राष्ट्र निर्माण में युवाओं का योगदान

राष्ट्र को विकसित बनाने में युवाओं की सर्वाधिक महत्वपूर्ण भागीदारी हो सकती है। आगामी 25 वर्षो में भारत को विकसित देशों की श्रेणी में शामिल करने के लिए युवाओं को आगे आना होगा। प्रधानमंत्री का भाषण आजादी के अमृत काल में युवाओं के लिए पथ-प्रदर्शक का कार्य करेगा।

जिस तरह से इंजन को चालू करने के लिए इंधन जिम्मेदार होता है; ठीक उसी तरह युवा राष्ट्र के लिए है। यह राष्ट्र की प्रेरक शक्ति के रूप में कार्य करता है।किसी भी राष्ट्र को प्रौद्योगिकियों, शोध, विज्ञान, चिकित्सा, यानी आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक के संदर्भ में प्रगति और विकास के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है। जब युवा अपने प्रयासों के साथ ईमानदारी से यही काम करता हैं, तो इसे चिह्नित किया जाता है। भारत में युवाओं की सबसे बड़ी संख्या है, जिन्हें यदि बेहतर तरह से पोषित किया जाये और अगर ये अपना प्रयास सही दिशा में लगाते हैं, तो यह देश पूरी दुनिया में सबसे उत्कृष्ट बन जायेगा।

lead magnet

नेल्सन मंडेला की एक ख़ूबसूरत कहावत है कि, “आज के युवा कल के नेता हैं” जो हर एक पहलू में सही लागू होता है। युवा राष्ट्र के किसी भी विकास की नींव रखता है। युवा एक व्यक्ति के जीवन में वह मंच है, जो सीखने की कई क्षमताओं और प्रदर्शन के साथ भरा हुआ है।

युवाओं की शक्ति राष्ट्र का सर्वांगीण विकास और भविष्य, वहां रहने वाले लोगों की शक्ति और क्षमता पर निर्भर करता है और इसमें प्रमुख योगदान उस राष्ट्र के युवाओं का है।युवा राष्ट्र का संरचनात्मक और कार्यात्मक ढांचा है। हर राष्ट्र की सफलता का आधार उसकी युवा पीढ़ी और उनकी उपलब्धियाँ होती हैं। राष्ट्र का भविष्य युवाओं के सर्वांगीण विकास में निहित है। इसलिए युवा राष्ट्र निर्माण में सर्वोच्च भूमिका निभाते हैं।

Contribution of youth in nation building

हमारे ऐतिहासिक समय से यह देखा जा सकता है कि हमारे राष्ट्र के लिए कई परिवर्तन, विकास, समृद्धि और सम्मान लाने में युवा सक्रिय रूप से शामिल हुए हैं। इस सबका मुख्य उद्देश्य उन्हें एक सकारात्मक दिशा में प्रशिक्षित करना है। युवा पीढ़ी के उत्थान के लिए कई संगठन काम कर रहे हैं क्योंकि वे बड़े होकर राष्ट्र निर्माण में सहायक बनेंगे। गरीब और विकासशील देश अभी भी युवाओं के समुचित विकास और शिक्षण में पिछड़े हुए हैं।

एक बच्चे के रूप में प्रत्येक व्यक्ति, अपने जीवन में कुछ बनने का सपने देखता है, दूसरे शब्दों में, हम कह सकते हैं कि कुछ उद्देश्य होना चाहिए। बच्चा अपनी शिक्षा पूरी करता है और कुछ हासिल करने के लिए कुछ कौशल प्राप्त करता है। इसलिए यह राष्ट्र की प्रगति के प्रति उस व्यक्ति का सकारात्मक दृष्टिकोण है।

किसी भी राष्ट्र के निर्माण में युवा वर्ग एक अहम भूमिका निभाता है। युवा वर्ग शारीरिक और मानसिक रूप से किसी भी कार्य को कुशलता पूर्वक करने में सक्षम होता है। हर व्यक्ति जीवन के इस दौर से गुजरता है। युवाओं को उच्च स्तर की शिक्षा प्राप्त करनी चाहिए और विभिन्न क्षेत्रो में अपना योगदान देना चाहिए।किसी भी राष्ट्र में कुल जनसंख्या का 20-30 प्रतिशत हिस्सा युवा होते हैं। किसी भी राष्ट्र को विकसित राष्ट्र बनाने में युवा वर्ग का सर्वाधिक योगदान रहा है। राष्ट्र की प्रगति विज्ञान, प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य, प्रबंधन और अन्यक्षेत्रों में विकासपर निर्भर होती है।। इन सभी मानदंडों को पूरा करने के लिए सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक आधार पर युवाका सशक्तीकरण आवश्यक है।युवा राष्ट्र का संरचनात्मक और कार्यात्मक ढांचा है। हर राष्ट्र की सफलता का आधार उसकी युवा पीढ़ी और उनकी उपलब्धियाँ होती हैं। राष्ट्र का भविष्य युवाओं के सर्वांगीण विकास में निहित है। इसलिए युवा राष्ट्र निर्माण में सर्वोच्च भूमिका निभाते हैं। आज इस विषय पर अलग अलग शब्द सीमा में हम आपके लिए कुछ निबंध लेकर आये हैं जिनके माध्यम से आप इस विषय को बेहतर ढंग से समझ पायेंगे।

एक युवा मन प्रतिभा और रचनात्मकता से भरा हुआ है। यदि वे किसी मुद्दे पर अपनी आवाज उठाते हैं, तो परिवर्तन लाने में सफल होते हैं।

युवाओं को राष्ट्र की आवाज माना जाता है। युवा राष्ट्र के लिए कच्चे माल या संसाधन की तरह होते हैं। जिस तरह के आकार में वे हैं, उनके उसी तरीके से उभरने की संभावना होती है।

राष्ट्र द्वारा विभिन्न अवसरों और सशक्त युवा प्रक्रियाओं को अपनाया जाना चाहिए, जो युवाओं को विभिन्न धाराओं और क्षेत्रों में करियर बनाने में सक्षम बनाएगा।

युवा लक्ष्यहीन, भ्रमित और दिशाहीन होते हैं और इसलिए वे मार्गदर्शन और समर्थन के अधीन होते हैं, ताकि वे सफल होने के लिए अपना सही मार्ग प्रशस्त कर सकें।

युवा हमेशा अपने जीवन में कई असफलताओं का सामना करते हैं और हर बार ऐसा प्रतीत होता है जैसे कि एक पूर्ण अंत है, लेकिन वो फिर से कुछ नए लक्ष्य के साथ खोज करने के लिए एक नए दृष्टिकोण के साथ उठता है।

अतः युवा पीढ़ी के जहाँ समाज के प्रति दायित्व हैं, वहीँ अपने जीवन निर्माण के प्रति उसे कुछ सावधानी बरतना अपेक्षित हैं. 

पहले युवक युवती स्वयं को सुधारें, स्वयं को शिक्षित करे, स्वयं को जिम्मेदार नागरिक बनें और स्वयं को चरित्रवान बनाएं. तभी वे समाज की प्रगति में सहायक हो सकते हैं.समाज में शान्ति और व्यवस्था बनाए रखना उनका दायित्व हैं. समाज विरोधी तत्वों की रोकथाम युवकों के सहयोग से ही संभव हैं.वे हड़ताल, आगजनी, तोड़ फोड़ आदि को रोके, ताकि सामाजिक वातावरण बिगड़े नहीं, समाज में धर्म व नीति की मर्यादाओं को बनाये रखना भी उनका कर्तव्य हैं. अच्छे चरित्र के अभाव में समाज को सुखमय नहीं बनाया जा सकता हैं.छात्र जीवन में उन्हें चाहिए कि वे निष्ठापूर्वक अध्ययन करे, गलत साहित्य न पढ़े. संभव हो तो गलत साहित्य के प्रकाशन को भी रोके. समाज में बेईमानी और भ्रष्टाचार करने वालों के विरुद्ध संगठित होकर कार्य करें.इसी भांति युवकों को चाहिए कि वे थोड़े से स्वार्थ के लिए राजनीति के कुचक्रो में न फसे, पश्चिमी भौतिकवाद के प्रभाव से स्वयं को बचाकर रखे.

lead magnet

उक्त सभी पक्षों को व्यावहारिक रूप देकर ही युवा पीढ़ी समाज के प्रति अपने दायित्वों को पूरा कर सकती हैं. इसी दशा में समाज सुखमय बन सकता हैं.नवयुवक भारत की भावी आशाएं हैं, उन्हें यथासम्भव समाज की अपेक्षाओं को पूरा करने का प्रयत्न करना चाहिए.

प्रश्न/उत्तर

प्रश्न 1 भारत के युवा से आप क्या समझते हैं? 

उत्तर: युवा किसी राष्ट्र के विकास के आधार हैं। वे राष्ट्र के सबसे ऊर्जावान भाग हैं और इसलिए उनसे बहुत उम्मीदें हैं। सही मानसिकता और क्षमता के साथ युवा राष्ट्र के विकास में योगदान कर सकते हैं और इसे आगे बढ़ा सकते हैं। युवा ऊर्जा से भरी नदी की तरह है, जिसके प्रवाह को एक सही दिशा की आवश्यकता है।

 प्रश्न 2. युवा हमाराभविष्य कैसे बदल सकता है? 

उत्तर: युवा शक्ति देश और समाज की रीढ़ होती है। युवा देश और समाज को नए शिखर पर ले जाते हैं। युवा देश का वर्तमान हैं, तो भूतकाल और भविष्य के सेतु भी हैं। युवा गहन ऊर्जा और उच्च महत्वाकांक्षाओं से भरे हुए होते हैं। उनकी आंखों में भविष्य के इंद्रधनुषी स्वप्न होते हैं। समाज को बेहतर बनाने और राष्ट्र के निर्माण में सर्वाधिक योगदान युवाओं का ही होता है। युवा बेहतर भविष्य के लिए मतदान के माध्यम से ईमानदार और विकासपरक सोच वाले प्रतिनिधि को चुनने और भ्रष्ट लोगों का सामाजिक दुत्कार को पहली सीढ़ी मानते हैं। समाज में तेजी से आ रहे बदलाव के प्रति बड़ी संख्या में युवाओं का नजरिया शार्टकट की बजाय कर्म और श्रम के माध्यम से सफलता प्राप्त करने की ओर होना जरूरी है।

प्रश्न 3. युवा समाज में कैसे योगदान दे सकते हैं?

उत्तर: जब युवा लोग अपनी संपत्ति को सहायक संसाधनों और दूसरों के साथ बातचीत करने के अवसरों के साथ जोड़ते हैं, तो वे अपने समुदायों में सकारात्मक योगदान देते हैं। युवा स्वयंसेवा और आउटरीच के माध्यम से अपने समुदायों में लोगों के विविध समूहों से जुड़ सकते हैं।

प्रश्न 4.युवा विकास के उदाहरण क्या हैं?

उत्तर: इसमें युवाओं की अभिव्यक्ति, सामुदायिक सेवा में युवाओं की भागीदारी और सरकार के विभिन्न स्तरों पर युवाओं के लिए निर्णय लेने के अवसर पैदा करना शामिल हो सकता है। इसमें ऐसे कार्यक्रम भी शामिल हो सकते हैं जो युवा योगदान के लिए संरचना प्रदान करते हैं।

प्रश्न 5.सकारात्मक युवा विकास के 5 सी क्या हैं?

