हिंदी भाषा

हिंदी शब्द का अर्थ सिंधु शब्द से किया जाता है। सिंधु एक नदी का नाम है। यह नाम ईरानियों द्वारा दिया गया है। संस्कृत की स ध्वनि को फारसी में ह बोला जाता है। सिंधु नदी के आस पास रहने वाले लोगों द्वारा बोली गई भाषा को हिंदी भाषा का नाम दिया गया है।

हिंदी भाषा भारत, नेपाल, भूटान आदि देशों में बोली जाने वाली भाषा है। यह विश्व की एक प्रमुख भाषा है। 

हिंदी भाषा मुख रूप से भारत में अधिक पैमाने पर बोली जाती है। भारत के अधिकारिक और राजकीय कार्य हिंदी भाषा में भी किए जाते हैं।

हिंदी भाषा भारत की राजकीय भाषा है। इसे राष्ट्रीय भाषा का दर्जा नहीं दिया गया है क्योंकि भारत एक बहुभाषी देश है और यहां अनेक भाषाएं बोली जाती है। देश में शांति और लोगो के बीच सद्भावना बनाए रखने के लिए और कोई भी खुद को अपनी भाषा के लिए निम्न और उच्च न समझे सभी समान रूप से एक दूसरे का सम्मान करे, इसलिए किसी एक भाषा को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा नहीं दिया गया है। देश में सभी भाषाओं के प्रति एक समान व्यवहार किया जाता है।

हिन्दी भारत की राजभाषा है। 14 सितम्बर 1949 को हिन्दी को भारत की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया। भारत में 22 भाषाओं को मान्यता प्राप्त है, जिसमें से हिंदी भाषा भी एक है।

हिन्दी को देवनागरी लिपि में लिखा जाता है। इसे नागरी के नाम से भी जाना जाता है। हिंदी भाषा के साथ साथ संस्कृत को भी लिपि देवनागरी है। देवनागरी में 11 स्वर और 33 व्यंजन हैं। इसे बाईं से दाईं ओर लिखा जाता है।

हिंदी एक भाषा है लेकिन इसके अंदर अनेक बोलियां बोली जाती है। जो हिंदी भाषा का ही एक रूप होती है। हिन्दी की बोलियों में प्रमुख हैं- अवधी, ब्रजभाषा, कन्नौजी, बुन्देली, भोजपुरी, हरियाणवी राजस्थानी, छत्तीसगढ़ी, मालवी, नागपुरी, कुमाउँनी, मगही आदि। किन्तु हिन्दी के मुख्य दो भेद हैं – पश्चिमी हिन्दी तथा पूर्वी हिन्दी आदि सभी हिंदी की ओरमुख बोलियां हैं।

हिंदी भाषा को अलग अलग रूप में लिखा जाता है। उसे लिखने के अलग अलग प्रकार हैं। इन्हे लिखने के लिए कुछ नियम और बातों का ध्यान रखना होता है  जिसके कारण ये शैली एक दूसरे से अलग होती है। हिंदी को लिखने के लिए मुख्य रूप से चार प्रकार की शैली मानी गई हैं।

मानक हिन्दी – हिंदी के जिस रूप की लिपि देवनागरी होती है उसे मानक हिंदी कहते हैं। संस्कृत भाषा के ऐसे अनेक शब्द है जिन्होंने अरबी और फारसी भाषा के शब्दों का स्थान ले लिया है।  इसे ‘शुद्ध हिन्दी’ भी कहते हैं। यह खड़ीबोली पर आधारित है, जो दिल्ली और उसके आस-पास के क्षेत्रों में बोली जाती थी।

दक्षिणी – उर्दू-हिन्दी का वह रूप जो हैदराबाद और उसके आसपास की जगहों में बोला जाता है। इसमें 

फ़ारसी-अरबी के शब्द उर्दू की अपेक्षा कम होते हैं।

रेख्ता – उर्दू का वह रूप जो शायरी में के लिए प्रयोग किया जाता है उसे रेख्ता का जाता है। शायरी के रूप में भी हिंदी भाषा लिखी जाती है। यह तुकबंदी की तरह लिखी जाती है। इसमें लयबद्धता होती है।

उर्दू – हिन्दी का वह रूप जो देवनागरी लिपि के बजाय फ़ारसी-अरबी लिपि में लिखा जाता है। इसमें संस्कृत के शब्द कम होते हैं, और फ़ारसी-अरबी के शब्द अधिक। यह भी खड़ीबोली पर ही आधारित है।

हिंदी भाषा के विकास को रामचंद्र शुक्ल ने तीन भागों में बांटा गया है। इसे आदिकाल, मध्यकाल और आधुनिक काल में विभाजित किया गया है। जिसमें आदिकाल से आधुनिक काल तक के जितने भी परिवर्तन और विकास हुए है उनको व्याखित किया गया है। भिन्न कालों में अनेक प्रकार के परिवर्तन और विकास हुआ है जिसके कारण आज हिंदी अपने इस रूप में हैं।

हिंदी भारत के लोगों के जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। अपने विचारों को आदान प्रदान करने के लिए तथा दूसरों को अपनी बात समझाने के लिए साधारण लोग हिंदी भाषा का प्रयोग करते है।

अधिकतर पूछे गए प्रश्न–:

1)हिंदी भाषा का अर्थ क्या है?

उत्तर: हिंदी शब्द का अर्थ सिंधु शब्द से किया जाता है। सिंधु एक नदी का नाम है। यह नाम ईरानियों द्वारा दिया गया है। संस्कृत की स ध्वनि को फारसी में ह बोला जाता है। सिंधु नदी के आस पास रहने वाले लोगों द्वारा बोली गई भाषा को हिंदी भाषा का नाम दिया गया है।

2)हिंदी भाषा किन स्थानों पर बोली जाती है?

उत्तर:हिंदी भाषा भारत, नेपाल, भूटान आदि देशों में बोली जाने वाली भाषा है। यह विश्व की एक प्रमुख भाषा है। 

हिंदी भाषा मुख रूप से भारत में अधिक पैमाने पर बोली जाती है। भारत के अधिकारिक और राजकीय कार्य हिंदी भाषा में भी किए जाते हैं।

3)हिंदी भाषा में कौन – कौन सी बोलियां है?

उत्तर:हिंदी एक भाषा है लेकिन इसके अंदर अनेक बोलियां बोली जाती है। जो हिंदी भाषा का ही एक रूप होती है। हिन्दी की बोलियों में प्रमुख हैं- अवधी, ब्रजभाषा, कन्नौजी, बुन्देली, भोजपुरी, हरियाणवी राजस्थानी, छत्तीसगढ़ी, मालवी, नागपुरी, कुमाउँनी, मगही आदि। किन्तु हिन्दी के मुख्य दो भेद हैं – पश्चिमी हिन्दी तथा पूर्वी हिन्दी आदि सभी हिंदी की ओरमुख बोलियां हैं।

4)हिंदी भाषा का विभाजन किस प्रकार किया गया है?

उत्तर:हिंदी भाषा के विकास को रामचंद्र शुक्ल ने तीन भागों में बांटा गया है। इसे आदिकाल, मध्यकाल और आधुनिक काल में विभाजित किया गया है। जिसमें आदिकाल से आधुनिक काल तक के जितने भी परिवर्तन और विकास हुए है उनको व्याखित किया गया है। भिन्न कालों में अनेक प्रकार के परिवर्तन और विकास हुआ है जिसके कारण आज हिंदी अपने इस रूप में हैं।

5)हिंदी की मानक शैली के बारे में बताएं?

उत्तर:हिंदी भाषा को अलग अलग रूप में लिखा जाता है। उसे लिखने के अलग अलग प्रकार हैं। विभिन्न शैलियों का प्रयोग कर हिंदी को लिखा जाता है। जिनमें कुछ नियमों और बातों का ध्यान रखना होता है। उनमें से ही एक शैली मानक हिंदी है।

मानक हिन्दी – हिंदी के जिस रूप की लिपि देवनागरी होती है उसे मानक हिंदी कहते हैं। संस्कृत भाषा के ऐसे अनेक शब्द है जिन्होंने अरबी और फारसी भाषा के शब्दों का स्थान ले लिया है।  इसे ‘शुद्ध हिन्दी’ भी कहते हैं। यह खड़ीबोली पर आधारित है, जो दिल्ली और उसके आस-पास के क्षेत्रों में बोली जाती थी।

वर्ण

वह छोटी से छोटी इकाई जिसके टुकड़े न हो सके, उसे वर्ण कहते हैं। वर्ण मूल ध्वनि होती है। इनको अक्षर भी कहा जाता है। यह भाषा की सबसे लघुतम इकाई है।

वर्ण भाषा की सबसे छोटी इकाई होती है इस के टुकड़े नहीं किए जा सकते 

जैसे – अ, क, न, स आदि

वर्णमाला 

किसी भाषा के ध्वनि चिन्हों अर्थात वर्णों के व्यवस्थित समूह को वर्णमाला कहते हैं। हिंदी भाषा की वर्णमाला में 47 वर्ण माने गए हैं। लिखने के आधार पर 52 प्रकार के वर्ण माने गए हैं। 13 स्वर , 35 व्यंजन तथा 4 संयुक्त व्यंजन है।

वर्ण के भेद

वर्णों का उच्चारण किस प्रकार होता है और वर्ण उच्चारण में कितना समय लेता है इस आधार पर वर्णों के भेद किए गए हैं। जिससे वर्णों के बारे में जानकारी मिलती है।

वर्ण के मुख्यतः दो भेद माने गए हैं – 1. स्वर , 2.व्यंजन।

1 स्वर – वह वर्ण जिनके उच्चारण के लिए किसी दूसरे वर्णों की सहायता नहीं पड़ती उन्हें वर्ण कहते हैं। हिंदी वर्णमाला के अनुसार स्वर की संख्या 13  है।

स्वरों के तीन भेद होते हैं–:

  1. ह्रस्व स्वर
  2. दीर्घ स्वर
  3. प्लुत स्वर

ह्रस्व स्वर – जो स्वर बोलना में समय नहीं लेते हैं अर्थात जिन स्वरों के उच्चारण में बहुत कम समय लगता है उसे ह्रस्व स्वर  कहते हैं जैसे – अ ,इ ,उ ,।

दीर्घ स्वर – जिन स्वरों को बोलने में समय लगता है अर्थात जिन स्वरों के उच्चारण में ह्रस्व व स्वर से दुगना समय या अधिक समय लगता है उसे दीर्घ स्वर कहते हैं जैसे -आ , ई ,ऊ ,ऋ ,लृ ,ए ,ऐ ,ओ ,औ।

प्लुत स्वर – जिन स्वरों के उच्चारण में सबसे अधिक समय लगता है अर्थात इस स्वर के उच्चारण में ह्रस्व स्वर से तीन गुना समय लगता है। इसलिए इसके आगे तीन का अंक लिख दिया जाता है जैसे – ओउम्।

2 व्यंजन – वे स्वर जो अकेले नहीं बोले जा सकते अर्थात जिन वर्णों के उच्चारण में स्वरों की सहायता ली जाती है उन्हें व्यंजन कहते हैं। स्वर के बिना व्यंजन का उच्चारण संभव नहीं है।

व्यंजन के चार भेद है–:

