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शब्द विचार

शब्दों की जानकारी और उस शब्द का पूर्ण ज्ञान होना शब्द विचार कहलाता है। शब्द विचार हिन्दी व्याकरण का दूसरा भाग है। इसके अंतर्गत ध्वनियों के मेल से बने सार्थक वर्ण समूह जैसे-भेद-उपभेद, संधि-विच्छेद आदि को पढ़ा जाता है।

इसके अंतर्गत शब्द की परिभाषा, भेद-उपभेद, संधि, विच्छेद, रूपांतरण, निर्माण आदि से संबंधित नियमों पर विचार किया जाता है।

शब्द की परिभाषा

वर्णों या अक्षरों से बना ऐसा स्वतंत्र समूह जिसका कोई अर्थ हो, वह समूह शब्द कहलाता है। जैसे: लड़का, लड़की आदि।

शब्द विचार का वर्गीकरण

शब्द विचार चार्ट
                                                                        शब्द विचार का चार्ट

–:अर्थ के आधार पर

–:बनावट या रचना के आधार पर

–:प्रयोग के आधार पर

–:उत्पत्ति के आधार पर

अर्थ के आधार पर शब्द के भेद

1. सार्थक शब्द:

वे शब्द जिनसे कोई अर्थ निकलता हो, सार्थक शब्द कहलाते हैं। जैसे: गुलाब, आदमी, विषय आदि।

2. निरर्थक शब्द :

वे शब्द जिनका कोई अर्थ ना निकल रहा हो या जो शब्द अर्थहीन हो, निरर्थक शब्द कहलाते हैं। जैसे: देना-वेना, मुक्का-वुक्का आदि।

रचना (बनावट) के आधार पर शब्द के भेद

रचना के आधार पर शब्द के निम्नलिखित तीन भेद होते हैं:

1. रूढ़ शब्द :

ऐसे शब्द जो किसी विशेष अर्थ को प्रकट करते हैं लेकिन अगर उनके टुकड़े कर दिए जाएँ तो निरर्थक हो जाते हैं। ऐसे शब्दों को रूढ़ शब्द कहते हैं। जैसे: जल, कल, जप आदि।

2. यौगिक शब्द

ऐसे शब्द जो किन्हीं दो सार्थक शब्दों के मेल से बनते हों वे शब्द यौगिक शब्द कहलाते हैं। इन शब्दों के खंड भी सार्थक होते हैं। जैसे: स्वदेश : स्व + देश, देवालय : देव + आलय, कुपुत्र : कु + पुत्र आदि।

3. योगरूढ़ शब्द

ऐसे शब्द जो किन्हीं दो शब्द के योग से बने हों एवं बनने पर किसी विशेष अर्थ का बोध कराते हैं, वे शब्द योगरूढ़ शब्द कहलाते हैं। जैसे: दशानन : दस मुख वाला अर्थात रावण , पंकज : कीचड़ में उत्पन्न होने वाला अर्थात कमल आदि

बहुब्रिही समास ऐसे शब्दों के अंतर्गत आते हैं।

प्रयोग के आधार पर शब्द के भेद

प्रयोग के आधार पर शब्द के दो भेद होते हैं :

1. विकारी शब्द :

ऐसे शब्द जिनके रूप में लिंग, वचन, कारक के अनुसार परिवर्तन होते हैं, वे शब्द विकारी शब्द कहलाते हैं। जैसे:

लिंग : बच्चा पढता है। –बच्ची पढ़ती है।

वचन : बच्चा सोता है। – बच्चे सोते हैं।

कारक : बच्चा सोता है। – बच्चे को सोने दो। बच्चा शब्द है यह लिंग, वचन वचन एवं कारक के अनुसार परिवर्तित हो रहा है। अतः यह विकारी शब्दों के अंतर्गत आएगा।

2. अविकारी शब्द :

ऐसे शब्द जिन पर लिंग, वचन एवं कारक आदि से कोई फर्क नहीं पड़ता एवं जो अपरिवर्तित रहते हैं। ऐसे शब्द अविकारी शब्द कहलाते हैं। जैसे: तथा, धीरे, किन्तु, परन्तु, तेज़, अधिक आदि।

 शब्द लिंग, वचन कारक आदि बदलने पर भी अपरिवर्तित रहेंगे। अतः ये उदाहरण अविकारी शब्दों के अंतर्गत आएँगे।