उत्तर: लर्नर (2009) ने PYD को एक ऐसी प्रक्रिया के रूप में वर्णित किया है जो “5Cs” को बढ़ावा देती है: क्षमता, आत्मविश्वास, कनेक्शन, चरित्र और देखभाल । लर्नर (2009) ने संपन्न युवा लोगों को ऐसे व्यक्तियों के रूप में वर्णित किया जो सक्रिय रूप से सकारात्मक गुणों का पोषण, खेती और विकास करते हैं।

सच्चा धर्म

धर्म शब्द संस्कृत भाषा के ‘धृ’ से बना है जिसका अर्थ है किसी वस्तु को धारण करना अथवा उस वस्तु के अस्तित्व को बनाये रखना। धर्म का सामान्य अर्थ कर्तव्य है। इसीलिए व्यक्ति के जीवन से संबंधित अनेक आचरणों की एक संहिता है जो उसके कर्तव्यों और व्यवहारों को नियंत्रित और निर्देशित करती है। 

डेविस के अनुसार धर्म महाराज समाज का एहसास सर्वव्यापी स्थाई और सास्वत तत्व है जिसे बिना समझे समाज के रूप को बिल्कुल ही नहीं समझा जा सकता है।

टायलर के अनुसार धर्म का अर्थ किसी आध्यात्मिक शक्ति में विश्वास करना है।

धर्मा मानवोपरी शक्तियों के प्रति अभिवृत्तियां हैं, धर्म पवित्र वस्तुओं से संबंधित विश्वासों और आचरणों की समग्रता है जो इन पर विश्वास करने वाले को एक नैतिक समुदाय के रूप में संयुक्त करती है। धर्म के समाजशास्त्रीय क्षेत्र के अंतर्गत एक समूह में अलौकिक से संबंधित उद्देश्य पूर्ण विश्वास तथा इन विश्वासों से संबंधित बाहरी व्यवहार, भौतिक वस्तुएं और प्रतीत आते हैं।धर्म एक ऐसा संयोजक बल है जो मानव संगठन के प्रत्येक पहलू को एकीकृत कर सकता है और सच्चे धर्म के बिना कोई मानव संतोषजनक जीवन नहीं जी सकता है, सच्चा धर्म खुद के शांतिपूर्ण स्थापित करने में सहायक होता है, हिंदू धर्म कर्तव्यों का सार है।दूसरों के साथ ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए जिससे वह दर्दनाक हो, जैन धर्म के अनुसार हमें सुख और शांति के लिए सभी जीवो का सम्मान करना चाहिए। सभी धर्मों के उत्पत्ति मानव समाज की आवश्यकता के अनुसार हुई है, ताकि सभी लोग एक-दूसरे के साथ संगठित हो सके तथा अपने रीति-रिवाजों के बेड़ियों को तोड़कर उनसे छुटकारा पा सके, धर्म का मुख्य उद्देश्य सत्य को सामने लाना था।

मानवता ही सच्चा धर्म है, प्रत्येक मानव चाहे वह किसी भी धर्म का हो, किसी भी जाति का हो, किसी भी स्थान पर रहने वाला हो, सभी का एक मात्र उद्देश्य होना चाहिए मानव एकता, सच्चा धर्म मानव को एक दूसरे के प्रति सहयोग का भावना रखना ही होता है, हमें एक दूसरे का सहयोग करना चाहिए और प्रत्येक व्यक्ति को एक समान मानना चाहिए, यही सच्चा धर्म होता है।

सच्चा धर्म मानवता है, धर्म में किसी भी प्रकार की बैर भावना नहीं होती, धर्म हमें किसी भी प्रकार का बैर नहीं सिखाता है, धर्म एकता की शिक्षा देता है क्योंकि सभी मनुष्य ईश्वर की संतान है , सभी धर्मों के लोगों में किसी भी प्रकार की असमानताएं नहीं होती है, सच्चा धर्म मित्रता की शिक्षा देता है, शत्रुता की नहीं। हम सभी मानव जाति को एक सच्चे धर्म का पालन करना चाहिए और अपने जीवन में मित्रता की शिक्षा को अपनाना चाहिए, तथा किसी से भी शत्रुता नहीं करनी चाहिए। हमारे भारत देश की महानता उसके विशाल जनसंख्या अर्थात भू- क्षेत्र के कारण नहीं है ,बल्कि उसके भव्य और अनुकरणीय उदार परंपराओं के कारण है। हमारे भारत देश में मानवीय एकता का आदर्श उपस्थित है, हमारे भारत भूमि में अनेक प्रकार के भाषाएं, वेशभूषा तथा विचार, चिंतन और राष्ट्रीयता के सूत्र हैजिनमें मानव के एकता का आदर्श उपस्थित है।

हर धर्म में बहुत तरह की प्रक्रिया की जाती हैं, पूजा पाठ, कर्मकांड, आरती प्रार्थना, नमाज, यज्ञ, हवन आदि। धार्मिक क्रियाओं में पवित्र पदार्थों का उपयोग किया जाता है, सभी धर्मों में अनुष्ठान और कर्मकांड पाए जाते हैं। सभी धर्म में अलौकिक शक्ति को प्रसन्न करने और उसके क्रोध से बचने के लिए प्रार्थना पूजा और आराधना किया जाता है।

धर्म मे तर्क का अभाव पाया जाता है, यह भावना और विश्वास पर आधारित होता है। धर्म से संबंधित सभी वस्तुओं, पुस्तकों और क्रिया आदि को पवित्र माना जाता है। धर्म का संबंध हमारी भावनाओं एवं श्रमिकों से अलौकिक शक्ति में विश्वास, श्रद्धा, भक्ति, प्रेम, आदर आदि की भावनाएं और संवेग से संबंधित होता है।संसार में अनेक धर्म प्रचलित हैं, प्रत्येक देश का अपना धर्म है, सभी धर्म ने मानव को भाईचारे और इंसानियत के प्रति जागरूक किया है, सभी धर्मों का उद्देश्य मानव से प्यार करना, सभी के प्रति अच्छा आचरण करना, सहनशील बनना, जीवन के प्रति उदार बनना, सभी प्राणियों के प्रति दया भाव रखना, आदि भाव को धर्म सिखाता है।

हमारे सबसे पुराने धर्मों में से हिंदू धर्म सबसे पुराना धर्म है, हिंदू धर्म के बाद इस्लाम और ईसाई धर्म का जन्म हुआ। हमारे भारत देश में जितने धर्म है उतने विश्व में कहीं भी नहीं है, जिन लोगों ने हिंदू धर्म के जटिलताओं को स्वीकार नहीं किया उन्होंने अपना धर्म अलग से ही बना लिया, तथा लोगों में अपने अपने धर्म के प्रति रुचि पैदा करने की कोशिश की जाने लगी, इन सभी धर्मों में जैन और बौद्ध धर्म प्रमुख हैं।

बौद्ध धर्म तथा जैन धर्म का विकास हिंदू धर्म के अंतर्गत हुआ, पारसी धर्म मैदान में कन्फ्यूशियस धर्म चीन में प्रचलित है, तथा इस्लाम धर्म भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, ईरान तथा अरब देशों के अतिरिक्त संसार के लगभग सभी देशों में प्रचलित है।

सच्चा धर्म हम सभी को जीवन में एक दूसरे का सहयोग करने का सीख देता है, हमें सदैव एक दूसरे का सहयोग करना चाहिए और मानव के प्रति द्वेष भावना को नहीं रखना चाहिए, तथा जीवन मेंक्रोध का त्याग करना चाहिए, सच्चा धर्म हमारे जीवन के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है, सच्चा धर्म हमें जीवन जीने का सही मार्ग दिखाता है और सच्चा धर्म ही मानवता की सर्वश्रेष्ठ धर्म है। हमें प्रत्येक धर्म मानवता का पाठ पढ़ाता है उदारता के महत्व के बारे में बताता है, हम सभी मानव जाति को सदैव सच्चाई के मार्ग पर चलना चाहिए और अपने जीवन में एक दूसरे के प्रति सहयोग की भावना रखना चाहिए तथा दूसरों को भी सहयोग की भावना के लिए जागरूक करना चाहिए।

 

अधिकतर पूछे जाने वाले प्रश्न 

प्रश्न 1. सच्चा धर्म क्या होता हैं? 

उत्तर- सच्चा धर्म मानवता है, धर्म में किसी भी प्रकार की बैर भावना नहीं होती, धर्म हमें किसी भी प्रकार का बैर नहीं सिखाता है, धर्म एकता की शिक्षा देता है क्योंकि सभी मनुष्य ईश्वर की संतान है । 

प्रश्न 2. धर्म का शाब्दिक अर्थ क्या हैं? 

उत्तर- धर्म शब्द संस्कृत भाषा के ‘धृ’ से बना है जिसका अर्थ है किसी वस्तु को धारण करना अथवा उस वस्तु के अस्तित्व को बनाये रखना। धर्म का सामान्य अर्थ कर्तव्य है। इसीलिए व्यक्ति के जीवन से संबंधित अनेक आचरणों की एक संहिता है जो उसके कर्तव्यों और व्यवहारों को नियंत्रित और निर्देशित करती है। 

प्रश्न 3. सबसे पुराना धर्म कौन सा हैं? 

उत्तर- हमारे सबसे पुराने धर्मों में से हिंदू धर्म सबसे पुराना धर्म है, हिंदू धर्म के बाद इस्लाम और ईसाई धर्म का जन्म हुआ। हमारे भारत देश में जितने धर्म है उतने विश्व में कहीं भी नहीं है, जिन लोगों ने हिंदू धर्म के जटिलताओं को स्वीकार नहीं किया उन्होंने अपना धर्म अलग से ही बना लिया, तथा लोगों में अपने अपने धर्म के प्रति रुचि पैदा करने की कोशिश की जाने लगी, इन सभी धर्मों में जैन और बौद्ध धर्म प्रमुख हैं।

प्रश्न 4. सच्चा धर्म क्या सीख देता हैं? 

उत्तर- सच्चा धर्म हम सभी को जीवन में एक दूसरे का सहयोग करने का सीख देता है, हमें सदैव एक दूसरे का सहयोग करना चाहिए और मानव के प्रति द्वेष भावना को नहीं रखना चाहिए, तथा जीवन मेंक्रोध का त्याग करना चाहिए, सच्चा धर्म हमारे जीवन के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है, सच्चा धर्म हमें जीवन जीने का सही मार्ग दिखाता है और सच्चा धर्म ही मानवता की सर्वश्रेष्ठ धर्म है।

प्रश्न 5. मानवता सबसे बड़ा धर्म क्यों है? 

उत्तर- मानवता ही सर्वश्रेष्ठ धर्म है। हमें प्रत्येक धर्म मानवता का पाठ पढ़ाता है उदारता के महत्व के बारे में बताता है, हम सभी मानव जाति को सदैव सच्चाई के मार्ग पर चलना चाहिए और अपने जीवन में एक दूसरे के प्रति सहयोग की भावना रखना चाहिए तथा दूसरों को भी सहयोग की भावना के लिए जागरूक करना चाहिए।

राष्ट्रीय पक्षी

राष्ट्रीय पक्षी का अर्थ है एक ऐसा पक्षी जो हमारे देश का प्रतीक है। भारत में कई सारे सुंदर-सुंदर पक्षी पाए जाते हैं। भारत में तक़रीबन 1,200 से अधिक पक्षियों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं। बात सिर्फ राष्ट्र पक्षी की करें तो भारत का राष्ट्रीय पक्षी मोर को माना जाता है। 26 जनवरी 1963 को भारत का राष्‍ट्रीय पक्षी घोषित कर दिया गया क्‍योंकि यह शिष्टता और सुंदरता का प्रतीक है। मोर केवल एक सुंदर पक्षी ही नहीं बल्कि इसे हिंदू धर्म की कथाओं में भी ऊँचा दर्जा दिया गया है।

मोर दिखने में बहुत ही सुन्दर पक्षी है। सभी पक्षियों में सबसे बड़ा मोर पक्षी ही है। मोर भारत के हर जगह में पाए जाते हैं। मोर में लगभग सभी रंगों का समावेश होता हैं। मोर की पंखो का रंग हरा होता है और मोर की पंखों में चाँद जैसी कई आकृतियाँ बनी हुई है जिसमें कई रंग सुसज्जित हैं।ये हमेशा ऊँचे स्थानों पर ही बैठना पसंद करते हैं। हमें मोर पीपल, नीम और बरगद के पेड़ों पर देखने के लिए आसानी से मिल जायेंगे। मोर के मुँह और गले का रंग बैंगनी होता है।

मोर के पंख मखमल के कपड़े जैसे कोमल और बहुत सुन्दर होते हैं। मोर की आंखों का आकार छोटा होता है। मोर के पैरों का रंग पूरा सफ़ेद तो नहीं होता है, लेकिन सफ़ेद में थोडा मैला सा होता है। मोर हमारा राष्ट्रिय पक्षी है, हमें इसकी सुरक्षा करनी चाहिए।

मोर की सुन्दरता को देखकर ही कवि रविन्द्रनाथ ने कहा था– “हे मोर तू इस मृत्युलोक को स्वर्ग के समान बनाने के लिए आया है।”

मोर एक शर्मीला पक्षी है, जो लोगों से दूर रहना पसंद करता है। मोर की आवाज कर्करी होती है जो दो किलोमीटर दूर से भी सुनाई दे सकती है। मोर पेड़ की डालियों पर रहना बहुत पसंद करते हैं। भारत में लगभग सभी जगहों पर मोर पाए जाते हैं। इसमें मुख्य स्थान राजस्थान, उतरप्रदेश और मध्यप्रदेश है। इनके के पंख लम्बे और बड़े होते हैं। इसी कारण मोर ज्यादा ऊँचा उड़ नहीं पाते। मोर जमीन पर चलना पसंद करते हैं। मोर की पंखों में छोटी छोटी पंखुडियाँ होती हैं। पंख के अंतिम छोर पर चाँद जैसी बैंगनी रंग की आकृतियाँ होती है, जो दिखने में बहुत ही सुन्दर होती हैं। इनके पंख अन्दर से खोखले होते हैं। मोर बारिश होती है तब बहुत ही खुश होते हैं और ये अपनी ख़ुशी पंख फैलाकर और नाचकर व्यक्त करते हैं। जब मोर पंख फैलाते हैं तो इसकी आकृति आधे चाँद के सम्मान होती है जो हर किसी को पसंद आती है। मोर को प्राकृतिक आपदा का पहले से ही आभास हो जाता है और ये पहले ही हमें संकेत दे देते हैं। जब भी कोई प्राकृतिक आपदा आने वाली होती है तो ये जोर जोर से आवाज करने लगते हैं।