  1. स्पर्श व्यंजन
  2. अंतःस्थ व्यंजन
  3. ऊष्म व्यंजन
  4. उत्क्षिप्त व्यंजन

स्पर्श व्यंजन – ‘क’ से लेकर ‘म’ तक के वर्ण स्पर्श व्यंजन कहे जाते हैं। सभी स्पर्श व्यंजन पांच वर्गों के अंतर्गत विभाजित हैं। प्रत्येक वर्ग का नाम पहले वर्ण के आधार पर रखा जाता है।

क वर्ग – क , ख , ग , घ , ङ

च वर्ग – च , छ , ज , झ , ञ

ट वर्ग – ट , ठ ,ड़ ,ढ ण

त वर्ग – त ,थ , द , ध ,न

प वर्ग – प , फ ,ब ,भ ,म

अंतःस्थ व्यंजन – यह स्वर और व्यंजन के मध्य स्थित होता है इसकी संख्या चार मानी गई है। – य ,र ,ल ,व्

ऊष्म व्यंजन – इसके उच्चारण में मुंह से गर्म स्वास निकलती है इनके उच्चारण में मुंह में दबाव पड़ता है इनकी संख्या चार है – श , ष ,स ,ह।

उत्क्षिप्त व्यंजन – इन वर्णों के उच्चारण में जीभ ऊपर उठकर झटके के साथ नीचे गिरता है इनके उच्चारण में जीभ पहले मुंह में ऊपर और फिर एक दम से नीचे छूती है। यह दो माने गए हैं – ड़ ,ढ।

संयुक्त व्यंजन – संयुक्त व्यंजन वे होते है जो एक या उससे अधिक वर्ण  के मेल से बने होते है। ये अकेले प्रयोग में नहीं किया जाते है। ये वर्ण दो वर्णों के मेल से ही सही शब्द बनाकर एक सार्थक अर्थ देते हैं।

क् + ष = क्ष, – क्षत्रिय, क्षमा,

त् + र = त्र, – त्रस्त, त्राण, त्रुटि

ज् + ञ = ज्ञ, – ज्ञानी, यज्ञ, अज्ञान,

श् + र = श्र – श्रीमान, श्रीमती, परिश्रम

अनेक ऐसे वर्ण भी है जो अन्य भाषाओं से भी लिए गए हैं। जिनका प्रयोग हिंदी भाषा में किया जाता है।

अरबी फारसी के वर्ण – फ़ ,ख़ ग़ ,ज़ ,

वर्णों के उच्चारण के समय जीभ की स्थिति बदलती रहती है। प्रत्येक वर्ण के उच्चारण में जीभ की स्थिति में परिवर्तन होता रहता है। मुख में जिस स्थान से जीभ टकराकर वर्ण का उच्चारण करती है उसे उच्चारण स्थान कहते हैं।

उच्चारण का स्थान वर्ण का स्थान

कंठ्य                   अ , क वर्ग , ह और विसर्ग

तालु                   इ , च वर्ग , य और श

मूर्धा                   ऋ ,ट वर्ग , र और ष

दन्त                   लृ , त वर्ग , ल , स

ओष्ठ                   उ , प वर्ग

नासिका                   ड़ , ञ , ण , न , म

दन्त और ओष्ठ।           व

कंठ और तालु।            ए , ऐ

कण्ठ और ओष्ठ।          ओ , औ

इस प्रकार अलग अलग वर्ण के उच्चारण में मुंह में अलग अलग जगह पर जीभ छूती है। प्रत्येक वर्ण के उच्चारण में एक मुंह में एक स्थान से उच्चारण नहीं होता है। इसलिए अलग वर्ण के लिए अलग उच्चारण स्थान होता है।

अधिकतर पूछे गए प्रश्न –:

1.वर्ण से आप क्या समझते हैं?

उत्तर:

वह छोटी से छोटी इकाई जिसके टुकड़े न हो सके, उसे वर्ण कहते हैं। वर्ण मूल ध्वनि होती है। इनको अक्षर भी कहा जाता है। यह भाषा की सबसे लघुतम इकाई है।

वर्ण भाषा की सबसे छोटी इकाई होती है इस के टुकड़े नहीं किए जा सकते 

जैसे – अ, क, न, स आदि

2.वर्ण के कितने भेद है?

उत्तर: वर्णों का उच्चारण किस प्रकार होता है और वर्ण उच्चारण में कितना समय लेता है इस आधार पर वर्णों के भेद किए गए हैं। जिससे वर्णों के बारे में जानकारी मिलती है।

वर्ण के मुख्यतः दो भेद माने गए हैं – 

  1. स्वर , 2.व्यंजन।

3.वर्णमाला किसे कहते है?

उत्तर: किसी भाषा के ध्वनि चिन्हों अर्थात वर्णों के व्यवस्थित समूह को वर्णमाला कहते हैं। हिंदी भाषा की वर्णमाला में 47 वर्ण माने गए हैं। लिखने के आधार पर 52 प्रकार के वर्ण माने गए हैं। 13 स्वर , 35 व्यंजन तथा 4 संयुक्त व्यंजन है।

4.वर्ण के उच्चारण स्थान से आप क्या समझते हैं?

उत्तर: वर्णों के उच्चारण के समय जीभ की स्थिति बदलती रहती है। प्रत्येक वर्ण के उच्चारण में जीभ की स्थिति में परिवर्तन होता रहता है। मुख में जिस स्थान से जीभ टकराकर वर्ण का उच्चारण करती है उसे उच्चारण स्थान कहते हैं।

5.संयुक्त व्यंजन किसे कहते है?

उत्तर:संयुक्त व्यंजन वे होते है जो एक या उससे अधिक व्यंजनों के मेल से बने होते है। ये अकेले प्रयोग में नहीं किया जाते है।ये वर्ण दो वर्णों के मेल से ही सही शब्द बनाकर एक सार्थक अर्थ देते हैं।

जैसे–

ज् + ञ = ज्ञ, – ज्ञानी, यज्ञ, अज्ञान,

श् + र = श्र – श्रीमान, श्रीमती, परिश्रम

शब्द

शब्दों से मिलकर ही एक वाक्य बनाया जाता है। एक या एक से अधिक वर्णों के मेल से बनी सार्थक इकाई को शब्द कहते हैं। यह इकाई स्वंतत्र होती है।

वर्णों के मेल से शब्द बनते हैं और शब्दों के मेल से वाक्य बनाया जाता है। वाक्य एक से अधिक शब्दों का समूह होता है।

कुछ शब्द तो किसी भी भाषा के मूल शब्द होते हैं और कुछ शब्द किसी अन्य भाषा से लिए जाते हैं।

शब्दों को अनेक प्रकार से जाना जाता है। इनका वर्गीकरण निम्नलिखित चार प्रकार से किया गया है।

  1. रचना के आधार पर शब्द।
  2. उत्पत्ति के आधार पर शब्द।
  3. अर्थ के आधार पर शब्द।
  4. प्रयोग के आधार पर शब्द।

1)रचना के आधार पर शब्द–:

जब एक शब्द किसी दूसरे शब्द के साथ जुड़ता है तो वह एक अलग अर्थ देता है। एक शब्द एक से अधिक शब्दों के साथ जुड़कर भी एक नया शब्द बनाकर एक नया अर्थ देता है। इस प्रकार अनेक प्रकार से शब्दों की रचना की जा सकती है। रचना के आधार पर शब्दों के तीन भेद होते हैं:

1.रूढ़/मूल शब्द

ऐसे शब्द जिनको अगर अलग किया जाए तो उनका कोई भी अर्थ नहीं निकले तथा जो पूर्ण रूप से स्वतंत्र हो, उसे रूढ़ शब्द कहलाते हैं

जैसे: कल, कपड़ा, आदमी, घर, घास, पुस्तक, घोड़ा आदि।

2.यौगिक शब्द

जब दो या दो से अधिक शब्दों से मिलकर कोई नया शब्द बनता है और वह एक नया अर्थ देता है तो उस शब्द को यौगिक शब्द कहते हैं। 

जैसे:

देश + भक्ति = देशभक्ति

विद्या + आलय = विद्यालय

3.योगरूढ़ शब्द

ये शब्द जो यौगिक शब्द तो होते हैं लेकिन यह शब्द एक विशेष अर्थ प्रकट करते हैं। यौगिक शब्द से अलग विशेष अर्थ प्रकट करने वाले शब्दों को योग रूढ़ कहते हैं।

जैसे: हिमालय, पीतांबर, नीलकंठ, पंकज, जलद चतुर्भुज आदि।

2)उत्पत्ति के आधार पर शब्द–:

शब्दों की उत्पत्ति कहा से हुई है तथा किस परिस्थिति में शब्दों का प्रयोग किया गया है। यह सभी शब्दों की उत्पत्ति के आधार पर पता चलता है।

उत्पत्ति के आधार पर शब्दों के चार भेद हैं:

तत्सम

तत्सम शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है।तत् (उसके) + सम (समान) अर्थात उसके समान। जो शब्द संस्कृत भाषा से बिना किसी बदलाव के हिंदी में आ गए हैं, वे तत्सम शब्द कहलाते हैं। इनका प्रयोग हिंदी में भी उसी रूप में किया जाता है, जिस रूप में संस्कृत में किया जाता है,।

जैसे: अग्नि, क्षेत्र, रात्रि, सूर्य, मातृ, पितृ, आदि।

तद्भव

जो शब्द रूप बदलने के बाद संस्कृत से हिन्दी में आए हैं वे तद्भव कहलाते हैं।इनके मूल रूप में परिवर्तन के बाद इन्हें हिंदी भाषा में प्रयोग किया गया है।

 जैसे: आग (अग्नि), खेत (क्षेत्र), रात (रात्रि), सूरज (सूर्य), माता (मातृ), पिता (पितृ) आदि।

देशज

देशज शब्दों को क्षेत्रीय शब्द भी कहा जाता है। जो शब्द क्षेत्रीय प्रभाव के कारण परिस्थिति व आवश्यकतानुसार बनकर प्रचलित हो गए हैं वे देशज कहलाते हैं।

 जैसे-पगड़ी, गाड़ी, मेहरारूआदि।

विदेशज

विदेशी लोगो के संपर्क से उनकी भाषा के बहुत से शब्द हिन्दी में प्रयुक्त होने लगे हैं। ऐसे शब्द विदेशी अथवा विदेशज कहलाते हैं। यह शब्द रोजमर्रा के जीवन में भी प्रयोग किया जाते है।

जैसे: स्कूल, अनार,कैंची, पुलिस, टेलीफोन, रिक्शा आदि।

अंग्रेजी- कॉलेज, पेंसिल, रेडियो, टेलीविजन, डॉक्टर, लेटर बॉक्स, पैन, टिकट, मशीन, सिगरेट, साइक्ल, बोतल , फोटो, डॉक्टर स्कूल आदि।

फारसी- अनार, चश्मा, जमींदार, दुकान, दरबार, नमक, नमूना, बीमार, बर्फ, रूमाल, आदमी, चुगलखोर, गंदगी, चापलूसी आदि।

अरबी- औलाद, अमीर, कत्ल, कलम, कानून, खत, फकीर,रिश्वत,औरत,कैदी,मालिक, गरीब आदि।

अनेक भाषाओं से अलग अलग शब्दों का प्रयोग हिंदी भाषा में किया जाता है।

3)अर्थ के आधार पर शब्द–:

किसी शब्द का अर्थ किस रूप में प्रयोग किया जा रहा है और किसका वर्णन करने के लिए प्रयोग किया जा रहा है इसका ज्ञान अर्थ के आधार पर किया जाता है।

अर्थ के आधार पर शब्द छः प्रकार के होते है।

  1. पर्यायवाची शब्द।
  2. विलोम शब्द
  3. समरूप शब्द
  4. वाक्यांश के लिए एक शब्द
  5. अनेकार्थी शब्द
  6. एकार्थी शब्द

