर वास्तविक शब्द ग्रह का ही अर्थ बदल दिया है। उपसर्ग शब्द के आरंभ में लगाए जाते हैं।

इन्हे भी पढ़िये

सर्वनामसंज्ञा
प्रत्ययअलंकार
वर्तनीपद परिचय
वाक्य विचारसमास
लिंगसंधि
विराम चिन्हशब्द विचार
अव्ययकाल

पद परिचय

वाक्य में प्रयोग किए गए शब्दों को पद कहा जाता है| इन्हीं पदों का व्याकारणिक परिचय देना पद परिचय कहलाता है। वाक्य में आए पदों का परिचय  विभिन्न आधारों पर दिया जाता है।दिया जाता है।

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प्रयोग के आधार पर पद परिचय आठ प्रकार के होते है

  1. संज्ञा
  2. सर्वनाम
  3. विशेषण
  4. अव्यय
  5. क्रिया विशेषण
  6. क्रिया
  7. संबंधबोधक
  8. समुच्चयबोधक

1. संज्ञा शब्द का पद परिचय

वाक्य में संज्ञा शब्द का पद परिचय देते समय उस शब्द में संज्ञा, संज्ञा के भेद, को बताना होता है तथा उसके साथ साथ लिंग, वचन,कारक और क्रिया के साथ उसका संबंध बताना होता है।

उदाहरण–: लंका में राम ने बाणों से रावण को मारा।

लंका–: संज्ञा, व्यक्तिवाचक, पुल्लिंग,एकवचन, कर्ता कारक

राम–: संज्ञा, व्यक्तिवाचक, पुल्लिंग, एकवचन, कर्ता कारक

बाणों–: संज्ञा, जातिवाचक, पुल्लिंग, बहुवचन, करण कारक 

रावण–: संज्ञा, व्यक्तिवाचक, पुल्लिंग, एकवचन, कर्म कारक।

इस प्रकार संज्ञा शब्द का शब्द परिचय किया जाता है।

2. सर्वनाम शब्द का पद परिचय

जब वाक्य सर्वनाम शब्द का पद परिचय देना हो तो सबसे पहले कौन-सा सर्वनाम, सर्वनाम का प्रकार पुरुष, वचन, लिंग, कारक और वाक्य के अन्य पदों के साथ उसका संबंध बताते है।

उदाहरण–: जिसे आप लोगों ने खाने पर बुलाया है,उसे अपने घर जाने दीजिए।

जिसे–: अन्य पुरुष सर्वनाम, पुल्लिंग, एकवचन, कर्म कारक।

आप लोगों ने–:पुरुष वाचक सर्वनाम, मध्यम पुरुष, पुल्लिंग, बहुवचन, कर्ता कारक।

उसे–:अन्य पुरुष सर्वनाम, पुल्लिंग, एकवचन, कर्म कारक।

अपने–: निजवाचक सर्वनाम, मध्यम पुरुष, पुल्लिंग, एकवचन, संबंध कारक। 

इस प्रकार सर्वनाम शब्द का शब्द परिचय किया जाता है।

3. विशेषण शब्द का पद परिचय–:

विशेषण शब्द का पद परिचय देते समय विशेषण के भेद, अवस्था, लिंग,वचन और विशेष्य के साथ उसके संबंध को बताना होता है।

उदाहरण- ये तीन मूर्तियां बहुत क़ीमती हैं।

उपर्युक्त वाक्य में ‘तीन’ ,’बहुत’ और ‘क़ीमती’ विशेषण हैं। इन दोनों विशेषणों का पद परिचय निम्नलिखित है-

तीन : संख्यावाचक विशेषण, पुल्लिंग, बहुवचन, इस विशेषण का विशेष्य ‘मूर्तियां’ हैं।

बहुत : संख्यावाचक,स्त्रीलिंग, बहुवचन।

क़ीमती : गुणवाचक विशेषण, पुल्लिंग, बहुवचन

इस प्रकार विशेषण शब्द का शब्द परिचय किया जाता है।

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4. अव्यय शब्द का पद परिचय–:

अव्यय का पद परिचय बताने के लिए वाक्य में अव्यय, अव्यय का भेद और उससे संबंधित पद को बताना होता है।

उदाहरण- वे प्रतिदिन जाते हैं। 

वाक्य में ‘प्रतिदिन’ अव्यय है। 

प्रतिदिन : कालवाचक अव्यय

जाना : क्रिया का विशेषण

इस प्रकार अव्यय शब्द का शब्द परिचय किया जाता है।

5. क्रिया विशेषण शब्द  का पद परिचय–:

क्रिया विशेषण का पद परिचय बताने के लिए क्रियाविशेषण का प्रकार और उस क्रिया पद के बारे में बताना होता हैं, जिस क्रियापद की विशेषता बताने के लिए क्रिया विशेषण का प्रयोग हुआ है।

उदाहरण-  लड़की उछल कूद कर रही हैं।

इस वाक्य में ‘उछल कूद’ क्रियाविशेषण है। 

उछल कूद  : रीतिवाचक क्रियाविशेषण क्योंकि ‘कर रही है’ क्रिया की विशेषता बता रहा है।

इस प्रकार क्रिया विशेषण शब्द का शब्द परिचय किया जाता है

6. क्रिया शब्द का पद परिचय–:

क्रिया के पद परिचय में क्रिया का प्रकार, वाच्य, काल, लिंग, वचन, पुरुष, और क्रिया से संबंधित शब्द को बताना होता है।

उदाहरण – मोहन ने सोहन को मारा।

मारा : क्रिया, सकर्मक, पुल्लिंग, एकवचन, कर्तृवाच्य, भूतकाल। ‘मारा’ क्रिया का कर्ता मोहन तथा कर्म सोहन है।

इस प्रकार क्रिया शब्द का शब्द परिचय किया जाता है।

7.संबंधबोधक शब्द का पद परिचय–:

संबंधबोधक का पद परिचय में संबंधबोधक का भेद और संज्ञा या सर्वनाम से संबंधित शब्द को बताना होता है।

उदाहरण- पेड़ के नीचे चिड़िया बैठी है।

के नीचे : संबंधबोधक, पेड़ और चिड़िया इसके संबंधी शब्द हैं।

इस प्रकार संबंधबोधक शब्द का शब्द परिचय किया जाता है।

8.समुच्चयबोधक शब्द का पदपरिचय–:

समुच्चयबोधक के पद परिचय में समुच्चयबोधक का भेद और समुच्चयबोधक से संबंधित योजित शब्द को बताना होता है।

उदाहरण – दिल्ली अथवा कोटा में पढ़ना ठीक है।

इस वाक्य में ‘अथवा’ समुच्चयबोधक शब्द है।

अथवा : विभाजक समुच्चयबोधक अव्यय है तथा ‘कोटा’ और दिल्ली के मध्य विभाजक संबंध

इस प्रकार समुच्चयबोधक शब्द का पद परिचय किया जाता है।

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अधिकतर पूछें गए प्रश्न–:

1. शब्द परिचय कितने प्रकार का होता है?