उत्पत्ति के आधार पर शब्द के भेद

उत्पत्ति के आधार पर शब्द के चार भेद होते हैं:

1. तत्सम शब्द :

तत् (उसके) + सम (समान) यानी ऐसे शब्द जिनकी उत्पत्ति संस्कृत भाषा में हुई ओर वे हिन्दी भाषा में बिना किसी परिवर्तन के प्रयोग में आने लगे, ऐसे शब्द तत्सम शब्द कहलाते हैं। जैसे: पुष्प, पुस्तक, पृथ्वी, क्षेत्र, कार्य, मृत्यु, कवि, माता, विद्या, नदी, फल, अग्नि, पुस्तक आदि।

2. तद्भव शब्द :

ऐसे शब्द जिनकी उत्पत्ति संस्कृत भाषा से हुई थी लेकिन वो रूप बदलकर हिन्दी में आ गए हों, ऐसे शब्द तद्भव शब्द कहलायेंगे। जैसे:

दुग्ध – दूध

अग्नि – आग

कार्य –काम

कर्पूर–  कपूर

हस्त – हाथ

3. देशज शब्द

ऐसे शब्द जो भारत की विभिन्न स्थानीय बोलियों में से हिंदी में आ गए हैं, वे शब्द देशज शब्द कहलाते हैं। जैसे: पेट, डिबिया, लोटा, पगड़ी, थैला, इडली, डोसा, समोसा, चमचम, गुलाबजामुन, लड्डु, खटखटाना, खिचड़ी आदि।

ऊपर दिए गए सभी उदाहरण भारत की ही विभिन्न स्थानीय बोलियों में से क्षेत्रीय प्रभाव के कारण परिस्थिति व आवश्यकतानुसार बनकर प्रचलित हो गए हैं। ये अब हिन्दी में आ गए हैं। अतः यह शब्द देशज शब्द कहलाएँगे।

4. विदेशी शब्द

ऐसे शब्द जो भारत से बाहर की भाषाओं से हैं लेकिन ज्यों के त्यों हिन्दी में प्रयुक्त हो गए, वे शब्द विदेशी शब्द कहलाते हैं। मुख्यतः यह विदेशी जातियों से हमारे बढ़ते मिलन से हुआ है। ये विदेशी शब्द उर्दू, अरबी, फारसी,अंग्रेजी, पुर्तगाली, तुर्की, फ्रांसीसी, ग्रीक आदि भाषाओं से आए हैं।

विदेशी शब्दों के उदाहरण निम्न हैं :

अंग्रेजी–: कॉलेज, पैंसिल, रेडियो, टेलीविजन, डॉक्टर, लैटरबक्स, पैन, टिकट, मशीन, सिगरेट, साइकिल आदि।

फारसी–: अनार,चश्मा, जमींदार, दुकान, दरबार, नमक, नमूना, बीमार, बरफ, रूमाल, आदमी, चुगलखोर, आदि।

अरबी–:औलाद,अमीर, कत्ल, कलम, कानून, खत, फकीर, रिश्वत, औरत, कैदी, मालिक, गरीब आदि।

अधिकतर पूछे गए प्रश्न–:

1.शब्द विचार को कितने आधार पर बाँटा गया है?

उत्तर:शब्द विचार को 5 आधार पर बाँटा गया है-

1.अर्थ के आधार पर

2.बनावटया रचना के आधार पर

3.प्रयोगके आधार पर

4.उत्पत्ति के आधार पर

5.अर्थ के आधार पर 

2. रूढ़ शब्द किसे कहते है?

उत्तर: ऐसे शब्द जो किसी विशेष अर्थ को प्रकट करते हैं लेकिन अगर उनके टुकड़े कर दिए जाएँ तो निरर्थक हो जाते हैं। ऐसे शब्दों को रूढ़ शब्द कहते हैं। जैसे: जल, कल, जप आदि।

3.किसी अन्य भाषा और देश के शब्द किस वर्ग में आते है?

उत्तर:ऐसे शब्द जो भारत से बाहर की भाषाओं से हैं लेकिन ज्यों के त्यों हिन्दी में प्रयुक्त हो गए, वे शब्द विदेशी शब्द कहलाते हैं।

4.हिंदी व्याकरण का दूसरा भाग किसे कहते है?

उत्तर: हिंदी व्याकरण का दूसरा भाग शब्द विचार को कहा जाता है।

5. ‘दंत’ कैसा शब्द है?

