एकार्थी शब्द

जिन शब्दों का केवल एक अर्थ ही निकलता है, उसे एकार्थी शब्द कहते है। इनका कोई दूसरा अर्थ या मतलब नही निकलता है। यह अर्थ किसी एक वस्तु या पदार्थ के लिए निर्धारित रहता है। 

जहा भी उस एकार्थी शब्द का प्रयोग किया जाता है वहां पर वह उस एक ही वस्तु और पदार्थ के लिए ही प्रयोग किया जाता है।

एकार्थी शब्द

व्यक्तिवाचक संज्ञा को एकार्थी शब्दों के अच्छा उदहारण माना जाता है।

मनुष्यों के नाम–: सीता, मोहन, अमित

मनुष्यों के नाम एकार्थी शब्द होते हैं, क्योंकि प्रत्येक मनुष्य का नाम अलग अलग होता है वह नाम उस विशेष व्यक्ति के लिए ही निर्धारित होता है। 

पर्वतों के नाम–: हिमालय, शिवालिक

पर्वतों के नाम भी एकार्थी होते हैं, क्योंकि अलग अलग पर्वत को अलग अलग नामों से जाना जाता है जो उनमें भिन्नता दिखाता है। यह नाम विशेष पर्वतों के लिए निर्धारित होते हैं।

भाषाओं के नाम–: उर्दू, अंग्रेजी, द्रविड 

भाषाओं के नाम भी एकार्थी शब्द होते हैं। भारत में अनेक भाषाएं बोली जाती है। प्रत्येक भाषा के लिए उसका नामकरण किया गया है। जो केवल उसी भाषा के लिए प्रद्योग किया जाता है।

दिनों के नाम–: आज, मंगलवार, रविवार

सप्ताह में सात दिन होते हैं। प्रत्येक दिन को अलग अलग नाम से जाना जाता है। प्रत्येक दिन का अपना अलग नाम है। इसलिए दिनों के नाम भी एकार्थी शब्द होते हैं।

नदियों के नाम–: यमुना, गंगा, ताप्ती 

दुनिया में अनेक नदियां है। जिनको पहचानने के लिए अलग अलग नाम दिया गया है। यह नाम नदियों विदेश के लिए निर्धारित होते हैं। उसका कोई अलग अर्थ नहीं निकलता है। इसलिए नदियों के नाम भी एकार्थी शब्द होते हैं।

महीनों के नाम–: मार्च, अगस्त, जुलाई

साल में बारह महीने होते है। जिनको अलग अलग नामों के द्वारा जाना जाता है। एक नाम केवल एक महीने के लिए ही पहचाना जाता है। 

गांव के नाम–: बादली, देवेरखाना, ढोलकपुर

प्रत्येक स्थान का नाम अलग अलग होता है। जिससे उस विशेष स्थान के बारे में पता चलता है। उसके नाम का कोई और दूसरा अर्थ नहीं होता है। इसलिए स्थान का नाम भी एकार्थी शब्द होता है।

बीमारियों के नाम–: चेचक, पीलिया, टायफाइड

बीमारियों के नाम अलग अलग होते है। जिससे उनके इलाज के बारे में पता चलता है। एक बीमारी के नाम से सभी बीमारियों का पता नहीं लगाया जाता है। इसलिए बीमारियों के नाम एकार्थी शब्द होते हैं।

उपाधियों के नाम–: शेर – ए – हिंद, राष्ट्रपिता

अलग अलग देशों में काबिल व्यक्तियों को अलग अलग उपाधियां दी जाती है। यह उपाधियां और इनके नाम अलग अलग होते है। जिनसे इनके एकार्थी होने का पता चलता है।

देशों के नाम–: भारत, नेपाल, बांग्लादेश

दुनिया में अनेक देश है। जिनके अलग अलग नाम है। यह अलग अलग नाम उन देशों के लिए निर्धारित किए गए है। अलग देश का नाम भी अलग ही होता है। जिससे देशों के नाम का एकार्थी होने का पता चलता है।

शहरों के नाम–: शिमला, दिल्ली, पेरिस

अलग अलग शहरों को अलग अलग नामों से पुकारा जाता है। उनके नाम एक जैसे नहीं होते हैं। प्रत्येक के लिए अलग अलग नाम रखा गया है। इसलिए यह एकार्थी शब्द है।

कलाओं के नाम –: साहित्य कला, संगीत वास्तुकला।

अनेक व्यक्ति अलग अलग कलाओं में निपुण होते हैं। लेकिन उन कलाओं को एक ही नाम से नहीं जाना जाता है। उनके लिए भी अलग अलग और एक ही नाम रखा गया है। इसलिए यह एकार्थी शब्द है।

ऐसे और भी अनेक शब्द है जिनके एक ही अर्थ होते है जो किसी विशेष के लिए प्रयोग होते है।

उपहास – मजाक

वेदना – दुख

आनंद – सुख

समीप – पास

समय – वक्त

नेत्र – आँख

वृद्ध – बूढ़े

शोभा – सुंदरता

आराधना – तपस्या

ऋण – कर्ज

कपोत – कबूतर

कपोल – गाल

कमान – धनुष

कामना – इच्छा

कपट – छल

बदनामी – बुराई

पुस्तक – किताब

सम्राट – राजा

भिन्न – अलग

भ्रम – वहम

आधुनिक – नया

श्रोता – सुनना

प्राचीन – पुराना

मुस्कुराना – हंसना

परछाई – प्रतिबिंब

वक्ता – बोलना

इस प्रकार और भी शब्द है जिनके केवल एक ही अर्थ होते हैं। वह किसी अन्य अर्थ की ओर संकेत नहीं करते है

अधिकतर पूछे गए प्रश्न

1) एकार्थी शब्द किसे कहते हैं?

उत्तर:जिन शब्दों का केवल एक अर्थ ही निकलता है, उसे एकार्थी शब्द कहते है। इनका कोई दूसरा अर्थ या मतलब नही निकलता है। यह अर्थ किसी एक वस्तु या पदार्थ के लिए निर्धारित रहता है। 

जहा भी उस एकार्थी शब्द का प्रयोग किया जाता है वहां पर वह उस एक ही वस्तु और पदार्थ के लिए ही प्रयोग किया जाता है।

2) एकार्थी शब्द का उदाहरण कौन सी संज्ञा है?

उत्तर:व्यक्तिवाचक संज्ञा को एकार्थी शब्दों के अच्छा उदहारण माना जाता है। व्यक्तिवाचक संज्ञा में प्रयोग होने वाले सभी नाम और पदार्थ एकार्थी शब्द होते हैं। उनका अन्य कोई दूसरा नाम या पहचान नहीं होती है। उन सभी का केवल एक ही नाम होता है।

3) एकार्थी शब्द में कौन कौन शामिल है?

उत्तर:मनुष्यों के नाम–: सीता, मोहन, अमित

पर्वतों के नाम–: हिमालय, शिवालिक

कलाओं के नाम –: साहित्य कला, संगीत वास्तुकला।

शहरों के नाम–: शिमला, दिल्ली, पेरिस

देशों के नाम–: भारत, नेपाल, बांग्लादेश

उपाधियों के नाम–: शेर – ए – हिंद, राष्ट्रपिता

गांव के नाम–: बादली, देवेरखाना, ढोलकपुर

बीमारियों के नाम–: चेचक, पीलिया, टायफाइड

महीनों के नाम–: मार्च, अगस्त, जुलाई

दिनों के नाम–: आज, मंगलवार, रविवार

नदियों के नाम–: यमुना, गंगा, ताप्ती

भाषाओं के नाम–: उर्दू, अंग्रेजी, द्रविड

ये सभी व्यक्तिवचक संज्ञा का एक अच्छा उदाहरण है। इन सभी के नाम और अर्थ एकार्थी होते है। कोई अन्य अर्थ नहीं होता है। इसलिए इनको एकार्थी शब्द कहते हैं।

4)कुछ एकार्थी शब्दों को लिखे?

उत्तर: बेलन, जींस, अंगूठी, कंबल, दुपट्टा आदि एकार्थी शब्द हैं। इन सभी शब्दों के कोई अलग या अन्य नाम और अर्थ नहीं है। क्योंकि ये शब्द किसी एक ही वस्तु या प्राणी के लिए प्रयोग किए गए है। किसी दूसरी वस्तु या प्राणी के लिए इन शब्दों का प्रयोग नहीं किया जाता है। यह नाम किसी विशेष वस्तु के लिए निर्धारित होते हैं। ये शब्द केवल एक ही अर्थ देते हैं।

5)कुछ देशों के एकार्थी नाम लिखें?

उत्तर: भूटान, नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका आदि देशों के नाम एकार्थी शब्द होते हैं। एक देश का नाम केवल उसी विशेष देश के लिए प्रयुक्त किया जाता है। किसी अन्य देश को किसी दूसरे देश के नाम से  बुलाया या संबोधित नहीं किया जाता है। इसलिए देशों के नाम किसी एक विशेष देश के लिए ही निर्धारित होते हैं।

 

अनेकार्थी शब्द

अनेकार्थी शब्द उस शब्द को कहा जाता है जिस शब्द के एक से अधिक अर्थ प्रकट होते है। भिन्न भिन्न परिस्थितियों में उस एक शब्द का अर्थ उस स्थिति के अनुसार अलग होंगे।

एक से अधिक अर्थ देने वाले शब्द को अनेकार्थी शब्द कहा जाता है। ऐसे अनेक शब्द है जिनके एक से अधिक अर्थ निकलते हैं

 

आम – आम का फल,  साधारण।

आम शब्द का प्रयोग दिए गए सभी अर्थों के रूप में होता है। इसके एक से अधिक अर्थ होते हैं। वाक्य के अनुसार उचित अर्थ का प्रयोग किया जाता है।

अंश – हिस्सा, कोण का अंश, किरण।

अंश शब्द के अर्थों का प्रयोग वाक्य में स्थिति के अनुसार किया जाता है। इसके अर्थ एक से अधिक है, इसलिए यह अनेकार्थी शब्द है।

अज – ब्रह्मा, बकरा, दशरथ का पिता,शिव ।

अज शब्द का प्रयोग दिए गए सभी अर्थों के रूप में होता है। इसलिए यह शब्द अनेकार्थी शब्द है।

अब्ज – चंद्रमा, कमल, शंख, कपूर।

इस शब्द का प्रयोग वाक्य में सही अर्थ के रूप में किया जाता है। जो अर्थ वाक्य में सटीक बैठता है, उसका प्रयोग वाक्य में किया जाता है।

अतिथि – मेहमान, साधु, यात्री, अपरिचित व्यक्ति।

इस शब्द का अर्थ एक से अधिक है। इसलिए यह शब्द अनेकार्थी शब्द है।

ईश्वर – परमात्मा, स्वामी, शिव, पारा, पीतल।

एक शब्द के एक से अधिक अर्थ  होने पर उसे अनेकार्थी शब्द कहते है। वाक्य में अधिक अर्थों का प्रयोग वाक्य के अनुसार किया जाता है।

इतर–  दूसरा, साधारण, नीच।

इतर शब्द के एक से अधिक अर्थ है। इसलिए यह शब्द अनेकार्थी शब्द है।

इंगित– संकेत, अभिप्राय, हिलना-डूलना

इंगित शब्द के एक से अधिक अर्थ है। इन अर्थों का प्रयोग वाक्य के अनुसार सही अर्थ के रूप में किया जाता है।

अरुण- लाल, सूर्य, सूर्य का सारथी, प्रभात का सूर्य |

अरुण शब्द का अर्थ एक से अधिक है, इसलिए यह शब्द अनेकार्थी शब्द है।

अपेक्षा- इच्छा, आवश्यकता, आशा।

अपेक्षा शब्दों के अर्थों का प्रयोग वाक्य के अनुसार किया जाता है। अनेक अर्थ होने के कारण यह अनेकार्थी शब्द है।

अंक-भाग्य, गिनती के अंक, नाटक के अंक।

अंक शब्द के एक से अधिक अर्थ दिए गए है।  अलग अलग अर्थ का प्रयोग अलग अलग स्थिति में किया जाता है।

अंबर-आकाश, अमृत, वस्त्र।

अंबर शब्द के अनेक अर्थ है। अलग अलग अर्थ का अपना एक अलग महत्व है। इसलिए यह वाक्य में उसकी स्थिति के अनुसार प्रयोग किए जाते है।

जलज-कमल, मोती, शंख, मछली, जोंक, चन्द्रमा

जलज शब्द के अनेक अर्थ दिए गए हैं। प्रत्येक अर्थ का अपना एक महत्व है। जो किसी उचित कारण से वाक्य में प्रयोग किया जाता है। इसलिए यह शब्द अनेकार्थी शब्द है।

जड़ – मूल, मूर्ख, 

जड़ शब्द के अलग अलग अर्थ अलग अलग वाक्य में उसकी स्थिति के अनुसार प्रयोग किए जाते है। अनेक अर्थ होने के केअर। यह अनेकार्थी शब्द है।

तनु – शरीर, पतला, कम, कोमल

तनु शब्द के एक से अधिक शब्द है। अलग अलग शब्द के अलग अलग अर्थ होते हैं। जो स्थिति के अनुसार प्रयोग किए जाते है। 

दल – पत्ता, समूह, सेना, पक्ष

दिए गए शब्द दल शब्द के अर्थ है। यह शब्द एक से अधिक अर्थ देता है। इसलिए यह शब्द अनेकार्थी शब्द है।

जलज-कमल, मोती, शंख, मछली, जोंक, चन्द्रमा

जलज के एक से अधिक अर्थ है। इसलिए यह शब्द अनेकार्थी है। इसके अलग अलग अर्थों का प्रयोग अलग अलग वाक्यों में किया जाता है।

ऐसे और भी शब्द है जिनके एक से अधिक अर्थ है और प्रत्येक अर्थ का अपना अलग महत्व है। अलग अलग अर्थ अलग अलग वस्तुओं की तरफ संकेत करते हैं।

अधिकतर पूछे गए प्रश्न –:

1)अनेकार्थी शब्द किसे कहते हैं?