उत्तर: शब्द परिचय 8 प्रकार का होता है। जिसमें एक वाक्य के शब्दों का आठ प्रकार से परिचय किया जाता है।

2. दिए गए वाक्य का शब्द परिचय दीजिए:

 रामचरितमानस की रचना तुलसीदास द्वारा की गई। 

उत्तर: रामचरितमानस: व्यक्तिवाचक संज्ञा, एकवचन , पुल्लिंग, कर्म कारक। 

तुलसीदास द्वारा: व्यक्तिवाचक संज्ञा, एकवचन, पुल्लिंग , करण कारक। 

की गई : संयुक्त क्रिया , एकवचन , स्त्रीलिंग , कर्मवाच्य, अन्य पुरुष। 

3. किस प्रकार के पद परिचय में संज्ञा या सर्वनाम से संबंधित पद बताया जाता है?

उत्तर: संबंधबोधक पद परिचय में संज्ञा या सर्वनाम से संबंधित पद बताया जाता है।

4. क्रिया विशेषण शब्द और क्रिया शब्द के पद परिचय में क्या अंतर है?

उत्तर:क्रिया विशेषण का पद परिचय बताने के लिए क्रिया विशेषण का प्रकार और उस क्रिया पद के बारे में बताना होता हैं, जिस क्रियापद की विशेषता बताने के लिए क्रिया विशेषण का प्रयोग हुआ है जबकि क्रिया के पद परिचय में क्रिया का प्रकार, वाच्य, काल, लिंग, वचन, पुरुष, और क्रिया से संबंधित शब्द को बताना होता है।

5. दिए गए वाक्य का पद परिचय कीजिए:

    वीरों की सदा जीत होती है।

उत्तर:वीरों की- जातिवाचक संज्ञा, बहुवचन, पुल्लिंग, संबंध कारक संबंध, शब्द ‘जीत’।

सदा- कालवाचक क्रियाविशेषण, क्रिया के काल का बोधक।

जीत- भाववाचक संज्ञा, पुल्लिंग, एकवचन, कर्ता कारक

होती है- अकर्मक क्रिया, एकवचन, स्त्रीलिंग, वर्तमान काल, कर्तृवाच्य।

रस

काव्य को सुनने या पढ़ने में उसमें वर्णित वस्तु या विषय का शब्द चित्र में बनता है। इससे मन को अलौकिक आनंद प्राप्त होता है। इस आनंद और इसकी अनुभूति को शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता, केवल अनुभव किया जा सकता है, यही काव्य में रस कहलाता है। 

किसी विनोदपूर्ण कविता को सुनकर हँसी से वातावरण गूँज उठता है। किसी करुण कथा या कविता को सुनकर ह्रदय में दया का स्त्रोत उमड़ पड़ता है, यह रस की अनुभूति है। 

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रस के मुख्यतः चार अंग या अवयव होते हैं

  1. स्थायीभाव
  2. विभाव
  3. अनुभाव
  4. व्यभिचारी अथवा संचारी भाव

1. स्थायी भाव

स्थायी भाव का अभिप्राय है- प्रधान भाव। रस की अवस्था तक पहुँचने वाले भाव को प्रधान भाव कहते हैं। स्थायी भाव काव्य या नाटक में शुरुआत से अंत तक होता है। स्थायी भावों की संख्या नौ स्वीकार की गई है। स्थायी भाव ही रस का आधार है। एक रस के मूल में एक स्थायीभाव रहता है।

रसों की संख्या भी ‘नौ’ है, जिन्हें ‘नवरस’ कहा जाता है। मूलतः नौ रस ही माने जाते है। बाद के आचार्यों ने दो और भावों (वात्सल्य व भगवद् विषयक रति) को स्थायी भाव की मान्यता प्रदान की। इस प्रकार स्थायी भावों की संख्या ग्यारह तक पहुँच जाती है और जिससे रसों की संख्या भी ग्यारह है।

रस और उनके स्थायी भाव

   रस                 स्थायी भाव

1.श्रंगार               रति

2.हास्य              हास्य

3.करुण            शौक

4.रौद्र                क्रोध

5.अद्भुत          विस्मय 

6.वात्सल्य         स्नेह 

7.वीभत्स           घृणा 

8.शांत              निर्वेद

9.वीर             उत्साह

10.भक्ति रस    अनुराग

2. विभाव

जिस वस्तु या व्यक्ति के प्रति वह भाव प्रकट होता है उसे विभाव कहते है।

विभाव दो प्रकार का होता है:

  1. आलम्बन विभाव– जिसके कारण प्रति हृदय में स्थायी भाव उत्पन्न होता है, उसे आलम्बन विभाव कहते हैं।
  2. उद्दीपन विभाव– भावों को उद्दीप्त करने वाले कार्यों या वस्तुओं को उद्दीपन कहते है। ये आलम्बन विभाव के सहायक एवं अनुवर्ती होते हैं। उद्दीपन के अन्तर्गत आलम्बन की चेष्टाएँ एवं बाह्य वातावरण- दो तत्त्व आते हैं, जो स्थायी भाव को और अधिक उद्दीप्त, प्रबुद्ध एवं उत्तेजित कर देते हैं। 

3. अनुभाव

आलम्बन की चेष्टाएँ (कोशिश करने के लिए, इच्छा) उद्दीपन के अन्तर्गत मानी गई हैं, जबकि आश्रय की चेष्टाएँ अनुभाव के अन्तर्गत आती हैं।

4. संचारी भाव अथवा व्यभिचारी भाव 

स्थायी भाव को पुष्ट करने वाले संचारी भाव कहलाते हैं। ये सभी रसों में होते हैं, इन्हें व्यभिचारी भाव भी कहा जाता है। इनकी संख्या 33 मानी गयी है।

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रसों के प्रकार (Ras ke Prakar)

  1. श्रृंगार-रस
  2. हास्य रस
  3. करुण रस 
  4. वीर रस
  5. भयानक रस
  6. रौद्र रस
  7. वीभत्स रस
  8. अद्भुत रस
  9. शांत रस
  10. वात्सल्य रस
  11. भक्ति रस

(1) श्रृंगार-रस(shringar ras)

श्रृंगार रस को रसराज की उपाधि प्रदान की गई है। 

इसमें नायक नायिका के मिलन और विरह वेदना की स्थिति होती है।

इसके प्रमुखत: दो भेद बताए गए हैं:

(i) संयोग श्रृंगार – जब नायक-नायिका के मिलन की स्थिति की व्याख्या होती है, वहाँ संयोग श्रृंगार रस होता है।

(ii) वियोग श्रृंगार (विप्रलम्भ श्रृंगार) – जहाँ नायक-नायिका के विरह-वियोग, वेदना की मनोदशा की व्याख्या हो, वहाँ वियोग श्रृंगार रस होता है। 

(2) हास्य रस (hasya ras)

किसी व्यक्ति की अनोखी विचित्र वेशभूषा, रूप, हाव-भाव को देखकर अथवा सुनकर जो हास्यभाव जाग्रत होता है, वही हास्य रस कहलाता है। 

बरतस लालच लाल की मुरली धरी लुकाय

सौंह करै भौंहन हंसै दैन कहै नटिं जाय।।

यहाँ पर कृष्ण की मुरली को छुपाने और उसे माँगने पर हंसने और मना करने से हास्य रस उत्पन्न हो रहा है।

(3) करुण रस (Karun Ras)

प्रिय वस्तु या व्यक्ति के समाप्त अथवा नाश कर देने वाला भाव होने पर हृदय में उत्पन्न शोक स्थायी भाव करुण रस के रूप में व्यक्त होता है। 

अभी तो मुकुट बँधा था माथ, 

हुए कल ही हल्दी के हाथ।

खुले भी न थे लाज के बोल,

खिले थे चुम्बन शून्य कपोल। 

हाय! रुक गया यहीं संसार,

बना सिन्दूर अनल अंगार ।

यहाँ पर एक सुहागन के बारे में बताते हुए कह रहे है की अभी तो उसके हाथों में हल्दी लगी थी और बोलने में भी शर्म थी। उसके माथे का सिंदूर इसके पति के मरने के कारण लाल आंगर बन गया है। 

इसलिए यहाँ पर करुण रस है।

(4) वीर रस(veer ras ki paribhasha)

युद्ध अथवा शौर्य पराक्रम वाले कार्यों में हृदय में जो उत्साह उत्पन्न होता है, उस रस को उत्साह रस कहते है। 

हे सारथे ! हैं द्रोण क्या, देवेन्द्र भी आकर अड़े, 

है खेल क्षत्रिय बालकों का व्यूह भेदन कर लड़े।

मैं सत्य कहता हूँ सखे! सुकुमार मत जानो मुझे,

यमराज से भी युद्ध में प्रस्तुत सदा जानो मुझे।

यहाँ पर श्री कृष्ण के अर्जुन से कहे गए शब्द वीर रस का कार्य कर रहे है।

वीररस के चार भेद बताए गए है:

  1. युद्ध वीर
  2. दान वीर
  3. धर्म वीर
  4. दया वीर।

(5) भयानक रस(Bhayanak Ras ki Paribhasha )

जब हमें भयावह वस्तु, दृश्य, जीव या व्यक्ति को देखने, सुनने या उसके स्मरण होने से भय नामक भाव प्रकट होता है तो उसे भयानक रस कहा जाता है। 

नभ ते झपटत बाज लखि, भूल्यो सकल प्रपंच। 

कंपित तन व्याकुल नयन, लावक हिल्यौ न रंच ॥

इस वाक्य में वातावरण के अचानक बदलने और शरीर में कम्पन और आंखों में व्याकुलता के द्वारा भयानक रस दिखाया गया है।

(6) रौद्र रस(Raudra Ras)

जिस स्थान पर अपने आचार्य की निन्दा, देश भक्ति का अपमान होता है, वहाँ पर शत्रु से प्रतिशोध की भावना ‘क्रोध’ स्थायी भाव के साथ उत्पन्न होकर रौद्र रस के रूप में व्यक्त होता है। 

श्रीकृष्ण के सुन वचन अर्जुन क्रोध से जलने लगे । 

सब शोक अपना भूलकर करतल-युगल मलने लगे ॥

संसार देखे अब हमारे शत्रु रण में मृत पड़े। 

करते हुए घोषणा वे हो गये उठकर खड़े ॥ 

उस काल मारे क्रोध के तन काँपने उनका लगा। 

मानो हवा के जोर से सोता हुआ सागर जगा ॥ 

मुख बाल-रवि सम लाल होकर ज्वाल-सा बोधित हुआ।

प्रलयार्थ उनके मिस वहाँ क्या काल ही क्रोधित हुआ ॥

यहाँ पर श्री कृष्ण की निंदा और अपमान सुनकर कृष्ण में रौद्र रस्बकी उत्पत्ति होती है।

(7) वीभत्स रस (Vibhats Ras)

घृणित दृश्य को देखने-सुनने से मन में उठा नफरत का भाव विभाव-अनुभाव से तृप्त होकर वीभत्स रस की व्यञ्जना करता है।

रक्त-मांस के सड़े पंक से उमड़ रही है,

महाघोर दुर्गन्ध, रुद्ध हो उठती श्वासा। 

तैर रहे गल अस्थि-खण्डशत, रुण्डमुण्डहत,

कुत्सित कृमि संकुल कर्दम में महानाश के॥ 

यहाँ पर माँस, दुर्गन्ध आदि के कारण उठी नफरत के भाव को वीभत्स रस कहा गया है।

(8) अद्भुत रस (Adbhut ras ki paribhasha)

जब हमें कोई अद्भुत वस्तु, व्यक्ति अथवा कार्य को देखकर आश्चर्य होता है, तब उस रस को अद्भुत रस कहा जाता है। 

एक अचम्भा देख्यौ रे भाई। ठाढ़ा सिंह चरावै गाई ॥

जल की मछली तरुबर ब्याई। पकड़ि बिलाई मुरगै खाई।। 

यहाँ पर मछली के अद्भुत कार्य की उसे बिल्ली ने पकड़ा और मुर्गे ने खाया के कारण अद्भुत रस उत्पन्न हो रहा है।

(9) शान्त रस(shant ras )

वैराग्य भावना के उत्पन्न होने अथवा संसार से असंतोष होने पर शान्त रस की क्रिया उत्पन्न होती है। 

बुद्ध का संसार-त्याग-

क्या भाग रहा हूँ भार देख? 