उत्तर: दंत ‘तद्भव’ शब्द है।जिनकी उत्पत्ति संस्कृत भाषा से हुई थी लेकिन वो रूप बदलकर हिन्दी में आ गए हों, ऐसे शब्द तद्भव शब्द होते हैं।

इन्हे भी पढ़िये

सर्वनामसंज्ञा
प्रत्ययअलंकार
वर्तनीपद परिचय
वाक्य विचारसमास
लिंगसंधि
विराम चिन्हशब्द विचार
अव्ययकाल

Left Ventricle Vs Right Ventricle

Introduction

The human heart has four chambers that  are crucial to the circulatory system and the left and right ventricles are two of them. The blood is pumped throughout the body and to the lungs, where it is oxygenated, by the left and right ventricles working in tandem. The two ventricles cooperate to effectively remove wastes like carbon dioxide from the body and to keep the body’s blood oxygen-rich at all times.

Circulatory system

The circulatory system’s main job is to deliver blood, oxygen, and nutrition to the body’s cells and remove waste materials. The circulatory system is in charge of keeping the body’s internal environment, or homeostasis, stable.

Here’s how the circulatory system accomplishes its main functions:

  1. Transporting oxygen: Blood pumped by the heart is rich in oxygen, which is essential for the cells of the body to function properly. The circulatory system carries oxygen to all parts of the body through the arteries and capillaries.
  2. Transporting nutrients: The blood also carries nutrients, such as glucose and amino acids, to the cells of the body to provide energy and support growth and repair.
  3. Removing waste products: The circulatory system removes waste products, including carbon dioxide and urea, from the body by transporting them to the kidneys, liver, and lungs for elimination.
  4. Regulating temperature: It helps to regulate body temperature by transporting heat from the skin, which is the body’s main source of heat loss.
  5. Supporting immune function: The circulatory system supports the immune system by transporting white blood cells to areas of the body where they are needed to fight infection.

Diagram of circulatory system blood flow

Difference Between Left And Right Ventricle

Anatomy of the Left and Right Ventricle

The left ventricle is present at the lower left part of the heart and is the thickest chamber. It receives blood rich in oxygen from the left atrium and pumps it out by  the aortic valve, transporting it to the rest of the body. The right ventricle is present in the lower right part of the heart and is thinner compared to the left ventricle. The oxygen-deficient blood enters from the right atrium and pumps it out by the pulmonary valve to the lungs to pick up oxygen.

The left ventricle have much thicker because it has to pump blood to the rest of the body, thus requires more force. The left ventricle circular shape, compared to right ventricle, which is crescent-shaped.

Function 

The role of the left ventricle is pumping oxygen-rich blood to the rest of the body. This is done by contracting forcefully to create pressure that drives the blood out of the heart and into the aorta. The left ventricle also has a unique structure that allows it to maintain a high pressure for a longer period of time. This is because it has a thicker wall and a more efficient pumping mechanism than the right ventricle.

On the other hand, the right ventricle play a role in pumping oxygen-poor blood to the lungs. It does this by contracting and creating pressure that drives the blood out of the heart and into the pulmonary arteries, which carry the blood to the lungs. The right ventricle has a thinner wall than the left ventricle because it does not need to generate as much force to move blood to the lungs.

Conclusion

The circulatory system is made up of heart, arteries and blood. It delivers nutrients and oxygen to our body’s cells. Additionally, it eliminates waste materials like carbon dioxide. While the ventricle pumps blood out of the human heart, the auricles in mammals collect blood returning to the heart. Circulation is the continual flow of nutrients and waste materials through blood arteries. Maintaining heart health is crucial for our hearts to work properly.

 

Frequently Asked Questions 

1. What is double circulation?

Double circulation is a term used to describe the circulatory system of the human heart, in which blood flows twice through the heart before being supplied to the body. It involves two separate circulations of blood: pulmonary circulation and systemic circulation. Double circulation ensures that the oxygen-rich blood from the lungs is efficiently supplied to the body, while at the same time, the deoxygenated blood from the body is quickly returned to the lungs to be re-oxygenated.

2. Do humans have an open or closed circulatory system?

The human have a closed circulatory system. In this, the blood is separated from the tissues and organs by the walls of the blood vessels. 

3. What is a tricuspid valve?

Three unevenly shaped flaps make up the tricuspid valve. It is located between the right ventricle and right atrium, stops blood from flowing backward.