1.पर्यायवाची शब्द: जो शब्द किसी शब्द के समान अर्थ बताते है उसे पर्यायवाची शब्द कहते हैं।

2.विलोम/विपरीतार्थक शब्द: जो शब्द एक शब्द के अलग या विपरीत अर्थ देते हैं। वे विलोम शब्द कहलाते हैं।

3.समरूप भिन्नार्थक शब्द: वर्तनी में भी सूक्ष्म अंतर के 

कारण जो शब्द सुनने में एक जैसे लगते हैं, परंतु भिन्न अर्थ देते हैं, वे समरूप-भिन्नार्थक शब्द कहलाते हैं।

4.वाक्यांशों के लिए एक शब्द: जिन शब्दों का प्रयोग वाक्यांश अथवा अनेक शब्दों के स्थान पर किया जाता है, ये शब्द पूरे वाक्य के लिए प्रयोग किए जाते हैं।वाक्यांश के लिए एक शब्द अथवा अनेक शब्दों के लिए एक शब्द कहलाते हैं;

5.अनेकार्थी शब्द: जो शब्द एक शब्द के एक से अधिक अर्थ देते हैं, वे अनेकार्थक शब्द कहलाते हैं। ये शब्द संदर्भ या स्थिति के अनुसार अर्थ देते हैं।

6.एकार्थक शब्द: जिन शब्दों का केवल एक ही अर्थ होता है, उन्हें एकार्थक शब्द कहते हैं। इनका प्रयोग केवल एक ही अर्थ में किया जाता है

4)प्रयोग के आधार पर शब्द–:

प्रयोग के आधार पर शब्द के निम्नलिखित दो भेद होते है-1.विकारी शब्द 2.अविकारी शब्द 

विकारी शब्द के चार भेद होते है

  1. संज्ञा
  2. सर्वनाम
  3. विशेषण
  4. क्रिया

अविकारी शब्द के चार भेद होते है

  1. क्रिया विशेषण
  2. संबंधबोधक
  3. समुच्चयबोधक
  4. विस्मयादिबोधक

1. विकारी शब्द : जिन शब्दों का रूप-परिवर्तन होता रहता है। यह शब्द जो बदलाव के बाद प्रयोग किए जाते है उन्हें  विकारी शब्द कहते हैं। 

जैसे-कुत्ता, कुत्ते, कुत्तों, मैं मुझे, हमें अच्छा, अच्छे  खाते हैं। इनमें संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया विकारी शब्द हैं।

2. अविकारी शब्द : जिन शब्दों के रूप में कभी कोई परिवर्तन नहीं होता है। जो ज्यों के त्यों प्रयोग किए जाते है, वे अविकारी शब्द कहलाते हैं।

जैसे-यहाँ, किन्तु, नित्य हे अरे आदि। इनमें क्रिया-विशेषण, संबंधबोधक, समुच्चयबोधक और विस्मयादिबोधक आदि हैं।

अधिकतर पूछे गए प्रश्न–:

1)शब्द से आप क्या समझते हैं?

उत्तर:शब्दों से मिलकर ही एक वाक्य बनाया जाता है। एक या एक से अधिक वर्णों के मेल से बनी सार्थक इकाई को शब्द कहते हैं। यह इकाई स्वंतत्र होती है।

वर्णों के मेल से शब्द बनते हैं और शब्दों के मेल से वाक्य बनाया जाता है। वाक्य एक से अधिक शब्दों का समूह होता है।

कुछ शब्द तो किसी भी भाषा के मूल शब्द होते हैं और कुछ शब्द किसी अन्य भाषा से लिए जाते हैं।

2)शब्द के कितने भेद है?

उत्तर:शब्दों को अनेक प्रकार से जाना जाता है। इनका वर्गीकरण निम्नलिखित चार प्रकार से किया गया है।

रचना के आधार पर शब्द।

उत्पत्ति के आधार पर शब्द।

अर्थ के आधार पर शब्द।

प्रयोग के आधार पर शब्द।

3)उत्पत्ति के आधार पर शब्द के कितने भेद है?

उत्तर: शब्दों की उत्पत्ति कहा से हुई है तथा किस परिस्थिति में शब्दों का प्रयोग किया गया है। यह सभी शब्दों की उत्पत्ति के आधार पर पता चलता है।

उत्पत्ति के आधार पर शब्दों के चार भेद हैं:

तत्सम शब्द, तद्भव शब्द, देशज शब्दऔर विदेशज शब्द

4)अर्थ के आधार पर शब्द के कितने भेद है?

उत्तर:किसी शब्द का अर्थ किस रूप में प्रयोग किया जा रहा है और किसका वर्णन करने के लिए प्रयोग किया जा रहा है इसका ज्ञान अर्थ के आधार पर किया जाता है।

अर्थ के आधार पर शब्द छः प्रकार के होते है।

पर्यायवाची शब्द।

विलोम शब्द

समरूप शब्द

वाक्यांश के लिए एक शब्द

अनेकार्थी शब्द

एकार्थी शब्द

5)रचना के आधार पर शब्द के कितने भेद है?

उत्तर: रचना के आधार पर शब्द के तीन भेद है।

1.रूढ़/मूल शब्द

2.यौगिक शब्द

3.योगरूढ़ शब्द

जीवन परिचय 

किसी भी व्यक्ति की संपूर्ण जानकारी देना जीवन परिचय कहलाता है। अधिकतर जीवन परिचय किसी लेखक या रचनाकार के लिखे जाते हैं।जीवन परिचय हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में लिखे जाते है। अंग्रजी भाषा में लिखे गए जीवन परिचय को ऑटोबायोग्राफी कहते हैं। 

जीवन परिचय में व्यक्ति के नाम, जन्म स्थान, माता का नाम, पिता का नाम, भाई, बहन या पत्नी की जानकारी और उस व्यक्ति ने कहां तक पढ़ाई की है, कहां से पढ़ाई की है। उसने अपने जीवन में कौन सी उपलब्धियां हासिल की है तथा आज कल वह व्यक्ति क्या कर रहा है। यह सभी जानकारी किसी भी व्यक्ति के जीवन परिचय में लिखी जाती है।

जीवन परिचय

जीवन परिचय में उस व्यक्ति के जीवन के उतार चढ़ाव को भी बताया जाता है तथा उस बात के बारे में भी बताया जाता है जिससे उसकी जिंदगी में बदलाव आया है। 

जीवन परिचय लेखक की रचना के पहले लिखे जाते है। जिसमें उसकी रचना के बारे में भी बताया जाता है। उस रचना का एक संक्षिप्त परिचय भी उसके जीवन परिचय में दिया जाता है।

जीवन परिचय कई रचनाओं में लिखा जाता है। जैसे साहित्य में लेखक का जीवन परिचय, कविता में कवि या कवयित्री का जीवन परिचय, नाटक में नाटकार का जीवन परिचय, कहानी में कहानीकार का जीवन परिचय, एकांकी में एकांकीकार का जीवन परिचय आदि। 

 सभी रचनाओं से पहले लेखक, साहित्यकार, कवि आदि का जीवन परिचय लिखा जाता है ताकि उस रचना के बारे में अच्छे से जानकारी प्राप्त हो सके। उस रचना के लिखने का कारण, उसका उद्देश्य और प्रासंगिकता का पता चल सके और यह सभी जानकारी केवल उस रचना को लिखने वाले से ही पता लग सकता है।

जीवन परिचय विख्यात लेखकों और कवियों जैसे भारतेंदु, जय शंकर प्रसाद, प्रेमचंद, मीरा, कबीर, तुलसीदास, जायसी, फणीश्वरनाथ रेणु, चेतन भगत आदि अनेक ऐसे लेखक है जिनके बारे में उनकी रचना के साथ उनका जीवन परिचय लिखा जाता है।

जीवन परिचय के माध्यम से उस व्यक्ति के जीवन के बारे में पता चलता है। उस रचना के बारे में भी पता चलता है। किन परिस्थितियों में यह रचना लिखी गई है, उसका पता चलता है। 

अधिकतर पूछे गया प्रश्न –:

1.जीवन परिचय से आप क्या समझते है?

उत्तर:किसी भी व्यक्ति की संपूर्ण जानकारी देना जीवन परिचय कहलाता है। अधिकतर जीवन परिचय किसी लेखक या रचनाकार के लिखे जाते हैं।जीवन परिचय हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में लिखे जाते है। अंग्रजी भाषा में लिखे गए जीवन परिचय को ऑटोबायोग्राफी कहते हैं। 

2.जीवन परिचय में क्या क्या लिखा जाता है?

उत्तर:जीवन परिचय में व्यक्ति के नाम, जन्म स्थान, माता का नाम, पिता का नाम, भाई, बहन या पत्नी की जानकारी और उस व्यक्ति ने कहां तक पढ़ाई की है, कहां से पढ़ाई की है। उसने अपने जीवन में कौन सी उपलब्धियां हासिल की है तथा आज कल वह व्यक्ति क्या कर रहा है। यह सभी जानकारी किसी भी व्यक्ति के जीवन परिचय में लिखी जाती है।

3.रचनाओं से पहले लेखक का जीवन परिचय क्यों लिखा जाता है। 

उत्तर:सभी रचनाओं से पहले लेखक, साहित्यकार, कवि आदि का जीवन परिचय लिखा जाता है ताकि उस रचना के बारे में अच्छे से जानकारी प्राप्त हो सके। उस रचना के लिखने का कारण, उसका उद्देश्य और प्रासंगिकता का पता चल सके और यह सभी जानकारी केवल उस रचना को लिखने वाले से ही पता लग सकता है।

4.कुछ विख्यात लेखकों/लेखिकाओं के नाम बताओ जिनके जीवन परिचय लिखे जाते हैं।

उत्तर: जीवन परिचय विख्यात लेखकों और कवियों जैसे भारतेंदु, जय शंकर प्रसाद, प्रेमचंद, मीरा, कबीर, तुलसीदास, जायसी, फणीश्वरनाथ रेणु, चेतन भगत आदि अनेक ऐसे लेखक है जिनके बारे में उनकी रचना के साथ उनका जीवन परिचय लिखा जाता है।

5.जीवन परिचय लिखने का उद्देश्य क्या होता है?