तू मेरी ओर निहार देख-

मैं त्याग चला निस्सार देख। 

यहाँ पर बुद्ध के संसार त्यागने से उत्पन्न रस को शांत रस कहा गया है।

(10) वात्सल्य रस (vatsalya ras)

शिशुओं के सौंदर्य उनके क्रिया कलापों आदि को देखकर मन उनकी ओर खींचता है। जिससे मन में स्नेह उत्पन्न होता है, वह वात्सल्य रस कहलाता है।

अधिकतर आचार्यों ने वात्सल्य रस को श्रृंगार रस के अन्तर्गत मान्यता प्रदान की है, परन्तु साहित्य में अब वात्सल्य रस को स्वतन्त्रता प्राप्त हो गयी है। 

यसोदा हरि पालने झुलावै।

हलरावैं दुलरावैं, जोइ-सोई कछु गावैं । 

जसुमति मन अभिलाष करैं।

कब मेरो लाल घुटुरुवन रेंगैं, 

कब धरनी पग द्वैक घरै।

यहाँ पर यशोदा के कृष्ण को पालने में झुलाने, उसे देखकर गाना गाने और उससे स्नेह करने को वात्सल्य रस कहा गया है।

(11) भक्ति रस (Bhakti Ras)

जब आराध्य देव के प्रति अथवा भगवान् के प्रति हम अनुराग, रति करने लगते हैं अर्थात् उनके भजन-कीर्तन में लीन हो जाते हैं तो ऐसी स्थिति में भक्ति रस उत्पन्न होता है। उदाहरण-

जाको हरि दृढ़ करि अंग कर्यो। 

सोइ सुसील, पुनीत, वेद विद विद्या-गुननि भर्यो। 

उतपति पांडु सुतन की करनी सुनि सतपंथ उर्यो । 

ते त्रैलोक्य पूज्य, पावन जस सुनि-सुन लोक तर्यो। 

जो निज धरम बेद बोधित सो करत न कछु बिसर्यो । 

बिनु अवगुन कृकलासकूप मज्जित कर गहि उधर्यो। 

इस वाक्य में आपने देव , आराध्य शिव के लिए भक्त की भक्ति को दर्शाया गया है, जो भक्ति रस का कार्य कर रहा है।

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अधिकतर पूछे गए प्रश्न 

1.रस क्या होता है? 

उत्तर: ‘रस’ शब्द रस् धातु और अच् प्रत्यय के संयोग से बना है। काव्य को सुनने या पढ़ने में उसमें वर्णित वस्तु या विषय का शब्द चित्र में बनता है। इससे मन को अलौकिक आनंद प्राप्त होता है। इस आनंद और इसकी अनुभूति को शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता, केवल अनुभव किया जा सकता है, यही काव्य में रस कहलाता है। 

2.रस के अंग कितने होते हैं?

उत्तर: रस हिंदी व्याकरण के 4 अंग होते हैं-

 (1) स्थायी भाव

(2) विभाव

(3) अनुभाव

(4) संचारी भाव

3.रस के कितने भेद हैं?

उत्तर: रस के ग्यारह भेद होते है- 

(1) श्रृंगार रस

 (2) हास्य रस

 (3) करुण रस 

(4) रौद्र रस

 (5) वीर रस

 (6) भयानक रस

 (7) वीभत्स रस

 (8) अद्भुत रस

 (9) शांत रस

 (10) वत्सल रस 

 (11) भक्ति रस।

4. रौद्र रस का स्थाई भाव क्या है?

उत्तर: रौद्र रस का स्थाई भाव ‘क्रोध’ है।

5. श्रंगार रस का स्थाई भाव क्या है?

उत्तर: श्रंगार रस का स्थाई भाव ‘रति’ है।

मुहावरे और लोकोक्तियाँ

मुहावरे

मुहावरा ऐसा शब्द समूह होता है, जो अपने शब्द में निहित अर्थ को न देकर उससे भिन्न लेकिन रूढ़ अर्थ देता है।

वह अपना विलक्षण अर्थ प्रकट करता है। मुहावरा लोक मानस की स्वाभाविक अभिव्यक्ति होता है। इसमें दुरुहुता नहीं होती है। यह अपने लोक परंपरागत अर्थ में ही सार्थक है। 

“मुहावरा” अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है “आदि होना” या “अभ्यास होना”। मुहावरा शब्द सामान्य अर्थ से अलग विशेष अर्थ को प्रकट करता है। 

हम अपने दैनिक जीवन में कई बार अपने मन के भाव या विचारों को मुहावरों के शब्दों का प्रयोग करके प्रकट करते हैं। मुहावरे पूर्ण रूप से स्वतंत्र नहीं होते इनका प्रयोग वाक्य सौंदर्य को बढ़ाने में किया जाता है। इसके प्रयोग मात्र से भाषा आकर्षक, प्रभावपूर्ण और रोचक बन जाती है। 

मुहावरों का संबंध साहित्य में कम और भाषा में अधिक होता है। यह भाषा के सामर्थ्य का प्रतीक होता है। मुहावरेदार भाषा असरदार होती है।

मुहावरे का वाक्य में प्रयोग इस प्रकार किया जाता है-

कलम तोड़ना ( बहुत सुंदर लिखना) – जयशंकर प्रसाद ने कामयानी लिखने में कलम तोड़ दी।

अपना उल्लू सीधा करना ( अपना स्वार्थ सिद्ध करना)-  आजकल सभी लोग अपना उल्लू सीधा करने में लगे हुए हैं।

नौ दो ग्यारह हो जाना ( भाग जाना)-  पुलिस को देखकर चोर नौ दो ग्यारह हो गए।

अक्ल का दुश्मन होना ( मूर्ख होना)-  मोहन ऐसे काम करता है की उसे अक्ल का दुश्मन कहना गलत नहीं होगा।

पगड़ी उछालना ( बेइज्जती करना)-  उसने सभी के सामने अपने भाई की पगड़ी उछाल दी।

लोकोक्तियाँ

लोकोक्ति का अर्थ होता है लोक + उक्ति अर्थात लोक में प्रचलित उक्ति। जो उक्ति समाज में चिरकाल से प्रचलित होती है।

 लोकोक्ति अर्थ को पूरी तरह स्पष्ट करती है। लोकोक्ति को कहावतें भी कहते हैं। कहावतें कही हुई बातों के समर्थन में होती है। महापुरुषों, कवियों व संतों के कहे हुए ऐसे कथन जो स्वतंत्र और आम बोलचाल की भाषा में कहे गए हैं जिसमें उनका भाव निहित होता है तो ये  लोकोक्तियाँ कहलाती है। प्रत्येक लोकोक्ति के पीछे कोई न कोई घटना व कहानी होती है।

लोकोक्ति अपने आप में पूर्ण वाक्य होती है। इनके शाब्दिक अर्थ और सांकेतिक अर्थ में समानता होती है।इनका प्रयोग किसी बात का समर्थन करने के लिए किया जाता है। यह अभिव्यक्ति का सशक्त साधन है।