Difference Between Left And Right Kidney

Introduction 

Excretion is the process by which wastes and surplus fluid are eliminated from the bloodstream by generating urine in terms of the kidneys. The left and right kidneys are two of the body’s main organs involved in the excretion process. Despite being anatomically similar, there are some slight differences between the left and right kidneys.

What is Kidney?

The kidney is a vital organ in the human body that plays several important roles in maintaining good health. Filtering waste and extra fluid from the bloodstream, maintaining electrolyte balance, and generating hormones that control blood pressure and promote the creation of red blood cells are some of its essential duties as regulating the body’s acid-base balance. There are two kidneys, located on either side of the spine in the lower back, that work together to perform these functions. 

The right and the left kidney are two main types. Both kidneys are nearly identical in size and shape and perform the same functions. They are responsible for filtering waste and excess fluid from the bloodstream, balancing electrolytes, releasing hormones that control the body’s acid-base balance, and blood pressure, and stimulating red blood cell synthesis.

Structure of Kidney

The structure of the human kidney is composed of several different parts that work together to perform its various functions. Some of the key parts of the kidney include:

  1. Nephron: The fundamental structural and operational component of the kidney is the nephron. Each kidney contains a little over a million nephrons. Reabsorbing beneficial substances like glucose and amino acids into the bloodstream, the nephron filters the blood.
  2. Bowman’s capsule: It surrounds the glomerulus, a network of tiny blood vessels, and helps to filter waste and excess fluid from the bloodstream into the renal tubules.
  3. Renal tubules: The renal tubules are a series of tubes that carry waste and excess fluid from the Bowman’s capsule to the ureter. Reabsorbing beneficial molecules like glucose and amino acids back into the bloodstream is another function of the renal tubules.
  4. Ureter: The ureter is a tube that carries urine from the kidney to the bladder.
  5. Renal pelvis: Urine from the renal tubules is collected by the renal pelvis, a funnel-shaped organ, and is then directed into the ureter.
  6. Blood vessels: The kidney is supplied with blood by the renal arteries and drains into the renal veins. The blood vessels play a crucial role in filtering waste and excess fluid from the bloodstream and in regulating blood pressure.

structural view of both the kidney

Functions of the kidney

The kidneys are essential organs that perform several important functions in the human body, including:

  1. Filtering waste and excess fluid: Urine is produced by the kidneys as they filter waste and extra fluid from the bloodstream for elimination. This aids in preserving the body’s proper fluid and electrolyte balance.
  2. Balancing electrolytes: The kidneys help to regulate the levels of various electrolytes, such as sodium, potassium, and calcium, in the bloodstream.
  3. Regulating blood pressure: The kidneys produce hormones that regulate blood pressure by controlling the amount of fluid in the bloodstream.
  4. Stimulating red blood cell production: Erythropoietin, a hormone produced by the kidneys, encourages the bone marrow to create more red blood cells.
  5. Regulating acid-base balance: The kidneys help to regulate the body’s acid-base balance by removing excess acid or base from the bloodstream.
  6. Producing active vitamin D: Vitamin D is made active by the kidneys, which also aids in calcium absorption and the maintenance of healthy bones.

Nephron structure used in urine filtration

Maintenance of the kidney

To maintain good kidney health, there are several steps you can take, including:

  1. Staying hydrated: Drinking plenty of water helps to flush waste and excess fluid from the kidneys and maintain good kidney function.
  2. Eating a healthy diet: A diet high in fruits, vegetables, and whole grains and low in salt can support kidney function.
  3. Managing chronic conditions: It’s crucial to appropriately treat chronic conditions like diabetes or high blood pressure if you want to reduce their negative effects on your kidney health.
  4. Avoiding harmful substances: Substance abuse, such as heavy alcohol consumption and smoking, can harm kidney health.
  5. Exercising regularly: Regular exercise can help to improve circulation and maintain good kidney health.

Difference Between Left And Right Kidney

The left and right kidneys are almost identical in anatomy and function, with a few minor differences:

  1. Location: Due to the liver’s structure, the right kidney is situated slightly lower than the left kidney.
  2. Size: The two kidneys are generally of similar size, but in some people, one kidney may be slightly larger or smaller than the other.
  3. Blood supply: The left and right renal arteries have slightly different origins and branching patterns, but both supply the kidneys with blood and oxygen.
  4. Drainage: While the left kidney drains into the left renal vein, the right kidney drains into the inferior vena cava.