जब बरसात का मौसम होता है तो काले बादलों के नीचे मोर अपने पंख फैलाकर नाचना बहुत पसंद करते हैं। मोर सभी पक्षियों का राजा होने कारण भगवान ने भी इसके सिर पर एक मुकुट के रूप में कलगी लगाईं है। भारत के धार्मिक ग्रंथों में मोर को पवित्र पक्षी माना जाता है। मोर सभी के लिए आकर्षण का केंद्र है।मोर का वजन ज्यादा होने और पंखों का आकर बड़ा होने के कारण ये ज्यादा उड़ नहीं पाते। इसलिए मोर ज्यादातर जमीन पर चलना पसंद करते हैं। इसकी गर्दन लम्बी होती है और इसका रंग नीला होता है। मोर ज्यादातर चमकीले नील और हरे रंग के होते हैं। मोर की पंखों पर चाँद के समान आकृति बनी होती है जो दिखने में बहुत ही खूबसूरत होती है। मोर के पैर लम्बे होते हैं।

इनकी की चोंच भूरे रंग की होती है। पैरों का रंग पूरी तरह से सफ़ेद नहीं होता मैला सा होता है। मोर के सभी अंग दिखने में सुंदर होते हैं। लेकिन मोर के पैर दिखने में सुन्दर नहीं होते हैं। मोर के पैर बहुत मजबूत होते हैं और इन पर कांटा बना होता है जो मोर की लड़ाई करते समय बहुत मदद करता है।मोर जितना खूबसूरत होता है उतनी मोरनी खुबसूरत नहीं होती है। मोरनी दिखने में भी इतनी आकर्षक नहीं होती जितना मोर होता है। ये मोर से आकार में छोटी होती है। मोर और मोरनी में ज्यादा तो अंतर नहीं होता लेकिन इनको आसानी से पहचाना जा सकता है।

मोरनी के शरीर की लम्बाई लगभग 85 सेंटीमीटर तक हो सकती है। मोर के जैसी इसके सर पर भी एक छोटी सी कलगी होती है। मोरनी के शरीर का निचला भाग बादामी रंग और हल्का सफ़ेद होता है। मोर के पंखों की लम्बाई लगभग 1 मीटर तक होती है और मोर की उम्र 20 से 25 वर्ष तक होती है। मोर खाने में सभी प्रकार का भोजन लेता है। इसी कारण ये सर्वाहारी है। मोर फल और सब्जियों को खाने के साथ साथ यह चना, गेहूँ, बाजरा और मकई भी लेता है और मोर खेतों में हानिकारक कीड़ों, चूहों, दीमक, छिपकली और साँपों को भी अपना भोजन बनाता है। खेतों में हानिकारक कीड़ों को खाने के कारण ये किसानों का सच्चा मित्र होता है। मोर ज्यादातर जंगलों में ही रहते हैं। लेकिन कभी कभी ये अपने भोजन की तलाश करते हुए आबादी में भी आ जाते हैं।एक नर मोर दो से पाँच मादा मोर के साथ सम्बन्ध बनाता है। इनमें से प्रत्येक मादा मोर 6 से 7 अंडे देती है। मादा मोर अपने अंडे जमीन में गड्डा करके जमीन के अन्दर देती है। मादा मोर साल में दो बार अंडे देती है। अण्डों से बच्चों को निकलने में 25 से 30 दिन का समय लगता है। इनमें से कुछ बच्चे ही बड़े हो पाते हैं। क्योंकि कुछ जब छोटे होते हैं तो जंगली जानवरों का शिकार बन जाते हैं।

पूरे संसार में मोर की तीन प्रजातियाँ पाई जाती हैं। जिसमें भारत में पाई जाने वाली प्रजाति सबसे सुन्दर प्रजाति है। इस प्रजाति के मोर ज्यादातर भारत में ही पाए जाते हैं।मोर को विश्व का सबसे सुंदर पक्षी भी कहा जा सकता है। जैसी मोर की सुन्दरता होती है किसी और पक्षी की नहीं हो सकती है। मोर जितना सुंदर होता है उतना ही सुंदर नृत्य भी करता है।

 

अधिकतर पूछे जाने वाले प्रश्न

प्रश्न 1. मोर को राष्ट्रीय पक्षी क्यों माना गया है? 

उत्तर- राष्ट्रीय पक्षी मोर को माना जाता है। 26 जनवरी 1963 को भारत का राष्‍ट्रीय पक्षी घोषित कर दिया गया क्‍योंकि यह शिष्टता और सुंदरता का प्रतीक है। मोर केवल एक सुंदर पक्षी ही नहीं बल्कि इसे हिंदू धर्म की कथाओं में भी ऊंचा दर्जा दिया गया है।मोर दिखने में बहुत ही सुन्दर पक्षी है। सभी पक्षियों में सबसे बड़ा मोर पक्षी ही है। मोर भारत के हर जगह में पाएं जाते हैं।

प्रश्न 2.  मोर की कितनी प्रजातियां होती है? 

उत्तर- पूरे संसार में मोर की तीन प्रजातियाँ पाई जाती हैं। जिसमें भारत में पाई जाने वाली प्रजाति सबसे सुन्दर प्रजाति है। इस प्रजाति के मोर ज्यादातर भारत में ही पाए जाते हैं।

प्रश्न 3.मोर के संरक्षण का क्या कानून बना है? 

उत्तर- मोर के पंखों की कीमत ज्यादा होने के कारण लोग इसका शिकार करने लगे और इसके पंखों को बाजार में बेचने लगे। धीरे-धीरे मोरों की संख्या में कमी आने लगी। तब भारत सरकार ने वन्य अधिनियम 1972 के तहत मोर के शिकार (Peacock Matter) पर रोक लगा दी। रोक लगाने के बाद भी यदि कोई मोर का शिकार करता है तो उसको जुर्माने के साथ सजा दी जाती है। ये कानून मोरों की संख्या में वृद्धि करने के लिए बहुत ही जरूरी है। इस कानून के बाद भारत में मोरों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है।

प्रश्न 4.मोर भोजन में क्या खाते हैं? 

उत्तर- खाने के रूप में मोर सर्वाहारी है। मोर अपने खाने में फल और सब्जियों को खाता है। मोर इसके अलावा भी कीड़े-मकोड़े, छिपकली, चूहों और साँपों को खाता है। मादा मोर साँप का शिकार नहीं कर सकती है। मोर खेतों में हानिकारक कीड़ो को खाता है। इस कारण इसे किसानों का सच्चा मित्र भी कहा जाता है। मोर की वजह से कई सारी फ़सलें हानिकारक कीड़ों से बच जाती है।

प्रश्न 5.भारत का राष्ट्रीय पक्षी मोर से पहले कौन था?

उत्तर- तमिलनाडु के ऊटी में भारत के राष्ट्रीय पक्षी घोषित करने सम्बंधी आयोजित बैठक में मोर के साथ साथ सारस क्रैन, ब्राह्मि‍णी काइट, बस्‍टार्ड, और हंस के नामों पर भी चर्चा की गयी एवं अंतत: मोर को 26 जनवरी 1963 को भारत का राष्ट्रीय पक्षी घोषित किया गया ।

समय का महत्व

“समय”, यह शब्द लिखने में जितना ही छोटा और बोलने में जितना ही आसान है इसकी परिभाषा उतनी ही कठिन है। ऐसा कहा जाता है कि  समय एक भिखारी को राजा और एक राजा को भिखारी बना सकता है। समय में बहुत बल होता है। इतनी ताकत होती है कि इसके आगे कुछ भी टिक नहीं सकता। सच समय के महत्व को समझना बहुत ही कठिन कार्य है। समय का महत्व केवल एक सफल व्यक्ति समझ सकता है क्योंकि समय का महत्व सफल और असफल व्यक्ति दोनों के लिए अलग-अलग होता है।

लोग दुनिया में सबसे कीमती चीज है हीरे, मोती, सोना, चांदी को समझते हैं, परंतु दुनिया में यदि सबसे कीमती चीज कुछ है तो वह है समय। हम यह बात समझ नहीं पाते। मोती यह सब तो हम कभी भी खरीद सकते हैं परंतु गया हुआ वक्त हम कभी वापस नहीं ला सकते। यदि किसी व्यक्ति को जीवन में सफल बनना है तो उसे सबसे पहले समय के महत्व के बारे में समझना होगा। ऐसा कहा जाता है कि यदि तुम समय को नष्ट करोगे तो एक दिन समय तुम्हें नष्ट कर देगा। जब हमारे पास बहुत समय होता है तब हम समय के महत्व नहीं समझ और उसे नष्ट करने में लगे रहते परंतु एक समय ऐसा आता है जब हमने उस बीते हुए समय का महत्व पता चलता है पर हम फिर बहुत पछताते हैं। अच्छे काम के लिए समय का सदुपयोग करना हमेशा हमें अच्छा परिणाम ही दे रहा और यदि हम अपने समय को किसी गलत कार्य के लिए प्रयोग कर रहे हैं तो उसका परिणाम कभी भी अच्छा नहीं होगा और इस बात का एहसास हमें बाद में होगा। जिंदगी में ऐसी कोई भी चीज नहीं है जो समय से अधिक महत्व होगी उर्मिला उदाहरण के रूप में हम यह देख सकते हैं कि पैसा, हम पैसा कमा रहे हैं और वह पैसा आज खत्म हो गया तो हम उसे आगे दोबारा कमा सकते हो परंतु एक बीता हुआ समय कभी भी वापस चलकर नहीं आता है।

समय का महत्व

हर व्यक्ति के पास बराबर का समय होता है और उसी समय का सदुपयोग करके कोई व्यक्ति बहुत महान बन जाते हैं और जो दुरुपयोग करने वाले होते हैं वह कुछ नहीं बन पाते पूर्वी में ऐसा नहीं होता कि जो व्यक्ति अपने जीवन में सफल है उन्हें 24 की जगह 36 घंटे प्रतिदिन मिल रहे हैं, बात केवल इतनी है कि वह अपनी 24 घंटे को बहुत महत्वपूर्ण तरीके से और बहुत अच्छी चीजों में लगाते हैं जिसके कारण उसका परिणाम भी बहुत अच्छा होता है। यही यदि हम देखें जो व्यक्ति कुछ नहीं कर पा रहा है वह अपने 24 घंटे को भी बर्बाद ही कर रहा है जिसका परिणाम होता है कि वह जीवन में सफल नहीं हो पाता है और खुश नहीं हो पाता है। लोग सोचते हैं कि पैसा ही सब कुछ है यदि उनके पास पैसा है तो वह दुनिया के बहुत बड़े व्यक्ति हैं परंतु ऐसा नहीं होता यदि इस पृथ्वी पर सबसे मूल्यवान कोई भी चीज है तो वह समय। यह समय ही है जो हमें  धन,समृद्धि और खुशी देता हैं। समय का केवल प्रयोग भी किया जा सकता है कोई भी व्यक्ति समय को खरीद नहीं सकता। समय ऐसी चीज है जिसका कोई मूल्य नहीं है परंतु फिर भी वह सबसे मूल्यवान है। 

बहुत से ऐसे लोग जिन्हें अभी भी समय के महत्व के बारे में बिल्कुल भी नहीं पता है। वे जीवन को ऐसे ही जी रहे हैं और अपने समय को ऐसे ही नष्ट किए जा रहे हैं। जैसे कि बहुत सारे आलसी व्यक्ति होते जो हर समय बस खाने – पीने खेलने – कूदने, इन सब प्रतिक्रियाओं में लगाते हैं। ऐसा करते करते कई दिन और कई समय बीत जाते हैं जिसका उन्हें जरा सा भी एहसास नहीं होता। कभी यह नहीं सोचते कि मैं अपने महत्वपूर्ण समय को किस तरह से और किन चीजों पर व्यतीत कर रहे हैं। यहां तक कि उन्हें फालतू कामों में अपना समय बर्बाद करने में भी पछतावा नहीं होता है। ऐसा करने से भी अपने जीवन की सबसे महत्वपूर्ण धन जिसे समय कहा जाता है उसे नष्ट करके खो देते हैं। 

समय का सही उपयोग कैसे कर सकते हैं। यदि इस पर बात आए तो हम समय का सदुपयोग कहीं अच्छे तरीकों में कर सकते हैं, जैसे कि

  1. महत्वपूर्ण कार्यों को प्रायोरिटी पर रखें : यदि हमें यह समझ आ जाए कि इतने सारे कार्यों में सबसे महत्वपूर्ण कार्य हमारे लिए क्या हो सकता है और हम उसे प्रायोरिटी दे तो हम समय का सदुपयोग कर रहे हैं। हमें पता है कि हमें बहुत से महत्वपूर्ण काम करना है परंतु फिर भी हम अपना समय केवल फालतू की चीजों में नष्ट कर रहे हैं तो इससे हमारी हानि नहीं  होगी।
  2. सही मैनेजमेंट : यदि समय का सही मैनेजमेंट कर लिया तो हमारा एक समय भी 1 मिनट भी नष्ट नहीं होगा। 1 दिन में एक व्यक्ति के पास आने को काम होते हैं, उस व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह एक 1 मिनट का कैसे मैनेजमेंट कर रहा है और उसे कैसे इस्तेमाल कर रहा है। 
  3. समय की बर्बादी ना करना: जादू होता है कि हमें पता है कि हमें महत्वपूर्ण कार्य करनी है परंतु हम उसे आगे वाले समय पर डाल देते हैं जिससे हमारा समय ही नष्ट होता है और हम अपने समय को बर्बाद करते है। यदि उसी समय कर ले तो इससे हमारा समय नष्ट बिल्कुल नहीं होगा। इस पर एक दोहा भी है – ” काल करे सो आज कर, आज करे सो अब; पल में प्रलय होइगा, बहुरि करेगा कब।”
  4. समय को महत्व देना : यदि हम जीवन में सबसे ज्यादा महत्व समय को देने लगे तो हमारे जीवन में कभी भी कष्ट नहीं आएगा। यदि हम अपना एक एक मिनट अच्छे और सही कार्य में लगाए तो हमारा समय बिल्कुल भी बर्बाद नहीं होगा। 
  5. सोच से ज्यादा काम करे : अधिकतर समय यह होता है कि हम सोचने में समय बर्बाद कर देते। इसलिए हमे सोचने मे समय नष्ट ना करके तुरंत उस कार्य मे लग जाना चाहिए। 

समय का सदुपयोग करना हमारे हाथ में है। हमने कई कहानियाँ सुनी हैं, यहाँ तक कि कुछ लोगों ने समय के खेल का अनुभव भी किया है। इसलिए समय रहते ही हमें इसका महत्व समझ लेना चाहिए और सम्मान करना चाहिए।हमें दूसरों की गलतियों से सीखने के साथ ही दूसरों की सफलता से प्रेरित होना चाहिए। हमें अपने समय का उपयोग कुछ उपयोगी कामों को करने में करना चाहिए ताकि, हमें समय समृद्धि दे, न कि नष्ट करे।

प्रश्न 1. समय को सबसे कीमती धन क्यों कहा गया हैं? 