लोकोक्तियों का वाक्य में प्रयोग

अंधा क्या चाहे, दो आँखें: (आवश्यक या अभीष्ट वस्तु का मिल जाना)-  मैं आज ऑफिस से छुट्टी लेने की सोच रहा था तभी बॉस का कॉल आया और बोले के आज वो बाहर जा रहे है, इसलिए ऑफिस का ऑफ है। यह तो अंधा क्या चाहे दो आँखें वाली बात हो गई।

अंधेर नगरी चौपट राजा, टका सेर भाजी टका सेर खाजा: (जहाँ मालिक मूर्ख होता है, वहाँ गुण का आदर नहीं होता) – एक कंपनी का मालिक मूर्ख था तथा वहाँ के कर्मचारी गुणवान, लेकिन फिर भी उनके गुणों का आदर नहीं होता था। इसे कहते हैं अंधेर नगरी चौपट राजा, टका सेर भाजी टका सेर खाजा।

अंधों में काना राजा : (मूर्खों या अज्ञानियों में अल्पज्ञ लोगों का भी बहुत आदर होता है।) – टेस्ट में जहाँ सभी के जीरो नंबर आए वहाँ राम दो नंबर से प्रथम आ गया। इसे कहते हैं अंधों में काना राजा।

अंत भला तो सब भला : (परिणाम अच्छा हो जाए तो सब कुछ माना जाता है।) – सुधा का बेटा लड़कर घर से निकल गया था लेकिन अब वह वापिस आ गया और सुधा ने उसे माफ कर दिया और कहने लगी की अंत भला तो सब भला।

अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता:(अकेला आदमी कोई बड़ा काम नहीं कर सकता) – पत्थर को तोड़ने के लिए हम सभी को साथ काम करना पड़ेगा क्योंकि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता है।

मुहावरे और लोकोक्ति में अंतर

मुहावरे अधिकतर ‘ना’ से खत्म होते है, जैसे आँख लगना, मक्खी मारना, आसमान सिर पर उठा लेना आदि जबकि लोकोक्तियाँ ‘ना’ से खत्म नहीं होती हैं।

मुहावरा पूर्णतः स्वतंत्र नहीं होता है, अकेले मुहावरे से वाक्य पूरा नहीं होता है। लोकोक्ति पूरे वाक्य का निर्माण करने में समर्थ होती है। मुहावरा भाषा में चमत्कार उत्पन्न करता है जबकि लोकोक्ति उसमें स्थिरता लाती है। मुहावरा छोटा होता है जबकि लोकोक्ति बड़ी और भावपूर्ण होती है।

अधिकतर पूछें गए प्रश्न

1. मुहावरे का अर्थ स्पष्ट करें।

उत्तर: “मुहावरा” अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है “आदि होना” या “अभ्यास होना”। मुहावरा शब्द सामान्य अर्थ से अलग विशेष अर्थ को प्रकट करता है। मुहावरा ऐसा शब्द समूह होता है, जो अपने शब्द में निहित अर्थ को न देखकर उससे भिन्न लेकिन रूढ़ अर्थ देता है।

2.लोकोक्ति किसे कहते है?

उत्तर: लोकोक्ति का अर्थ होता है लोक + उक्ति अर्थात लोक में प्रचलित उक्ति। जो उक्ति समाज में चिरकाल से प्रचलित होती है। लोकोक्ति अपने आप में पूर्ण वाक्य होती है। इनके शाब्दिक अर्थ और सांकेतिक अर्थ में समानता होती है।इनका प्रयोग किसी बात का समर्थन करने के लिए किया जाता है। यह अभिव्यक्ति का सशक्त साधन है।

3. “आसमान सिर पर उठा लेना” मुहावरे के अर्थ क्या है?

उत्तर: आसमान सिर पर उठा लेना का अर्थ है बहुत शोर करना। जब अध्यापक कक्षा से बाहर गया तो छात्रों ने आसाम सिर पर उठा लिया। बाद में अध्यापक ने सभी को सजा दी।

4. “अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत” लोकोक्ति का अर्थ बताओ।

उत्तर:  दी गई लोकोक्ति का अर्थ है काम बिगड़ जाने पर पछताने और अफसोस करने से कोई लाभ नहीं होता मोहन परीक्षा के लिए पहले तो पढ़ा नहीं और अब फेल होने पर अफसोस कर रहा है। यह तो अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत वाली बात हो गई।

5. मुहावरे और लोकोक्ति में क्या अंतर है?

उत्तर: मुहावरा पूर्णतः स्वतंत्र नहीं होता है, अकेले मुहावरे से वाक्य पूरा नहीं होता है। लोकोक्ति पूरे वाक्य का निर्माण करने में समर्थ होती है। मुहावरा भाषा में चमत्कार उत्पन्न करता है जबकि लोकोक्ति उसमें स्थिरता लाती है। मुहावरा छोटा होता है जबकि लोकोक्ति बड़ी और भावपूर्ण होती है।

वाक्य विचार

वाक्य विचार की परिभाषा

वह शब्द समूह जिससे पूरी बात समझ में आ जाए, ‘वाक्य’ कहलाता है।विचार को पूर्णता से प्रकट करने वाली एक क्रिया से युक्त पद-समूह को ‘वाक्य’ कहते हैं।

जिससे वक्ता या लेखक का पूर्ण अभिप्राय श्रोता या पाठक को समझ में आ जाए, उसे वाक्य कहते हैं।

 जैसे- “विजय खेल रहा है, बालिका नाच रही है।”

वाक्य ऐसे पदसमूह का नाम है जिसमें योग्यता, आकांक्षा दोनों वर्तमान हों। उसे वाक्य कहते हैं।

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वाक्य के दो भाग होते है –

(1)उद्देश्य

(2)विद्येय 

(1) उद्देश्य 

वाक्य का वह भाग, जिसमें किसी व्यक्ति या वस्तु के बारे में कुछ कहा जाए, उसे उद्देश्य कहते हैं।

वाक्य में जिसके विषय में कुछ कहा जाए, उसे उद्देश्य कहते हैं।

जैसे- “पूनम किताब पढ़ती है।” 

       “सचिन दौड़ता है।”

इस वाक्य में पूनम और सचिन के विषय में बताया गया है। अतः ये उद्देश्य है। इसके अंतर्गत कर्ता और कर्ता का विस्तार आता है।

उद्देश्य के रूप में संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया-विशेषण क्रियाद्योतक और वाक्यांश आदि आते हैं।

जैसे- 1. संज्ञा- मोहन गेंद खेलता है।

  1. सर्वनाम- वह घर जाता है।
  2. विशेषण– बुद्धिमान सदा सच बोलते हैं।
  3. क्रिया-विशेषण- पीछे मत देखो।
  4. क्रियार्थक संज्ञा- तैरना एक अच्छा व्यायाम है।
  5. वाक्यांश- भाग्य के भरोसे बैठे रहना कायरों का काम है।