उत्तर:सभी रचनाओं से पहले लेखक, साहित्यकार, कवि आदि का जीवन परिचय लिखा जाता है ताकि उस रचना के बारे में अच्छे से जानकारी प्राप्त हो सके। उस रचना के लिखने का कारण, उसका उद्देश्य और प्रासंगिकता का पता चल सके और यह सभी जानकारी केवल उस रचना को लिखने वाले से ही पता लग सकता है।

प्रमुख हिन्दी के लेखक और उनकी रचनाएँ

हिंदी भाषा के विकास और उसको जन जन की भाषा बनाने के लिए अनेक। लेखकों ने प्रयास किए। उन्होंने हिंदी को समृद्ध और विकसित बनाने के लिए उसको गहराइयों से समझा और हिंदी में रचना करना आरंभ किया। अनेक लेखकों और कवियों उनकी रचनाओं ने हिंदी को एक नया रूप दिया है। रचनाओं के माध्यम से हिंदी भाषा के विभिन्न रूपों का ज्ञान होता है।

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प्राचीन काल से आधुनिक काल तक हिंदी अनेक रूपों में परवर्तित हुई है। बहुत से लेखकों ने समय के साथ साथ इसमें रचनाएं की। अपने अपने समय में बहुत से प्रमुख लेखक हुए है जिनकी रचनाओं ने उनके समय में क्रांति आरंभ कर दी थी। कई लेखकों ने अपने समय में रचाएं की है, जो उस समय की प्रमुख रचनाएं की है।

famous hindi writers list

प्रमुख हिन्दी लेखक और उनकी रचनाएं इस प्रकार है–:

1)चंदबरदाई की रचना पृथ्वीराजरासो है।

यह रचना हिंदी साहित्य की पहली रचना मानी जाती है। इसमें कवि ने पृथ्वीराज के शासन और उसके जीवन के बारे में बताया है। इससे हमें पृथ्वीराज के शासन काल की जानकारी प्राप्त होती है।

2) दलपति विजय की रचना खुमानरासो

दलपती विजय की रचना खुमानरासो है। इस रचना में नौवीं शताब्दी के चित्तौड़ राजा खुमान के युद्धों का वर्णन किया गया है। इसमें उनके जीवन के बारे में विस्तार से बताया गया है।

3) तुलसीदास की रचना कवितावली, रामचरितमानस, विनय पत्रिका।

तुलसीदास की रचना कवितावली, रामचरितमानस और विनय पत्रिका रीतिकाल की रचनाएं है। इन में श्री राम के जीवन का वर्ण खंडों के रूप में किया गया है।

4) कबीर दास की सबद ,रमैनी, साखी।

कबीर दास एक फक्कड़ कवि थे। उन्होंने निर्गुण भक्ति पर बल दिया है। उनकी रचनाएं भी निर्गुण भक्ति पर आधारित है। उन्होंने अपनी इन रचनाओं में मनुष्य जीवन को आधार मानकर उसे पाखंडों से दूर रहने का संदेश दिया है। 

5)सूरदास की साहित्य लहरी, सूर सागर

सूरदास की रचनाओं में कृष्ण के प्रति प्रेम और श्रंगार का भाव दिखाई देता है। उनकी सारी रचनाएं कृष्ण को समर्पित है। वह कृष्ण के माध्यम से संसार को प्रेम और त्याग का संदेश देते हैं। वह मनुष्यों को इस संसार रूपी भव सागर को पार करने का संदेश देते हैं और बिना किसी स्वार्थ के प्रेम और त्याग की भावना को उद्भव करते है। उन्होंने राधा कृष्ण के प्रेम का वर्णन का भी अपनी रचनाओं में किया है। अपनी रचनाओं में सूर ने कृष्ण के बाल स्वरूप का भी वर्णन किया है। कृष्ण और यशोदा के प्रेम और नटखट शरारतों का भी वर्णन किया गया है।

6)मोहम्मद जायसी – पद्मावती

पद्मावती रचना एक प्रेम ग्रंथ है। जिसमें नायक और नायिका के प्रेम का वर्णन किया है। इस ग्रंथ में चित्तौड़ के राजा और रानी पद्मावती के प्रेम और वीरता का वर्णन किया गया है। इसमें रानी पद्मावती का अफगानों के खिलाफ हौंसले का वर्णन किया गया है। जब खिलजी रानी पद्मावती को पाने के लिए महल में प्रवेश करता है तो रानी अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए महल की सभी औरतों के साथ जौहर कर लेती है। यह ग्रंथ रानी पद्मावती के त्याग का भी वर्णन करता है। यह पहला प्रेम ग्रंथ है जिसकी रचना नायक नायिका के रूप में की गई है।

7)भूषण की रचना छत्रसाल

भूषण को रचना छत्रसाल में भूषण ने राजवंशी शासक छत्रसाल के बारे में बताया गया है। इसमें छत्रसाल के युद्धों और उसके शासन के बारे में उसने बताया है। 

8)केशवदास की रामचंद्रिका, रसिकप्रिया

केशावदास की रामचंद्रिका में केशवदास ने राम के जीवन का वर्णन किया है। इसमें केशवदास ने राम,सीता और लक्ष्मण के वन आगमन, भरत के लिए केकई द्वारा सिंहासन मांगना और फिर राम का राज्येभिषेक करना आदि घटनाओं का वर्णन किया गया है। इसके अतिरिक्त  रसिक प्रिया में राधा कृष्ण के प्रेम का वर्णन किया गया है। इसमें श्रंगार रस का प्रयोग किया गया है। 

9) घनानंद की सुजानहित और सुजान सागर है।

घनानंद  ने अपनी रचनाओं में सुजान नामक नायिका को प्रमुख माना है। उसने नायिका की अपनी रचना का प्रमुख केंद्र मानकर रहना की है। उनकी इन रचनाओं में श्रंगार और वियोग रस की प्रमुखता है।

10) भारतेंदु  की श्रंगार लहरी, प्रेम प्रलाप, भारत दुर्दशा

भारतेंदु की रचनाओं में प्रेम, दया, करुणा, विद्रोह और विरोध का भाव डिकाही देता है। वह अपनी रचनाओं में तत्कालीन समस्याओं को दर्शाते है। उन्होंने अपनी रचनाओं में अंग्रेजी शासन के समय के भारत का वर्णन भी किया है।

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अधिकतर पूछे गए प्रश्न–:

1)हिंदी के प्रमुख लेखकों के नाम बताइए?

उत्तर: हिंदी साहित्य में अनेक लेखक हुए है जिन्होंने अपने समय में अनेक रचनाएं की है। लेकिन उनमें से कुछ प्रमुख प्रमुख लेखक भारतेंदु, घनानंद, तुलसीदास, रामचंद्र शुक्ल, मीराबाई, प्रेमचंद, अज्ञेय, मैथिलीशरण गुप्त, महावीर प्रसाद द्विवेदी आदि है।

2) प्रेमचंद द्वारा लिखी गई रचना कौन सी है?

उत्तर:प्रेमचंद द्वारा लिखी गई रचना गोदान, दो बैलों की कथा, सेवासदन, गबन, कर्मभूमि, निर्मला आदि प्रमुख रचनाएं है।

3)महादेवी वर्मा ने कौन सी रचनाएं लिखी?

उत्तर: महादेवी वर्मा ने रश्मि, नीरजा, संध्या गीत, दीपशिखा, सप्तपर्ण, अतीत के चल चित्र, संस्मरण की रेखाएं, यामा, निहार आदि प्रमुख रचनाएं की है। इनकी अधिकतर रचनाएं स्त्री समस्याओं, समाज में उनकी स्थिति आदि पर आधारित रही है। महादेवी वर्मा ने हिंदी साहित्य को एक नई पहचान दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 

4)जायसी की रचना पद्मावती के बारे में आप क्या जानते है?

उत्तर:पद्मावती रचना एक प्रेम ग्रंथ है। जिसमें नायक और नायिका के प्रेम का वर्णन किया है। इस ग्रंथ में चित्तौड़ के राजा और रानी पद्मावती के प्रेम और वीरता का वर्णन किया गया है। इसमें रानी पद्मावती का अफगानों के खिलाफ हौंसले का वर्णन किया गया है। जब खिलजी रानी पद्मावती को पाने के लिए महल में प्रवेश करता है तो रानी अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए महल की सभी औरतों के साथ जौहर कर लेती है। यह ग्रंथ रानी पद्मावती के त्याग का भी वर्णन करता है। यह पहला प्रेम ग्रंथ है जिसकी रचना नायक नायिका के रूप में की गई है।

5) पृथ्वीराज रासो का वर्णन करे?

उत्तर:यह रचना हिंदी साहित्य की पहली रचना मानी जाती है। इसमें कवि ने पृथ्वीराज के शासन और उसके जीवन के बारे में बताया है। इससे हमें पृथ्वीराज के शासन काल की जानकारी प्राप्त होती है।

वर्तनी

जिस क्रम और शब्द लिखा गया है उसी क्रम में शब्द के उच्चारण को वर्तनी कहा गया है।

हिंदी में शब्दों के शुद्ध रूप को वर्तनी कहा जाता है। हिंदी में लिखे गए शुद्ध शब्द की मात्राओं को वर्तनी कहा जाता है। वह शब्द किस प्रकार लिखा गया है और उसे लिखने में कौन सी मात्राओं का प्रयोग किया गया है उसे वर्तनी का नाम दिया गया है।

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शब्दों में वर्तनी की अशुद्धियां कई प्रकार से हो सकती है। यह मात्राओं की अशुद्धि, स्वरों की अशुद्धि, कारकों की अशुद्धि, समास की अशुद्धि, संधि की अशुद्धि, व्यंजन की अशुद्धि आदि कई प्रकार से हिंदी के शब्दों में अशुद्धियाँ हो सकती है।

वर्तनी के छः प्रकार की अशुद्धियाँ होती हैं-

  1. मात्राओं और स्वरों के आधार पर अशुद्धियाँ
  2. विसर्ग के आधार पर अशुद्धियाँ
  3. व्यंजन के आधार पर अशुद्धियाँ
  4. समास के आधार पर अशुद्धियाँ
  5. संधि के आधार पर अशुद्धियाँ
  6. हलंत के आधार पर अशुद्धियाँ

1) मात्राओं और स्वरों के आधार पर अशुद्धियाँ

मात्राओं और स्वर के आधार पर शब्दों में अशुद्धियाँ जब शब्दों के उच्चारण में मात्रा या स्वर संबंधी अशुद्धियाँ होती है तो उसे मात्राओं और स्वर के आधार पर अशुद्धियां कहते है। इसमें मात्राओं का प्रयोग भी गलत किया जाता है।

जैसे–    अशुद्ध शब्द।     शुद्ध शब्द

           आनुमानित –    अनुमानित

           वंशिक।  –       वांशिक

          क्षत्रीय  –          क्षत्रिय 

          नलायक          नालायक

         अत्याधिक        अत्यधिक

         सेनिक।            सैनिक

         जेसे।               जैसे

         जिवन।           जीवन

         पुजारन।         पुजारिन

         आंख।           आँख

        अँगुर              अंगूर

दिए गए सभी अशुद्ध शब्दों में मात्राओं और स्वरों की गलती हैं। उनमें सही वर्तनी का प्रयोग नहीं किया गया है। इसलिए शब्दों में स्वरों और मात्रा संबंधी गलतियां मिलती हैं।

2) विसर्ग के आधार पर अशुद्धियाँ

अनेक ऐसे शब्द होते हैं, जहां पर विसर्ग का प्रयोग किया जाता है। अधिकतर विसर्ग का प्रयोग संस्कृत में किया जाता है लेकिन हिंदी भाषा में भी शब्दों के साथ विसर्ग का प्रयोग किया जाता है।

       अशुद्ध शब्द       शुद्ध शब्द

       दुख।                  दुःख

      प्रात काल।            प्रात: काल

     निशुल्क।              नि:शुल्क

     पुन।                    पुन:

    सामान्यत।             सामान्यत:

दिए गए सभी अशुद्ध शब्दों में विसर्ग का प्रयोग नहीं किया गया है। इसलिए इन सभी में विसर्ग की गलतियां है।  

3) व्यंजन के आधार पर 

जब एक व्यंजन की ध्वनि किसी दूसरे व्यंजन के समान होती है तो उसमें उच्चारण और लिखने में अशुद्धियां आती है। जिसे व्यंजन संबंधी अशुद्धियां कहते है। इनका उच्चारण समान होता है लेकिन उनकी वर्तनी अलग होती है।