उत्तर: समय को सबसे कीमती धन इसलिए कहा गया हैं क्योंकि समय बहुत कीमती होता हैं। धन हम एक बार उड़ा कर दोबारा कमा सकते हैं परंतु समय यदि हम एक बार बर्बाद कर दे तो दोबारा उसे पा नहीं सकते। वह सदा के लिए बर्बाद हो जाता हैं। 

प्रश्न 2. “काल करे सो आज कर, आज करे सो अब; पल मे प्रलय होएगी, बहुरि करेगा कब।” इस दोहे का अर्थ स्पष्ट कीजिए। 

उत्तर: इस दोहे का अर्थ समय के सदुपयोग से जुड़ा हैं। कहा गया है कि जो कार्य आप कल पर छोड़ रहे है उसे आज कीजिए और जो आज के लिए रखे हैं उस अभी कीजिए क्योंकि कब प्रलय आ जायेगा किसी को नहीं पता है और वो कार्य अधूरा ही रह जायेगा। 

प्रश्न 3. यदि हम समय का सही मैनेजमेंट कर ले तो क्या हम समय को नष्ट करने से बच सकते हैं? 

उत्तर : जी हाँ, यदि हम समय का सही मैनेजमेंट कर ले तो क्या हम समय को नष्ट करने से बच सकते हैं। समय को यदि हम अच्छे काम में लगाएंगे तो समय अपने आप ही नष्ट नहीं होगा और हमारा काफी समय बचेगा। इसलिए कहा गया है कि टाइम मैनेजमेंट बहुत ही महत्वपूर्ण होता है जिससे हम अपने सभी कार्य को उस निर्धारित समय में कर सकते हैं और अपने समय को बचा सकते हैं। 

प्रश्न 4. सोच से ज्यादा काम करे से क्या तात्पर्य है? 

उत्तर : सोच से ज्यादा काम करेगा तात्पर्य है इससे है कि यदि हम सोच कर कुछ काम कर रहे हैं और फिर भी हमारे पास समय बच रहा है और हमारे पास अधिक काम है तो हमें वह भी उसी दिन में समाप्त कर लेना चाहिए। समय को फिर ऐसे ही नष्ट नहीं करना चाहिए बचे हुए काम भी उसी समय में करके आगे के समय को बचाना चाहिए।

प्रश्न 5. समय का महत्व एक सफल व्यक्ति और एक सफल व्यक्ति के लिए अलग-अलग होता है। इसे समझाइए? 

उत्तर: समय का महत्व एक सफल व्यक्ति और असफल व्यक्ति के लिए बिल्कुल ही अलग अलग होता है। सफल व्यक्ति अपने एक-  एक मिनट को बहुत ही सोच समझकर व्यतीत करता है और वही असफल व्यक्ति को अपने समय से कोई मतलब नहीं होता। सफल व्यक्ति के लिए 1 मिनट भी बहुत महत्वपूर्ण होता है वही असफल व्यक्ति भले ही घंटों बर्बाद करने पर उसे उससे कोई भी फर्क नहीं पड़ता।

कमल को भी राष्ट्रीय फूल क्यों माना जाता है? 

हमारे देश में अनेक प्रकार के फूल उगाये जाते है। कई फूल बहुत सुन्दर और महकदार होते है।जिसमे एक नाम राष्ट्रीय पुष्प कमल का भी आता है।सभी राष्ट्र की अपनी एक अलग राष्ट्र फूल होती। राष्ट्र फूल का भी बहुत महत्व होती हैं।भारत राष्ट्र कमल के फूल को राष्ट्र फूल माना गया हैं। कमल फूल का हमारे देश मे बहुत अधिक महत्व हैं। कमल फूल को ऐतिहासिक और धार्मिक रूप से बहुत महत्व दिया जाता हैं। इसके महत्व को देखते हुए इसे राष्ट्रीय फूल के रूप में अपनाया गया है। 26 जनवरी सन 1950 को कमल को भारत का राष्ट्रीय फूल घोषित किया गया, कमल का फूल हमारे देश के लिए शांति और सुंदरता का प्रतीक है।

कमल को भी राष्ट्रीय फूल क्यों माना जाता है?

हमारे लिए ज्ञान का प्रतीक होता है. इसमे अनेक गुण होते है. इसी कारण इसे राष्ट्रीय फूल के रूप में घोषित किया गया है. इसके महत्व तथा कर्म के आधार पर इसके अनेक नाम है.कमल का फूल लाल और गुलाबी रंग का होता है, कमल के फूल को राष्ट्रीय फूल का दर्जा प्राप्त है, इसे अन्य नामों से भी जाना जाता है जैसे इंडियन लोटस, सीक्रेट लोटस, जैसे नामों से जाना जाता है। यह फूल हिंदू धर्म के लिए विशेष महत्व रखता है, कमल फूल को मंदिरों में पूजा करने के लिए तथा सजावट करने के लिए प्रयोग में लाया जाता है। कमल फूल हमारे संस्कृति और कला का एक महत्वपूर्ण अंग है, यह छोटे-छोटे जलाशयों में भी पाया जाता है। यह फूल सभी लोगों को प्रिय लगता है कमल का फूल प्राचीन काल से लोगों द्वारा पूजा पाठ के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।कमल हमारी संस्कृति से जुड़ा एक अभिन्न अंग है. कमल से कई लोग अपना व्यवसाय भी चलाते है.

lead magnet

कमल के फूल को हमारे राष्ट्रीय प्रतीकात्मक चिन्ह के रूप में जाना जाता है। कमल फूल के जड़ को औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है। यह शरीर के बहुत से बीमारियों को खत्म कर देता है, यह अनेक प्रकार के बीमारियों के उपचार में बहुत उपयोगी होता है। कमल फूल का सभी स्तर पर बहुत ही महत्व होता है, यह कीचड़ में उगता है फिर भी हिंदू धर्म में बहुत पवित्र माना जाता है और पूजा पाठ में इसका हम प्रयोग भी करते  है।इस फूल के बीज को पीसकर शहद के साथ मिलाकर औषधि के रूप में खाया जाता है, यह शरीर के बहुत सारे रोगों को ठीक करने में उपयोगी होता है। कमल फूल के अंदर आयरन और कैल्शियम अच्छे मात्रा में होता है इससे शरीर के कई बीमारियों का इलाज किया जाता है। कमल फूल के जड़ों में राइजोबियम पाया जाता है जिसमें विटामिन b1, विटामिन b2, विटामिन B6 और विटामिन सी तथा फाइबर जैसे तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं जो हमारे शरीर के लिए बहुत ही लाभदायक होता है।

कमल फूल का बीज 20 हजार सालों तक बिना पानी के रह सकता है, कमल फूल की पत्तियों से जुड़े डंठल में रेशे मौजूद होते हैं इनका उपयोग दीपक जलाने के बाती बनाने में किया जाता है।इस रेशे के द्वारा कपड़े भी बनाए जाते हैं, जिसका उपयोग करके हमारे शरीर को बहुत से रोगों से बचाया जा सकता है, कमल फूल के पौधे के जड़ को सब्जी खाने के रूप में भी उपयोग किया जाता है।इसके अलावा कमल के फूल का इस्तेमाल इत्र बनाने के लिए भी किया जाता है जिसे लोटस इतर कहा जाता है। कमल तालाबों में खिलता है और वहां से तोड़ करके इसे मार्केट में बेचा जाता है।

कमल एक जलीय पौधा है, जो तालाबों और झीलों जैसे जल निकायों में पैदा होता है। कमल के पौधे के लिए गर्म जलवायु और जल आवश्यक होता है, कमल फूल के डंठल और जड़े पानी में डूबी हुई रहते हैं तथा इसकी पत्तियां और फूल पानी के ऊपरी सतह पर तैरते रहते हैं।कमल का तना जड़ कि निचली सतह पर कीचड़ की मिट्टी में भूमिगत होता है, कमल फूल का रचना सभी फूलों से अलग होता है और इस फूल की जड़े छोटी होती है। पौधे का मुख्य भाग फूल होता है जो बहुत ही आकर्षक होता है, और यह फूल गुलाबी तथा सफेद रंग का होता है। कमल का फूल नाजुक पंखुड़ियों द्वारा बना होता है, और इस फूल की कली नुकीली होती है, यह फूल सूर्योदय के समय खिलता है और सूर्यास्त के बाद मुरझाने लगता है।

कई लोग अपने घरों में भी इस फूल को लगाते हैं ताकि उन्हें आसानी से यह फूल प्राप्त हो सके। अपनी मनमोहक सुगंधा के कारण कमल का फूल इंडिया में अधिकतर लोग अपने घरों में या फिर बाग बगीचे में लगाते हैं, क्योंकि यह सभी की नजर अपनी ओर आकर्षित करता है।कमल प्रकृति द्वारा दिया गया एक अनमोल उपहार है. इसकी रचना बहुत सुन्दर होती है. ये गोल आकर का होता है. ये अनेक रंगों के होते है. जिसमे पीला,गुलाबी,नीला तथा लाल प्रमुख होते है. ये कीचड़ में उगता है. फिर भी ये बहुत सुन्दर तथा आकर्षित करने वाले होते है.कमल हमारा राष्ट्रीय फूल है. हमें इसका सम्मान करना चाहिए. तथा इसका ज्यादा से ज्यादा उपयोग करना चाहिए. अपने बगीचों में कमल के फूल को उगाना चाहिए. जिससे हमें शुद्द वायु मिल सकें.

lead magnet

प्रश्न / उत्तर

प्रश्न 1.कमल भारत का राष्ट्रीय फूल क्यों है ?

उत्तर. कमल एक पवित्र फूल है और भारतीय संस्कृति का शुभ प्रतीक है। यह प्राचीन भारत की कला और पौराणिक कथाओं में एक अपूरणीय स्थान रखता है और इस प्रकार, इसे देश के लिए राष्ट्रीय फूल के रूप में चुना गया था।

प्रश्न 2. कमल फूल को राष्ट्र फूल कब स्वीकृत किया गया? 

उत्तर. 26 जनवरी सन 1950 को कमल को भारत का राष्ट्रीय फूल घोषित किया गया

प्रश्न 3. कमल फूल के फायदे बताये। 

उत्तर. कमल फूल के जड़ को औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है। यह शरीर के बहुत से बीमारियों को खत्म कर देता है, यह अनेक प्रकार के बीमारियों के उपचार में बहुत उपयोगी होता है।इस फूल के बीज को पीसकर शहद के साथ मिलाकर औषधि के रूप में खाया जाता है, यह शरीर के बहुत सारे रोगों को ठीक करने में उपयोगी होता है। कमल फूल के अंदर आयरन और कैल्शियम अच्छे मात्रा में होता है इससे शरीर के कई बीमारियों का इलाज किया जाता है। कमल फूल के जड़ों में राइजोबियम पाया जाता है जिसमें विटामिन b1, विटामिन b2, विटामिन B6 और विटामिन सी तथा फाइबर जैसे तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं 

प्रश्न 4. हिंदू धर्म में कमल के फूल का महत्व क्या हैं? 

उत्तर. कमल फूल का सभी स्तर पर बहुत ही महत्व होता है, यह कीचड़ में उगता है फिर भी हिंदू धर्म में बहुत पवित्र माना जाता है और पूजा पाठ में इसका हम प्रयोग भी करते  है।भगवद गीता इसे वैराग्य के लिए एक रूपक के रूप में प्रयोग करती है

प्रश्न 5. कमल के फूल की क्या विशेषता है?