Conclusion

The kidneys are the bean-shaped structures on either side of the spine behind our stomach. It is our body’s major excretory organ. It eliminates metabolic waste from our bodies through urine. Filters the blood as well. Nephrons are the kidney’s structural unit. Individuals with serious health problems are at risk of damaging one or both kidneys. In the event that one kidney fails, the excretory function can be performed normally by the other kidney. Death might result from complete renal failure in both kidneys. In this scenario, dialysis should be attempted first, and if that fails, kidney transplantation should be considered.

Frequently Asked Questions 

1. What are some diseases related to Kidneys?

Many diseases and conditions can affect the kidneys and their ability to function properly. Some of the most common kidney-related diseases include:

  1. Chronic Kidney Disease
  2. Glomerulonephritis
  3. Acute Kidney Injury 
  4. Polycystic Kidney Disease 
  5. Nephrotic Syndrome
  6. Nephritis
  7. Kidney Stones

2. What is the role of electrolytes in the kidney?

The body’s electrolyte balance is crucially maintained by the kidneys. Electrolytes are minerals that carry an electrical charge and are necessary for numerous bodily processes, including sodium, potassium, calcium, and magnesium. The kidneys help regulate the levels of electrolytes in the blood by filtering the blood and reabsorbing the electrolytes that are needed by the body, while excreting the excess through urine.

3. What is the role of the kidney in osmoregulation?

Osmoregulation, or the control of the water balance and electrolyte content in the body, is a critical function of the kidneys. To maintain the right balance of electrolytes, such as sodium and potassium, in the blood, the kidneys filter the blood and remove extra water, salt, and waste materials. Through the reabsorption of ions and water, the kidneys actively manage the balance of water and electrolytes in the body in addition to filtering.

Difference Between Kwashiorkor And Marasmus

Introduction

Kwashiorkor and marasmus are two forms of malnutrition that occur primarily in young children in developing countries. Kwashiorkor is often seen in areas where there is adequate caloric intake but a limited variety of foods, such as in some developing countries. While Marasmus is often seen in populations affected by poverty, famine, and war, where there is limited access to food in general. Both kwashiorkor and marasmus are preventable and treatable, and early intervention is key to improving a child’s prognosis. 

lead magnet

Kwashiorkor

  • Kwashiorkor is a form of severe malnutrition that primarily affects young children in developing countries. It is caused by a deficiency of protein in the diet and is typically accompanied by a lack of essential vitamins and minerals.
  • Symptoms: The most noticeable symptom of kwashiorkor is edema, or the swelling of the extremities, which is caused by a buildup of fluid in the body due to a lack of protein. Other symptoms include thinning hair, a bloated abdomen, skin lesions, and muscle wasting. In severe cases, kwashiorkor can lead to stunted growth, anemia, and even death.
  • Kwashiorkor is a preventable and treatable condition, and early intervention is key to improving a child’s prognosis. This often involves providing a diet that is rich in protein and other essential nutrients, as well as addressing any underlying medical conditions that may be contributing to malnutrition. In some cases, supplementation with vitamins and minerals may also be necessary.
Child suffering from malnutrition condition with swollen belly
Kwashiorkor

Diagnosis

Kwashiorkor is diagnosed based on a combination of clinical and laboratory findings, as well as dietary information.

  • The primary diagnostic criteria for kwashiorkor include edema, changes in hair color and texture, skin lesions, and a distended abdomen. A healthcare provider will also typically ask about the child’s diet and check for signs of anemia, muscle wasting, and stunted growth.
  • Laboratory tests that may be performed to confirm a diagnosis of kwashiorkor include a complete blood count, serum protein levels, and liver function tests. These tests can help determine the extent of the protein and nutrient deficiency and identify any underlying medical conditions that may be contributing to the malnutrition.

Marasmus

  • Marasmus is a form of severe malnutrition that results from a deficiency of both energy and protein in the diet. It primarily affects young children in developing countries and is a major contributor to childhood morbidity and mortality.
  • Symptoms: The main symptoms of marasmus include severe weight loss, stunted growth, and muscle wasting. The child may also appear thin and frail, with loose and wrinkled skin, and have a diminished appetite. In severe cases, marasmus can lead to weakness, fatigue, anemia, and even death.
  • Marasmus is caused by a diet that is lacking in both calories and protein and is often seen in populations affected by poverty, famine, and war. The condition is preventable and treatable, and early intervention is key to improving a child’s prognosis.
Marasmus

Diagnosis

  • Marasmus is diagnosed based on a combination of clinical and laboratory findings, as well as dietary information.
  • The primary diagnostic criteria for marasmus include severe weight loss, stunted growth, and muscle wasting. A healthcare provider will also typically ask about the child’s diet and check for signs of weakness, fatigue, anemia, and other symptoms of malnutrition.
  • Laboratory tests that may be performed to confirm a diagnosis of marasmus include a complete blood count, serum protein levels, and liver function tests. These tests can help determine the extent of the energy and protein deficiency and identify any underlying medical conditions that may be contributing to malnutrition.
lead magnet

Difference Between Kwashiorkor And Marasmus

Kwashiorkor and marasmus are both forms of malnutrition, but they have some key differences.