जैसे– अशुद्ध शब्द      शुद्ध शब्द

            गुन।            गुण

           पुरान।          पुराण

           बासुदेव।       वासुदेव

           बसंत।          वसंत

          बाल्मिकी।      वाल्मीकि

          बिष्णु।           विष्णु

         बीकार।          विकार

         जमुना।           यमुना।

         जजमानी।       यजमानी

       शहज।              सहज

        सामिल।          शामिल

दिए गए सभी अशुद्ध शब्दों में उचित व्यंजन का प्रयोग नहीं किया गया है। इसलिए इनमे गलतियां है। उचित व्यंजन का प्रयोग कर उनकी अशुद्धियों को दूर किया जा सकता है।

4) हलंत संबंधी अशुद्धियाँ

हलंत का प्रयोग किसी शब्द को आधा लिखने और उच्चारण करने के लिए किया जाता है। लेकिन कई बार इसका प्रयोग शब्द में करने से यह पूरे वाक्य को भी आधा प्रतीत करता है। जिससे उसमें अशुद्धियां उत्पन्न हो जाती है। इनका अधिकतर प्रयोग गिनती लिखने में किया जाता है। जिससे उसका प्रयोग गलत हो जाता है।

जैसे–:    अशुद्ध     शुद्ध

          प्रथम्        प्रथम

           परम्       परम

          पठित्       पठित

          सप्तम्      सप्तम

          दशम्       दशम

दिए गए सभी अशुद्ध शब्दों में  हलंत का प्रयोग सही नहीं किया गया है। इसलिए यह शब्द गलत है।

5) संधि संबंधी अशुद्धियाँ

 जब दो या दो से अधिक स्वरों या व्यंजनों की संधि या जोड़ने में कोई गलती हो जाती है तो उसमें संधि संबंधित अशुद्धियां होती है।

जैसे –:।   अशुद्ध।        शुद्ध

             रमीश          रमेश

           सदोपयोग       सदुपयोग

          परमर्थ            परमार्थ

          अभियूक्त        अभियुक्त

         भानूदे।             भानुदय

इन सभी अशुद्ध शब्दों में संधि संबंधित गलतियां है। जिस कारण शब्दों में अशुद्धियां होती हैं।

6) समास संबंधित अशुद्धियाँ

जहाँ पर समास संबंधित अशुद्धियां होती है वह पर या तो एक पद दूसरे पद में मिल जाता है या फिर पूरे पद का एक ही अर्थ निकलता है।

जैसे–: अशुद्ध।     शुद्ध

         राजातंत्र।    राजतंत्र

        निरपराधी।    निरपराध

        प्रक्रीय।         प्रक्रिया

       आत्मापुरुष।    आत्मपुरुष

       पराजतंत्र।        प्रजातंत्र

       रमायन।         रामायण

यहां पर दिए गए अशुद्ध शब्दों में समास संबंधी गलतियां है। इसमें या तो पद का अर्थ ही दूसरे शब्द में मिल गया है या फिर पूरे पद का अर्थ ही एक निकल जाता है। इसलिए इन शब्दों में समास संबंधी गलतियां होती है। इन गलतियों को सही करने के लिए शुद्ध वर्तनी का प्रयोग किया जाता है।

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अधिकतर पूछें गए प्रश्न

1)वर्तनी किसे कहते है?

उत्तर: हिंदी में शब्दों के शुद्ध रूप को वर्तनी कहा जाता है। हिंदी में लिखे गए शुद्ध शब्द की मात्राओं को वर्तनी कहा जाता है। वह शब्द किस प्रकार लिखा गया है और उसे लिखने में कौन सी मात्राओं का प्रयोग किया गया है उसे वर्तनी का नाम दिया गया है। 

शब्दों में वर्तनी की अशुद्धियां कई प्रकार से हो सकती है। यह मात्राओं की अशुद्धि, स्वरों की अशुद्धि, कारकों की अशुद्धि, समास की अशुद्धि, संधि की अशुद्धि, 

व्यंजन की अशुद्धि आदि कई प्रकार से हिंदी के शब्दों में अशुद्धियां हो सकती है।

2)वर्तनी के कितने भेद होते है?

उत्तर:कई प्रकार से हिंदी के शब्दों में अशुद्धियां हो सकती है।

वर्तनी के छः प्रकार की अशुद्धियां होती हैं।

1)मात्राओं और स्वरों के आधार पर अशुद्धियां

2)विसर्ग के आधार पर अशुद्धियां

3)व्यंजन के आधार पर अशुद्धियां

4)समास के आधार पर अशुद्धियां 

5)संधि के आधार पर अशुद्धियां

6)हलंत के आधार पर अशुद्धियां

3)संधि संबंधी वर्तनी किसे कहते है?

उत्तर:जब दो या दो से अधिक स्वरों या व्यंजनों की संधि या जोड़ने में कोई गलती हो जाती है तो उसमें संधि संबंधित अशुद्धियां होती है।

जैसे –:।   अशुद्ध।        शुद्ध

             रमीश          रमेश

4)समास संबंधी वर्तनी किसे कहते है?

उत्तर:जहां पर समास संबंधित अशुद्धियां होती है वह पर या तो एक पद दूसरे पद में मिल जाता है या फिर पूरे पद का एक ही अर्थ निकलता है।

जैसे–: अशुद्ध।     शुद्ध

         राजातंत्र।    राजतंत्र

        निरपराधी।    निरपराध

5)मात्रा और स्वर संबंधी वर्तनी किसे कहते है?

उत्तर:मात्राओं और स्वरों के आधार पर अशुद्धियां–:

मात्राओं और स्वर के आधार पर शब्दों में अशुद्धियां               जब शब्दों के उच्चारण में मात्रा या स्वर संबंधी      अशुद्धियां होती है तो उसे मात्राओं और स्वर के आधार पर अशुद्धियां कहते है। इसमें मात्राओं का प्रयोग भी गलत किया जाता है।

जैसे–    अशुद्ध शब्द।     शुद्ध शब्द

           आनुमानित –    अनुमानित

           वंशिक।  –       वांशिक

    पत्र लेखन

पत्र लेखन के द्वारा एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के संपर्क में रह सकता है। वह आपस में सूचनाओं का आदान प्रदान कर सकता है। एक दूसरे की समस्याओं और खुशी को अभियक्त कर सकता है।

पत्र लेखन अभिव्यक्ति का एक महत्वपूर्ण साधन है। जिसके द्वारा एक दूसरे के विचारों का आदान प्रदान किया जाता है।

पत्र लेखन का ढांचा होता है। जिसके अनुसार पत्र को लिखा जाता है। कुछ आवश्यक तत्व और विशेषताएं होती है जिनको ध्यान में रखकर पत्र लिखा जाता है। वे तत्व इस प्रकार है

1.संक्षिप्त विवरण – पत्र लिखते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए की पत्र को कहानी को तरह बड़ा कर के न लिखे। जिससे सामने वाले का समय बर्बाद हो। पत्र लिखते समय उसमें मुख्य बातों को पहले अर्थात महत्वपूर्ण बातों का ही उल्लेख करना चाहिए। जिससे सामने वाला आसानी से आपकी बात समझ सके।

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2.भाषा – पत्र की भाषा सरल और सहज होनी चाहिए। अधिक कलिष्ट भाषा का प्रयोग नहीं करना चाहिए। भाषा अर्थपूर्ण होनी चाहिए। ऐसी भाषा का प्रयोग करना चाहिए जो सामने वाला आसानी से समझ सके। पत्र में आदरसूचक शब्दों का प्रयोग करना चाहिए। 

3.स्वच्छता– पत्र लिखते समय एक साफ और स्वच्छ कागज का प्रयोग करना चाहिए। जिससे पत्र प्रभावशाली लगे। पत्र को ध्यान से लिखना चाहिए। किसी प्रकार की गलती का अक्षर को काटना पत्र को अप्रिय बना सकता है।

4.उद्देश्य – आप जो भी पत्र लिख रहे हैं, वह पत्र उद्देश्य पूर्ण होना चाहिए। आप जिस उद्देश्य के लिए पत्र लिख रहे है वह स्पष्ट होना चाहिए। उसको ध्यान में रखकर उसी से संबंधित बातें अपने पत्र में लिखनी चाहिए। जिससे पाठक का ध्यान उद्देश्य पर रहे।

पत्र लिखने के दो प्रकार होते है अर्थात पत्र दो प्रकार से लिखे जाते है।

1)औपचारिक पत्र

2)अनौपचारिक पत्र

1)औपचारिक पत्र –:

 किसी व्यावसायिक कार्य के लिए लिखने वाले पत्र औपचारिक पत्र कहलाते है। इस पत्र के अंतर्गत सरकारी, गैर सरकारी, प्रार्थना, नौकरी के आवेदन के लिए, निमंत्रण या व्यावसायिक पत्र आदि शामिल है।

इस पत्र को लिखते समय सबसे पहले सेवा में लिखकर शुरुआत की जाती है। उसके बाद आदरसूचक शब्द महोदय, आदरणीय और श्रीमान लिखकर संबोधित किया जाता है। उसके बाद पत्र प्राप्त करने वाले का पता लिखा जाता है फिर पत्र लिखने का उद्देश्य लिखा जाता है। पत्र के अंत में भवदीय, आपका आज्ञाकारी, या आभारी लिखकर पत्र का उद्देश्य समाप्त किया जाता है। इसके बाद पत्र लिखने वाले का नाम, पता, और दिनांक के साथ हस्ताक्षर कर पत्र का लेखन समाप्त किया जाता है।

2)अनौपचारिक पत्र –

 यह पत्र अपने किसी प्रियजन, सगे संबंधियों, मित्रों आदि को लिखे जाते है।इस पत्र के अंतर्गत एक बच्चे का अपने माता पिता को, एक भाई का अपनी बहन को, एक मित्र का दूसरे मित्र को, एक फौजी का अपने घर को खुशी, सहायता या अपनी जानकारी देने के लिए पत्र लिखे जाते है।

इस पत्र की शुरुआत भेजने वाले का पता और तिथि लिखकर की जाती है। यदि किसी बड़े को पत्र लिख रहे है तो आदरणीय, पूजनीय आदि सम्मानसूचक और यदि किसी छोटे को पत्र लिख रहे हैं तो प्रिय, बंधु या मित्र आदि संबोधित शब्दों का प्रयोग किया जाता है। उसके बाद पत्र लिखने का उद्देश्य लिखकर धन्यवाद के साथ उसकी समाप्ति की जाती है। अंत में तुम्हारा प्रिय पुत्र/ मित्र या भाई/ बहन लिखकर पत्र समाप्त किया जाता है।

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अधिकतर पूछे गए प्रश्न–:

1)पत्र लेखन से आप क्या समझते हैं?

उत्तर:पत्र लेखन के द्वारा एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के संपर्क में रह सकता है। वह आपस में सूचनाओं का आदान प्रदान कर सकता है। एक दूसरे की समस्याओं और खुशी को अभियक्त कर सकता है।

पत्र लेखन अभिव्यक्ति का एक महत्वपूर्ण साधन है। जिसके द्वारा एक दूसरे के विचारों का आदान प्रदान किया जाता है।

2)औपचारिक पत्र किसे कहते हैं?