उत्तर:अनेकार्थी शब्द उस शब्द को कहा जाता है जिस शब्द के एक से अधिक अर्थ प्रकट होते है। भिन्न भिन्न परिस्थितियों में उस एक शब्द का अर्थ उस स्थिति के अनुसार अलग होंगे। एक ही स्थिति को दर्शाने के लिए एक ही शब्द का प्रयोग नहीं किया जाता है। अलग शब्द का प्रयोग किया जाता है। एक से अधिक अर्थ देने वाले शब्द को अनेकार्थी शब्द कहा जाता है।

2)कुछ अनेकार्थी शब्दों के उदाहरण बताइए?

उत्तर:पत्र – पत्ता, चिट्ठी, पन्ना, आवरण।

पानी – इज्जत, जल, चमक, शस्त्र की धार।

बलि – एक राजा, किसी को मारना 

सेहत – स्वास्थ्य, सुख

वस्त्र – पीतांबर, अंबर, पीत

कृष्ण – कन्हैया, वेदव्यास

चरण – पग, पंक्ति, भाग

भूत – अतीत, बीता हुआ

पर – बाद, पंख

इन सभी शब्दों के अर्थ एक से ज्यादा है। अलग अलग शब्दों और अर्थों का प्रयोग अलग अलग स्थिति को दर्शाने के लिए किया जाता है। एक ही स्थिति या अलग अलग स्थिति को दर्शाने के लिए एक ही शब्द का प्रयोग नहीं किया जाता है। इसलिए एक से अधिक अर्थ होने के कारण यह शब्द अनेकार्थी शब्द है।

3) उद्योग, ईश्वर और लघु शब्दों के अनेकार्थी शब्द बताइए?

उत्तर:उद्योग – परिश्रम, कारखाना

ऊपर दिए गए सभी अर्थ उद्योग शब्द के हैं। अलग अलग परिस्थितियों में अलग अलग अर्थ का प्रयोग किया जाता है।

ईश्वर – परमात्मा, ईश, देव

ईश्वर शब्द के लिए एक से अधिक अर्थों का प्रयोग किया गया है। जिसका प्रयोग अलग अलग वाक्यों में किया जाता है, इसलिए यह अनेकार्थी शब्द है।

लघु – छोटा, हल्का

लघु शब्द के लिए दिए गए सभी अर्थों का प्रयोग होता है। अलग अलग दशाओं में अलग अलग अर्थ का प्रयोग किया जाता है। इसलिए यह शब्द अनेकार्थी शब्द है।

4)हार, वस्त्र और औसत शब्दों के अनेकार्थी शब्द बताइए

उत्तर:हार – आभूषण, पराजय

वस्त्र – पीतांबर, अंबर, पीत

औसत – बीच का , साधारण

ऊपर दिए गए सभी शब्दों के एक से अधिक अर्थ है। ये सभी अर्थों का प्रयोग इन शब्दों के लिए किया जाता है। जो अलग अलग स्थितियों में अलग अलग अर्थ को व्यक्त करती है। इसलिए एक शब्द के अनेक अर्थ होने के कारण यह शब्द अनेकार्थी शब्द है।

5) लक्ष्य, अधर और फल शब्दों के अनेकार्थी शब्द बताइए

उत्तर:अधर – पाताल, होंठ, नीचा

लक्ष्य– निशाना, उद्देश्य

फल – परिणाम, लाभ, खाने वाला फल, हल

दिए गए सभी शब्दों के अर्थ एक से अधिक है। जिनका प्रयोग अलग अलग वाक्यों में किया जाता है। अलग अलग स्थिति को दर्शाने के लिए अलग अलग शब्दों का प्रयोग किया जाता है। एक ही अर्थ या शब्द से सभी से सभी स्थिति को नहीं दर्शाया जाता है। इसलिए यह ये सभी शब्द अनेकार्थी शब्द है।

 

  शब्द-भंडार

दो या दो से अधिक वर्ण मिलकर शब्द का निर्माण करते हैं, और शब्द मिलकर एक भाषा का निर्माण करते हैं। शब्द को हम भाषा की प्राणवायु भी कह सकते हैं, क्योंकि बिना शब्दों के भाषा का कोई अस्तित्व नहीं है। 

हिंदी साहित्य या हिंदी भाषा में शब्दों का ऐसा समूह जिसमें पर्यायवाची, विलोम, एकार्थी, अनेकार्थी, समरूपी भिन्नार्थक और अनेक शब्दों के लिए एक शब्द जैसे शब्दों को एक जगह इकट्ठा करके रखना ही ‘शब्द भंडार’ कहलाता है।

किसी भी भाषा में, वाक्यों में शब्दों का प्रयोग किस प्रकार से किया जाएगा, इस आधार पर हम शब्दों को दो भागों में बाँटते हैं। 

शब्द भंडार के तीन मुख्य भेद किए गए हैं– 

1) अर्थ की दृष्टि से शब्द भेद–

(i) साथर्क शब्द – ऐसे शब्द जिनके प्रयोग से किसी बात का अर्थ स्पष्ट हो वह सार्थक शब्द कहलाते हैं।

 जैसे – पलंग, संदूक, बोतल, किताब, ठंडा, ब्लैकबोर्ड, कुर्सी, मोबाइल, कंघी, मोमबत्ती, चाय, इत्यादि। 

(ii) निरर्थक शब्द – जब दो या दो से अधिक वर्ण मिल तो जाए लेकिन उनका कोई अर्थ ना बने तो उन शब्दों को निरर्थक शब्द का नाम दिया जाता है। 

जैसे – सोलोइय, युफ्सियत, ओसभ, कोकी आदि। 

सार्थक शब्दों के अर्थ होते हैं जबकि निरर्थक शब्दों का कोई भी अर्थ नहीं होता। 

2) प्रयोग की दृष्टि से शब्द-भेद

(i) विकारी शब्द –  विकार शब्द का अर्थ होता है परिवर्तन या बदलाव। जब किसी शब्द के रूप में लिंग, वचन, और कार्य के आधार पर किसी प्रकार का परिवर्तन आ जाता है तो उन शब्दों को विकारी शब्द कहते हैं। 

जैसे लिंग के आधार पर परिवर्तन – 

लड़का काम कर रहा है – लड़की काम कर रही है। 

लड़की खाना खा रही है – लड़का खाना खा रहा है। 

उपयुक्त वाक्य में लिंग के आधार पर शब्दों में परिवर्तन किया गया है। जैसे ‘कर रहा’ का ‘कर रही’ हो गया, जब लिंग के आधार पर परिवर्तन किया जाता है तो शब्दों में कुछ ज्यादा अंतर नहीं आता। 

एकवचन और बहुवचन के आधार पर शब्दों में परिवर्तन –

लड़का खेलता है – लड़के खेलते हैं। 

लड़का शब्द सिर्फ एक लड़के के लिए प्रयोग किया गया है जबकि लड़के अनेक के लिए प्रयोग किया गया है।

औरत घर का काम करती है – औरतें घर का काम करती है।

‘औरत’ शब्द सिर्फ एक औरत के लिए है जबकि ‘औरतें’ शब्द बहुत सारी औरतों के लिए है, इस प्रकार से वचन के आधार पर भी शब्दों में परिवर्तन किया जाता है।

कारक के आधार पर शब्दों का परिवर्तन – 

वह आदमी नौकरी करता है – उस आदमी को नौकरी करने दो।

वह लड़की लिखती है – उस लड़की को लिखने दो। 

ऊपर वाक्य में कारक के बदल जाने से शब्दों का ही अर्थ बदल जाता है। 

विकारी शब्द भी चार प्रकार के होते है- 

(i) संज्ञा 

(ii) सर्वनाम 

(iii) विशेषण 

(iv) क्रिया 

(ii) अविकारी शब्द – 

जब शब्दों में किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं होता तो उन्हें अविकारी शब्द कहा जाता है जैसे – परंतु, तथा, धीरे-धीरे, अधिक आदि। 

जिन शब्दों में लिंग, वचन, कार्य के आधार पर किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं किया जाता वह अविकारी शब्द कहलाते हैं। 

जैसे – तुम धीरे-धीरे वहाँ जाओ।

         परंतु तुम हो कौन?

वाक्य में लिंग के आधार पर किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं किया जा सकता है। वाक्य का प्रयोग लड़के के लिए हो रहा है या लड़की के लिए हो रहा है इसका अर्थ बता पाना मुश्किल है। 

अविकारी शब्द भी चार प्रकार के होते है

(i) क्रिया-विशेषण 

(ii) सम्बन्ध बोधक

(iii) समुच्चय बोधक

(iv) विस्मयादि बोधक

3) उत्पति की दृष्टि से शब्द-भेद –

(i) तत्सम शब्द 

(ii ) तद्भव शब्द 

(iii ) देशज शब्द

(iv) विदेशी शब्द।

(i) तत्सम शब्द – हिंदी भाषा में बहुत सारे ऐसे शब्द है, जो संस्कृत भाषा से लिए गए हैं परंतु उनका अर्थ और प्रयोग संस्कृत भाषा के समान ही किया जाता है, इन शब्दों को ही तत्सम शब्द कहा जाता है। 

 संस्कृत भाषा के वह शब्द जो हिंदी भाषा में लिए गए हैं और वह अपने वास्तविक रूप में प्रयोग किए जाते हैं, तत्सम शब्द कहलाते हैं।

(ii ) तद्भव शब्द – वह शब्द जो संस्कृत भाषा से विकृत होकर हिंदी में आए हैं तद्भव शब्द कहलाते हैं। संस्कृत भाषा के ऐसे शब्द जो सिर्फ थोड़े से ही बदलाव के साथ हिंदी भाषा में रूपांतरित किए गए हैं, तद्भव शब्द कहलाते हैं। 

(iii ) देशज शब्द – भारत देश में भिन्न-भिन्न स्थानों में भिन्न-भिन्न प्रकार की बोलियाँ बोली जाती है और हिंदी भाषा में कई ऐसे शब्द है, जो देश की विभिन्न बोलियों से लिए गए हैं, इन्हीं शब्दों को देशज  शब्द का नाम दिया जाता है। 

जो शब्द किसी देश की विभिन्न भाषाओं से मातृभाषा में लिए गए हो वह देशज शब्द कहलाते हैं। 

जैसे- चिड़िया, कटरा, कटोरा, खिरकी, जूता, खिचड़ी, पगड़ी, लोटा, डिबिया, तेंदुआ, कटरा, अण्टा, ठेठ, ठुमरी, खखरा, चसक, फुनगी, डोंगा आदि।

(iv) विदेशी शब्द – विदेशी भाषाओं से जो शब्द हिंदी भाषा में जोड़े गए हैं वह शब्द विदेशी शब्द कहलाते हैं। जो शब्द विदेशियों के संपर्क में आने के बाद हिंदी भाषा में लिए गए हैं, वह शब्द विदेशी शब्द कहलाते हैं। 

आज के समय में हिंदी भाषा में अनेक प्रकार के विदेशी शब्दों का प्रयोग किया जाता है जिनका वर्णन निम्नलिखित है – 

अंग्रेजी भाषा से लिए गए शब्द  – हॉस्पिटल, डॉक्टर,  , पेन, पेंसिल, , कार, स्कूल, कंप्यूटर, ट्रक, टेलीफोन, टिकट, इत्यादि।

 अरबी भाषा से लिए गए शब्द – असर, किस्मत, खयाल, मतलब, तारीख, कीमत, अमीर, औरत, इज्जत, इलाज, वकील, किताब, , मालिक, गरीब, मदद इत्यादि।

तुर्की भाषा से लिए गए शब्द – तोप, काबू, तलाश, , बेगम, बारूद, चाकू इत्यादि।

चीनी भाषा से लिए गए शब्द – चाय, पटाखा,आदि।

उपयुक्त शब्दों के अलावा भी कई ऐसे शब्द जो विदेशी भाषाओं से लिए गए हैं, इनका प्रयोग हिंदी भाषा में आज के समय में भी होता है। इसके अलावा वर्तमान समय में भी कई शब्द विदेशों से हिंदी भाषा में लिए जा रहे हैं जिनका उपयोग धीरे-धीरे बढ़ाया जा रहा है।

अधिकतर पूछे गए प्रश्न –:

1)शब्द भंडार किसे कहते हैं?