उद्देश्य के भाग

उद्देश्य के दो भाग होते है-

(i) कर्ता

(ii) कर्ता का विशेषण या कर्ता से संबंधित शब्द।

(2) विद्येय  

उद्देश्य के विषय में जो कुछ कहा जाता है, उसे विद्येय कहते है।

जैसे- “पूनम किताब पढ़ती है।”

इस वाक्य में ‘किताब पढ़ती’ है विधेय है क्योंकि पूनम (उद्देश्य )के विषय में कहा गया है।

वाक्य के कर्ता (उद्देश्य) को अलग करने के बाद वाक्य में जो कुछ भी शेष रह जाता है, वह विधेय कहलाता है।

इसके अंतर्गत विधेय का विस्तार आता है। 

जैसे- लंबे-लंबे बालों वाली लड़की ‘अभी-अभी एक बच्चे के साथ दौड़ते हुए उधर गई’ ।

इस वाक्य में विधेय (गई) का विस्तार ‘अभी-अभी एक बच्चे के साथ दौड़ते हुए उधर’ है।

विशेष-आज्ञासूचक वाक्यों में विद्येय तो होता है किन्तु उद्देश्य छिपा होता है।

जैसे- “वहाँ जाओ।”

    “खड़े हो जाओ।”

इन दोनों वाक्यों में जिसके लिए आज्ञा दी गई है वह उद्देश्य अर्थात ‘वहाँ न जाने वाला ‘(तुम) और ‘खड़े हो जाओ’ (तुम या आप) अर्थात् उद्देश्य दिखाई नही पड़ता वरन छिपा हुआ है।

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विधेय के भाग

विधेय के छः भाग होते है-

(i) क्रिया

(ii) क्रिया के विशेषण

(iii) कर्म

(iv) कर्म के विशेषण या कर्म से संबंधित शब्द

(v) पूरक

(vi)पूरक के विशेषण।

विधेय के प्रकार

विधेय दो प्रकार के होते हैं-

 (i) साधारण विधेय (ii) जटिल विधेय

(i) साधारण विधेय

 साधारण विधेय में केवल एक क्रिया होती है। इसका वाक्य बिल्कुल सरल या साधारण होता है।

जैसे- “राम पढ़ता हैं।”

“वह लिखती है।”

(ii) जटिल विधेय-

 जब विधेय के साथ पूरक शब्द प्रयुक्त होते हैं, तो विधेय को जटिल विधेय कहते हैं।

पूरक के रूप में आनेवाला शब्द संज्ञा, विशेषण, सम्बन्धवाचक तथा क्रिया-विशेषण होता हैं।

जैसे- 1. संज्ञा : मेरा बड़ा भाई ‘दुकानदार’ है।

  1. विशेषण : वह आदमी ‘सुस्त’ है।
  2. सम्बन्धवाचक : ये पाँच सौ रुपये ‘तुम्हारे’ हुए।
  3. ‘क्रिया-विशेषण’ : आप ‘कहाँ’ थे।

वाक्य के भेद

1) अर्थ के आधार पर

2) वाक्य के आधार पर

1) रचना के आधार पर वाक्य के तीन भेद होते है-

(i) साधरण वाक्य या सरल वाक्य 

(ii) मिश्रित वाक्य 

(iii) संयुक्त वाक्य 

(i) साधरण वाक्य या सरल वाक्य:-

जिन वाक्य में एक ही क्रिया होती है, और एक कर्ता होता है, वे साधारण वाक्य कहलाते है।

जिन वाक्यों में केवल एक ही उद्देश्य और एक ही विधेय होता है, उन्हें साधारण वाक्य या सरल वाक्य कहते हैं।

इसमें एक ‘उद्देश्य’ और एक ‘विधेय’ रहते हैं।

जैसे- ‘बिजली चमकती है’,

       ‘पानी बरसा’ ।

इन वाक्यों में एक-एक उद्देश्य, अर्थात कर्ता और विधेय, अर्थात् क्रिया है। अतः ये साधारण या सरल वाक्य हैं।

(ii) मिश्रित वाक्य:

जिस वाक्य में एक से अधिक वाक्य मिले हों किन्तु एक प्रधान उपवाक्य तथा शेष आश्रित उपवाक्य हों, मिश्रित वाक्य कहलाता है।

जिस वाक्य में मुख्य उद्देश्य और मुख्य विधेय के अलावा एक या अधिक समापिका क्रियाएँ हों, उसे ‘मिश्रित वाक्य’ कहते हैं।

जब दो ऐसे वाक्य मिलें जिनमें एक मुख्य उपवाक्य  तथा एक गौण अथवा आश्रित उपवाक्य हो, तब मिश्र वाक्य बनता है।

 जैसे-

1) “मेरा दृढ़ विश्वास है कि भारत जीतेगा।”

2) “सफल वही होता है जो परिश्रम करता है।”

उपर्युक्त वाक्यों में ‘मेरा दृढ़ विश्वास है कि’ तथा ‘सफल वही होता है’ मुख्य उपवाक्य हैं और ‘भारत जीतेगा’ तथा ‘जो परिश्रम करता है’ गौण उपवाक्य, इसलिए ये मिश्र वाक्य हैं।

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(iii) संयुक्त वाक्य 

जिस वाक्य में दो या दो से अधिक उपवाक्य मिले हों, परन्तु सभी वाक्य प्रधान हो तो ऐसे वाक्य को संयुक्त वाक्य कहते है।

जिन वाक्यों में दो या दो से अधिक सरल वाक्य योजकों (और, एवं, तथा, या, अथवा, इसलिए, अतः, फिर भी, तो, नहीं तो, किन्तु, परन्तु, लेकिन, पर आदि) से जुड़े हों, उन्हें संयुक्त वाक्य कहते है।

जिस वाक्य में साधारण अथवा मिश्र वाक्यों का मेल संयोजक अवयवों द्वारा होता है, उसे संयुक्त वाक्य कहते हैं।

जैसे- 

1) वह सुबह गया और शाम को लौट आया। 

2) प्रिय बोलो पर असत्य नहीं। 

3) उसने बहुत परिश्रम किया किन्तु सफलता नहीं मिली।

4) मैं रोटी खाकर लेटा कि पेट में दर्द होने लगा, और 

यह सभी वाक्य और, पर, किंतु, की आदि संयोजक शब्दों से जुड़े हुए है, इसलिए यह संयुक्त वाक्य है।