उत्तर:किसी व्यावसायिक कार्य के लिए लिखने वाले पत्र औपचारिक पत्र कहलाते है। इस पत्र के अंतर्गत सरकारी, गैर सरकारी, प्रार्थना, नौकरी के आवेदन के लिए, निमंत्रण या व्यावसायिक पत्र आदि शामिल है।

इस पत्र को लिखते समय सबसे पहले सेवा में लिखकर शुरुआत की जाती है। उसके बाद आदरसूचक शब्द महोदय, आदरणीय और श्रीमान लिखकर संबोधित किया जाता है। उसके बाद पत्र प्राप्त करने वाले का पता लिखा जाता है फिर पत्र लिखने का उद्देश्य लिखा जाता है। पत्र के अंत में भवदीय, आपका आज्ञाकारी, या आभारी लिखकर पत्र का उद्देश्य समाप्त किया जाता है। इसके बाद पत्र लिखने वाले का नाम, पता, और दिनांक के साथ हस्ताक्षर कर पत्र का लेखन समाप्त किया जाता है।

3)अनौपचारिक पत्र किसे कहते हैं?

उत्तर:यह पत्र अपने किसी प्रियजन, सगे संबंधियों, मित्रों आदि को लिखे जाते है।इस पत्र के अंतर्गत एक बच्चे का अपने माता पिता को, एक भाई का अपनी बहन को, एक मित्र का दूसरे मित्र को, एक फौजी का अपने घर को खुशी, सहायता या अपनी जानकारी देने के लिए पत्र लिखे जाते है।

इस पत्र की शुरुआत भेजने वाले का पता और तिथि लिखकर की जाती है। यदि किसी बड़े को पत्र लिख रहे है तो आदरणीय, पूजनीय आदि सम्मानसूचक और यदि किसी छोटे को पत्र लिख रहे हैं तो प्रिय, बंधु या मित्र आदि संबोधित शब्दों का प्रयोग किया जाता है। उसके बाद पत्र लिखने का उद्देश्य लिखकर धन्यवाद के साथ उसकी समाप्ति की जाती है। अंत में तुम्हारा प्रिय पुत्र/ मित्र या भाई/ बहन लिखकर पत्र समाप्त किया जाता है।

4)पत्र लेखन के लिए महत्वपूर्ण तत्व कौन से है?

उत्तर: पत्र लेखन का ढांचा होता है। जिसके अनुसार पत्र को लिखा जाता है। कुछ आवश्यक तत्व और विशेषताएं होती है जिनको ध्यान में रखकर पत्र लिखा जाता है। वे तत्व इस प्रकार है।

1.संक्षिप्त विवरण – पत्र लिखते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए की पत्र को कहानी को तरह बड़ा कर के न लिखे। जिससे सामने वाले का समय बर्बाद हो। पत्र लिखते समय उसमें मुख्य बातों को पहले अर्थात महत्वपूर्ण बातों का ही उल्लेख करना चाहिए। जिससे सामने वाला आसानी से आपकी बात समझ सके।

2.भाषा – पत्र की भाषा सरल और सहज होनी चाहिए। अधिक कलिष्ट भाषा का प्रयोग नहीं करना चाहिए। भाषा अर्थपूर्ण होनी चाहिए। ऐसी भाषा का प्रयोग करना चाहिए जो सामने वाला आसानी से समझ सके। पत्र में आदरसूचक शब्दों का प्रयोग करना चाहिए। 

3.स्वच्छता– पत्र लिखते समय एक साफ और स्वच्छ कागज का प्रयोग करना चाहिए। जिससे पत्र प्रभावशाली लगे। पत्र को ध्यान से लिखना चाहिए। किसी प्रकार की गलती का अक्षर को काटना पत्र को अप्रिय बना सकता है।

4.उद्देश्य – आप जो भी पत्र लिख रहे हैं, वह पत्र उद्देश्य पूर्ण होना चाहिए। आप जिस उद्देश्य के लिए पत्र लिख रहे है वह स्पष्ट होना चाहिए। उसको ध्यान में रखकर उसी से संबंधित बातें अपने पत्र में लिखनी चाहिए। जिससे पाठक का ध्यान उद्देश्य पर रहे।

5)औपचारिक और अनौपचारिक पत्र लेखन में क्या अंतर है?

उत्तर:औपचारिक पत्र –: किसी व्यावसायिक कार्य के लिए लिखने वाले पत्र औपचारिक पत्र कहलाते है। इस पत्र के अंतर्गत सरकारी, गैर सरकारी, प्रार्थना, नौकरी के आवेदन के लिए, निमंत्रण या व्यावसायिक पत्र आदि शामिल है।

अनौपचारिक पत्र – यह पत्र अपने किसी प्रियजन, सगे संबंधियों, मित्रों आदि को लिखे जाते है।इस पत्र के अंतर्गत एक बच्चे का अपने माता पिता को, एक भाई का अपनी बहन को, एक मित्र का दूसरे मित्र को, एक फौजी का अपने घर को खुशी, सहायता या अपनी जानकारी देने के लिए पत्र लिखे जाते है।

निबंध लेखन

निबंध शब्द का अर्थ ‘बन्धन में बँधी हुई वस्तु’ से लिया जाता है। यह मूलत: संस्कृत का शब्द है, जो कि हिन्दी में लिया गया है। निबन्ध एक ऐसी रचना है, जिसमें किसी विशेष विषय पर व्यक्ति अपने विचारों की लिखित अभिव्यक्त करता है। जो कुछ भी वह उस विषय के बारे में सोचता है उसके लिख देता है।

निबन्ध कई प्रकार के होते हैं- 

वर्णनात्मक,  विचारात्मक, भावात्मक आदि|

1. वर्णनात्मक निबंध 

वर्णनात्मक निबंध में किसी वस्तु, घटना, प्रदेश आदि का वर्णन किया जाता है। इसमें जो कुछ भी खुद देखा जाता है इसका विवरण किया जाता है। उदाहरण के लिए, होली, दीपावली आदि के बारे में बताया जाए।इस प्रकार के निबंधों में घटनाओं का एक क्रम होता है। इनमें साधारण बातें अधिक होती हैं। इनकी भाषा भी सरल होती है।

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2. विचारात्मक निबंध 

विचारात्मक निबंध लिखने के लिए अधिक सोचने की जरूरत होती है। इसमें कोई भी विषय बड़ी सोच समझ कर चुना जाता है। इनमें बुद्धि-तत्त्व प्रधान होता है तथा ये प्राय: किसी व्यक्तिगत, सामाजिक या राजनीतिक समस्या पर लिखे जाते हैं। दहेज-प्रथा, बाल विवाह, प्रजातंत्र, पर्यावरण आदि किसी भी विषय पर विचारात्मक निबंध लिखा जा सकता है। इसमें विषय के अच्छे-बुरे पहलुओं पर विचार किया जाता है तथा इसमें समस्याओं को सुलझाने या उनको हल करने का उपाय भी बताया जाता है।

3. भावात्मक निबंध

इस प्रकार के निबंधों मेंआप विषय के प्रति अपनी भावनात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं। इनमें कल्पना की प्रधानता रहती है। उदाहरण के लिए ‘बुढ़ापा’, ‘यदि मैं अध्यापक होता’ आदि विषयों पर निबंध लिखे जाते है। यह निबंध लिखते समय आप अपनी कल्पना में जो कुछ भी सोच रहे होते है उसको लिख देते है। जिससे आपकी भावनाएं खुलकर व्यक्त होती है।

निबंध के तीन प्रमुख अंग होते हैं :

भूमिका

विषय-वस्तु

उपसंहार

1. भूमिका – 

जो भी विषय आप लिख रहे हो उसके बारे में जानकारी देना उसके बारे में बताना भूमिका में लिखा जाता है। इसमें निबंध के विषय को स्पष्ट किया जाता है। भूमिका रोचक होगी, तभी पाठक निबंध पढ़ने के लिए उत्सुक होंगे। इसकी भूमिका में विषय से संबंधित घटना या उसके परिवेश का भी परिचय भी दिया जाता है।

2. विषय-वस्तु –

 विषय-वस्तु निबंध का मुख्य भाग है। इसमें विषय का परिचय दिया जाता है, उसका रूप स्पष्ट किया जाता है। विषय का एक ही केंंद्रीय भाव होता है, उसका विस्तार करने की आवश्यकता होती है। विषय  के विभिन्न पक्ष होते हैं। पक्ष-विपक्ष में तर्क देकर विषय-वस्तु को गहराई से समझाया जाता है। 

3. उपसंहार

 इसमें समस्त निबन्ध का सार होता है। इसमें पूरे विषय से संबंधित निचोड़ दिया जाता है।यह स्वाभाविक, संक्षिप्त एवं संगत होना चाहिए।

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निबंध की विशेषताएँ

निबंध को लिखने का एक तरीका होता है। उसमे कुछ बातों का विशेष ध्यान रखा जाता है। जिससे निबंध की रचना सुसंगत तरीके से होती है।

(1) संक्षिप्तता – 

संक्षिप्तता को निबंध का आवश्यक धर्म माना गया है। एक निबंधकार की सफलता तब प्रदर्शित होती है जब वह अपने विषय का उद्घाटन ‘निबंध’ में संक्षिप्तता एवं लघुता के साथ करता है। अनावश्यक विस्तार एवं व्यापक विवेचन निबंध को बोझिल बनाता है। निबंध का आकार सीमित होता है, किन्तु यहाँ लघु आकार अथवा संक्षिप्तता से तात्पर्य है कि निबंधकार अपने-आप में स्वतंत्र होकर, चिंतन तथा मन की अनिवार्यताओं का ग्रहण कर विवेच्य पक्षों एवं बिन्दुओं को गंभीरतापूर्वक यथासंभव संक्षेप में प्रस्तुत करता है। 

(2) वैयक्तिकता – 

स्वभावत: ‘निबंध’ में निबंधकार का व्यक्तित्व प्रतिबिंबित होता है। निबंधकार की रुचियों, मन: स्थितियों, विचारधारा तथा दृष्टिकोण का प्रभाव अभिन्न रूप से निबंध में रहता है।

(3) रोचकता व आकर्षण – 

निबंध की लोकप्रियता हेतु उसमें रोचकता तथा आकर्षण का समन्वय अत्यावश्यक है। साथ ही भाषा एवं शैली के उत्कृष्ट प्रयोग – बिन्दु यथा- सहज एवं स्वाभाविक अलंकरण, लोकोक्तियों तथा मुहावरों का प्रयोग, शब्द-शक्तियों का चमत्कृति एवं कलात्मकता के साथ सम्मिश्रण तथा उत्कृष्ट शब्दावली द्वारा निबंधकार की नैसर्गिक प्रतिभा उजागर होती है। साथ ही इससे निबंध में रोचकता व आकर्षण का परिदर्शन भी होता है। 

(4) मौलिकता –

 विचार तथा शैली में विशिष्ट प्रयोग साहित्य में ‘मौलिकता’ की ओर इंगित करते हैं। निबंधकार प्राचीन एवं शास्त्रीय-परम्परा से विचार करता हुआ भी वण्र्य-विषयवस्तु का सहज-विश्लेषण मौलिकता के साथ करता है। सर्वथा विविधता एवं नवीनता का ग्रहण किए हुए निबंधकार कलात्मक अभिव्यंजनापूर्ण अपनी प्रस्तुति सहृदय-पाठक के समक्ष देता है। 

(5) प्रभावोत्पादकता – 

सामान्यत: ‘निबंध’ में हृदय और मस्तिष्क दोनों को प्रभावित करने का सामथ्र्य होना चाहिए। वस्तुत: विनोद-मात्र का साधन न होकर, उसमें गम्भीर-चिन्तन एवं नवीन दृष्टि का समन्वय भी होना चाहिए। पाश्चात्य विचारक ‘प्रीस्टले’ के अनुसार अच्छा निबंध वही है, जो साधारण बातचीत जैसा प्रकट हो। परन्तु यहाँ यह कहना उपयुक्त होगा कि निबंध में कथ्य एवं वण्र्य विषय का प्रस्तुतीकरण सहज, सरल, किंचित् विनोदपूर्ण तथा गाम्भीर्य के साथ किया जाना चाहिए। 