उत्तर- हिंदी साहित्य या हिंदी भाषा में शब्दों का ऐसा समूह जिसमें पर्यायवाची, विलोम, एकार्थी, अनेकार्थी, समरूपी भिन्नार्थक और अनेक शब्दों के लिए एक शब्द जैसे शब्दों को एक जगह इकट्ठा करके रखना ही शब्द भंडार कहलाता है।

2)शब्द भंडार के कितने भेद है?

उत्तर: शब्द भंडार के तीन मुख्य भेद किए गए हैं- 

1. अर्थ की दृष्टि से शब्द-भेद

(i) साथर्क शब्द 

(ii) निरर्थक शब्द 

2. प्रयोग की दृष्टि से शब्द-भेद

i) विकारी शब्द 

(ii) अविकारी शब्द

3. उत्पत्ति की दृष्टि से।

3) ‘तद्भव शब्द’ किसे कहते है?

उत्तर: वह शब्द जो संस्कृत भाषा से विकृत होकर हिंदी में आए हैं तद्भव शब्द कहलाते हैं। संस्कृत भाषा के ऐसे शब्द जो सिर्फ थोड़े से ही बदलाव के साथ हिंदी भाषा में रूपांतरित किए गए हैं, तद्भव शब्द कहलाते हैं। 

4) ‘तत्सम शब्द’ किसे कहते हैं?

उत्तर: हिंदी भाषा में बहुत सारे ऐसे शब्द है जो संस्कृत भाषा से लिए गए हैं परंतु उनका अर्थ और प्रयोग संस्कृत भाषा के समान ही किया जाता है, इन शब्दों को ही तत्सम शब्द कहा जाता है। 

5)हॉस्पिटल शब्द की भाषा का है?

उत्तर: हॉस्पिटल शब्द अंग्रजी भाषा का शब्द है, जो हिंदी में प्रयोग किया जाता है।

पर्यायवाची शब्द

एक शब्द का समान अर्थ देने वाले शब्द को पर्यायवाची शब्द कहते है। यह शब्द समान अर्थ होने के कारण दूसरे शब्द का भी स्थान ले लेते है।

पर्यायवाची शब्द

पर्यायवाची शब्द को अंग्रेजी में synonym कहते है।

एक शब्द का समान अर्थ देने के कारण पर्यायवाची शब्द को समानार्थी शब्द भी कहते है।

हिंदी में तत्सम शब्द जो संस्कृत से हिंदी में आए है, पर्यायवाची के रूप में अधिक पाए जाते हैं।

 पर्यायवाची शब्द इस प्रकार है–:

वृक्ष –: पेड़, पादप, विटप, तरु

अग्नि –: अनल, पावक, दहन, ज्वलन,

दवा–: दवाई, औषध, औषधि

अतिथि –: मेहमान ,पाहुन ,आगंतुक, अभ्यागत।

अश्व –: घोड़ा,आशुविमानक, तुरंग, घोटक, हय, तुरंगम, 

अधर्म –: पाप ,अनाचार, अन्याय, अपकर्म, जुल्म।

अचल- अडिग ,अटल ,स्थिर ,दृढ, अविचल।

अनुपम- अनोखा, अनूठा, अपूर्व, अद्भुत, अतुल।

अमृत- मधु, सुधा, पीयूष ,अमी, सोम ,सुरभोग।

अंबा- माता, जननी, मां, जन्मदात्री, प्रसूता।

अलंकार– आभूषण, भूषण, विभूषण, गहना, जेवर।

अहंकार– दंभ, गर्व, अभिमान, दर्प, मद, घमंड, मान।

अरण्य– जंगल, वन, कानन, अटवी, कान्तार, विपिन।

अंकुश– नियंत्रण, पाबंदी, रोक, अंकुसी, दबाव, गजांकुश, हाथी को नियंत्रित करने की कील, नियंत्रित

अंतरिक्ष– खगोल, नभमंडल, गगनमंडल, 

अंतर्धान– गायब, लुप्त, ओझल, अदृश्य।

अंबर– आकाश, आसमान, गगन, फलक, नभ।

अंतर्गत– शामिल, सम्मिलित, भीतर 

कर्ण- सूर्यपुत्र, राधेय, कौन्तेय, पार्थ, अंगराज, सूतपुत्र।

कनक- कंचन, सुवर्ण, हिरण्य, हेम, हाटक, सोना, 

कपोत- कबूतर, हारीत, पारावत, परेवा, रक्तलोचन।

कपड़ा- अंबर, पट, पोशाक, लिबास, परिधान,चीर, वसन, वस्त्र।

कमल- जलज, पंकज, अम्बुज, सरोज, शतदल, नीरज, इन्दीवर, सरसिज, अरविन्द, नलिन, उत्पल, सारंग,

कली- कलिका, मुकुल, कुडमल, डोंडी, गुंचा, कोरक।

कपूर- घनसार, हिमवालुका।

कर- हाथ, हस्त, बाहु, पाणि, भुज।

कर्तव्य- कर्म, कृत्य, विधेय।

कान्ति- प्रकाश, आलोक, उजाला, दीप्ति, छवि, सुषमा,आभा, प्रभा, छटा, द्युति।

कामदेव- मदन, काम, कंदर्प, मनोज, स्मर, मीनकेतु, मनसिज, मार, रतिपति, मन्मथ, अनंग,शंबरारि,कसुमेष, 

किरण- अंशु, रश्मि, कला, कर, गो, प्रभा, दीधिति,

किनारा- तट, कूल, तीर, कगार, पुलिन।

कुत्ता-  सोनहा, शुनक, गंडक, कुकर, ,कुक्कुर।

केला- कदली, भानुफल, गजवसा, कुंजरासरा, मोचा, र 

कौआ- काक, वायस, काण, काग, बलिपुष्ट, करकट,पिशुन।

कंठ- गला, शिरोधरा, ग्रीवा, गर्दन।

कुबेर- धनद, यक्षराज, धनाधिप, यक्षपति, किन्नरेश, राजराज, धनेश।

कृतज्ञ- ऋणी, आभारी, अनुग्रहित, उपकृत

गरुड़- खगेश, खगपति, नागांतक, सुपर्ण, वैनतेय।

गाय- भद्रा, गौरी, सुरभी, धेनु, गऊ, गौ,गैया, पयसि्वनी,दोग्धी।

गंगा- देवनदी, भागीरथी, सुरसरिता, जाह्नवी, मन्दाकिनी विष्णुपदी, सुरसरि, देवपगा, त्रिपथगा, सुरधुनी।

गन्ना- ईक्षु, ऊख, ईख, पौंड़ा।

गणेश- गणपति, गजवदन, मूषकवाहन, लम्बोदर . विनायक, गजानन, भवानीनन्दन।

गुप्त- गूढ़, रहस्यपूर्ण, परोक्ष, छिपा।

गेंद- कन्दुक, गिरिक, गेन्दुक।

गधा- खर, वैशाखनन्दन, गर्दभ, रासभ, लम्बकर्ण,

गीदड़- नचक, शिवां, सियार, जंबुक, श्रृंगाल।

गोद – पार्श्व, अंक, उत्संग, गोदी, क्रोड

घड़ा- घट, कलश, कुंभ, घटक, कुट।

 घी- हव्य, अमृतसार, क्षीरसार, आज्य।

घास- शष्प, शाद, शाद्वल, तृण, दूर्वा, दूब।

घृणा- अरुचि, नफरत, जुगुप्सा, अनिच्छा, विरति, घिन।

घर– आलय, आवास, गेह, गृह, सदन, निवास, भवन, वास, वास -स्थान, शाला, निकेतन, निलय

चाँदनी- चंद्रिका, कौमुदी, हिमकर, अमृतद्रव, उजियारी, ज्योत्स्न्ना, चन्द्रमरीचि, कलानिधि।

चंदन- श्रीखण्ड, गंधराज, गंधसार,मंगल्य, हरिगंध, मलय, दिव्यगंध, मलयज, दारूसार।

चर्म- खाल, चमड़ी, त्वचा, त्वक्।

चाँदी- जातरूप, रजत, रुपक, रूपा, कलधौत, रूप्य, 

चूहा- खंजक, इन्दुर, मूषक, आखु, गणेशवाहन, मूसा।

चोर- तस्कर, रजनीचर, मोषक, कुंभिल, साहसिक,

चोटी- श्रृंग, कूट, शिखा, शिखर, शीर्ष, चूड़ा।

चंद्रमा- सुधाकर, शशांक, रजनीपति 

चमक- ज्योति, प्रभा ,शोभा ,छवि, आभा।

चाँद- चन्द्र, चन्द्रमा, शशि, सोम, विधु, राकेश, शशांक, मयंक, रजनीश, महाताब, तारकेश्वर।

जल- नीर, सलिल, जीवन, तोय, उदक, पानी, पय,अंबु, अंभ, रस, आब, वारि ।

जिह्वा- जीभ, रसज्ञा, रसा, जबान, रसिका, रसना, वाचा।

जगत- विश्व, दुनिया, जगती, संसार, भव, जग, जहान्, लोक।

जहर- हलाहल, विष, गरल, कालकूट, गर

कर्ण अंगराज, सूर्यसुत, अर्कनन्दन, राधेय, सूतपुत्र, रविसुत, आदित्यनन्दन।

कली मुकुल, जालक, ताम्रपल्लव, कलिका, कुडमल, कोरक, नवपल्लव, अँखुवा, कोंपल, गुंचा।

कठिन– दुर्बोध, जटिल, दुरूह।

कंगाल– निर्धन, गरीब, अकिंचन, दरिद्र।

कमज़ोर –दुर्बल, निर्बल, अशक्त, क्षीण।

कुटिल– छली, कपटी, धोखेबाज़, 

छात्र– विद्यार्थी, शिक्षार्थी, शिष्य।

छाया– साया, प्रतिबिम्ब, परछाई, छाँव।

छल– प्रपंच, झाँसा, फ़रेब, कपट।

जननी– माँ, माता, माई. मइया. अम्बा, अम्मा।

जीव– प्राणी, देहधारी, जीवधारी।

जिज्ञासा– उत्सुकता, उत्कंठा, कुतूहल।

जंग– युद्ध, रण, समर, लड़ाई, संग्राम।

जग– दुनिया, संसार, विश्व, भुवन, मृत्युलोक।

जल– सलिल, उदक, तोय, अम्बु, पानी, नीर, वारि, पय, अमृत, जीवक, रस, अप।

जहाज़– जलयान, वायुयान, विमान, पोत, जलवाहन।

जानकी –जनकसुता, वैदेही, मैथिली, सीता, रामप्रिया, जनकदुलारी, जनकनन्दिनी।

झंडा– ध्वजा, केतु, पताका, निसान।

झरना– सोता, स्रोत, उत्स, निर्झर, जलप्रपात, प्रस्रवण, प्रपात।

झुकाव– रुझान, प्रवृत्ति, प्रवणता, उन्मुखता।

झकोर– हवा का झोंका, झटका, झोंक, बयार।

झुठ– मिथ्या, मृषा, अनृत, असत, असत्य।

ठंड– शीत, ठिठुरन, सर्दी, जाड़ा, ठंडक

ठेस– आघात, चोट, ठोकर, धक्का।

ठौर– ठिकाना, स्थल, जगह।

ठग– जालसाज, प्रवंचक, वंचक, प्रतारक।

तन– शरीर, काया, जिस्म, देह, वपु।

तपस्या– साधना, तप, योग, अनुष्ठान।

तरंग– हिलोर, लहर, ऊर्मि, मौज, वीचि।

तरु– वृक्ष, पेड़, विटप, पादप, द्रुम, दरख्त।

तलवार– असि, खडग, सिरोही, चन्द्रहास, कृपाण, शमशीर, करवाल, करौली, तेग।

तम– अंधकार, ध्वान्त, तिमिर, अँधेरा, तमसा।

तस्वीर– चित्र, फोटो, प्रतिबिम्ब, प्रतिकृति, आकृति।

तालाब– जलाशय, सरोवर, ताल, सर, तड़ाग, जलधर, सरसी, पद्माकर, पुष्कर

तारीफ़– बड़ाई, प्रशंसा, सराहना, प्रशस्ति, गुणगाना

तीर– नाराच, बाण, शिलीमुख, शर, सायक।

तोता– सुवा, शुक, दाडिमप्रिय, कीर, सुग्गा, रक्ततुंड।

दर्पण– शीशा, आइना, मुकुर, आरसी।

दास चाकर, नौकर, सेवक, परिचारक, परिचर, किंकर, गुलाम, अनुचर।

दुःख– क्लेश, खेद, पीड़ा, यातना, विषाद, यन्त्रणा, क्षोभ, कष्ट

दूध– पय, दुग्ध, स्तन्य, क्षीर, अमृत।

देवता– सुर, आदित्य, अमर, देव, वसु।

दोस्त सखा, मित्र, स्नेही, अन्तरंग, हितैषी, सहचर।

द्रोपदी– श्यामा, पाँचाली, कृष्णा, सैरन्ध्री, याज्ञसेनी, द्रुपदसुता, नित्ययौवना।

दासी– बाँदी, सेविका, किंकरी, परिचारिका।

धनुष– चाप, धनु, शरासन, पिनाक, कोदण्ड, कमान, विशिखासन।

धीरज– धीरता, धीरत्व, धैर्य, धारण, धृति।

धरती– धरा, धरणी, पृथ्वी, क्षिति, वसुधा, अवनी, मेदिनी।

धवल– श्वेत, सफ़ेद, उजला।

धुंध– कुहरा, नीहार, कुहासा।

ध्वस्त– नष्ट, भ्रष्ट, भग्न, खण्डित।

धूल– रज, खेहट, मिट्टी, गर्द, धूलिा

धंधा– दृढ़, अटल, स्थिर, निश्चित।

नदी– सरिता, दरिया, अपगा, तटिनी, सलिला, स्रोतस्विनी, कल्लोलिनी, प्रवाहिणी।

नमक– लवण, लोन, रामरस, नोन।

नया– ‘नवीन, नव्य, नूतन, आधुनिक, अभिनव, अर्वाचीन, नव, ताज़ा।

अधिकतर पूछे गए प्रश्न

1. ‘पर्यायवाची शब्द’ किसे कहते है?