  • Kwashiorkor is caused by a deficiency of protein in the diet, whereas marasmus is caused by a deficiency of both energy (calories) and protein. Kwashiorkor is characterized by edema (swelling), changes in hair color and texture, skin lesions, and a distended abdomen, whereas marasmus is characterized by severe weight loss, stunted growth, and muscle wasting.
  • Another important difference between the two conditions is their prevalence. Kwashiorkor is more commonly seen in areas where there is adequate caloric intake but a limited variety of foods, such as in some developing countries, whereas marasmus is seen in populations affected by poverty, famine, and war, where there is limited access to food in general.
  • Treatment for both conditions involves providing a diet that is rich in energy and protein, as well as addressing any underlying medical conditions that may be contributing to malnutrition. 

Treatment

  • The treatment of Kwashiorkor And Marasmus involves addressing the underlying cause of malnutrition by providing a diet that is rich in protein and other essential nutrients. This often involves incorporating more protein-rich foods, such as meat, dairy products, eggs, and legumes, into the child’s diet. In some cases, supplementation with vitamins and minerals may also be necessary to support recovery.
  • In severe cases of Kwashiorkor And Marasmus, hospitalization may be required to provide supportive care, including fluid and electrolyte replacement, and to monitor the child’s progress. With proper treatment, most children with kwashiorkor can recover fully, although some may experience long-term health consequences if the malnutrition is not treated early and effectively.

Conclusion

Malnutrition, kwashiorkor, and marasmus, primarily affect young children in impoverished nations. Both kwashiorkor and marasmus are preventable and treatable, and early intervention is key to improving a child’s prognosis. It is caused by a deficiency of protein in the diet and is typically accompanied by a lack of essential vitamins and minerals.

Frequently Asked Questions 

1. What disease is a deficiency of protein?

A deficiency of protein in the diet can lead to a type of malnutrition known as protein-energy malnutrition (PEM). PEM can present as two forms of malnutrition, kwashiorkor, and marasmus, which have different symptoms and impacts on the body.

2. Why does Kwashiorkor cause a swollen belly?

Kwashiorkor is a form of malnutrition that results from a lack of protein in the diet. The swelling is caused by the accumulation of fluid in the tissues, a condition known as edema. Edema occurs because of an imbalance between the amount of protein in the body and the amount of fluid in the tissues. 

3. At what age marasmus occurs?

Marasmus typically occurs in children under the age of 5, particularly during the first two years of life when they are most vulnerable to malnutrition. Marasmus is a form of protein-energy malnutrition (PEM) that results from a lack of both protein and energy in the diet.

Difference Between Herbs And Shrubs

Introduction

Herbs and shrubs are characterized by their growth habit and structure. Herbs are small, non-woody plants that typically have delicate leaves and stems. While Shrubs are larger, woody plants that have persistent stems that provide structure and support. Both herbs and shrubs play important roles in ecosystems and provide benefits to human societies. Understanding the differences between herbs and shrubs can help us appreciate the unique characteristics and uses of each type of plant.

Herbs

Herbs are defined as non-woody plants that are valued for their aromatic or flavorful leaves, stems, flowers, or other parts. They are usually smaller in size compared to shrubs and trees, and can grow either as annuals, perennials, or biennials. Herbs play important roles in various ecosystems, serving as food for pollinators, providing habitat for wildlife, and contributing to soil health. The growth and survival of herbs can be influenced by a variety of factors, including light, temperature, water, and soil nutrients.

In addition to their ecological importance, herbs have also been used by humans for thousands of years for medicinal purposes, as spices and flavorings, and as ornamental plants. Studying the biology of herbs can provide important insights into their uses and benefits to human society.