उत्तर. कमल का पौधा धीमे बहने वाले या रुके हुए पानी में उगता है। ये दलदली पौधा है जिसकी जड़ें कम ऑक्सीजन वाली मिट्टी में ही उग सकती हैं। इसमें और जलीय कुमुदिनियों में विशेष अंतर यह कि इसकी पत्तियों पर पानी की एक बूँद भी नहीं रुकती और इसकी बड़ी पत्तियाँ पानी की सतह से ऊपर उठी रहती हैं। एशियाई कमल का रंग हमेशा गुलाबी होता है।

राष्ट्रीय ध्वज

“राष्ट्र ध्वज” , यह शब्द एक स्वतंत्र राज्य के लिए बहुत ही बड़ा शब्द है। इस शब्द का अर्थ बहुत ही महत्वपूर्ण भी माना जाता है। राष्ट्रध्वज उस राष्ट्र की स्वतंत्रता का प्रतीक होता है। हर एक स्वतंत्र राष्ट्र का अपना एक राष्ट्रध्वज होता है जिसे तिरंगा कहते हैं। हमारे राष्ट्रीय ध्वज में, तीन रंग विद्यमान हैं, इसके वजह से इसका नाम तिरंगा रखा गया है। भारत का राष्ट्रीय ध्वज, तिरंगा भारत का गौरव है और यह हर एक भारतवासी के लिए बहुत महत्व रखता है। यह ज्यादातर राष्ट्रीय पर्व के अवसर पर तथा भारत के लिए गर्व के क्षणों में लहराया जाता है।

26 जनवरी 2002 को, स्वतंत्रता प्राप्ति के इतने वर्षों पश्चात् राष्ट्रध्वज संहिता में संशोधन किया गया। राष्ट्रध्वज संहिता से आशय भारतीय ध्वज फहराने तथा प्रयोग को लेकर बताए गए निर्देश से है। इस संशोधन में आम जनता को अपने घरों तथा कार्यालयों में साल के किसी दिन भी ध्वज को फहराने की अनुमति दी गई पर साथ में, ध्वज के सम्मान में कोई कमी न आये इस बात का भी ख़ास खयाल रखने का निर्देश दिया गया।पहले के राष्ट्रध्वज संहिता के अनुसार केवल सरकार  और उनके संगठन के माध्यम से ही राष्ट्र पर्व के अवसर पर ध्वज फहराने का प्रावधान था। परन्तु उद्योगपति जिन्दल के न्यायपालिका में अर्जी देने के बाद ध्वज संहिता में संशोधन लाया गया। कुछ निर्देशों के साथ निजी क्षेत्र, स्कूल, कार्यालयों आदि में ध्वज लहराने की अनुमति दी गई। अब तो हर गणतंत्र और स्वतंत्र दिवस के अवसर पर सभी जगह ध्वज रोपण होता है।

महात्मा गाँधी ने राष्ट्रध्वज के निर्माण में विषेश भूमिका निभाया, अतः उनके शब्दों में:

“सभी राष्ट्र के लिए एक राष्ट्रध्वज होना अनिवार्य है। लाखों लोगों ने इस पर अपनी जान न्यौछावर की है। यह एक प्रकार की पूजा है, जिसे नष्ट करना पाप होगा। ध्वज एक आदर्श का प्रतिनिधित्व करता है। यूनियन जैक अंग्रेजों के मन में भावनाएं जगाता है जिसकी शक्ति को मापना कठिन है। अमेरिकी नागरिक के ध्वज पर बने सितारे और पट्टीयों का अर्थ उनकी दुनिया है। इस्लाम धर्म में सितारे और अर्ध चन्द्र का होना सर्वोत्तम वीरता का आवाहन करता है।”- महात्मा गाँधी

हर राज्य की अलग होती है। भारत के राष्ट्रीय ध्वज की बनावट अलग है। “तिरंगा” नाम से ही जान पड़ता है, तीन रंगों वाला। हमारे राष्ट्रध्वज में तीन महत्वपूर्ण रंगों के साथ अशोक चक्र (धर्म चक्र) के रूप में तिरंगे की शोभा बनाए हुए हैं। इसमें तीन पत्तियां होती है, केसरिया सफेद और हरा।इसकी प्रत्येक पट्टियां क्षैतिज आकार की हैं। सफेद पट्टी पर गहरे नीले रंग का अशोक चक्र अपनी 24 आरों के साथ तिरंगा की शोभा बढ़ा रहा है। जिसमें 12 आरे मनुष्य के अविद्या से दुःख तक तथा अन्य 12 अविद्या से निर्वाण (जन्म मृत्यु के चक्र से मुक्ति) का प्रतीक है। ध्वज की लम्बाई तथा चौड़ाई का अनुपात 3:2 है। राष्ट्रीय झंडा निर्दिष्टीकरण के अनुसार राष्ट्रध्वज हस्त निर्मित खादी कपड़े से ही बनाया जाना चाहिए।हमारे राष्ट्र ध्वज में तीन रंग सुशोभित हैं, इसकी अभिकल्पना स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ ही समय पूर्व पिंगली वैंकैया ने किया था। इसमें केसरिया, सफेद तथा हरे रंग का उपयोग किया गया है। इनके दार्शनिक तथा अध्यात्मिक दोनों ही मायने हैं।

केसरिया– भगवाँ मतलब वैराग्य, केसरिया रंग बलिदान तथा त्याग का प्रतीक है, साथ ही अध्यात्मिक दृष्टी से यह हिन्दु, बौद्ध तथा जैन जैसे अन्य धर्मों के लिए अस्था का प्रतीक है।

सफेद– शान्ति का प्रतीक है तथा दर्शन शास्त्र के अनुसार सफेद रंग स्वच्छता तथा ईमानदारी का प्रतीक है।

हरा– खुशहाली और प्रगति का प्रतीक है तथा हरा रंग बिमारीयों को दूर रखता है आखों को सुकून देता है व बेरेलियम तांबा और निकील जैसे कई तत्व इसमें पाए जाते हैं।

हमारे राष्ट्र ध्वज का इतिहास रहा है जो कुछ ऐसा था;

1.सबसे पहला झंडा 1906 में कांग्रेस के अधिवेशन में, पारसी बगान चौक (ग्रीन पार्क) कोलकत्ता में, फहराया गया। यह भगिनी निवेदिता द्वारा 1904 में बनाया गया था। इस ध्वज को लाल, पीला और हरा क्षैतिज पट्टी से बनाया गया, सबसे ऊपर हरी पट्टी पर आठ कमल के पुष्प थे, मध्य की पीली पट्टी पर वन्दे मातरम् लिखा था तथा सबसे आखरी के हरे पट्टी पर चाँद तथा सूरज सुशोभित थे।

2.दूसरा झण्डा 1907 पेरिस में, मैडम कामा तथा कुछ क्रांतिकारियों द्वारा फहराया गया। यह पूर्व ध्वज के समान था। बस इसमें सबसे ऊपर लाल के स्थान पर केसरिया रंग रखा गया। उस केसरिया रंग पर सात तारों के रूप में सप्तऋषि अंकित किया गया।

3.तीसरा झण्डा 1917 में, जब भारत का राजनैतिक संघर्ष नये पढ़ाव से गुज़र रहा था। घरेलु शासन आन्दोलन के समय पर डॉ एनी बेसेन्ट तथा लोकमान्य तिलक द्वारा यह फहराया गया। यह पाँच लाल तथा चार हरी क्षैतिज पट्टी के साथ बना हुआ था। जिसमें एक लाल पट्टी तथा फिर एक हरी पट्टी करके समस्त पट्टीयों को जुड़ा गया था। बाये से ऊपर की ओर एक छोर पर यूनियन जैक था, तथा उससे लग कर तिरछे में बायें से नीचे की ओर साप्तऋषि बनाया गया व एक कोने पर अर्ध चन्द्र था।

4.चौथा झण्डा तथा गाँधी का सुझाव 1921 में, अखिल भारतीय कांग्रेस सत्र के दौरान बेजवाड़ा (विजयवाड़ा) में, अन्द्रप्रदेश के एक युवक “पिंगली वैंकैया” ने लाल तथा हरे रंग की क्षैतिज पट्टी को झण्डे का रूप दिया। जिसमें लाल हिन्दु के आस्था का प्रतीक था और हरा मुस्लमानों का। महात्मा गाँधी ने सुझाव दिया इसमें अन्य धर्मों की भावनावों की कद्र करते हुए एक और रंग जोड़ा जाए तथा मध्य में चलता चरखा होना चाहिए।

5.पांचवा झंडा, स्वराज ध्वज 1931 झण्डे के इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण वर्ष रहा। इस वर्ष में राष्ट्रीय ध्वज को अपनाने का प्रस्ताव रखा गया तथा राष्ट्रध्वज को मान्यता मिला। इसमें केसरिया, सफेद तथा हरे रंग को महत्व दिया गया जो की वर्तमान ध्वज का स्वरूप है, तथा मध्य में चरखा बनाया गया।

6.छठवां झंडा, तिरंगा को राष्ट्रध्वज के रूप में मान्यता 22 जुलाई 1947 को अन्ततः कांग्रेस पार्टी के झण्डे (तिरंगा) को राष्ट्र ध्वज के रूप में (वर्तमान ध्वज) को स्वीकार किया गया । केवल ध्वज में चलते हुए चरखे के स्थान पर सम्राट अशोक के धर्म चक्र को स्थान दिया गया।

तिरंगे का इतिहास स्वतंत्रता प्राप्ति से बहुत समय पूर्व प्रारम्भ हो गया था। जिसमें समय-समय पर सोच विचार कर संशोधन किए गए। यह सबसे पहले कांग्रेस पार्टी के ध्वज के रूप में था, पर 1947 में तिरंगे को राष्ट्रध्वज के रूप में अपनाया गया और यह प्रत्येक भारतीय के लिए गौरव का क्षण था।

अनेक पढ़ाव को पार कर राष्ट्रध्वज तिरंगा आज भारत की शान है। राष्ट्रध्वज का अपमान देश का अपमान है अतः इसका दोषी दंड का पात्र है। ध्वज के अपमान किए जाने पर दंड स्वरूप तीन वर्ष की कैद तथा जुर्माने का प्रावधान है। राष्ट्रध्वज से संबंधित अनेक रोचक तथ्य तथा निर्देश है जैसे झंडे का प्रयोग कैसे करें, कैसे न करें, कब झंडे को झुकाया जाता है आदि, इन सभी उपदेशों का हम सबको गंभीरता से पालन करना चाहिए। 

प्रश्न/उत्तर

प्रश्न 1.भारत का पहला राष्ट्रीय ध्वज पहली बार कहां फहराया गया था ?

उत्तर- अगस्त 1906 को पारसी बागान चौक (ग्रीन पार्क) कोलकाता में। इस झंडे में लाल, पीले और हरे रंग की तीन क्षैतिज पटि्टयां थीं। जिसमें सबसे ऊपर हरे रंग की पट्‌टी पर कमल के फूल बने थे। बीच में पीली पट्‌टी पर वंदे मातरम लिखा था। जबकि सबसे निचली लाल रंग की पट्‌टी पर चांद और सूरज बने थे।

प्रश्न 2. देश में किस कानून के तहत तिरंगे को फहराने के नियम निर्धारित किए गए हैं?

उत्तर – देश में ‘फ्लैग कोड ऑफ इंडिया’ (भारतीय ध्वज संहिता) नाम का एक कानून है, जिसमें तिरंगे को फहराने के नियम निर्धारित किए गए हैं. इन नियमों का उल्लंघन करने वालों को जेल भी हो सकती है.

प्रश्न 3.वर्तमान राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे का डिजाइन किसने तैयार किया था? 

उत्तर – वर्तमान राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे का डिजाइन पिंगली वेंकय्या ने तैयार किया था। 

प्रश्न 4. तिरंगा शब्द का अर्थ क्या है? 

उत्तर-  तिरंगा शब्द का अर्थ हैं- तीन रंगों का एक झंडा जो समान क्षैतिज या ऊर्ध्वाधर बैंड में व्यवस्थित होता है । 

प्रश्न 5. अशोक चक्र किसका प्रतीक है? 