उत्तर: एक शब्द का समान अर्थ देने वाले शब्द को पर्यायवाची शब्द कहते है। यह शब्द समान अर्थ होने के कारण दूसरे शब्द का भी स्थान ले लेते है।

2. पर्यायवाची शब्द को दूसरे किस नाम से जाना जाता है?

उत्तर: एक शब्द का समान अर्थ देने के कारण पर्यायवाची शब्द को समानार्थी शब्द भी कहते है।

3. कमल के पर्यायवाची शब्द क्या है?

उत्तर: कमल के पर्यायवाची शब्द निम्न है–:

       सरोज, जलज, नीरज, पंकज

4. झंडा के पर्यायवाची शब्द बताओ?

उत्तर: ध्वजा, केतु, पताका, निसान।

5. अमृत के पर्यायवाची शब्द लिखो?

उत्तर: अमृत के पर्यायवाची शब्द निम्न है–:

      मधु, सुधा, पीयूष ,अमी, सोम ,सुरभोग।

तत्सम और तद्भव शब्द

तत्सम शब्द

तत्सम शब्द दो शब्दों तत् + सम् से मिलकर बना है। जिसका मतलब होता है ज्यो का त्यों अर्थात जो जैसा है वैसा ही। 

तत्सम शब्द संस्कृत के शब्दों को कहा जाता है। ये वे शब्द है जो संस्कृत से बिना किसी बदलाव और परिवर्तन के हिंदी व्याकरण में प्रयोग किए जाते हैं। इनकी ध्वनि और रूप में कोई भी बदलाव नहीं होता है।

उदाहरण–: अकस्मात, नृत्य, अग्नि, अहंकार, नवीन आदि।

तद्भव शब्द

तद्भव शब्द इसमें उच्चारण सरल हो जाता है। तद्भव का शाब्दिक अर्थ है उससे बने। इनके शब्दों का उच्चारण सरल होता है। ये शब्द संस्कृत भाषा से सरल रूप में परिवर्तित होकर प्रयोग किए जाते हैं।

तत्सम शब्दों में समय, जरूरतों और परिस्थितियों की वजह से बदलाव किए गए है। इस बदलाव से उत्पन्न शब्दों को तद्भव शब्द कहा जाता हैं।

जैसे: ग्राम से गाँव

      श्वेत से सफेद

     दुग्ध से दूध

तत्सम और तद्भव शब्दों को पहचानने के लिए कुछ बातों का ध्यान रखा जाता हैं।

तत्सम शब्दों में श का प्रयोग किया जाता है और तद्भव शब्दों में स का प्रयोग किया जाता है।

जैसे: तत्सम शब्द।     तद्भव शब्द

         शिर।             सिर

        शाक।            साग

       शून्य।              सूना

       शिला।             सिला 

       शत।               सौ

       शलाका।         सलाई

      शप्तशती।        सतसई

इन सभी तत्सम शब्दों में श वर्ण का प्रयोग किया गया है। जभी तद्भव शब्दों में श वर्ण के स्थान पर स वर्ण का प्रयोग किया गया है। 

तत्सम शब्दों में र की मात्रा का प्रयोग किया जाता है।

जैसे–: तत्सम शब्द।       तद्भव शब्द

         आम्र।                आम

         आम्रचूर्ण।          अमचूर

         ग्राम।                गांव

         ग्रंथि।               गांठ

         ग्राहक।            गाहक

         ताम्र।               तांबा

         धूम्र।               धुंआ

         निंद्रा।              नींद

         प्रस्तर।            पत्थर

इन सभी तत्सम शब्द में र वर्ण का प्रयोग किया गया है, जबकि तद्भव शब्दों में र वर्ण की मात्रा का प्रयोग नहीं किया गया है। तत्सम शब्दों के उच्चारण में थोड़ी कठिनाइयां होती हैं। लेकिन तद्भव शब्दों के उच्चारण में कठिनाइयां नही होती।

तत्सम शब्दों में व शब्द का प्रयोग होता है और तद्भव शब्दों में ब का प्रयोग किया जाता है।

जैसे–: तत्सम शब्द।    तद्भव शब्द

         पूर्व।               पूरब

         वक।            बगुला

       वानर।             बंदर

       वधू।               बहु

      वर्षा।               बरसात

      चवर्ण।            चबाना

इन सभी तत्सम शब्दों में व वर्ण का प्रयोग किया गया है। जभी तद्भव शब्दों में ब वर्ण का प्रयोग किया गया है। इनका बदलाव समय और सरलता के आधार पर किया गया है।

तत्सम शब्दों के पीछे क्ष वर्ण का प्रयोग किया जाता है और तद्भव शब्दों के पीछे ख या छ वर्ण का प्रयोग किया जाता है।

जैसे–: तत्सम शब्द।      तद्भव शब्द

           अक्षर।           अच्छर

        अंकरक्षक।        अंगरखा

        लक्ष्मण।           लखन

        भिक्षा।            भीख

        ऋक्ष               रीछ

यहां पर सभी तत्सम शब्दों में क्ष वर्ण का प्रयोग किया गया है और तद्भव शब्दों में क्ष वर्ण के स्थान पर ख और छ वर्ण का प्रयोग किया है।

तत्सम शब्दों में ष वर्ण का प्रयोग किया जाता है।

जैसे–:  तत्सम शब्द।         तद्भव शब्द

              कुष्ठ।               कोढ़ 

            पुष्प।                फूल

            कृषक।             किसान

             अंगुष्ठ।              अंगूठा

यहां पर सभी तत्सम शब्दों में ष वर्ण का प्रयोग किया गया है। जबकि तद्भव शब्दों में ष वर्ण का प्रयोग नहीं किया गया है।

तत्सम शब्दों के श्र का प्रयोग किया जाता है और तद्भव शब्दों में स वर्ण का प्रयोग किया जाता है।

जैसे–: तत्सम शब्द।       तद्भव शब्द

           श्रावण।             सावन

          श्रृंखला।             सांकल

          श्रवण।              सुनना

           श्रृंग।                सिंग 

इन सभी तत्सम शब्दों में श्र वर्ण का प्रयोग किया गया है, जबकि तद्भव शब्दों में श्र वर्ण का प्रयोग नहीं। किया गया है। इनमे सरलता के आधार पर शब्द में बदलाव किया गया है।

तत्सम शब्दों में ऋ वर्ण की मात्रा का प्रयोग किया जाता है।

जैसे– : तत्सम शब्द।       तद्भव शब्द

           अमृत।              अमिय

            गृह।                घर

          तृण।                 तिनका

         मृत्यु।                 मौत

         घृणा।                घिन्न

यहां पर तत्सम शब्दों में ऋ वर्ण का प्रयोग किया गया है, जबकि तद्भव शब्दों में सुविधा के अनुसार वर्णों का प्रयोग किया गया है।

अधिकतर पूछें गए प्रश्न–:

1.तत्सम शब्द किसे कहते है?

उत्तर: तत्सम शब्द दो शब्दों तत् + सम् से मिलकर बना है। जिसका मतलब होता है ज्यो का त्यों अर्थात जो जैसा है वैसा ही। 

तत्सम शब्द संस्कृत के शब्दों को कहा जाता है। ये वे शब्द है जो संस्कृत से बिना किसी बदलाव और परिवर्तन के हिंदी व्याकरण में प्रयोग किए जाते हैं। इनकी ध्वनि और रूप में कोई भी बदलाव नहीं होता है।

उदाहरण–: अकस्मात, नृत्य, अग्नि, अहंकार, नवीन आदि।

2.तद्भव शब्द किसे कहते है?

उत्तर: तद्भव शब्द इसमें उच्चारण सरल हो जाता है। तद्भव का शाब्दिक अर्थ है उससे बने। इनके शब्दों का उच्चारण सरल होता है। ये शब्द संस्कृत भाषा से सरल रूप में परिवर्तित होकर प्रयोग किए जाते हैं।

तत्सम शब्दों में समय, जरूरतों और परिस्थितियों की वजह से बदलाव किए गए है। इस बदलाव से उत्पन्न शब्दों को तद्भव शब्द कहा जाता हैं।

जैसे: ग्राम से गाँव

      श्वेत से सफेद

3.तत्सम शब्द और तद्भव शब्द पहचानने के क्या नियम है?

उत्तर: तत्सम शब्दों में श का प्रयोग किया जाता है और तद्भव शब्दों में स का प्रयोग किया जाता है।

जैसे: तत्सम शब्द।     तद्भव शब्द

         शिर।             सिर

        शाक।            साग

तत्सम शब्दों में र की मात्रा का प्रयोग किया जाता है।

जैसे–: तत्सम शब्द।       तद्भव शब्द

         आम्र।                आम

         आम्रचूर्ण।          अमचूर

तत्सम शब्दों में व शब्द का प्रयोग होता है और तद्भव शब्दों में ब का प्रयोग किया जाता है।

जैसे–: तत्सम शब्द।    तद्भव शब्द

         पूर्व।               पूरब

         वक।            बगुला

तत्सम शब्दों के पीछे क्ष वर्ण का प्रयोग किया जाता है और तद्भव शब्दों के पीछे ख या छ वर्ण का प्रयोग किया जाता है।

जैसे–: तत्सम शब्द।      तद्भव शब्द

           अक्षर।           अच्छर

        अंकरक्षक।        अंगरखा

तत्सम शब्दों में ष वर्ण का प्रयोग किया जाता है।

जैसे–:  तत्सम शब्द।         तद्भव शब्द

              कुष्ठ।               कोढ़ 

            पुष्प।                फूल

तत्सम शब्दों के श्र का प्रयोग किया जाता है और तद्भव शब्दों में स वर्ण का प्रयोग किया जाता है।

जैसे–: तत्सम शब्द।       तद्भव शब्द

           श्रावण।             सावन

          श्रृंखला।             सांकल

तत्सम शब्दों में ऋ वर्ण की मात्रा का प्रयोग किया जाता है।

जैसे– : तत्सम शब्द।       तद्भव शब्द

           अमृत।              अमिय

            गृह।                घर

4. कुछ तत्सम शब्दों का वर्णन कीजिए?

उत्तर: कपोत , मातृ, गोधूम, घृत, कोकिल

यू सभी तत्सम शब्द है, क्योंकि इन सभी शब्दों को संस्कृत भाषा से इनके शुद्ध रूप में लिया गया है।

5.कुछ तद्भव शब्दों का वर्णन कीजिए?

उत्तर: कबूतर, माता, गेहूं, घी, कोयल।

ये सभी शब्द तद्भव शब्द हैं, क्योंकि इन सभी शब्दों के संस्कृत रूप में बदलाव कर अपनी सरलता के लिए सरल शब्दों में बदला गया है।

छंद

छंद शब्द नियम विशेष के आधार पर गति– लय – युक्त रचना होती है। इसमें वर्ण तथा मात्राओं का विशेष प्रतिबंध रहता है। इस प्रकार पद्य या छंद ऐसी शब्द योजना है, जिसमें मात्राओं तथा वर्णों का नियमित क्रम होता है और विराम, गति या प्रवाह आदि को व्यवस्था होती है।

छंद लय को बताने के लिए प्रयोग किया जाता है।

छंद के चार भेद होते हैं(Chhand ke Prakar)

  1. मात्रिक छंद
  2. वार्णिक छंद
  3. मुक्त छंद
  4. उभय छंद

1.वार्णिक छंद

जिन छंदों में वर्णों की संख्या, मात्राओं के क्रम का संयोजन हो तथा लघु और गुरु के आधार पर पद की रचना हो वहां वार्णिक छंद होता है।

 जहां वर्णों की मात्राओं का क्रम मुख्य हो, उन्हें वार्णिक छंद कहते हैं.

जिन छंदों के चारो चरणों में वर्णों की संख्या एकसमान हो उन्हें वार्णिक छंद कहते है।

तोटक, इंद्रवज्रा, मालिनी, वसंततिलका, शिखरिणी आदि मुख्य वार्णिक छंद हैं.

2.मात्रिक छंद :

जिन छंदों में केवल मात्रा की गणना के आधार पर पद रचना की जाए उन्हें मात्रिक छंद कहते हैं।

जैसे वार्णिक छंद में वर्णों की संख्या महत्वपूर्ण हैं, उसी तरह, मात्रिक छंद में मात्रा की गणना महत्वपूर्ण हैं।

रोला, सोरठा, हरिगीतिका आदि मुख्य मात्रिक छंद हैं.