(6) सरसता – 

निबंध लेखन में सरसता होती है। उनमें किसी भी कठिन भाषा या कलिष्ठ शब्दों का प्रयोग नहीं किया जाता है। निबंधों में सरसता से उसका स्वरूप प्रभावशाली हो जाता है।

(7) स्वच्छन्दता – 

निबंधों में स्वच्छंदता होती है। उसमें किसी प्रकार का कोई भी संकुचन नहीं होता है। निबंध लिखने वाला अपने विचारों को स्वतंत्र रखता है। वह स्वतंत्र विचारों से निबंध को खुला रूप प्रदान करता है।

(8) सुसंगठितता –

‘निबंध’ का अर्थ ही है- ‘अच्छी तरह बंधा हुआ।’ निबंधों में सभी तत्वों को सुसंगठित रूप से गढ़ा जाता है। इसमें भाषा शैली, संक्षिपता, सभी को मौलिक रूप से संगठित किया जाता है।

इस प्रकार निबंध को लिखने में अनेक तत्वों का ध्यान रखा जाता है। जिससे निबंध में एक सुसंगठित रूप प्रदान होता है।

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अधिकतर पूछे गए प्रश्न–:

1)निबंध लेखन से आप क्या समझते है

उत्तर:निबंध शब्द का अर्थ ‘बन्धन में बँधी हुई वस्तु’ से लिया जाता है। यह मूलत: संस्कृत का शब्द है, जो कि हिन्दी में लिया गया है। 

निबन्ध एक ऐसी रचना है, जिसमें किसी विशेष विषय पर व्यक्ति अपने विचारों की लिखित अभिव्यक्त करता है। जो कुछ भी वह उस विषय के बारे में सोचता है उसके लिख देता है।

2)निबंध के कितने प्रकार है?

उत्तर: निबंध किसी विशेष विषय से संबंधित होते है। इनको लिखने के कुछ नियम होते है। निबंध मुख्य तीन प्रकार के होते है।वर्णनात्मक,  विचारात्मक, भावात्मक आदि।

3)वर्णनात्मक निबंध से आप क्या समझते है?

उत्तर: वर्णनात्मक निबंध में किसी वस्तु, घटना, प्रदेश आदि का वर्णन किया जाता है। इसमें जो कुछ भी खुद देखा जाता है इसका विवरण किया जाता है। उदाहरण के लिए, होली, दीपावली आदि के बारे में बताया जाए।

इस प्रकार के निबंधों में घटनाओं का एक क्रम होता है। इनमें साधारण बातें अधिक होती हैं। इनकी भाषा भी सरल होती है।

4) निबंधों के प्रमुख अंग कौन से है?

उत्तर:निबंध के तीन प्रमुख अंग होते हैं :

भूमिका, विषय-वस्तु,  उपसंहार। निबंधों के इन अंगों के कारण ही उसमें एक सही रूपरेखा आती है। इनमें निबंध के सभी भागों को अच्छे तरह से प्रदर्शित किया जाता है।

5)भावनात्मक निबंध किसे कहते है?

उत्तर:इस प्रकार के निबंधों मेंआप विषय के प्रति अपनी भावनात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं। इनमें कल्पना की प्रधानता रहती है। उदाहरण के लिए ‘बुढ़ापा’, ‘यदि मैं अध्यापक होता’ आदि विषयों पर निबंध लिखे जाते है। यह निबंध लिखते समय आप अपनी कल्पना में जो कुछ भी सोच रहे होते है उसको लिख देते है। जिससे आपकी भावनाएं खुलकर व्यक्त होती है।

 विलोम शब्द

किसी शब्द के ठीक विपरीत शब्द प्रकट करने वाले शब्दों को विलोम शब्द कहा जाता है। अंग्रेजी भाषा में इन्हें एंटोनिम्स (antonyms) कहा जाता है। 

किसी एक शब्द के ठीक उल्टा, या विपरीत अर्थ देने वाले शब्दों को विलोम शब्द कहते है। इन शब्दों को विपर्याय के रूप में भी जाना जाता है।

उदाहरण : सुबह – शाम

              अधिक – कम

विलोम शब्द किन्हीं दो अच्छी या बुरी वस्तुओं की तुलना करने के लिए काफी उपादेय सिद्ध होते हैं। ऐसे शब्दों के प्रयोग से भाषा में निखार आता है।

 विलोम शब्द

विलोम शब्द के प्रकार या भेद–:

विलोम शब्द दो प्रकार से बनाए जाते हैं

1)स्वतंत्र विपरीतार्थक शब्द

2)उपसर्गों से बने विपरीतार्थक शब्द

1. स्वतंत्र विपरीतार्थक शब्द 

इस प्रकार के विलोम शब्दों की विशेषण शब्दों से किसी प्रकार की समानता नहीं होती है तथा वह विशेषण रूप से मुक्त या स्वतंत्र होती है। 

 उदाहरण – गुण-दोष, जन्म- मृत्यु, असली-   नकली, आज-कल, छोटा-बड़ा।    

2.उपसर्गों से बने विपरीतार्थक शब्द 

 इस प्रकार के विलोम शब्द में उपसर्ग लगाकर विलोम शब्द बनाया जाता है। इन शब्दों में उपसर्ग का प्रयोग कर विलोम शब्दों को निर्मित किया जाता है।

 

उपसर्ग से बनने वाले विलोम शब्द भी दो प्रकार के होते हैं –

i)उपसर्गों के योग से बनने वाले विपरीतार्थक शब्द –

ऐसे शब्द जिसमें मूल शब्द के साथ उपसर्ग लगा कर उसके शब्द को उल्टा या विपरीत कर देते है जिससे वह उस शब्द का विलोम शब्द बन जाता है।

जैसे- वादी का विलोम प्रतिवादी

इन शब्दों में  वादी के साथ प्रति उपसर्ग लगा कर ‘वादी’ का उल्टा अर्थ प्रकट किया गया है।

मान का विलोम शब्द अपमान

इन शब्दों में मान का विलोम शब्द बनाने के लिए अप उपसर्ग प्रयोग किया गया और अपमान विलोम बनाया गया है।

 फल का विलोम शब्द प्रतिफल 

इन शब्दों में फल का विलोम शब्द बनाए के लिए प्रति उपसर्ग का प्रयोग किया गया और प्रतिफल विलोम शब्द बनाया गया है। 

ii)उपसर्गों के परिवर्तन से बनने वाले विपरीतार्थक शब्द

 ऐसे उपसर्ग शब्द जिसमें उपसर्गों के परिवर्तन या बदलाव से बनता हैं। जिनमें कोई दूसरा उपसर्ग लगाकर विलोम शब्द बनाए जाता है। इसमें शब्द में अलग और विलोम में अलग उपसर्ग लगते हैं।

जैसे  – अनुकूल का उल्टा प्रतिकूल 

इन शब्दों में अनुकूल में अनु उपसर्ग और उसके विलोम में प्रति उपसर्ग लगाया गया है जोकि अलग अलग उपसर्ग है।       

‘अनुराग का उल्टा विराग’ 

इन शब्दों में अनुराग में अनु और विराग विलोम शब्द में वि उपसर्ग लगाया है, जोकि अलग अलग उपसर्ग है।

‘सुरुचि का कुरुची’ 

इन शब्दों में सुरुचि में सु और कुरुचि विलोम शब्द में कु उपसर्ग लगाया गया है, जोकि अलग अलग उपसर्ग है।

‘अनाथ का सनाथ’ 

इन शब्दों में अनाथ में अ उपसर्ग और सनाथ में स उपसर्ग लगाया गया है, जिसमें दोनों शब्दों में अलग अलग उपसर्ग है।

कुछ शब्द और उनके विलोम अर्थ इस प्रकार है

शब्द                  विलोम अर्थ

हंसना                       रोना

सुख                         दुख

पाना                        खोना

जागना                      सोना

दिन                           रात

सूखा                         गीला

आना                         जाना

ऊपर                         नीचे

देवता                         राक्षस

राजा                          रंक 

पवित्र                         अपवित्र

अंधेरा                         रोशनी

उदय                          अस्त 

गुण                  अवगुण

अमीर                 गरीब

संधि                  विच्छेद

मधुर                     कटू 

आदर              निरादर

वक्ता                 श्रोता

सही                  गलत

ईमानदार         बेईमान

उन्नति               अवनति

अर्थ                   अनर्थ

शिक्षित           अशिक्षित

अमृत               विष

सीधा                 उल्टा

प्रेम                   घृणा

अच्छा                 बुरा

उपकार          अपकार

आधुनिक       प्राचीन

सच                   झूठ

प्यार              नफरत

सुंदर              कुरूप

देश                विदेश

खाना                     पीना

कहना                    सुनना

अल्पसंख्यक        बहुसंख्यक

अनुराग                    विराग

आदि                        अंत

घर                           बेघर

बड़ा                          छोटा

शिक्षक                     विद्यार्थी

संतोष                      असंतोष

बचपन                        यौवन

धीरे                              तेज

मोटा                            पतला

निकट                            दूर

अंकुश                        निरंकुश

अकाल                         सुकाल

माता                              पिता

अनुकूल                       प्रतिकूल

अनुरक्ति                        विरक्ति

अनुलोम                          विलोम

अनभिज्ञ                            भिज्ञ

अभिज्ञ                              अनभिज्ञ

आदान                               प्रदान

स्वाधीन             पराधीन

उत्तम               अधम

बहादुर              कायर

डर                     निडर

आलस्य              स्फूर्ति

अमावस्या          पूर्णिमा

यज्ञ                      विज्ञ

अल्पायु              दीर्घायु

आग्रह               दुराग्रह

एकता               अनेकता

लिखित              मौखिक

सगुण                  निर्गुण

क्रय                   विक्रय

आदान                 प्रदान

वरदान              अभिशाप

साक्षर                  निरक्षर

रक्षक                  भक्षक

नूतन                   पुरातन

इच्छा                  अनिच्छा

एक                      अनेक

कोमल                  कठोर

क्रूर                      अक्रूर

औपचारिक          अनौपचारिक

उपन्यास               एकांकी

कृत्रिम                    प्राकृत 

उचित                  अनुचित

राजतंत्र                   गणतंत्र

बेकार                     महत्व

कानूनी                 गैरकानूनी

गुप्त                        प्रकट

उत्तर                       दक्षिण

पूछना                      बताना

भूगोल                      खगोल

प्रश्न                           उत्तर

मिठास                    कड़वाहट

आस्था                    अनास्था

शगुन                     अपशगुन

राजा                         रानी

लघुकाय               विशालकाय

असली                  नकली

सुरुचि                   कुरुचि

मूक                       वाचाल

सक्रिय                    निष्क्रिय

सज्जन                        दुर्जन

समझदार                  नासमझ

दांया                            बायां

संक्षेप                           विस्तार

सुमति                           कुमति

विनम्रता                         घमंड

विधि                              निषेध

समापन                      उद्घाटन

वसंत                           पतझड़

व्यवहारिक             अव्यवहारिक

विधवा                          सधवा

सर्दी                                गर्मी

मोक्ष                               बंधन

पदोन्नति                        पदावनती

प्रवेश                              निकास

रात्रि                                दिवस

श्वेत                                  श्याम

इहलोक                        परलोक

उत्पत्ति                            विनाश

उत्तीर्ण                           अनुत्तीर्ण

उन्मुख                              विमुख

काल                               अकाल

कष्ट                                 आनंद

एक                                  सभी

उत्थान                              पतन

झोपड़ी                            महल

स्वीकार                         अस्वीकार

भूमि                                 अंबर

आकाश                               नभ

आरोही                            अवरोही

 

अधिकतर पूछें गए प्रश्न

1. विलोम शब्द किसे कहते है।

उत्तर: किसी शब्द के ठीक विपरीत शब्द प्रकट करने वाले शब्दों को विलोम शब्द कहा जाता है।विलोम शब्द किन्हीं दो अच्छी या बुरी वस्तुओं की तुलना करने के लिए काफी उपादेय सिद्ध होते हैं। ऐसे शब्दों के प्रयोग से भाषा में निखार आता है।

2. विलोम शब्द का अंग्रजी अनुवाद क्या है?