उत्तर- सम्राट अशोक के बहुत से शिलालेखों पर प्रायः एक चक्र (पहिया) बना हुआ है। इसे अशोक चक्र कहते हैं। यह चक्र धर्मचक्र का प्रतीक है।

 

अनुच्छेद लेखन

अनुच्छेद को अंग्रेजी भाषा में पैराग्राफ कहा जाता है।

अनुच्छेद के द्वारा एक विचार को शब्दों में व्यक्त किया जाता है। यह अनुच्छेद एक विषय से जुड़ा हुआ होता है। इसमें किसी विषय से संबंधित सीमित शब्दों में अपने विचारों को व्यक्त किया जाता है। 

अनुच्छेद में केवल विषय से संबंधित बातें ही लिखी जाती है। अनावश्यक बातों को अनुच्छेद में नही लिखा जाता है। इसमें अपने भावों को व्यक्त किया जाता है।

अनुच्छेद लिखने के लिए कुछ बातों का ध्यान में रखना जरूरी होता है। जिससे अनुच्छेद को एक सुसंगठित रूप मिल सके। इसलिए अनुच्छेद-लेखन की कुछ विशेषताएँ होती हैं 

1)अनुच्छेद लेखन अपने आप में पूरा होता है। यह किसी प्रकार के निबंध का सार या निष्कर्ष नहीं होता है। अनुच्छेद को लिखने के लिए इसे कोई सार नही देना पड़ता है। 

2)अनुच्छेद को निश्चित रूपरेखा में नही लिखा जाता जाता है। इसमें सिर्फ दिए गए विषय को केंद्र मानकर उसके बारे में लिखा जाता है और उसी का विस्तार किया जाता है।

3)अनुच्छेद में किसी बाहरी प्रसंग का प्रयोग नहीं किया जाता है। सभी प्रकार से केवल विषय से संबंधित जानकारी और अपने विचारों को उसमे लिखा जाता है।

4)अनुच्छेद लिखने समय उसकी स्पष्टता का ध्यान रखना चाहिए। इसका का आकार सीमित होता है। इसमें अलंकारिता और अनावश्यक शब्दों का प्रयोग नहीं किया जाता है। भाषा में सहजता का प्रवाह होता है।

अनुच्छेद अलग अलग प्रकार के लिखे जाते हैं। जिसके द्वारा अलग अलग विधाओं और विषयों का वर्णन किया जाता है। इसलिए अनुचेदो को मख्य रूप लेखन के चार प्रकार है। 

              1)वर्णनात्मक

              2)कथात्मक

             3) व्याख्यात्मक

             4)प्रेरक

1)वर्णनात्मक:  यह अनुच्छेद किसी एक विशेष विषय को केंद्र में रखकर लिखे जाते हैं। यह किसी निर्जीव और सजीव पदार्थ का वर्णन करते हैं। इस प्रकार का लेखन मूल रूप से विषय का वर्णन करता है। यह वर्णन किसी यात्रा, कोई अद्भुत दृश्य, कोई घटना, किसी पौराणिक कथा का हो सकता है। 

कथात्मक: इस प्रकार का लेखन मूल रूप से एक कहानी की तरह व्यक्त किए जाते है। यह अनुच्छेद कहानी भी हो सकते है। इसका लेखन क्रमबद्ध होता है। किसी स्थिति का वर्णन करने के लिए भी कथात्मक अनुच्छेद का प्रयोग किया जाता है। इसमें वर्णन करते समय इसकी सभी घटनाओं को क्रम से व्यक्त किया जाता है। जी घटना पहले घटित होती है उसका वर्णन पहले ही किया जाता है। एक सुसंगठित ढंग से इसमें विषय का वर्णन किया जाता है। इसमें विषय केंद्रित होता है।

व्याख्यात्मक: व्याख्यात्मक अनुच्छेदों में कोई घटना क्यों हुई, कैसे हुई इसका वर्णन किया जाता है। इसमें घटनाओं और प्रक्रियाओं के बीच संबंधों को व्याख्या की जाती है। इस प्रकार का लेखन किसी चीज़ की परिभाषा है। इसमें किसी घटना के विभिन्न पहलुओं का वर्णन किया जाता है।

प्रेरक: इस प्रकार के लेखन ऐसे विषय पर किए जाते हैं जिसमें कोई मजबूत तर्क दिया जाता है। जिस तर्क पर पाठक वर्ग भी अपनी सहमति देता है। इसका उद्देश्य दर्शकों को लेखक के दृष्टिकोण को स्वीकार करना है। ये ज्यादातर शिक्षकों द्वारा एक मजबूत तर्क प्रदान करने के लिए उपयोग किए जाते हैं। इस प्रकार के लिखे गए अनुच्छेद तर्कपूर्ण होते है। जिनका संबंध वास्तविकता से भी होता है।इस प्रकार के अनुच्छेद को बारे में आप एक सटीक राय या तर्क दे सकते हैं।

इस तरह विभिन्न प्रकार के अनुच्छेद के द्वारा किसी भी विषय पर अपने विचार व्यक्त कर सकते हैं। किसी भी प्रकार के अनुच्छेद लिखकर अपने विचारों की अभिव्यक्ति कर सकते हैं।

अनुच्छेद किसी भी एक प्रमुख शैली में नहीं लिखे जाते है। इनके लिखने के लिए अलग शैली का भी प्रयोग किया जा सकता है। यह भावात्मक शैली, समास शैली, व्यंग्य शैली, तरंग शैली, चित्र शैली, विचारात्मक शैली, विव्रणात्मक शैली, व्यास-शैली, तर्कपूर्ण शैली, वर्णनात्मक शैली, सामान्य बोलचाल की शैली का प्रयोग कर सकता है। जिस भी शैली में आप अपने विचारों को व्यक्ति करने में सरलता अनुभव करते हैं, आप उस शैली का प्रयोग अपने अनुच्छेद में कर सकते हैं।

अनुच्छेद अनेक प्रकार के विषयों पर लिखे जाते हैं। अनुच्छेद लिखने का विषय कोई भी हो सकता है। कोई भी सटीक विषय अनुच्छेद का नहीं होता है। यह अनुच्छेद होली का त्यौहार, एक अद्भुत दृश्य, मेरी पहली यात्रा, मेरी प्यारी डायरी, मेरा पहला नवरोज आदि किसी भी विषय पर अनुच्छेद लिखे जा सकते हैं।

अधिकतर पूछे गए प्रश्न–:

1)अनुच्छेद किसे कहते हैं?

  उत्तर:अनुच्छेद को अंग्रेजी भाषा में पैराग्राफ कहा जाता है। अनुच्छेद के द्वारा एक विचार को शब्दों में व्यक्त किया जाता है। यह अनुच्छेद एक विषय से जुड़ा हुआ होता है। इसमें किसी विषय से संबंधित सीमित शब्दों में अपने विचारों को व्यक्त किया जाता है। 

2)अनुच्छेद के कितने प्रकार होते हैं?

  उत्तर:अनुच्छेद अलग अलग प्रकार के लिखे जाते हैं। जिसके द्वारा अलग अलग विधाओं और विषयों का वर्णन किया जाता है। इसलिए अनुचेदो को मख्य रूप लेखन के चार प्रकार है। 

              1)वर्णनात्मक

              2)कथात्मक

             3) व्याख्यात्मक

             4)प्रेरक

3)अनुच्छेद को कोई दो विशेषताएं बताएं?

  उत्तर:अनुच्छेद में किसी बाहरी प्रसंग का प्रयोग नहीं किया जाता है। सभी प्रकार से केवल विषय से संबंधित जानकारी और अपने विचारों को उसमे लिखा जाता है।

अनुच्छेद लिखने समय उसकी स्पष्टता का ध्यान रखना चाहिए। इसका का आकार सीमित होता है। इसमें अलंकारिता और अनावश्यक शब्दों का प्रयोग नहीं किया जाता है। भाषा में सहजता का प्रवाह होता है।

4)प्रेरक अनुच्छेद किसे कहते है?

उत्तर:इस प्रकार के लेखन ऐसे विषय पर किए जाते हैं जिसमें कोई मजबूत तर्क दिया जाता है। जिस तर्क पर पाठक वर्ग भी अपनी सहमति देता है। इसका उद्देश्य दर्शकों को लेखक के दृष्टिकोण को स्वीकार करना है। ये ज्यादातर शिक्षकों द्वारा एक मजबूत तर्क प्रदान करने के लिए उपयोग किए जाते हैं। इस प्रकार के लिखे गए अनुच्छेद तर्कपूर्ण होते है। जिनका संबंध वास्तविकता से भी होता है।

5)वर्णनात्मक अनुच्छेद किसे कहते है?

 उत्तर:यह अनुच्छेद किसी एक विशेष विषय को केंद्र में रखकर लिखे जाते हैं। यह किसी निर्जीव और सजीव पदार्थ का वर्णन करते हैं। इस प्रकार का लेखन मूल रूप से विषय का वर्णन करता है। यह वर्णन किसी यात्रा, कोई अद्भुत दृश्य, कोई घटना, किसी पौराणिक कथा का हो सकता है। 

6)अनुच्छेद लेखन का प्रारूप क्या है?

अनुच्छेद लेखन का प्रारूप निम्न प्रकार है:

प्रस्तावना: अनुच्छेद की शुरुआत में, विषय का परिचय दें। यहां विषय के महत्व को संक्षेप में बताना चाहिए।

विषय का विस्तार: अगले कदम में, विषय के विभिन्न पहलुओं को विस्तार से समझाएँ। विषय के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी और तथ्य यहां प्रस्तुत करें।

उदाहरण या केस स्टडी: अपने विषय को स्पष्ट करने के लिए उदाहरण या केस स्टडी का उपयोग करें। यह अनुच्छेद को और रोचक और समझने योग्य बनाएगा।

महत्वपूर्ण बिंदु: अनुच्छेद में विषय के महत्वपूर्ण बिंदुओं को उल्लेख करें। यह वाचक को विषय की सारांश देने में मदद करेगा।

निष्कर्ष: अंत में, अपने विचारों और विषय पर किए गए विश्लेषण का संक्षेप में सारांश दें। इसे संक्षेप में और स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करने का प्रयास करें।

इस प्रारूप का पालन करके, आप एक संगठित और आकर्षक अनुच्छेद लेखन का निर्माण कर सकते ह

अशुद्ध वाक्यों का संशोधन

हिंदी के किसी भी वाक्य में लिंग, वचन, कारक, संज्ञा, सर्वनाम , विशेषण, पुनरुक्ति और पदक्रम आदि से संबंधित गलतियों या अशुद्धियों को दूर कर शुद्ध वाक्य बनाना अशुद्ध वाक्यों का संशोधन कहलाता है। इन सभी की अशुद्धियों के कारण एक वाक्य का पुरान अर्थ नही निकल पाता है। इसके अर्थ में अनर्थ हो जाता है।

हिंदी के वाक्यों में निम्नलिखित आधारों में अशुद्धियां मिलती है।

वाक्यों में संज्ञा व सर्वनाम संबंधी अशुद्धियां का संशोधन निम्न प्रकार से किया जाता है–:

जब किसी वाक्य में संज्ञा या सर्वनाम शब्दों का प्रयोग गलत किया जाता है तो वहां और उस संज्ञा और सर्वनाम की अशुद्धियों को ठीक किया जाता है।

अशुद्ध वाक्य-  हम उसका नहीं काम किया।

शुद्ध वाक्य- हमने उसका नहीं काम किया।

अशुद्ध वाक्य– दनेश को चोट लगा

शुद्ध वाक्य– दिनेश को चोट लगी।

अशुद्ध वाक्य- राहल मेरी दोस्त है।

शुद्ध वाक्य- राहुल मेरा दोस्त है ।

अशुद्ध वाक्य– बच्चा ने क्रिकेट खेली।

शुद्ध वाक्य- बच्चों ने क्रिकेट खेला।

2.- लिंग संबंधी अशुद्धियां का वाक्यों में संशोधन–:

वाक्यों में जब लिंग के आधार पर अशुद्धियां होती है। जहां पर गलत लिंग का प्रयोग किया जाता है, वहां लिंग संबंधी अशुद्धि होती है, जिसे शुद्ध किया जाता है।

अशुद्ध वाक्य- मोहन की पिता जी आएंगे।

शुद्ध वाक्य– मोहन के पिताजी आएंगे।

अशुद्ध वाक्य- उसने लस्सी पी लिया

शुद्ध वाक्य – उसने लस्सी पी ली।

अशुद्ध वाक्य – राजिया सुल्तान एक योद्धा था

शुद्ध वाक्य – राजिया सुल्तान एक योद्धा थी।

अशुद्ध वाक्य – दूध सेहत के लिए अच्छी होती है।

शुद्ध वाक्य–  दूध सेहत के लिए अच्छा होता है।

3.- वचन संबंधी अशुद्धियां का वाक्यों में संशोधन–:

जिन वाक्यों में वचन के आधार पर गलतियां या अशुद्धियां पाई जाती है, वहां पर वचन संबंधी अशुद्धियां होती है। इसमें बहुवचन के स्थान पर एक वचन और एकवचन के स्थान पर बहुवचन बना दिया जाता है, जिससे वाक्य अशुद्ध हो जाता है।

अशुद्ध वाक्य– हम परिवार में 8 सदस्य हैं।

शुद्ध वाक्य – हमारे परिवार में 8 सदस्य हैं।

अशुद्ध वाक्य – कक्षा में आज 30 बच्चा उपस्थित था

शुद्ध वाक्य – कक्षा में आज 30 बच्चे उपस्थित थे।

अशुद्ध वाक्य– खेल के मैदान में 5 बच्चा खेल रहा है।

शुद्ध वाक्य -खेल के मैदान में 5 बच्चे खेल रहे हैं।

अशुद्ध वाक्य– घर के सामने बहुत सारा लोग जमा हो गया था

शुद्ध वाक्य– घर के सामने बहुत सारे लोग जमा हो गए थे।

4.- कारक संबंधी अशुद्धियां का वाक्यों में संशोधन–:

जब वाक्यों में गलत कारक का प्रयोग किया जाता है, जिससे वाक्य का अर्थ नहीं निकल पाता है, वहां पर कारक संबंधी अशुद्धियां होती है।

अशुद्ध वाक्य – तुम खाना खाया है

शुद्ध वाक्य –  तुमने खाना खाया है

अशुद्ध वाक्य – मोहन सुरेश का पढ़ा रहा है।

शुद्ध वाक्य – मोहन सुरेश को पढ़ा रहा है।

अशुद्ध वाक्य – डॉक्टर को दवाई दी।

शुद्ध वाक्य– डॉक्टर ने दवाई दी।

अशुद्ध वाक्य– पेड़ में से फल तोड़ लो

शुद्ध वाक्य- पेड़ से फल तोड़ लो

5.पद क्रम संबंधी अशुद्धियां का वाक्यों में संशोधन–:

जब वाक्य में कोई क्रम नहीं होता है और वाक्य का कोई अर्थ नहीं निकल पाता है पद अपने अपने स्थान पर नहीं होते है अर्थात जहां पर वाक्य अर्थपूर्ण नहीं होता है, वहां पर पद क्रम संबंधित अशुद्धियां होती है।

अशुद्ध वाक्य- हवा चल रही है गर्म आज।

शुद्ध वाक्य -आज गर्म हवा चल रही है।

अशुद्ध वाक्य– धो दिए मैंने मैने कपड़े सारे

शुद्ध वाक्य – मैंने सारे कपड़े धो दिए।

अशुद्ध वाक्य- श्याम की है परीक्षा आज।

शुद्ध वाक्य – आज श्याम की परीक्षा है

अशुद्ध वाक्य- स्कूल में डांस मैने किया आज।

शुद्ध वाक्य- आज मैंने स्कूल में डांस किया।

6.- क्रिया विशेषण संबंधी अशुद्धियां:-

जिन वाक्यों में विशेषण अपनी क्रिया के साथ नही लगता है अर्थात जब विशेषण करिए से पहले प्रयोग नहीं होता उसके स्थान पर कोई अलग शब्द लगा दिया जाता हैं,वहां पर क्रिया विशेषण संबंधी अशुद्धियां होती है।

अशुद्ध वाक्य- यह घर तो बहुत ही सुंदर है।

शुद्ध वाक्य- यह घर बहुत सुंदर है।

अशुद्ध वाक्य- हमें जीवन भर तक आजीवन साथरहना है।

शुद्ध वाक्य– हमें आजीवन मेंरे साथ रहना है।

अशुद्ध वाक्य-आज सारा दिन भर तेज बारिश होती रही।

शुद्ध वाक्य-आज दिन भर तेज बारिश होती रही।

7.पुनरुक्ति संबंधी अशुद्धियां का वाक्यों में संशोधन–: 

जब वाक्य में एक शब्द एक से अधिक बार आता है जिसके प्रयोग करने की जरूरत नहीं होती है, वहां पर एक ही शब्द का  अधिक बार प्रयोग करने से पुनरूक्ति संबंधी अशुद्धियां होती है।

अशुद्ध वाक्य – सोमवार के दिन मुझे विद्यालय जाना है।

शुद्ध वाक्य – सोमवार को मुझे विद्यालय जाना है।

अशुद्ध वाक्य – महाराणा प्रताप बहुत वीर व्यक्ति थे।

शुद्ध वाक्य – महाराणा प्रताप बहुत वीर थे।

अशुद्ध वाक्य- अमित तो केवल एक मौका मात्र चाहिए।

शुद्ध वाक्य – अमित  को मात्र एक मौकाचाहिएं।

अशुद्ध वाक्य – तानिया को शाम के समय से बुखार है।

शुद्ध वाक्य- तानिया को शाम से बुखार है।

अधिकतर पूछे गए प्रश्न–:

1.अशुद्ध वाक्यों का संशोधन से आप क्या समझते हैं?

उत्तर: 

हिंदी के किसी भी वाक्य में लिंग, वचन, कारक, संज्ञा, सर्वनाम , विशेषण, पुनरुक्ति और पदक्रम आदि से संबंधित गलतियों या अशुद्धियों को दूर कर शुद्ध वाक्य बनाना अशुद्ध वाक्यों का संशोधन कहलाता है। इन सभी की अशुद्धियों के कारण एक वाक्य का पुरान अर्थ नही निकल पाता है। इसके अर्थ में अनर्थ हो जाता है।

2.अशुद्ध वाक्यों में संशोधन कितने प्रकार से होता है?

उत्तर:हिंदी के वाक्यों में निम्नलिखित आधारों में   अशुद्धियां मिलती है।

1.- संज्ञा व सर्वनाम संबंधी अशुद्धियां

2.- लिंग संबंधी अशुद्धियां

3.- वचन संबंधी अशुद्धियां

4.- कारक संबंधी अशुद्धियां

5.- पद क्रम संबंधी अशुद्धियां

6.- क्रियाविशेषण संबंधी अशुद्धियां

7.- पुनरुक्ति संबंधी अशुद्धियां

3. वचन संबंधी अशुद्धियां कैसे होती है?

उत्तर:जिन वाक्यों में वचन के आधार पर गलतियां या अशुद्धियां पाई जाती है, वहां पर वचन संबंधी अशुद्धियां होती है। इसमें बहुवचन के स्थान पर एक वचन और एकवचन के स्थान पर बहुवचन बना दिया जाता है, जिससे वाक्य अशुद्ध हो जाता है।

4.पुनरूक्ति संबंधी अशुद्धियां कैसे होती है?

उत्तर:जब वाक्य में एक शब्द एक से अधिक बार आता है जिसके प्रयोग करने की जरूरत नहीं होती है, वहां पर एक ही शब्द का  अधिक बार प्रयोग करने से पुनरूक्ति संबंधी अशुद्धियां होती है।

5.गौरव ने मैच जीती।

दिए गए वाक्य में अशुद्धियों का संशोधन करें।

उत्तर: दिए गए वाक्य में अशुद्धियों का संशोधन निम्न प्रकार से होगा– 

गौरव ने मैच जीता।

काल

काल का अर्थ समय होता है, इसलिए क्रिया के जिस रूप से किसी काम के होने या उसके करने के समय का पता चलता है, उसे काल कहते है।

जिससे कार्य समय का पता चले उस समय को काल कहते हैं।

उदाहरण–: 1)सीता ने अपना कार्य कल पूरा कर दिया था।

                   2) सीमा अभी खेलने गई है।

कौन सा कार्य किस काल में किया गया है अर्थात किस समय में कार्य किया गया है यह जानने के लिए 

काल को तीन भेदों में बांटा गया हैं

  1. वर्तमान काल
  2. भूत काल
  3. भविष्य काल

1.वर्तमान काल

क्रिया के जिस रूप के द्वारा किसी कार्य के वर्तमान समय अर्थात अभी जो समय चल रहा है में पूरा होने का बोध होता है। उसे वर्तमान काल कहते है। इसमें कार्य पूरा भी हो जाता है और कार्य चल भी रहा होता है।

उदाहरण–: मोहन मैच खेल रहा है।

             अमित ने अभी वोट डाली है।

            रागिनी गाना गा रही है।

वर्तमान काल के पाँच भेद होते है

(i)सामान्य वर्तमानकाल

(ii)अपूर्ण वर्तमानकाल

(iii)पूर्ण वर्तमानकाल

(iv)संदिग्ध वर्तमानकाल

(v)तत्कालिक वर्तमानकाल

(vi)संभाव्य वर्तमानकाल

(i) सामान्य वर्तमानकाल

 यह  क्रिया का वह रूप है जिसमें क्रिया के होने का समय वर्तमान काल में होता है। इसकी पहचान वाक्य के अंत में ता, ते, ती आदि शब्दों के आने से भी होती है।

उदाहरण–:    1)बच्चा बॉल से खेलता है’।

                  2) वह पुस्तक पढ़ती है।

               3) बच्चे फूल तोड़ते है।

(ii) अपूर्ण वर्तमानकाल

 क्रिया के जिस रूप से यह पता चकता है की कार्य अभी पूरा नहीं हुआ है वह चल रहा है, उसे अपूर्ण वर्तमान कहते हैं। इसकी अन्य पहचान वाक्य के अंत में रहा है, रहे है, रही है आदि शब्दों के प्रयोग से की जाती है।

उदाहरण के लिए– ‘मोहन विद्यालय जा रहा है। 

                        प्रिया खाना खा रही है।

(iii) पूर्ण वर्तमानकाल 

क्रिया के जिस रूप से कार्य के पूरे होने का पता चकता है, वहां पर पुरान वर्तमान काल होता है। इसके वाक्य के अंत में ई या फेर चुका है, चुके है चुकी है आदि शब्दों का प्रयोग किया जाता है।

उदाहरण–:मोहन आया है। 

           रिया ने पुस्तक पढ़ी है।

           श्याम खाना खा चुका है

(iv) संदिग्ध वर्तमानकाल

 क्रिया के जिस रूप से कार्य के पूरा होने में संदेह होता है या कार्य पूरा नहीं हुआ हो वहां पर संदिग्ध वर्तमान काल होता है। इससे वाक्य के अंत में रहा होगी, रही होगी, रहे होगे आदि शब्दों का प्रयोग किया जाता है।

उदाहरण–: माँ खाना बना रही होगी। 

                माली पौधों को पानी दे रहा होगा

               बच्चे अब गाना गा रहे होंगे।

(v) तत्कालिक वर्तमानकाल

 क्रिया के जिस रूप से यह पता चलता है कि कार्य वर्तमानकाल में हो रही है उसे तात्कालिक वर्तमानकाल कहते हैं।

उदाहरण–: गीता पढ़ रही है।

             रमेश जा रहा है।

(vi)सम्भाव्य वर्तमानकाल 

 इससे वर्तमानकाल में काम के पूरा होने की सम्भवना रहती है। उसे सम्भाव्य वर्तमानकाल कहते हैं। संभाव्य का अर्थ होता है संभावित या जिसके होने की संभावना हो।

(2)भूतकाल 

 क्रिया के जिस रूप से कार्य का भूतपूर्व समय अर्थात आज से पहले समय में होने का बोध हो उसे भूतकाल कहते हैं। इसमें कार्य बीते हुए समय में किया जाता है। भूतकाल के वाक्य के अंत में था, थे, थी आदि शब्द आते हैं।

उदाहरण–: दीपक खाना खा चुका था

              बच्चो ने अपना पाठ याद किया

               रीमा ने पुस्तक पढ़ ली थी।

भूतकाल के छह भेद होते है

(i)सामान्य भूतकाल

(ii)आसन भूतकाल 

(iii)पूर्ण भूतकाल

(iv)अपूर्ण भूतकाल 

(v)संदिग्ध भूतकाल 

(vi)हेतुहेतुमद् भूत

(i) सामान्य भूतकाल

दूसरे शब्दों में-क्रिया के जिस रूप से काम के सामान्य रूप से बीते समय में पूरा होने का बोध हो, उसे सामान्य भूतकाल कहते हैं। इसमें किसी विशेष समय का बोध नहीं होता है।

उदाहरण –: अमित आया।

               कृष्ण ने कंस को मारा

(ii) आसन्न भूतकाल

क्रिया के जिस रूप से यह पता चले कि क्रिया अभी कुछ समय पहले ही पूर्ण हुई है, उसे आसन्न भूतकाल कहते हैं।

उदाहरण–  रीना ने आम खाया हैं।

             गीता अभी सो कर उठी है।

[ⅲ] पूर्ण भूतकाल

 क्रिया के जिस रूप से कार्य के पूरा होने के समय का बोध होता है उसे पूर्ण भूतकाल कहते है। इसमें कार्य तत्काल समय में पूरा हुआ होता है। 

उदाहरण–  राम ने रावण को मारा था।

                तन्नू अमित के घर गई थी।

पूर्ण भूतकाल में क्रिया के साथ ‘था, थी, थे, चुका था, चुकी थी, चुके थे आदि लगता है।

(iv) अपूर्ण भूतकाल

 क्रिया के जिस रूप से यह पता चले की कार्य अभी पूरा नहीं हुआ है चल रहा था उसे अपूर्ण भूतकाल कहते हैं। इन वाक्यों में अंत में रहा था, रहे थे, रही थी आदि शब्द आते हैं।

उदाहरण–:  मीना नाच रही थी।

               अभय गा रहा था।

(v) संदिग्ध भूतकाल

क्रिया के जिस रूप से कार्य के होने में निश्चितता न हो और संदेह प्रकट करते हो उसे संदिग्ध भूतकाल कहते है। इसमें यह सन्देह बना रहता है कि भूतकाल में कार्य पूरा हुआ या नही। इस वाक्य के अंत में होगा, चुका होगा, होगी आदि शब्दों का प्रयोग किया जाता है।