मात्रिक छंद के भी 3 भेद होते हैं,

अर्धमात्रिक छंद

सममात्रिक छंद

विषममात्रिक छंद

i) अर्धमत्रिक छंद – 

अर्धमत्रिक छंद में दोहा और सोरठा शामिल है। दोहे में चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) चरण में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) चरण में 11-11 मात्राएँ होती हैं।

उदाहरण–:

         रात-दिवस, पूनम-अमा, सुख-दुःख, छाया-धूप।

         यह जीवन बहुरूपिया, बदले कितने रूप॥

इस वाक्य में पहले और तीसरे चरण में 13 और दूसरे व चौथे चरण में 11 मात्राएं हैं।

सोरठा–: सोरठा अर्द्धमात्रिक छंद है और यह दोहा का ठीक उलटा होता है। इसके विषम चरणों चरण में 11-11 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं

उदारण:       

       जो सुमिरत सिधि होय, गननायक करिबर बदन।

       करहु अनुग्रह सोय, बुद्धि रासि सुभ गुन सदन॥

ii)सममात्रिक छंद–: 

चौपाई सममात्रिक छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं।

उदाहरण –

बंदउँ गुरु पद पदुम परागा।

सुरुचि सुबास सरस अनुराग॥

iii)विषममात्रिक छंद–:  

कुंडलियां विषम मात्रिक छंद है। दोहों के बीच एक रोला मिला कर कुण्डलिया बनती है।इसमें छः चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती है।

उदाहरण –

कमरी थोरे दाम की, बहुतै आवै काम।

खासा मलमल वाफ्ता, उनकर राखै मान॥

उनकर राखै मान, बँद जहँ आड़े आवै।

बकुचा बाँधे मोट, राति को झारि बिछावै॥

कह गिरिधर कविराय, मिलत है थोरे दमरी।

सब दिन राखै साथ, बड़ी मर्यादा कमरी॥

3.मुक्त छंद

जिन छंद में वर्णों की संख्या या मात्राओं की संख्या का कोई बंधन ना हो उन्हें मुक्त छंद कहते हैं।

इसमें न तो वर्णों की गणना होती हैं और ना ही मात्राओं की, इसमे कोई नियम नहीं हैं।

चरणों की असमान गति और अनियमित गति ही इस छंद की विशेषता हैं।

4.उभय छंद: 

जिन छंदों में वर्णों और मात्रा की समानता एक साथ पायी जाती हैं उन्हें उभय छंद कहते हैं।

 छंद के सात अंग हैं

  1. गति
  2. यति
  3. तुक
  4. मात्रा
  5. गण 
  6. पद, चरण
  7. संख्या और क्रम।

गति –: पद्य को पढ़ने में जो बहाव आता है, उसे गति कहते है।

यति –: पद्य को पढ़ते समय जब कुछ समय का विराम आता है तो उसे यति कहते हैं।

तुक –: एक समान उच्चारण वाले शब्दों को तुक कहा जाता है।

मात्रा–: वर्ण के उच्चारण में जो समय लगता है। उसे मात्रा कहते हैं। मात्रा दो प्रकार की होती है। लघु और गुरु। हृस्व उच्चारण मात्रा वाले वर्णों की मात्रा को लघु कहते है। दीर्घ उच्चारण वाले मात्रा को गुरु कहते है।

लघु मात्रा का मान एक होता है और गुरु मात्रा का मान दो होता है।

लघु को l से तथा गुरु को ऽ से प्रदर्शित करते हैं।

गण –: तीन वर्णों के समूह को गण कहते हैं। इसे वर्णों और मात्राओं की संख्या क्रम की सुविधा के लिए बनाया गया है। गणों की संख्या आठ है।

यगण (।ऽऽ) नहाना

मगण (ऽऽऽ) आजादी

तगण (ऽऽ।) चालाक

रगण (ऽ।ऽ) पालना

जगण (।ऽ।) करील

भगण (ऽ।।) बादल

नगण (।।।) कमल

सगण (।।ऽ) कमला

चरण, पद –: प्रत्येक छंद में चार भाग होते हैं। इन भागों को पद या चरण कहा जाता है। कई बार दो भाग भी होते हैं। इन दो भागों की सम और विषम चरण कहा जाता है।

संख्या और क्रम–: मात्रा और वर्णों की गणना को संख्या और लघु और गुरु के संख्या निर्धारण को क्रम कहते है।

अधिकतर पूछे गए प्रश्न–

  • छंद किसे कहते है?

उत्तर:छंद शब्द नियम विशेष के आधार पर गति– लय – युक्त रचना होती है। इसमें वर्ण तथा मात्राओं का विशेष प्रतिबंध रहता है। इस प्रकार पद्य या छंद ऐसी शब्द योजना है, जिसमें मात्राओं तथा वर्णों का नियमित क्रम होता है और विराम, गति या प्रवाह आदि को व्यवस्था होती है।

  • अर्धमात्रिक छंद किसे कहते है?

उत्तर: अर्धमत्रिक छंद – अर्धमत्रिक छंद में दोहा और सोरठा शामिल है। दोहे में चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) चरण में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) चरण में 11-11 मात्राएँ होती हैं।

उदाहरण–

    रात-दिवस, पूनम-अमा, सुख-दुःख,

छाया-धूप।

           यह जीवन बहुरूपिया, बदले कितने रूप॥

इस वाक्य में पहले और तीसरे चरण में 13 और दूसरे व चौथे चरण में 11 मात्राएं हैं।

3)विषम मात्रिक छंद किसे कहते है?

उत्तर:विषममात्रिक छंद–:  कुंडलियां विषम मात्रिक छंद है। दोहों के बीच एक रोला मिला कर कुण्डलिया बनती है।इसमें छः चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती है।

उदाहरण –

कमरी थोरे दाम की, बहुतै आवै काम।

खासा मलमल वाफ्ता, उनकर राखै मान॥

उनकर राखै मान, बँद जहँ आड़े आवै।

बकुचा बाँधे मोट, राति को झारि बिछावै॥

कह गिरिधर कविराय, मिलत है थोरे दमरी।

सब दिन राखै साथ, बड़ी मर्यादा कमरी॥

4)गण के कितने प्रकार होते है?

उत्तर:तीन वर्णों के समूह को गण कहते हैं। इसे वर्णों और मात्राओं की संख्या क्रम की सुविधा के लिए बनाया गया है। गणों की संख्या आठ है।

यगण (।ऽऽ) नहाना

मगण (ऽऽऽ) आजादी

तगण (ऽऽ।) चालाक

रगण (ऽ।ऽ) पालना

जगण (।ऽ।) करील

भगण (ऽ।।) बादल

नगण (।।।) कमल

सगण (।।ऽ) कमला

5)छंद के कितने अंग है?

उत्तर:छंद के सात अंग हैं

गति

यति

तुक

मात्रा

गण 

पद, चरण

संख्या और क्रम।

अव्यय

अव्यय उन शब्दों को कहा जाता है, जिनमें लिंग, वचन, कारक, संज्ञा, सर्वनाम के कारण कोई भी बदलाव या परिवर्तन नहीं होता है। उनमें कोई भी विकार उत्पन्न नहीं होता है, इसलिए उनके अविकारी शब्द भी कहा जाता है।

जैसे: कब, कहाँ, क्यों, कैसे, किसने, उधर, ऊपर, इधर, अरे, तथा, और, लेकिन, क्योंकि, परंतु, केवल, अतएव, अर्थात आदि।

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अव्यय के प्रमुख पाँच भेद होते है–:

  1. क्रिया विशेषण
  2. निपात
  3. संबंध बोधक
  4. समुच्चय बोधक
  5. विस्मयादि बोधक

1.क्रिया विशेषण

जिस शब्द से किसी क्रिया की विशेषता का पता चलता है उसे क्रिया विशेषण कहते है। यह विशेषण क्रिया से तुरंत पहले प्रयोग किए जाते है। 

इन वाक्यों में केवल क्रिया की विशेषता बताई जाती है। इसमें संज्ञा, सर्वनाम, व्यक्ति आदि की विशेषता नहीं बताई जाती बल्कि इनके द्वारा की गई क्रियाओं की विशेषता बताई जाती है।

उदाहरण

1)शेर तेज भागता है।

इस वाक्य में भागना क्रिया है। इस क्रिया की विशेषता तेज के द्वारा बताई गई है। इसलिए यह तेज क्रिया विशेषण है।

2) मैं वहाँ नहीं आऊँगा।

इस वाक्य में आना क्रिया है। इस क्रिया की विशेषता नहीं के द्वारा बताई गई है। इसलिए नहीं क्रिया विशेषण है।

क्रिया विशेषण के चार भेद हैं

1.कालवाचक क्रियाविशेषण

2.रीतिवाचक क्रियाविशेषण

3.स्थानवाचक क्रियाविशेषण

4.परिमाणवाचक क्रियाविशेषण

1.कालवाचक क्रिया विशेषण

जिस क्रिया विशेषण से क्रिया के होने के समय का पता चलता है उसे कालवाचक क्रिया विशेषण कहते हैं। 

उदाहरण

वह अब पानी पी रहा है।

इस वाक्य में पीना क्रिया है और अब शब्द के माध्यम से पानी पीने के समय का पता चल रहा है। इसलिए अब काल वाचक विशेषण है।

2.रीतिवाचक क्रिया विशेषण

जो अविकारी शब्द किसी क्रिया के होने या करने के तरीके का बोध कराते हैं, उन्हें रीतिवाचक क्रिया विशेषण कहते हैं।

उदाहरण

अमित ध्यान से चलता है।

 इस वाक्य में चलना क्रिया है और चलने की विशेषता या तरीका ध्यान शब्द के द्वारा बताया गया है। इसलिए ध्यान शब्द रीति वाचक क्रिया विशेषण है।

3.स्थानवाचक क्रिया विशेषण

जो अविकारी शब्द किसी क्रिया के होने के स्थान का बोध कराते हैं, उन्हें स्थानवाचक क्रिया विशेषण कहते हैं।

उदाहरण

गेंद ऊपर उछल रही है।

इस वाक्य में उछलना क्रिया है। उछलने का स्थान ऊपर शब्द के द्वारा बताया गया है। इसलिए ऊपर शब्द स्थान वाचक विशेषण है।

4)परिमाणवाचक क्रिया विशेषण

जो अविकारी शब्द जो क्रिया के परिमाण अथवा संख्या और मात्रा का बोध कराते हैं, उन्हें परिमाणवाचक क्रिया विशेषण कहते हैं।

उदाहरण:

तुम बहुत दौड़े।

इस वाक्य में दौड़ना क्रिया है। दौड़ना क्रिया की विशेषता या परिमाण बहुत शब्द से बताई गई है। इसलिए बहुत शब्द परिमाण वाचक विशेषण है।

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2) निपात

जब किसी भी बात पर अधिक बल दिया जाता है या उस बात पर अतिरिक्त जोर देने के लिए जिन शब्दों का प्रयोग किया जाता है, उसे निपात कहते है। यह ऐसे शब्द है जिनका खुद का कोई अर्थ नहीं होता है।

उदाहरण

कल मैं भी आपके साथ चलूँगा।

इस वाक्य में मैं शब्द पर बल देने के लिए भी शब्द का प्रयोग किया गया है, जोकि निपात शब्द है।

निपात नौ प्रकार के होते हैं

(1)स्वीकारात्मक निपात

(2) नकारात्मक निपात

(3) निषेधात्मक निपात

(4) आदरार्थक निपात

(5) तुलनात्मक निपात 

(6) विस्मयार्थक निपात

(7) बल बोधक निपात 

(8) अवधारणबोधक निपात

(9) आदरसूचक निपात

1) स्वीकारात्मक निपात

इन वाक्यों में किसी बात को स्वीकारने का अर्थ प्रकट होता है।ऐसे वाक्यों में पूछे गए प्रश्न का उत्तर स्वीकार्य रूप अर्थात हां में ही होता है। ऐसे वाक्यों में हाँ, जी, जी हाँ आदि शब्दों का प्रयोग उत्तर के रूप में होता है।

उदाहरण

प्रश्न- आप बाजार जा रहे हैं ?

              उत्तर- जी हाँ।

2) नकारात्मक निपात  

ऐसे वाक्यों में प्रश्न का जवाब नहीं के रूप में होता है। इसके लिए नहीं, जी नहीं आदि शब्दों का प्रयोग किया जाता है।

उदाहरण:  प्रश्न: तुम्हारे पास यह कलम है ?

              उत्तर- नहीं।

(3) निषेधात्मक निपात

इस प्रकार के वाक्यों में किसी को किसी कार्य के लिए मना या किसी को इनकार करने का बोध होता है।

उदाहरण : आज आप मत जाइए।

            मुझे अपना मुँह मत दिखाना।

(4) प्रश्नात्मक निपात

 इस प्रकार के वाक्यों में प्रश्न पूछा जाता है।

उदाहरण:   क्या तुम अंग्रेजी पढ़ना जानते है?