(2) वाक्य के भेद- अर्थ के आधार पर

अर्थ के आधार पर वाक्य मुख्य रूप से आठ प्रकार के होते है-

(i) सरल वाक्य 

(ii) निषेधात्मक वाक्य 

(iii) प्रश्नवाचक वाक्य 

(iv) आज्ञावाचक वाक्य 

(v) संकेतवाचक वाक्य 

(vi) विस्मयादिबोधक वाक्य 

(vii) विधानवाचक वाक्य

(viii) इच्छावाचक वाक्य 

(i) सरल वाक्य :-

वे वाक्य जिनमें कोई बात साधरण बात  ढंग से कही जाती है, सरल वाक्य कहलाते है।

जैसे- “राम ने बाली को मारा।” 

“राधा खाना बना रही है।”

(ii) निषेधात्मक वाक्य:-

जिन वाक्यों में किसी काम के न होने या न करने का बोध हो उन्हें निषेधात्मक वाक्य कहते है।

जैसे- “आज वर्षा नही होगी।”

     “मैं खाना नहीं खाऊँगा।”

(iii) प्रश्नवाचक वाक्य:

वे वाक्य जिनमें प्रश्न पूछने का भाव प्रकट हो, प्रश्नवाचक वाक्य कहलाते है।

जैसे- “राम ने रावण को क्यों मारा?”

        “तुम कहाँ रहते हो ?”

(iv) आज्ञावाचक वाक्य :-

जिन वाक्यों से आज्ञा प्रार्थना, उपदेश आदि का ज्ञान होता है, उन्हें आज्ञावाचक वाक्य कहते है।

जैसे- “परिश्रम करोगे तो फल जरूरी मिलेगा।” 

        “बड़ों का सम्मान करो।”

(v) संकेतवाचक वाक्य:

 जिन वाक्यों से शर्त्त (संकेत) का बोध होता है यानी एक क्रिया का होना दूसरी क्रिया पर निर्भर होता है, उन्हें संकेतवाचक वाक्य कहते है।

जैसे- “यदि परिश्रम करोगे तो अवश्य सफल होंगे।”

      “अगर वर्षा होगी तो फसल भी होगी।”

(vi)विस्मयादिबोधक वाक्य:

जिन वाक्यों में आश्चर्य, शोक, घृणा आदि का भाव ज्ञात हो उन्हें विस्मयादिबोधक वाक्य कहते है।

जैसे- “वाह! तुम आ गए।”

“हाय! मैं लुट गया।”

(vii) विधानवाचक वाक्य:-

 जिन वाक्यों में क्रिया के करने या होने की सूचना मिले, उन्हें विधानवाचक वाक्य कहते है।

जैसे- “वह दौड़ रहा है।”

     “राम पढ़ रहा है।”

(viii) इच्छावाचक वाक्य:- 

जिन वाक्यों से इच्छा, आशीष एवं शुभकामना आदि का ज्ञान होता है, उन्हें इच्छावाचक वाक्य कहते है।

जैसे- “आज तो मैं केवल फल खाऊँगा।”

        “भगवान तुम्हें लंबी उमर दे।”

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अधिकतर पूछे गए प्रश्न

1)वाक्य विचार किसे कहते है?

उत्तर: वह शब्द समूह जिससे पूरी बात समझ में आ जाए, ‘वाक्य’ कहलाता है।

विचार को पूर्णता से प्रकट करने वाली एक क्रिया से युक्त पद-समूह को ‘वाक्य’ कहते हैं।

2)वाक्य के कितने भाग है?

उत्तर: वाक्य के दो भाग होते है-

(1)उद्देश्य

(2)विद्येय 

3)वाक्य के कितने भेद है?

उत्तर: वाक्य के दो भेद है-

1) रचना के आधार पर

2) वाक्य के आधार पर

4)”छी! कितनी गंदगी है!”

दी गई पंक्ति में कौन-सा वाक्य है?

उत्तर: दी गई पंक्ति में विस्मयादिबोधक वाक्य है क्योंकि इसमें घृणा का भाव दिखाई दे रहा है।

5) “तुम यहाँ क्यों आए हो?”

इस पंक्ति में कौन सा वाक्य है?

उत्तर: इस वाक्य में प्रश्न पूछा गया है, इसलिए इस वाक्य में प्रश्न बोधक वाक्य है।

विशेषण

विशेषण एक विकारी शब्द है।  विशेषण संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताने वाले शब्द को कहते है। यह शब्द संज्ञा या सर्वनाम की गुण, दोष, परिणाम और संख्या के आधार पर विशेषता बताता है। यह संज्ञा और सर्वनाम के महत्व को बढ़ा देता है।

उदाहरण-“राधा सुंदर है।” ( इसमें राधा की विशेषता सुंदर विशेषण के द्वारा बताई गई है।)

– “मोहन अच्छा गाता है।”

इस वाक्य में अच्छा विशेषण शब्द से मोहन के गाने की विशेषता बताई गई है, इसलिए इस वाक्य में ‘अच्छा’ विशेषण है।

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विशेषण में वाक्य के दो भाग होते हैं।

पहला संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताने वाले को विशेषण कहते है तथा दूसरा वाक्य में जिस शब्द की विशेषता बताई जाती है उसे विशेष्य कहते है।

जैसे–: “सफेद हाथी’ ( इसमें सफेद विशेषण है और हाथी विशेष्य है क्योंकि हाथी की विशेषता बताई गई है।)

– “राकेश एक लंबा लड़का है।”

इस वाक्य में राकेश को विशेषता बताई गई है, इसलिए राकेश विशेष्य है और लंबा उसकी विशेषता है

विशेषण के चार भेद होते है

विशेषण के  भेद

1.गुणवाचक विशेषण

2.संख्यावाचक विशेषण

3.परिमाणवाचक विशेषण

4.सार्वनामिक विशेषण

1.गुणवाचक विशेषण

जिस शब्द से संज्ञा या सर्वनाम के गुण, रंग, रूप, अवस्था, स्थिति, गंध, स्वाद, दिशा, स्वभाव आदि के बारे में पता चलें उसे गुणवाचक सर्वनाम कहते है।

जैसे- “वह भला इंसान है।’ 

इसमें “इंसान” की स्वभाव का बोध होता है, इसलिए यह गुणवाचक विशेषण है।

-“राधा ने सभी से बडी नम्रता से बात की।’

 इसमें राधा के गुण के बारे में ज्ञान होता है, इसलिए यह गुणवाचक विशेषण है।

2.संख्यावाचक विशेषण

जिन शब्दों के द्वारा संज्ञा या सर्वनाम के संख्या संबंधी विशेषता का बोध होता है। उसे संख्यावाचक विशेषण कहते है।

उदाहरण: “कक्षा में तीस बच्चे है।”