उदाहरण– तुमने सेब खाया होगा।

             उस समय बारिश आई होगी।

             सभी ने गाना गया होगा।

(vi) हेतुहेतुमद् भूतकाल

हेतु का अर्थ है कारण। जिस वाक्य में एक क्रिया का भार दूसरी क्रिया पर पड़े अर्थात  एक क्रिया का होना या ना होना दूसरी क्रिया के होने या ना होने पर निर्भर हो वह हेतुहेतुमद् भूतकाल क्रिया कहलाती है। इससे यह पता चलता है की क्रिया भूतकाल में होने वाली थी लेकिन किसी कारण नहीं हो सकी।

उदाहरण–:

यदि तुमने परिश्रम किया होता, तो पास हो जाते।

यदि वर्षा होती, तो फसल अच्छी होती।

उपर्युक्त वाक्यों की क्रियाएँ एक-दूसरे पर निर्भर हैं। पहली क्रिया के न होने पर दूसरी क्रिया भी पूरी नहीं होती है। अतः ये हेतुहेतुमद् भूतकाल की क्रियाएँ हैं।

(3)भविष्यत काल

क्रिया के जिस रूप से कार्य का आने वाले समय में होने का बोध हो तो उसे भविष्य काल की क्रिया कहते है। इन वाक्यों के अंत में गा, गै, गी आदि आते है।

जैसे– दीपक विद्यालय जाएगा।

        हम सभी मेला देखने जायेंगे।

भविष्यकाल के तीन भेद होते है

(i)सामान्य भविष्यत काल

(ii)सम्भाव्य भविष्यत काल

(iii)हेतुहेतुमद्भविष्य भविष्यत काल

(i)सामान्य भविष्यत काल 

 क्रिया के जिस रूप से उसके भविष्य में सामान्य ढंग से होने का पता चलता है, उसे सामान्य भविष्य काल कहते हैं।

इससे यह प्रकट होता है कि क्रिया सामान्यतः भविष्य में होगी।

जैसे- बच्चे फुटबॉल खेलेंगे।

       वह दिल्ली जायेगा।

       मोहन पुस्तकें बेचेगा।

(ii)सम्भाव्य भविष्यत काल

क्रिया के जिस रूप से उसके भविष्य में होने की संभावना का पता चलता है, उसे सम्भाव्य भविष्यत काल कहते हैं।

जिससे भविष्य में किसी कार्य के होने की सम्भावना हो।

जैसे- शायद वह मुंबई जाए।

परीक्षा में शायद मैं सफल हो जाऊं।

(iii) हेतुहेतुमद्भविष्य भविष्यत काल

क्रिया के जिस रूप से एक कार्य का पूरा होना दूसरी आने वाले समय की क्रिया पर निर्भर हो उसे हेतुहेतुमद्भविष्य भविष्य काल कहते है।

जैसे- मोहन घर आए तो मै खाना खाऊंगा।

        वह मुझे लेने आयेगा तभी मैं जाऊंगी।

 

अधिकतर पूछे गए प्रश्न

1. काल से आप क्या समझते है?

उत्तर: काल का अर्थ समय होता है, इसलिए क्रिया के जिस रूप से किसी काम के होने या उसके करने के समय का पता चलता है, उसे काल कहते है।जिससे कार्य समय का पता चले उस समय को काल कहते हैं।

2. काल के कितने भेद होते हैं?

उत्तर: कौन सा कार्य किस काल में किया गया है अर्थात किस समय में कार्य किया गया है यह जानने के लिए काल को तीन भेदों में बांटा गया हैं।

वर्तमान काल

भूत काल

भविष्य काल

3.भविष्य काल किसे कहते है?

उत्तर: क्रिया के जिस रूप से कार्य का आने वाले समय में होने का बोध हो तो उसे भविष्य काल की क्रिया कहते है। इन वाक्यों के अंत में गा, गै, गी आदि आते हैं। जैसे- वह कल घर जाएगा।

4.संदिग्ध भूत काल किसे कहते है?

उत्तर: क्रिया के जिस रूप से कार्य के होने में निश्चितता न हो और संदेह प्रकट करते हो उसे संदिग्ध भूतकाल कहते है।इसमें यह सन्देह बना रहता है कि भूतकाल में कार्य पूरा हुआ या नही। इस वाक्य के अंत में होगा, चुका होगा, होगी आदि शब्दों का प्रयोग किया जाता है।

जैसे- तू गाया होगा।

5. तत्कालिक वर्तमान काल किसे कहते है?

उत्तर: क्रिया के जिस रूप से यह पता चलता है कि कार्य वर्तमानकाल में हो रही है उसे तात्कालिक वर्तमानकाल कहते हैं।

जैसे- मै पढ़ रहा हूँ। वह जा रहा है।

सर्वनामसंज्ञा
प्रत्ययअलंकार
वर्तनीपद परिचय
वाक्य विचारसमास
लिंगसंधि
विराम चिन्हशब्द विचार
अव्ययकाल

भाषा

भाषा शब्द संस्कृत के भाष धातु से बना है जिसका अर्थ है कहना या बोलना। इस प्रकार भाषा वह है जिसे बोला या कहा जाए। भाषा संप्रेषण का एक अच्छा माध्यम है। जिससे रोज मर्रा का जीवन आसान होता है। आज संप्रेषण के माध्यम से ही इंसान का जीवन संभव हो सका है। संप्रेषण भाषा के बिना संभव नहीं है।

भाषा किसी भी व्यक्ति के जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। भाषा वह साधन है जिसके द्वारा मनुष्य अपने विचारों को लिखकर, बोलकर, पढ़कर, सुनकर और संकेतों के द्वारा दूसरों तक पहुंचता है और दूसरों के विचारों को समझता है।

भाषा को लिखने बोलने के आधार पर कुछ भागों में बांटा गया है। संप्रेषण को किस तरह से किया जा सकता है और यह कितना महत्वपूर्ण है इस सभी के बारे में बताया गया है। भाषा तीन प्रकार की होती है।

  1. लिखित भाषा 
  2. मौखिक भाषा
  3. सांकेतिक भाषा

1)लिखित भाषा –: भाषा का वह रूप जिसके द्वारा व्यक्ति अपने विचारों को लिखने के माध्यम से दूसरे व्यक्ति तक पहुंचाता है, उसे लिखित भाषा कहते हैं। लिखित भाषा के माध्यम से विचारों का आदान प्रदान लिखकर किया जाता है। विचारों को अभिव्यक्ति लिखकर की जाती है। लिखकर अपने विचारों को प्रकट करने का एकबच्चा उदाहरण पुस्तकें हैं, जो विद्यालयों में पाठ्यक्रम के रूप में लगाई जाती है। पुस्तकों के माध्यम से वहां लिखित रूप में संप्रेषण होता है।

2)मौखिक भाषा –: भाषा का वह रूप जिसके द्वारा व्यक्ति अपने विचारों की अभिव्यक्ति बोलकर करता है, उसे मौखिक भाषा कहते हैं। इसमें वक्ता प्रभावी ढंग से अपनी बातों और विचारों को सबके सामने रखता है। इसमें विचारों का आदान प्रदान बोलकर किया जाता है।मौखिक भाषा का एक अच्छा उदहारण किसी सभा को संबोधित करना है। जिससे वक्ता सभी श्रोताओं के पास अपने विचारों को बोलकर पहुंचाता है। यह भी मौखिक संप्रेषण का एक उदाहरण है।

3)सांकेतिक भाषा– भाषा का वह रूप जिसमें व्यक्ति अपनी बातों को संकेतों के द्वारा दूसरे व्यक्ति के समक्ष रखता है, उसे सांकेतिक भाषा कहते है। यह संकेत लिखित और मौखिक भी हो सकते है। इशारा करना भी एक प्रकार से संकेत है। इसलिए इसमें विचारों का आदान प्रदान सांकेतिक रूप से किया जाता है। सांकेतिक भाषा अधिकतर नेत्र हीन व्यक्तियों के लिए प्रयोग की जाती है। अधिकतर इस भाषा का प्रयोग किसी देश के जवानों द्वारा भी किया जाता है।

हिंदी में मानक भाषा का भी प्रयोग किया जाता है। यह भाषा का स्थिर और सुनिश्चित रूप होता है। यह भाषा शिक्षित वर्ग को भाषा होती है। इस भाषा में समाचार पत्र, पुस्तकें, और खत आदि का प्रकाशन किया जाता है। इसमें व्याकरण की प्रक्रिया निश्चित होती है। इसका प्रयोग भाषा के नियमों का ध्यान रखते हुए किया जाता है। हिंदी के अतिरिक्त अंग्रेजी, फ्रेंच, ग्रीक, संस्कृत आदि भाषाएं भी मानक भाषा के रूप में प्रयोग की जाती है

भाषा को किस तरह बोला जाता है तथा कैसे उसका प्रयोग किया जाता है। इसके आधार पर भाषा के पांच भेद है।

  1. लिपि 
  2. ध्वनि
  3. वर्ण
  4. शब्द
  5. वाक्य

1)लिपि –: लिपि में बिना भाषा का लिखित रूप संभव नहीं है। मौखिक भाषा को लिखित भाषा में प्रयोग करने के लिए जिन चिन्हों का प्रयोग किया जाता है, उसे लिपि कहते है। हिंदी भाषा की लिपि देवनागरी है। जिसमे हिंदी भाषा को लिखा जाता है।

2.ध्वनि –: हमारे मुख से निकलने वाली प्रत्येक आवाज ध्वनि होती हैं। यह ध्वनि स्वतंत्र होती है। यह ध्वनियां मौखिक भाषा में प्रयोग होते हैं।

3. वर्ण –: भाषा की इकाई होती है। यह वह छोटी से छोटी ध्वनि जिसके टुकड़े नहीं किए जा सकते हैं, उसे वर्ण कहते हैं। वर्ण मूल ध्वनि होती है। इसे भाषाबकी लघुतम इकाई भी कहा जाता है।

4.शब्द –: वर्णों का वह समूह जिसके जुड़ने पर कोई अर्थ निकलता है, उसे शब्द कहते है। वर्णों के समूह को जिसका अर्थ निकले उसे शब्द कहते हैं।

5.वाक्य –: शब्दों का वह समूह जिसका अर्थ निकलता हो उसे वाक्य कहते है। वाक्य एक पूरे अर्थ को अच्छे से स्पष्ट करता है।

इस प्रकार भाषा के भेदों के कारण भाषा की रचना में सहायता मिलती हैं। जिससे भाषा के रूप में कोई बदलाव न आए।

अधिकतर पूछे गए प्रश्न

1)भाषा से आप क्या समझते है?

उत्तर:भाषा शब्द संस्कृत के भाष धातु से बना है जिसका अर्थ है कहना या बोलना। इस प्रकार भाषा वह है जिसे बोला या कहा जाए।भाषा संप्रेषण का एक अच्छा माध्यम है। जिससे रोज मर्रा का जीवन आसान होता है। आज संप्रेषण के माध्यम से ही इंसान का जीवन संभव हो सका है। संप्रेषण भाषा के बिना संभव नहीं है।

भाषा किसी भी व्यक्ति के जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। भाषा वह साधन है जिसके द्वारा मनुष्य अपने विचारों को लिखकर, बोलकर, पढ़कर, सुनकर और संकेतों के द्वारा दूसरों तक पहुंचता है और दूसरों के विचारों को समझता है।

2)भाषा के कितने प्रकार है?

उत्तर:भाषा को लिखने बोलने के आधार पर कुछ भागों में बांटा गया है। भाषा तीन प्रकार की होती है।

लिखित भाषा 

मौखिक भाषा

सांकेतिक भाषा

3)मानक भाषा से आप क्या समझते है?

उत्तर: हिंदी में मानक भाषा का भी प्रयोग किया जाता है। यह भाषा का स्थिर और सुनिश्चित रूप होता है। यह भाषा शिक्षित वर्ग को भाषा होती है। इस भाषा में समाचार पत्र, पुस्तकें, और खत आदि का प्रकाशन किया जाता है। इसमें व्याकरण की प्रक्रिया निश्चित होती है। इसका प्रयोग भाषा के नियमों का ध्यान रखते हुए किया जाता है। हिंदी के अतिरिक्त अंग्रेजी, फ्रेंच, ग्रीक, संस्कृत आदि भाषाएं भी मानक भाषा के रूप में प्रयोग की जाती है

4)भाषा के लिखित रूप से आप क्या समझते है?

उत्तर: भाषा का वह रूप जिसके द्वारा व्यक्ति अपने विचारों को लिखने के माध्यम से दूसरे व्यक्ति तक पहुंचाता है, उसे लिखित भाषा कहते हैं। लिखित भाषा के माध्यम से विचारों का आदान प्रदान लिखकर किया जाता है। विचारों को अभिव्यक्ति लिखकर की जाती है।

5)लिपि से आप क्या समझते है?

उत्तर:लिपि में बिना भाषा का लिखित रूप संभव नहीं है। मौखिक भाषा को लिखित भाषा में प्रयोग करने के लिए जिन चिन्हों का प्रयोग किया जाता है, उसे लिपि कहते है। हिंदी भाषा की लिपि देवनागरी है। जिसमे हिंदी भाषा को लिखा जाता है।