(5) तुलनात्मक

इन वाक्यों में किसी की तुलना की जाती है। यह तुलना किसी से भी की जा सकती है।

उदाहरण:इस लड़के सा पढ़ना कठिन है।

(6) विस्मयबोधक निपात-  

इन वाक्य में विस्मय बोधक शब्दों का प्रयोग किया जाता है।

उदाहरण:   काश ! वह न गया होता !

(7) बल बोधक निपात

इन वाक्यों में बल का प्रयोग किया जाता है। किसी बात पर जोर देकर कहा जाता है।

उदाहरण: 

            हमने उसका, नाम तक नहीं सुना।

           वह केवल सजाकर रखने की वस्तु है।

lead magnet

(8) अवधारणबोधक निपात-

इन वाक्यों में किसी बात के बारे में निश्चित ज्ञान नहीं होता है। केवल उसके बारे में अनुमान लगाया जाता है। 

उदाहरण:  उसने करीब पाँच हजार रुपये दिये।

        लगभग पाँच लाख विद्यार्थी इस वर्ष परीक्षा दे   चुके हैं। 

(9) आदरसूचक निपात- 

इन वाक्यों में किसी के लिए आदर की भावना को व्यक्त किया जाता है। किसी के प्रति सम्मान व्यक्त किया जाता है। 

उदाहरण:  इन्दिरा जी गांव गई हुई है।

             गुरु जी आश्रम में है।

            वर्माजी घर आ गए है।

3)संबंध बोधक

जो शब्द किसी एक शब्द का संबंध किसी दूसरे शब्द से बताते है उसे संबंध बोधक कहते है।

संबंध बोधक में संज्ञा या सर्वनाम का संबंध वाक्य के अन्य शब्दों से दर्शाया जाता है उसे संबंधबोधक अव्यय कहते है।

उदाहरण: पेड़ पर बिल्ली बैठी है।

             मोहन गीता के साथ घूमने गया।

सम्बन्ध बोधक अव्यय के भेद –

प्रयोग के आधार पर सम्बन्धबोधक अव्यय दो प्रकार के होते 

संबद्ध सम्बन्धबोधक अव्यय

अनुबद्ध सम्बन्धबोधक अव्यय

1.संबद्ध सम्बन्धबोधक अव्यय

 किसी वाक्य में संज्ञा शब्दों की विभक्तियों के पीछे इन अव्यय पदों का प्रयोग किया जाता है, उन्हें संबद्ध सम्बन्धबोधक अव्यय कहते हैं। 

सम्बन्धबोधक अव्ययों का प्रयोग किसी कारक चिन्ह के बाद किया जाता है।

 उदाहरण:  धन के बिना जीवन मुश्किल है।

इन शब्दों में के बिना बोधक शब्द का प्रयोग किया गया है।

2.अनुबद्ध सम्बन्धबोधक अव्यय – 

इन शब्दों का प्रयोग संज्ञा के विकृत रूप के साथ किया जाता है उन्हें अनुबद्ध सम्बन्धबोधक अव्यय कहते हैं।

उदाहरण: नहर का पानी किनारे तक आ गया।

             अवनी मित्रों सहित शिमला घूमने गई है।

इन शब्दों में किनारे तक, सहित आदि बोधक शब्दों का प्रयोग किया गया है।

हिंदी में मुख्य रूप से प्रयोग किए जाने वाले संबंध बोधक शब्द दस प्रकार के होते हैं।

1.कालवाचक संबंधबोधक अव्यय

2.स्थानवाचक संबंधबोधक अव्यय।

3.दिशावाचक संबंधबोधक अव्यय।

4.साधनवाचक संबंधबोधक अव्यय।

5.हेतुवाचक संबंधबोधक अव्यय।

6.समतावाचक संबंधबोधक अव्यय।

7.पृथकवाचक संबंधबोधक अव्यय।

8.विरोधवाचक संबंधबोधक अव्यय।

9.संगवाचक संबंधबोधक अव्यय। 

10.तुलनवाचक संबंधबोधक अव्यय।

lead magnet

4) समुच्चय बोधक 

जो दो शब्दों अर्थात एक शब्द को दूसरे शब्द से वाक्यांशों या वाक्यों, एक वाक्य को दूसरे वाक्य से जोड़ते हैं समुच्चयबोधक कहते हैं।

           उदाहरण: 1अमित और देव सो रहे हैं।

इस वाक्य में अमित, देव को एक दूसरे से जोड़ा गया है। इन्हे जोड़ने के लिए और शब्द का प्रयोग किया गया है।

समुच्चयबोधक के निम्नलिखित दो भेद होते हैं-

  1. समानाधिकरण समुच्चयबोधक
  2. व्यधिकरणसमुच्चयबोधक

समानाधिकरण समुच्चयबोधक–:

जो समुच्चयबोधक अव्यय दो स्वतंत्र वाक्यों या उपवाक्यों को जोड़ते हैं, उन्हें समानाधिकरण सममुच्चबोधक अव्यय कहा जाता है। 

उदाहरण:-  विराट और रोहित भाई है।

इस वाक्य में विराट, रोहित दो स्वतंत्र शब्दों को और शब्द से जोड़ा गया है, जो समानाधिकरण समुच्चय बोधक शब्द है।

समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय चार प्रकार के होते हैं-

क)संयोजक

ख)विकल्पसूचक

ग)विरोधसूचक

घ)परिमाणसूचक 

संयोजक:- जिन शब्दों से दो शब्दों या दो वाक्यों को आपस में जोड़ते हैं तथा इसमें शब्दों के द्वारा वाक्यों और वाक्यांशो को इकट्ठा करते हैं।

उदाहरण:- राहुल और अंजली वहां खड़े है

ख)विकल्पसूचक: जिन शब्दों के द्वारा वाक्य में विकल्प, दो या दो अधिक का चयन दिया जाता है, उसे विकल्प सूचक कहते है।

उदाहरण:- मोहन यहां सो सकता है अन्यथा श्याम सो जाएगा         

)विरोध सूचक: यह शब्द दो वाक्यों या दो विरोध करने वाले कथनों को आपस में जोड़ते है। इन वाक्यों में आपस में विरोध दिखाई देता है।

उदाहरण:- वह अमीर है परंतु बेईमान है।   

(घ) परिमाणसूचक:- जिन शब्दों से वाक्य में किसी के परिमाण का पता चले तथा जो शब्द परिमाण दर्शाने वाले वाक्यों को जोड़ते हैं, उसे परिमाण सूचक कहते है।

उदाहरण:- उसने अपना कार्य पूरा किया ताकि उसको  

              डांट न पड़े।

व्यधिकरण समुच्चयबोधक:- 

जो शब्द एक या एक से अधिक आश्रित उपवाक्यों को आपस में जोड़ते हैं, उन्हें व्यधिकरण समुच्चयबोधक कहते हैं।

उदाहरण:– मां ने कहा कि तुम अपना काम करो। 

व्याधिकरण समुच्चयबोधक भी चार प्रकार के होते हैं

क)कारण बोधक

ख)संकेतबोधक

ग)स्वरूपबोधक

घ)उद्देश्यबोधक

(क) कारण बोधक:– जिन शब्दों के द्वारा किसी वाक्य के कार्य करने के कारण का बोध होता है, उसे कारण बोधक कहते है।

उदाहरण:- वह सुंदर है इसलिए मुझे पसंद है।

ख) संकेतबोधक:- जिन वाक्यों में किसी घटना या कार्य के बारे में संकेत मिलते हैं, उसे ‘संकेतवाचक’ कहते हैं। इसमें पहले वाक्य का दूसरे वाक्य की शुरुआत में संकेत मिलते है।

उदाहरण:- यदि तुम कामयाब होना चाहते हो तो तुम्हें मेहनत करनी पड़ेगी।

(ग) स्वरूपबोधक:- जिन वाक्यों में किसी उपवाक्य का अर्थ पूर्ण रूप से स्पष्ट होता है। उन्हें ‘स्वरूपबोधक’ कहते हैं। 

उदाहरण:- पंछी उन्मुक्त है अर्थात स्वतंत्र हैं।

(घ) उद्देश्यबोधक: जिन दो शब्दों को जोड़ने से उसका उद्देश्य स्पष्ट होता है, उसे उद्देश्यबोधक कहते हैं।

इन अव्यय शब्दों से उद्देश्य का पता चलता है।

उदाहरण:- खाना खा लो ताकि भूख न लगे।

5)विस्मयादिबोधक

जिन वाक्यों में किसी विशेष शब्द के द्वारा खुशी, दुख, घृणा, आश्चर्य आदि के भाव व्यक्त हो, उन्हें विस्मयादिबोधक वाक्य कहते हैं। विस्मयादिबोधक को एक चिन्ह (!) से भी प्रकट करते है। जिसे विस्मयादिबोधक चिन्ह कहते है।

 उदाहरण

               अरे! इतनी मोटी पुस्तक।

                 ओह! सुनकर दुख हुआ।

                 शाबाश! बहुत बढ़िया

विस्म्यादिवाचक वाक्यों में किसी तीव्र भावना को जताने के लिए जो शब्द इस्तेमाल किये जाते हैं उन्हें विस्मय बोधक शब्द कहते हैं।

इन विस्मयादिबोधक को प्रकट करने के लिए कुछ शब्दों का प्रयोग किया जाता है जो इस प्रकार है।

अरे! (आश्चर्य व्यक्त करने के लिए)

    अरे! तुम कब आए।

अरे यार! ( दुख प्रकट करने के लिए) 

        अरे यार! मेरा काम तो पूरा ही नहीं हुआ।

ओह! ( शोक व्यक्त करने के लिए)

          ओह! उसके साथ बहुत बुरा हुआ।

           ओह! मेरे हाथ में दर्द है।

छिः! ( घृणा व्यक्त करने के लिए)

          छी! अमित के कपड़े कितने गंदे है।

शाबाश! ( खुशी व्यक्त करने के लिए)

           शाबाश! तुमने अच्छा काम किया है।

ये क्या! ( आश्चर्य व्यक्त करने के लिए)

          ये क्या! राम अभी तक गया नहीं।

हाय! ( दुख व्यक्त करने के लिए)

 हाय! मीरा को बहुत चोट आई है।

है।

हे भगवान! ( शुक्रिया, दुख व्यक्त करने के लिए)

             हे भगवान! तुमने बचा लिया

काश! ( इच्छा व्यक्त करने के लिए)

         काश! मैं भी घूमने जाती।

क्या ! (प्रश्न पूछने के लिए)

         क्या! तुमने खाना नही खाया।

अधिकतर पूछे गए प्रश्न

1.अव्यय किसे कहते है?

उत्तर:अव्यय उन शब्दों को कहा जाता है, जिनमें लिंग, वचन, कारक, संज्ञा, सर्वनाम के कारण कोई भी बदलाव या परिवर्तन नहीं होता है।

2.अव्यय के कितने भेद है।

उत्तर:अव्यय के प्रमुख पांच भेद होते है–:

1क्रिया विशेषण

2निपात

3संबंध बोधक

4समुच्चय बोधक

5विस्मयादि बोधक

3.निपात अव्यय किसे कहते है?

उत्तर:जब किसी भी बात पर अधिक बल दिया जाता है या उस बात पर अतिरिक्त जोर देने के लिए जिन शब्दों का प्रयोग किया जाता है, उसे निपात कहते है। यह ऐसे शब्द है जिनका खुद का कोई अर्थ नहीं होता है।

4.विस्मयादिबोधक अव्यय किसे कहते है?

उत्तर:जिन वाक्यों में किसी विशेष शब्द के द्वारा खुशी, दुख, घृणा, आश्चर्य आदि के भाव व्यक्त हो, उन्हें विस्मयादिबोधक वाक्य कहते हैं। विस्मयादिबोधक को एक चिन्ह (!) से भी प्रकट करते है।

5.समुच्चय बोधक अव्यय किसे कहते हैं?

उत्तर:जो दो शब्दों अर्थात एक शब्द को दूसरे शब्द से वाक्यांशों या वाक्यों, एक वाक्य को दूसरे वाक्य से जोड़ते हैं समुच्चयबोधक कहते हैं।

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वचन

वचन का शाब्दिक अर्थ है बोली। लेकिन हिंदी में व्याकरण की दृष्टि में वाचक का अर्थ संख्या  से लिया गया है। इसलिए वचन को परिभाषित करते हुए कहा जा सकता है को संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया के जिस रूप से संख्या का बोध होता है,उसे वचन कहते है।

वचन के भेद (vachan ke kitne bhed hote hain ?)