इसमें बच्चो के संख्या (तीस) का बोध हो रहा है, इसलिए यह संख्यावाचक विशेषण है। 

‘मैदान में कुछ खिलाड़ी खेल रहे है।’

यहाँ पर खिलाड़ियों की संख्या (कुछ) का बोध हो रहा है, इसलिए यह संख्यावाचक विशेषण है।

संख्यावाचक विशेषण के दो भेद है

1)निश्चित संख्यावाचक विशेषण

2) अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण

1)निश्चित संख्यावाचक विशेषण

निश्चित संख्या वाचक विशेषण में संख्याओं का निश्चित ज्ञान होता है। संख्याओं का सटीक ज्ञान होता है। इसमें वाक्य में संख्या दी गई होती है।

जैसे-“मोहन दस दिन से स्कूल नहीं आ रहा है।”

यहाँ मोहन के स्कूल न आने के सटीक दिनों (दस) की जानकारी मिल रही है। इसलिए यह निश्चित संख्यावाचक विशेषण है।

-“मेरे पास तीन हजार पैसे है।”

इस वाक्य में पैसे की संख्या तीन हजार से निश्चित हो गई है, इसलिए इस वाक्य में निश्चित संख्यावाचक विशेषण है।

2) अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण

अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण में संख्याओं का निश्चित ज्ञान नही होता है। इसमें कुछ, थोड़ा आदि शब्दों का प्रयोग किया जाता है। इसमें वाक्य में कोई निश्चित संख्या नही दी होती है।

जैसे-“मोहन कुछ दिनों से स्कूल नहीं आ रहा है।”

इस वाक्य में मोहन के स्कूल आने के दिन निश्चित नहीं है, इसलिए इस वाक्य में अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण है।

-“मेरे पास हजार दो हजार पैसे है।”

इसमें पैसे की निश्चित संख्या नही दी गई है। इसलिए यह अनिश्चितसंख्या वाचक विशेषण है।

3.परिमाणवाचक विशेषण

वे शब्द जो विशेष्य की मात्रा का बोध करवाते है। उसे परिमाणवाचक विशेषण कहते है। मात्रा का बोध नाप, माप, और तौल के रूप में होता है। इसका विशेष्य द्रव्यवाचक संज्ञा होती है। इसमें माप, तौल की इकाई दी जाती है।

उदाहरण-“पीने के लिए थोड़ा पानी दीजिए।”

 इसमें पानी के मात्रा( थोड़ा) का बोध कराया गया है, इसलिए यह परिमाणवाचक विशेषण है। इसमें विशेष्य पानी है।

-“एक लीटर तेल दीजिए।” 

इसमें तेल की मात्रा का बोध करवाया गया है, इसलिए यह परिमाणवाचक विशेषण है। इसमें विशेष्य तेल है।

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परिमाणवाचक विशेषण के भेद

1)निश्चित परिमाणवाचक विशेषण

2)अनिश्चित परिमाणवाचक विशेषण

1)निश्चित परिमाणवाचक विशेषण

जो शब्द की पदार्थ और वस्तु की निश्चित मात्रा का बोध कराता है, उसे निश्चित परिमाणवाचक विशेषण कहते है।

जैसे: दो मीटर कपङा

        पाँच लीटर तेल

     एक क्विंटल चावल आदि।

उदाहरण- “उसने एक गिलास पानी पिया।’

इस वाक्य में एक गिलास से पानी की मात्रा निश्चित की गई है, इसलिए इस वाक्य में निश्चित परिमाणवाचक विशेषण है।

2)अनिश्चित परिमाणवाचक विशेषण

जो शब्द किसी पदार्थ या वस्तु की  निश्चित मात्रा का बोध नहीं कराता है, उसे अनिश्चितवाचक परिमाणवाचक विशेषण कहते है।

जैसे- सारा कपङा, कुछ लीटर तेल, थोड़े चावल

उदाहरण: “उसने थोड़ा सा पानी पिया।”

इस वाक्य में थोड़े पानी की बात की है, जिससे उसकी निश्चित मात्रा का बोध नहीं होता है, इसलिए इस वाक्य में अनिश्चित परिमाणवाचक विशेषण है।

4. संकेतवाचक या सार्वनामिक विशेषण

वे विशेषण शब्द जो संज्ञा शब्द की ओर संकेत के माध्यम से विशेषता प्रकट करते है, संकेतवाचक विशेषण कहलाता है। चूँकि ये सर्वनाम शब्द होते हैं जो विशेषण की तरह प्रयुक्त होते हैं अतः इन्हें सार्वनामिक विशेषण भी कहते है।

उदाहरण: यह लड़की बुद्धिमान है। 

इसमें यह के द्वारा संकेत कर लड़की की विशेषता बताई है। इसलिए यह संकेतवाचक विशेषण है।

– मैं उस पेड़ के पास खड़ा था।

इस वाक्य में पेड़ की तरफ संकेत कर के बात कही गई है, इसलिए इस वाक्य में संकेतवाचक विशेषण है।

अधिकतर पूछें गए प्रश्न

1)विशेषण कितने प्रकार है?

उत्तर: विशेषण चार प्रकार के होते हैं। यह सभी गुण, संख्या, परिमाण और संकेत के द्वारा संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताते है।

1.गुणवाचक विशेषण

2.संख्यावाचक विशेषण

3.परिमाणवाचक विशेषण

4.सार्वनामिक / सांकेतिक विशेषण

2) दिए गए वाक्य में कौन सा विशेषण है।

      “मोहन वहाँ खड़ा है।”

उत्तर: मोहन वहाँ खड़ा है में संकेतवाचक विशेषण है, क्योंकि इसमें वहाँ शब्द के द्वारा मोहन के खड़े होने की तरफ संकेत किया गया है और उसकी विशेषता बताई गई है।

3) संख्यावाचक और परिमाणवाचक विशेषण में क्या अंतर है?

उत्तर: संख्यावाचक विशेषण में वस्तु या व्यक्ति के संख्या की गणना की जाती है यह गणना निश्चित और अनिश्चित दोनो हो सकती है तथा परिमाणवाचक विशेषण में पदार्थ का नाप-तौल किया जाता है। इसमें भी नाप-तोल निश्चित और अनिश्चित दोनों हो सकता है।

4)“खीर मीठी है।” वाक्य में कौन सा विशेषण है?

उत्तर: खीर मीठी है में गुणवाचक विशेषण है। क्योंकि इसमें खीर के गुण (मीठी) का बोध हो रहा है।

5) संख्यावाचक विशेषण के कितने भेद है?

उत्तर: संख्यावाचक विशेषण के दो भेद है।

      1)निश्चित संख्यावाचक विशेषण

     2) अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण

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