Examples of Herbs

Here are a few examples of herbs:

  1. Basil – a fragrant herb commonly used in Italian cooking
  2. Rosemary – an evergreen herb used for cooking and aromatherapy
  3. Mint – a refreshing herb used in teas, desserts, and sauces
  4. Thyme – a versatile herb used in many savory dishes
  5. Sage – and earthy herb used in stuffing, soups, and sauces
  6. Lavender – a fragrant herb used in perfumes, soaps, and teas
  7. Chives – a mild onion-flavored herb used in salads, soups, and dips
  8. Parsley – a bright green herb used as a garnish and in sauces and soups

Herbal garden with a different type of useful herbs

Shrubs

Shrubs are defined as woody plants that are typically smaller than trees and larger than herbs. They have a persistent woody stem that supports the plant and provides structure. Unlike trees, which have a single main stem (trunk) that supports the entire plant, shrubs have multiple stems that arise from the base of the plant and grow to a more limited height.

Shrubs play important roles in many ecosystems, providing food and habitat for wildlife, stabilizing soil, and helping to maintain biodiversity. They can be found in a variety of habitats, from deserts to wetlands, and can be adapted to different climates and soil types.

Examples of Shrubs

Here are a few examples of shrubs:

  1. Blueberry – a fruiting shrub with sweet, juicy berries
  2. Rhododendron – an evergreen shrub with showy flowers and glossy leaves
  3. Lilac – a deciduous shrub with fragrant flowers
  4. Boxwood – an evergreen shrub often used for hedges and topiary
  5. Azalea – a deciduous shrub with brightly colored flowers
  6. Holly – an evergreen shrub with glossy leaves and red berries
  7. Hydrangea – a deciduous shrub with large clusters of flowers
  8. Spirea – a deciduous shrub with delicate flowers

Different types of shrubs are used in gardens and houses

Differences between herbs and shrubs

Herbs and shrubs are both types of plants, but they have some key differences:

  1. Size: Herbs are typically smaller than shrubs and grow to a limited height, whereas shrubs are larger and have a more substantial structure.
  2. Structure: Herbs have non-woody stems that die back to the ground each year, whereas shrubs have persistent woody stems that support the plant and provide structure.
  3. Leaves: Herbs typically have leaves that are fragrant or flavorful and are used for culinary or medicinal purposes, while shrubs have leaves that are often larger and less fragrant.
  4. Flowers and fruits: Both herbs and shrubs can produce flowers and fruits, but the size and type of flowers and fruits can be different. Herbs often have small, delicate flowers, while shrubs often have larger, showy flowers.
  5. Life cycle: Herbs can be annual, biennial, or perennial, meaning that they live for different lengths of time. Shrubs are typically perennial, meaning that they can live for many years.
  6. Uses: Herbs are often used for culinary, medicinal, or aromatic purposes, while shrubs are used as ornamental plants, for wildlife habitat, and erosion control.

Conclusion

Herbs are defined as non-woody plants that are valued for their aromatic or flavorful leaves, stems, flowers, or other parts. The growth and survival of herbs shrubs can be influenced by a variety of factors, including light, temperature, water, and soil nutrients. Herbs play important roles in various ecosystems, serving as food for pollinators, providing habitat for wildlife, and contributing to soil health. Shrubs play important roles in many ecosystems, providing food and habitat for wildlife, stabilizing soil, and helping to maintain biodiversity. 

 

Frequently Asked Questions 

1. What are climbers?

Climbers are a type of plant that have stems that grow vertically and need support to reach the sunlight. Climbers are also known as vines and they are characterized by their ability to attach themselves to other structures, such as trees, fences, or walls, to reach the light they need to grow and flourish.

2. What is called uprooting?

Uprooting refers to the removal of a plant from the ground, along with its roots. This can be done for a variety of reasons, such as to relocate the plant, eliminate unwanted plants from a garden or landscape, or clear land for construction or farming purposes.

3. What are herbs, shrubs and trees with examples?

Herbs, shrubs, and trees are all types of plants that can be distinguished based on their size and structure.

  • Herbs are small, non-woody plants that die back to the ground after flowering. Examples of herbs include basil, mint, cilantro, and rosemary.
  • Shrubs are larger than herbs but smaller than trees, and they have multiple stems that are woody and persist above the ground. Examples of shrubs include azaleas, hydrangeas, and rhododendrons.
  • Trees are large, woody plants that have a single, continuous stem, or trunk, that supports branches and leaves. Examples of trees include oak trees, maple trees, and apple trees.