 हिंदी में वचन के दो भेद है।

1)एकवचन।  2) बहुवचन

1) एकवचन 

एकवचन विकारी शब्द का वह रूप है जिससे एक ही व्यक्ति या वस्तु का बोध होता है। 

उदाहरण- ‘शेर दौड़ता है|’

                ‘बकरी चरती है|’

इसमें ‘शेर’ और ‘बकरी’ से जानवर की एक संख्या का बोध होता है।

2) बहुवचन

बहुवचन में वाक्य में किसी वस्तु का एक से अधिक होने का बोध होता है।

उदाहरण- ‘शेर दौड़ते है|’

            ‘बकरियाँ चरती है।’

इसमें ‘दौड़ते’ और ‘बकरियों’ के माध्यम से जानवरों के एक से अधिक होने का बोध होता है।

वचन के अंतर्गत संज्ञा के रूप दो तरह से परिवर्तित होते हैं

  1. विभक्ति रहित
  2. विभक्ति सहित 

विभक्ति रहित संज्ञा के बहुवचन बनाने के नियम

(1}पुल्लिंग संज्ञा के ‘आ’ को ‘ए’ में बदल कर बहुवचन बनाया जाता है।

एकवचन    बहुवचन

गधा              गधे

लड़का         लकड़े

मामा, नाना, पापा, दादा, योध्या, आत्मा आदि। इन सभी शब्दों के रूप दोनों वचनों में समान होते हैं।

2) पुल्लिंग शब्दों के अतिरिक्त अन्य मात्राओं से अंत होने वाले शब्दों के रूप दोनों वचनों में एक समान रहते हैं।

एकवचन     बहुवचन

एक भाई       दो भाई

एक बालक   चार बालक

3) ‘आ’ स्त्रीलिंग शब्दों के अंत में एँ जोड़ने से बहुवचन बनता है।

एकवचन     बहुवचन

शाखा     शाखाएँ

माता      माताएँ

महिला    महिलाएँ

लता         लताएँ

4) स्त्रीलिंग संज्ञा में अ को यें कर देने से बहुवचन बनता है

एकवचन     बहुवचन

गाय              गायें

रात               रातें

आँख            आँखें

बात               बातें

5) दीर्घ या हृस्व इ संज्ञाओं को हृस्व इ कर उनके अंत में याँ जोड़ देने से बहुवचन बनता है।

एकवचन     बहुवचन

नारी           नारियाँ

नदी           नदियाँ

साड़ी          साडियाँ 

सहेली        सहेलियाँ

घड़ी           घड़ियाँ

धोती          धोतियाँ 

लड़की     लड़कियाँ 

6) जिन स्त्रीलिंग शब्दों के अंत में या आता है, या पर चंद्रबिंदु लगाकर बहुवचन बनाया जाता है।

एकवचन        बहुवचन

बुढ़िया           बुढ़ियाँ

चिड़िया         चिड़ियाँ

गुड़िया         गुड़ियाँ 

डिबिया        डिबियाँ 

दुनिया        दुनियाँ

7) हृस्व या दीर्घ ऊ स्त्रीलिंग संज्ञाओं को हृस्व उ बनाकर अंत में एँ लगाने से बहुवचन बनाया जाता है।

एकवचन    बहुवचन

धेनु         धेनुएँ 

वस्तु       वस्तुएँ 

ऋतु      ऋतुएँ 

8) कुछ शब्द समष्टि मूलक होते हैं। जैसे गण, कुल, वृंद, जन, मंडल, दल, ग्राम, मंडली आदि। ये शब्द विशेषत: वहाँ जोड़े जाते हैं जहाँ दोनों वचनों में पुल्लिंग अथवा स्त्रीलिंग में एक ही रूप होते हैं

एकवचन    बहुवचन

पाठक       पाठकगण

आप         आप लोग

तुम          तुम लोग

छात्र        छात्रगण

विद्यार्थी    विद्यार्थीगण 

विभक्ति सहित संज्ञाओं के बहुवचन बनाने के नियम

संस्कृत शब्दों को छोड़कर हिंदी के अ, आ तथा ए संज्ञाओं के अंतिम अ, आ, ए के बदले बहुवचन बनाने में इसे ओ कर दिया जाता है।

उदाहरण  एकवचन   बहुवचन

                नर             नारों (का)

                चीता         चीतों (द्वारा)

                चोर           चोरों (ने)

               घोड़ा         घोड़ों (को)

एकवचन और बहुवचन शब्दों का प्रयोग निम्न प्रकार से भी किया जाता है।

बहुवचन शब्दों का प्रयोग

i) किसी के सम्मान और आदर के लिए बहुवचन का प्रयोग किया जाता है  

         पिताजी आज नहीं आए।’

ii)बड़प्पन दर्शाने के लिए भी वह के स्थान पर वे और मैं के स्थान पर हम का प्रयोग किया जाता है। 

       ‘हमने तुम्हारा कार्य कर दिया है।’

     ‘तुमने कहा था कि तुम्हारा भाई आज आ रहा है, वे कब तक आयेंगे।’

एकवचन शब्दों का प्रयोग

i)लोक व्यवहार के बोलचाल के लिए एकवचन शब्दों का प्रयोग किया जाता है।

             ‘राम तुम कब आओगे।’

ii) गण, जाति आदि शब्द अनेकता को दर्शातें हैं, लेकिन इनका व्यवहार एकवचन के समान होता है, 

        जैसे- ‘स्त्री जाति अब आगे बढ़ रही है।’ 

अन्य शब्द जो एकवचन और बहुवचन के रूप में प्रयोग होते हैं।

खंभा         खंभे 

गहना        गहनें

गुरु           गुरुजन

गन्ना            गन्नें

घटना       घटनाएं

चश्मा        चश्में

चाचा          चाचा

गेंद               गेंदें

जानवर      जानवर

चना            चनें 

अधिकतर पूछें गए प्रश्न

1.वचन किसे कहते है?

उत्तर: वचन का शाब्दिक अर्थ है बोली। लेकिन हिंदी में व्याकरण की दृष्टि में वाचक का अर्थ संख्या  से लिया गया है। इसलिए वचन को परिभाषित करते हुए कहा जा सकता है को संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया के जिस रूप से संख्या का बोध होता है,उसे वचन कहते है।

2. वचन के कितने भेद है?

उत्तर: हिंदी में वचन के दो भेद है।

1) एकवचन 2) बहुवचन

1)एकवचन 

एक वचन विकारी शब्द का वह रूप है जिससे एक ही व्यक्ति या वस्तु का बोध होता है। 

उदाहरण- शेर दौड़ता है।

2) बहुवचन

 बहुवचन में वाक्य में किसी वस्तु का एक से अधिक होने का बोध होता है।

उदाहरण- शेर दौड़ते है

3. एक वचन से बहुवचन बनाने के लिए कौन कौन से नियम है?

उत्तर: विभक्ति रहित संज्ञा के बहुवचन बनाने के नियम

पुल्लिंग संज्ञा के आ को ए में बदल कर बहुवचन बनाया जाता है।

हृस्व या दीर्घ ऊ स्त्रीलिंग संज्ञाओं को हृस्व उ बनाकर अंत में एँ लगाने से बहुवचन बनाया जाता है।

जिन स्त्रीलिंग शब्दों के अंत में या आता है, या पर चंद्रबिंदु लगाकर बहुवचन बनाया जाता है।

कुछ शब्द समष्टि मूलक होते हैं। जैसे गण, कुल, वृंद, जन, मंडल, दल, ग्राम, मंडली आदि। 

दीर्घ या हृस्व इ संज्ञाओं को हृस्व इ कर उनके अंत में याँ जोड़ देने से बहुवचन बनता है।

स्त्रीलिंग संज्ञा में अ को यें कर देने से बहुवचन बनता है

पुल्लिंग आ शब्दों के अतिरिक्त अन्य मात्राओं से अंत होने वाले शब्दों के रूप दोनों वचनों में एक समान रहते हैं।

विभक्ति सहित संज्ञाओं के बहुवचन बनाने के नियम

संस्कृत शब्दों को छोड़कर हिंदी के अ, आ तथा ए संज्ञाओं के अंतिम अ, आ, ए के बदले बहुवचन बनाने में इसे ओ कर दिया जाता है।

4. ‘चोर’ का बहुवचन क्या होगा?

उत्तर: चोर का बहुवचन चोरों होता है। यह विभक्ति के साथ बहुवचन बनता है। जैसे: चोरों की पकड़।

इसमें बहुवचन बनाने के लिए की विभक्ति का प्रयोग किया गया है।

5. ‘नर’ का बहुवचन क्या होगा?

उत्तर: नर का बहुवचन नरों होता है। यह भी विभक्ति के साथ प्रयोग किया जाता है। 

जैसे नरों की कहानी। इसमें बहुवचन बनाने के लिए की विभक्ति का प्रयोग किया गया है।

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प्रत्ययअलंकार
वर्तनीपद परिचय
वाक्य विचारसमास
लिंगसंधि
विराम चिन्हशब्द विचार
अव्ययकाल

   

निपात

जब किसी भी बात पर अधिक बल दिया जाता है या उस बात पर अतिरिक्त जोर देने के लिए जिन शब्दों का प्रयोग किया जाता है, उसे निपात कहते है।

वाक्य को अतिरिक्त भावार्थ प्रदान करने के लिए निपातों का प्रयोग निश्चित शब्द, शब्द-समुदाय या पूरे वाक्य में होता है। निपात को अवधारक भी कहा जाता है।

जैसे- मत, क्यों, नहीं, काश, जल्दी, केवल, हां, यथा- तक, मत, क्या, हाँ, भी, केवल, जी, नहीं, न, काश।

उदाहरण- 

            ‘काश! मैं भी घूमने जाती।’

दिए गए वाक्य में ‘काश’ शब्द का प्रयोग किया गया है जोकि निपात शब्द है।

          ‘ कल मैं भी आपके साथ चलूँगा।’

इस वाक्य में ‘मैं’ शब्द पर बल देने के लिए भी शब्द का प्रयोग किया गया है, जोकि निपात शब्द है।

          ‘रोहन ने तो हद कर दी।’

दिए गया वाक्य में ‘हद’ शब्द पर बल देने के लिए तो निपात शब्द का प्रयोग किया गया है।

निपात ऐसे सहायक शब्द है जिनके खुद के कोई अर्थ नहीं होते हैं।

निपात सहायक शब्द होते है, लेकिन ये निश्चित या पूर्ण वाक्य नही हो सकते है।

निपात शब्दों का वाक्य में प्रश्न पूछना, अस्वीकृति बताना और विस्मयादिबोधक शब्दों और किस बात पर बल देने के रूप में प्रयोग होता है।

उदाहरण–: ‘क्या वह विद्यालय गया था ?’

इस वाक्य में प्रश्न पूछने के लिए ‘क्या’ निपात शब्द का प्रयोग किया गया है।      

              ‘वह घर पर नहीं है।’

दिए गए वाक्य में अस्वीकृति बताने के लिए ‘नहीं’ शब्द का प्रयोग किया गया है। जोकि निपात शब्द का कार्य करता है।            

‘कैसी सुहावनी रात है!’

दिए गया वाक्य में विस्मयादिबोधक प्रयोग करने के लिए निपात शब्द का प्रयोग किया गया है।

                ‘मुझे भी इसका पता है।’

इस वाक्य में ‘मुझे’ शब्द पर बल देने के लिए भी शब्द का प्रयोग किया गया है, जोकि निपात शब्द है।

निपात नौ प्रकार के होते हैं (Nipat Ke Udaharan )

(1)स्वीकारात्मक निपात

(2) नकारात्मक निपात

(3) निषेधात्मक निपात

(4) आदरार्थक निपात

(5) तुलनात्मक निपात 

(6) विस्मयार्थक निपात

(7) बल बोधक निपात 

(8) अवधारणबोधक निपात

(9) आदरसूचक निपात

(1) स्वीकारात्मक निपात

इन वाक्यों में किसी बात को स्वीकारने का अर्थ प्रकट होता है। ऐसे वाक्यों में पूछे गए प्रश्न का उत्तर स्वीकार्य रूप अर्थात हां में ही होता है। ऐसे वाक्यों में हाँ, जी, जी हाँ आदि शब्दों का प्रयोग उत्तर के रूप में होता है।

उदाहरण: प्रश्न- तुम ऑफिस जाते हो ?

             उत्तर- जी।

              प्रश्न- आप बाजार जा रहे हैं ?

              उत्तर- जी हाँ।

‘जी’ तथा ‘जी हाँ’ निपात विशेष आदरसूचक स्वीकारात्मक उत्तर के समय प्रयुक्त होते हैं।

(2) नकारात्मक निपात

ऐसे वाक्यों में प्रश्न का जवाब नहीं के रूप में होता है। इसके लिए नहीं, जी नहीं आदि शब्दों का प्रयोग किया जाता है।

उदाहरण:  प्रश्न: तुम्हारे पास यह कलम है ?

              उत्तर- नहीं।

(3) निषेधात्मक निपात- 

इस प्रकार के वाक्यों में किसी को किसी कार्य के लिए मना या किसी को इनकार करने का बोध होता है।इसके लिए मत शब्द का प्रयोग किया जाता है।

उदाहरण : ‘आज आप मत जाइए।’

            ‘मुझे अपना मुँह मत दिखाना।’

(4) प्रश्नात्मक निपात

 इस प्रकार के वाक्यों में प्रश्न पूजा जाता है। जिसके लिए क्या, न शब्दों का प्रयोग किया जाता है। 

उदाहरण:   ‘तुम्हें वहाँ क्या मिलता है ?’

               ‘तुम अँगरेजी पढ़ना नहीं जानते हो न?’

(5) तुलनात्मक- 

इन वाक्यों में किसी की तुलना की जाती है। यह तुलना किसी से भी की जा सकती है।

तुलना करने के सा, सी आदि शब्दों का प्रयोग किया जाता है।  

उदाहरण: ‘इस लड़के सा पढ़ना कठिन है।’

(6) विस्मयबोधक निपात-  

इन वाक्य में विस्मय बोधक शब्दों का प्रयोग किया जाता है और विस्मय बोधक चिन्ह का भी प्रयोग किया जाता है। इनके लिए क्या, काश आदि शब्दों का प्रयोग किया जाता है।

उदाहरण:  ‘क्या सुन्दर लड़की है!’