उत्तर: अंग्रेजी भाषा में विलोम शब्द का अनुवाद एंटोनिम्स (antonyms) शब्द के रूप में होता है।

3. खिलना का विलोम शब्द क्या है?

उत्तर: खिलना का विलोम शब्द मुरझाना है।

4. विलोम शब्द के कितने भेद है?

उत्तर: विलोम शब्द दो प्रकार से बनाए जाते हैं

  1. स्वतंत्र विपरीतार्थक शब्द
  2. उपसर्गों से बने विपरीतार्थक शब्द

स्वतंत्र विपरीतार्थक शब्द – इस प्रकार के विलोम शब्दों की विशेषण शब्दों से किसी प्रकार की समानता नहीं होती है तथा वह विशेषण रूप से मुक्त या स्वतंत्र होती है। 

       उदाहरण – गुण-दोष, जन्म- मृत्यु, असली-   नकली, आज-कल, छोटा-बड़ा।    

उपसर्गों से बने विपरीतार्थक शब्द – इस प्रकार के विलोम शब्द में उपसर्ग लगाकर विलोम शब्द बनाया जाता है। इन शब्दों में उपसर्ग का प्रयोग कर विलोम शब्दों को निर्मित किया जाता है।

5. उपसर्ग से कितने प्रकार के विलोम शब्द बनते हैं?

उत्तर: उपसर्ग से बनने वाले विलोम शब्द भी दो प्रकार के होते हैं –

i)उपसर्गों के योग से बनने वाले विपरीतार्थक शब्द –

ऐसे शब्द जिसमें मूल शब्द के साथ उपसर्ग लगा कर उसके शब्द को उल्टा या विपरीत कर देते है जिससे वह उस शब्द का विलोम शब्द बन जाता है।

ii)उपसर्गों के परिवर्तन से बनने वाले विपरीतार्थक शब्द- ऐसे उपसर्ग शब्द जिसमें उपसर्गों के परिवर्तन या बदलाव से बनता हैं। जिनमें कोई दूसरा उपसर्ग लगाकर विलोम शब्द बनाए जाता है। इसमें शब्द में अलग और विलोम में अलग उपसर्ग लगते हैं।

 

अनेक शब्दों के लिए शब्द

कम से कम शब्दों में किसी बात, घटना या विचार को व्यक्त करने वाले शब्द अनेक शब्दों के लिए प्रयोग एक शब्द को सूची में रखे जाते है। जिस शब्द से इस विचार, बात या घटना का पूर्ण ज्ञान हो जाता है।

ये शब्द अपने पूरे विचार और वाक्य का अर्थ अपने अंदर रखते है।

अनेक शब्दों के लिए शब्द

ऐसे अनेक विचार है जिनके अनेक शब्दों के लिए एक शब्द के प्रयोग किया जाता है–:

  1. ईश्वर को मानने वाला – आस्तिक
  2. ईश्वर को न मानने वाला – नास्तिक
  3. परलोक से संबंधित – पारलौकिक
  4. जिसके ह्रदय में ममता न हो– निर्मम
  5. जिसका जन्म पहले हुआ हो – अग्रज
  6. जो व्यर्थ की बातें करता हो – वाचाल
  7. जिसका कोई मूल्य नहीं हो – अमूल्य
  8. जिसका जन्म बाद में हुआ हो – अनुज
  9. अधिक पढ़ी लिखी महिला – विदुषी
  10. पशुओं के समान व्यवहार करने वाला – पाशविक
  11. जो सभी को एक समान भाव से देखे – समदर्शी
  12. उपकार मानने वाला – कृतज्ञ
  13. जिसका जन्म ऊंचे कुल में हुआ हो – कुलीन
  14. जो कठिनाई से समझ में आए – दुरबोध
  15. जिसकी तुलना न की का सके – अतुलनीय
  16. परिश्रम के बदले प्राप्त धन – पारिश्रमिक
  17. जो कठिनाई से जीता जा सके – दुर्जेंय
  18. जो देखने में प्रिय लगे – प्रियदर्शी
  19. जिसके समान कोई दूसरा न हो – अद्वितीय
  20. दोपहर का समय – मध्याह्न
  21. किसी के पास रखी हुई दूसरे की वस्तु – धरोहर
  22. बड़ा बनने की इच्छा रखने वाला – महत्वकांक्षी
  23. एक ही कोख से जन्म लेने वाला– सहोदर
  24. एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना या ले जाना – विस्थापन
  25. एक वस्तु जो नाशवान हो – नश्वर
  26. जंगल में लगने वाली आग – दावानल
  27. जो अधिक व्यय न करता हो – मितव्ययी
  28. जो पृथ्वी से संबंधित हो – पार्थिव
  29. जिसके पास कुछ भी न हो – अकिंचन
  30. जिस पर हमला न किया जा सके – अनाक्रांत
  31. जिसका आदि न हो – अनादि
  32. जिसका अन्त न हो। – अनन्त
  33. जो परीक्षा में पास न हो – अनुत्तीर्ण
  34. जो परीक्षा में पास हो – उत्तीर्ण
  35. जिसपर मुकदमा हो। – अभियुक्त
  36. जिसका अपराध सिद्ध हो – अपराधी
  37. जिस पर विश्वास न हो – अविश्वसनीय
  38. जिसका वर्णन न हो सके – अवर्णनी
  39. जो कभी न मरे – अमर
  40. जिसका कोई शत्रु न हो – अजातशत्रु
  41. जिसे डर या भय न हो– निडर
  42. जिसके आने की तिथि ज्ञात न हो – अतिथि
  43. नीचे लिखा हुआ –: निम्नलिखित
  44. ऊपर लिखा हुआ –: उपरोक्त या उपरलिखित
  45. जिस पर विजय प्राप्त कर ली गई हो – विजित
  46. किसी चीज की मनाही होना – वर्जित
  47. अनुवाद करने वाला –: अनुवादित
  48. अपने आप को मारने वाला – आत्महत्या
  49. जो पढ़ा लिखा न हो –: अनपढ़
  50. जिसकी संख्या सीमित न हो– असीमित
  51. जो परीक्षा बहुत कठिन हो – अग्निपरीक्षा
  52. बिना विचार किए विश्वास करना –: अंधविश्वास
  53. जिसका कोई सहारा न हो –: अनाथ
  54. जो थोड़ा जनता हो –: अल्पज्ञ
  55. जिस पुस्तक में आठ अध्याय हो – अष्टअध्यायी
  56. किसी नई चीज की खोज करना – अविष्कार
  57. सबसे आगे रहने वाला – अग्रणी
  58. अधिक बढ़ा – चढ़ा कर कही जाने वाली बात – अतिशयोक्ति
  59. जो छूने योग्य न हो–: अछूत
  60. बहुत कम बरसात होना –: अल्पवृष्टि
  61. जिसका कोई जवाब न हो –: लाजवाब
  62. जो बीत गया –: अतीत
  63. जो स्थिर न हो –: अस्थिर
  64. आगे आने वाला –: आगामी
  65. सेना के ठहरने का स्थान –: छावनी
  66. जिस पर विश्वास न हो –: अविश्वसनीय
  67. जो साध्य न हो –: असाध्य
  68. जिसका अनुभव किया गया हो –: अनुभूत
  69. जिसके बारे में अनुमान किया गया हो –: अनुमानित
  70. जो जन्म लेते ही मर जाए –: आदंडपात
  71. जो किसी पर आश्रित न हो –: अनाश्रित
  72. जो बहुत कुछ जनता हो –: बहुज्ञ
  73. जिसकी बुद्धि बुरी हो – कुबुद्धि
  74. दो दिशाओं के बीच की दिशा – उपदिशा
  75. जिसका पति मर गया हो – विधवा
  76. हाथ से लिखी पुस्तक – पांडुलिपि
  77. अच्छे आचरण वाला – सदाचार
  78. अधिकार में आया हुआ – अधिकृत
  79. कुछ लाभ पाने की इच्छा – लिप्सा 
  80. जिसके हाथ में चक्र हो – चक्रपाणि

अधिकतर पूछें गए प्रश्न–:

1. वाक्यांश के लिए एक शब्द का प्रयोग क्यों किया जाता है?

उत्तर: कम से कम शब्दों में किसी बात, घटना या विचार को व्यक्त करने वाले शब्द अनेक शब्दों के लिए प्रयोग एक शब्द को सूची में रखे जाते है। जिस शब्द से इस विचार, बात या घटना का पूर्ण ज्ञान हो जाता है।

ये शब्द अपने पूरे विचार और वाक्य का अर्थ अपने अंदर रखते है।

जैसे–:

जिसका कोई शत्रु न हो – अजातशत्रु

जिसे डर या भय न हो– निडर

जिसके आने की तिथि ज्ञात न हो – अतिथि

नीचे लिखा हुआ –: निम्नलिखित

ऊपर लिखा हुआ –: उपरोक्त या उपरलिखित

जिस पर विजय प्राप्त कर ली गई हो – विजित

2. पीछे– पीछे चलने वाले के लिए एक शब्द बताइए?

उत्तर: पीछे – पीछे चलने वाले के लिए एक शब्द अनुगामी प्रयोग किया जाएगा। क्योंकि यह एक शब्द पूरे वाक्य का अर्थ बताता है। काम शब्दों या एक शब्द के माध्यम से पूरी वाक्य की बात को बताया गया है।

3. जो हर हाल में हो जाए वाक्य के लिए एक शब्द क्या होगा?

उत्तर: जो हर हाल में हो जाए वाक्य के लिए एक शब्द अवश्यंभावी का प्रयोग किया जाएगा। यह शब्द अपने अंदर इस पूरे वाक्य का अर्थ समाहित किए हुए है। एक शब्द से पूरे वाक्य को समझाया गया है।

4. अपनी इच्छा से चलने वाला वाक्य के लिए एक शब्द का प्रयोग करें?

 उत्तर: अपनी इच्छा से चलने वाला वाक्य के एक शब्द स्वेच्छाचारी का प्रयोग किया जाएगा। इस एक शब्द से पूरे वाक्य के बारे में पता चलता है। इसमें एक शब्द के प्रयोग से सारे वाक्य का अर्थ बताया गया है।

5. इंद्रियों को जीतने वाला वाक्य के लिए किस एक शब्द का प्रयोग किया जाएगा?

उत्तर: इंद्रियों को जीतने वाला वाक्य के लिए एक शब्द जितेंद्रिय शब्द का प्रयोग किया जाएगा। यह एक शब्द इस पूरे वाक्य के अर्थ को बताने में सक्षम है।