              ‘काश! वह न गया होता!’

(7) बल बोधक निपात

इन वाक्यों में बल का प्रयोग किया जाता है। किसी बात पर जोर देकर कहा जाता है। इसके लिए तक, भर, केवल, मात्र, सिर्फ, तो, भी, ही शब्दों का प्रयोग किया जाता है।

उदाहरण: 

            ‘हमने उसका, नाम तक नहीं सुना।’

             ‘मेरे पास पुस्तक भर है।’

           ‘वह केवल सजाकर रखने की वस्तु है।’

            ‘वह मात्र सुन्दर थी, शिक्षित तो नहीं थी।’

(8) अवधारणबोधक निपात-

इन वाक्यों में किसी बात के बारे में निश्चित ज्ञान नहीं होता है। केवल उसके बारे में अनुमान लगाया जाता है। अनुमान लगाने के लिए ठीक, लगभग, करीब आदि शब्दों का प्रयोग किया जाता है।

उदाहरण:  ‘उसने करीब पाँच हजार रुपये दिये।’

        ‘लगभग पाँच लाख विद्यार्थी इस वर्ष परीक्षा दे चुके हैं।’ 

(9) आदरसूचक निपात- 

इन वाक्यों में किसी के लिए आदर की भावना को व्यक्त किया जाता है। किसी के प्रति सम्मान व्यक्त किया जाता है। उसके लिए जी शब्द का प्रयोग किया जाता है।

उदाहरण:  ‘इन्दिरा जी गांव गई हुई है।’

             ‘गुरु जी आश्रम में है।’

            ‘वर्माजी घर आ गए है।’

अधिकतर पूछे गए प्रश्न:

1. निपात किसे कहते है?

उत्तर: जब किसी भी बात पर अधिक बल दिया जाता है या उस बात पर अतिरिक्त जोर देने के लिए जिन शब्दों का प्रयोग किया जाता है, उसे निपात कहते है।

वाक्य को अतिरिक्त भावार्थ प्रदान करने के लिए निपातों का प्रयोग निश्चित शब्द, शब्द-समुदाय या पूरे वाक्य में होता है।

2. निपात के कितने भेद है?

उत्तर: निपात नौ प्रकार के होते हैं।

(1)स्वीकारात्मक निपात

(2) नकारात्मक निपात

(3) निषेधात्मक निपात

(4) आदरार्थक निपात

(5) तुलनात्मक

(6) विस्मयार्थक निपात

(7) बलार्थक या परिसीमक निपात

(8) अवधारणबोधक निपात

(9) आदरसूचक निपात

3. तुलनात्मक निपात किसे कहते है?

उत्तर: तुलनात्मक वाक्यों में किसी की तुलना की जाती है। यह तुलना किसी से भी की जा सकती है।

तुलना करने के सा, सी आदि शब्दों का प्रयोग किया जाता है।

उदाहरण: राधिका का चेहरा चांद सा सुंदर है।

इस वाक्य में राधिका के चेहरे की तुलना चांद से की गई है और उसके लिए सा शब्द का प्रयोग किया गया है।

4. मुझे सिर्फ राम प्रथम स्थान पर चाहिए

वाक्य में कौन सा निपात है?

उत्तर: इस वाक्य में बल बोधक निपात है, क्योंकि इसमें राम पर बल देने के लिए सिर्फ शब्द का प्रयोग किया गया है।

5. नकारात्मक निपात किसे कहते है?

उत्तर:ऐसे वाक्यों में प्रश्न का जवाब नहीं के रूप में होता है। इसके लिए नहीं, जी नहीं आदि शब्दों का प्रयोग किया जाता है।

जैसे: प्रश्न– क्या तुमने अपनी पढ़ाई पूरी कर ली है?

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 विस्मयादिबोधक

जिन वाक्यों में किसी विशेष शब्द के द्वारा खुशी, दुख, घृणा, आश्चर्य आदि के भाव व्यक्त हो, उन्हें विस्मयादिबोधक वाक्य कहते हैं। विस्मयादिबोधक को एक चिन्ह (!) से भी प्रकट करते है। जिसे विस्मयादिबोधक चिन्ह कहते है।

 उदाहरण-

‘अरे! इतनी मोटी पुस्तक।’

इस वाक्य में अरे शब्द के द्वारा आश्चर्य को दर्शाया गया है और विस्मयादिबोधक चिन्ह भी लगाया गया है। इसलिए यह विस्मयादिबोधक वाक्य है।

-‘ओह! सुनकर दुख हुआ।’

 इस वाक्य में ओह के द्वारा दुख का बोध कराया गया है तथा ! चिन्ह भी लगाया गया है। यह विस्मयादिबोधक वाक्य है।

-‘छिः! कितनी गंदगी है।’

इस वाक्य में छी शब्द के द्वारा घृणा का भाव व्यक्त किया गया है। इसमें ! चिन्ह का भी प्रयोग किया गया है। इसलिए यह विस्मयादिबोधक वाक्य है।

-‘शाबाश! बहुत बढ़िया|’

इस वाक्य में शाबाश शब्द के द्वारा खुशी को व्यक्त किया गया है और ! चिन्ह का भी प्रयोग है। इसलिए यह वाक्य विस्मयादिबोधक वाक्य है।

विस्म्यादिवाचक वाक्यों में किसी तीव्र भावना को जताने के लिए जो शब्द इस्तेमाल किये जाते हैं उन्हें विस्मय बोधक शब्द कहते हैं।

इन विस्मयादिबोधक को प्रकट करने के लिए कुछ शब्दों का प्रयोग किया जाता है जो इस प्रकार है।

-अरे! (आश्चर्य व्यक्त करने के लिए)

‘अरे! तुम कब आए।’

इस वाक्य में किसी के आने से आश्चर्य को प्रकट करने के लिए अरे शब्द का प्रयोग किया गया है, जो विस्मयादिबोधक शब्द है।

-‘अरे! इतनी सुंदर चित्रकारी।’

इस वाक्य में अरे के द्वारा सुंदर चित्रकारी के प्रति आचार्य का भाव प्रकट किया गया है। 

कई बार ‘अरे’ शब्द का प्रयोग संविधान के लिए भी होता है।

उदाहरण:

-‘अरे! मोहन बाहर गए है।’

यहाँ पर मोहन को संबोधित करते हुए इसमें बारे में अरे विस्मयादिबोधक शब्द का प्रयोग कर के बाहर जाने की बात कही गई है।

-अरे यार! ( दुख प्रकट करने के लिए) 

‘अरे यार! मेरा काम तो पूरा ही नहीं हुआ।’

 इस वाक्य में काम के पूरा न होने पर दुख हुआ है जिसे अरे यार! शब्द से प्रकट किया गया है।

-ओह! ( शोक व्यक्त करने के लिए)

‘ओह! उसके साथ बहुत बुरा हुआ।’

दिए गए वाक्य में किसी के साथ बुरा होने पर दुख हुआ है जिसे ओह विस्मयादिबोधक शब्द से दर्शाया गया है।

-‘ओह! मेरे हाथ में दर्द है।’

इस वाक्य में ओह के द्वारा हाथ में दर्द अर्थात शोक को दर्शाया गया है।

-छिः! ( घृणा व्यक्त करने के लिए) 

 ‘छी! अमित के कपड़े कितने गंदे है।’

 यहाँ पर अमित के गंदे कपड़ो के प्रति घृणा दिखाई गई है।जिसे छी शब्द द्वारा बताया गया है।

-‘छी! कितना गन्दा फर्श है।’

यहाँ वाक्य में छी शब्द के द्वारा फर्श के प्रति घृणा को दर्शाया गया है। इसलिए यह विस्मयादिबोधक शब्द है।

-शाबाश! ( खुशी व्यक्त करने के लिए)

‘शाबाश! तुमने अच्छा काम किया है।’

इस वाक्य में किसी के द्वारा अच्छा काम करने पर खुशी को व्यक्त करने के लिए शाबाश विस्मयादिबोधक शब्द का प्रयोग किया गया है।

-‘शाबाश! देखो अमित प्रथम आया।’

इस वाक्य में अमित के प्रथम आने की खुशी प्रकट करने के लिए शाबाश शब्द का प्रयोग किया गया है। जोकि विस्मयादिबोधक शब्द है।

-ये क्या! ( आश्चर्य व्यक्त करने के लिए)

‘ये क्या! राम अभी तक गया नहीं।’

यहाँ पर राम के न जाने के कारण आश्चर्य का भाव ये क्या विस्मयादिबोधक शब्द से दर्शाया गया है।

-‘ये क्या! तुमने अभी तक खाना नहीं बनाया।’

इस वाक्य में खाना नहीं बनाने पर ये क्या विस्मयादिबोधक शब्द द्वारा आश्चर्य प्रकट किया गया है। इसलिए यह विस्मयादिबोधक शब्द है।

-हाय! ( दुख व्यक्त करने के लिए)

‘हाय! मीरा को बहुत चोट आई है।’

इसमें मीरा को चोट आने में दुख हुआ है, जिसे हाय विस्मयादिबोधक शब्द से दर्शाया गया है।

-‘हाय! अमित के बिना मैं अब क्या करूँगी।’

इस वाक्य में अमित के बिना रहने का दुख प्रकट करने के लिए हाय! विस्मयादिबोधक शब्द का प्रयोग किया गया है।इसलिए यह हाय विस्मयादिबोधक शब्द है।

-हे भगवान! ( शुक्रिया, दुख व्यक्त करने के लिए)

‘हे भगवान! तुमने बचा लिया।’

इस वाक्य में जान बचाने के लिए भगवान को धन्यवाद किया गया है।

-‘हे भगवान! तूने मेरे साथ ऐसा क्यों किया।’

इस वाक्य में किसी के साथ कुछ गलत होने पर दुख प्रकट करने के लिए हे भगवान विस्मयादिबोधक शब्द का प्रयोग किया है।

-काश! ( इच्छा व्यक्त करने के लिए)

‘काश! मैं भी घूमने जाती।’

यहाँ पर घूमने की इच्छा काश विस्मयादिबोधक शब्द के द्वारा बताई गई है। 

-‘काश! मेरा पूरा परिवार साथ होता।’

इस वाक्य में पूरा परिवार साथ होने की इच्छा प्रकट की गई है। जिसके लिए काश विस्मयादिबोधक शब्द का प्रयोग किया गया है।

-क्या ! (प्रश्न पूछने के लिए)

‘क्या! तुमने खाना नही खाया।’

यहाँ पर खाना नहीं खाने का प्रश्न क्या विस्मयादिबोधक शब्द के द्वारा पूछा गया है।

– ‘क्या! वह तुम्हारे साथ जायेगा।’

इस वाक्य में किसी के साथ जाने का प्रश्न क्या विस्मयादिबोधक शब्द के द्वारा पूछा गया है।

ये सभी विस्मयादिबोधक शब्द है जिनका प्रयोग तिरस्कार, संबोधन, भय, हर्ष, स्वीकृत, शोक आदि के लिए प्रयोग किए जाते है। जिनसे हम किसी भी इंसान की भावनाओं को आसानी से समझ सकते है।

अधिकतर पूछें गए प्रश्न–:

1. विस्मयादिबोधक किसे कहते है?

उत्तर: जिन वाक्यों में किसी विशेष शब्द के द्वारा खुशी, दुख, घृणा, आश्चर्य आदि के भाव व्यक्त हो, उन्हें विस्मयादिबोधक वाक्य कहते हैं। विस्मयादिबोधक को एक चिन्ह (!) से भी प्रकट करते है। जिसे विस्मयादिबोधक चिन्ह कहते है।

2. विस्मयादिबोधक शब्द किसे कहते है?

उत्तर: विस्म्यादिवाचक वाक्यों में किसी तीव्र भावना को जताने के लिए जो शब्द इस्तेमाल किये जाते हैं उन्हें विस्मय बोधक शब्द कहते हैं। यह शब्द निम्नलिखित है–:

अरे, काश, छी, हे भगवान, हाय, ओह, क्या, ये क्या, शाबाश, अच्छा, अरे यार,

3. ’काश! मैं अब अपने घर जा पाती।’

वाक्य में कैसा विस्मयादिबोधक सूचक है।

उत्तर: दिए गए वाक्य में काश! विस्मयादिबोधक सूचक है। इसमें काश के द्वारा घूमने की इच्छा प्रकट की गई है। यह एक विस्मयादिबोधक शब्द है।

4. दुख को किस विस्मयादिबोधक सूचक द्वारा व्यक्त किया जाता है।

उत्तर: दुख को हे भगवान, हाय, अरे यार आदि विस्मयादिबोधक शब्दों के द्वारा व्यक्त किया जाता है।

5. आश्चर्य को किस विस्मयादिबोधक द्वारा व्यक्त किया जाता है।

उत्तर: आश्चर्य को अरे!, ये क्या! आदि विस्मयादिबोधक शब्दों के द्वारा व्यक्त किया जाता है।

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