 

Difference Between Herbivores and Carnivores

Introduction

Herbivores and carnivores are two types of organisms that differ in their dietary habits and adaptations. Herbivores are animals that feed mainly on plants, such as leaves, stems, and roots. Carnivores, on the other hand, are animals that feed mainly on other animals. Together, herbivores and carnivores form a complex and interconnected web of life, with each playing an important role in the balance of ecosystems.

Herbivores 

Herbivores feed on plant-based diets and have adaptations in their digestive systems to process tough plant matter and extract nutrients. Some common examples of herbivores are rabbits, cows, horses, elephants, giraffes, deer, and gorillas.

Some common adaptations of Herbivores are:

  • Large digestive tract: Herbivores have a large and complex digestive tract that helps to break down tough plant fibers and extract nutrients.
  • Mouth structures: Some herbivores have specialized mouth structures, such as flat molars for grinding plant material, or sharp incisors for clipping leaves.
  • Fermentation: Many herbivores have a fermentation chamber in their digestive tract where microbes break down tough plant fibers and release nutrients.
  • Specialized enzymes: Herbivores produce enzymes, such as cellulase and pectinase, to break down plant cell walls and release the nutrients inside.
  • Food storage: Some herbivores have adaptations to store food, such as large cheek pouches, to allow them to gather and process large quantities of plant matter at once.

Types of Herbivores 

Herbivores can be classified based on the type of plants they consume and the adaptations they have developed to obtain nutrients from those plants. Some common classifications are:

  1. Grazers: Herbivores that feed mainly on grasses and other low-lying plants, such as cows, horses, and sheep.
  2. Browse Herbivores that feed on leaves, twigs, and branches of woody plants, such as deer and rabbits.
  3. Folivores: Herbivores that feed mainly on leaves, such as elephants and some species of monkeys.
  4. Frugivores: Herbivores that feed mainly on fruits, such as bears and some species of monkeys.
  5. Nectarivores: Herbivores feed mainly on nectar from flowers, such as hummingbirds and bats.
  6. Granivores: Herbivores that feed mainly on seeds, such as squirrels and some species of birds.

Carnivores 

Carnivores are animals that feed mainly on other animals, including both vertebrates and invertebrates. They are characterized by their sharp teeth and strong jaws, which are adaptations for hunting and killing prey. Some common examples of carnivores include lions, tigers, wolves, foxes, and hawks. Carnivores play an important role in maintaining the balance of ecosystems by controlling the populations of their prey species.

They have adaptations in their anatomy and behavior that allow them to hunt and feed on other animals effectively. 

Some common adaptations are:

  • Sharp teeth and strong jaws: Carnivores have sharp teeth and strong jaws that are adapted for cutting, tearing, and chewing meat.
  • Keen senses: Carnivores have highly developed senses, such as vision, hearing, and smell, which they use to locate and track prey.
  • Speed and agility: Many carnivores are fast runners or able to make sudden, powerful movements, which are adaptations for chasing and capturing prey.
  • Camouflage: Some carnivores have fur or feather patterns that help them blend into their surroundings and stalk prey unnoticed.
  • Hunting behavior: Carnivores have evolved behaviors, such as ambush hunting, cooperative hunting, and pack hunting, that allow them to capture prey efficiently.

Types of carnivores

Carnivores can be classified based on their anatomy, behavior, and diet. Some common classifications are:

  1. Feliformia: This group includes carnivores with a cat-like appearance, such as cats, hyenas, and mongooses. They have a short snout, powerful jaw muscles, and retractable claws.
  2. Caniformia: This group includes carnivores with a dog-like appearance, such as dogs, foxes, bears, and weasels. They have a longer snout, large jaw muscles, and partially retractable claws.
  3. Pinnipeds: This group includes marine carnivores, such as seals, sea lions, and walruses. They have adapted to life in the water, with specialized flippers and a thick layer of blubber for insulation.
  4. Birds of prey: This group includes birds that hunt and feed on other animals, such as eagles, hawks, and owls. They have sharp talons, strong beaks, and excellent vision and hearing.

These classifications are based on morphological and behavioral adaptations that reflect the lifestyles and dietary habits of each group of carnivores.

Differences between Herbivores and Carnivores

Herbivores and carnivores are different in several ways, including their anatomy, behavior, and diet.

  1. Diet: Herbivores feed mainly on plants, while carnivores feed mainly on other animals.
  2. Teeth and jaws: Herbivores have flat molars for grinding plant material, while carnivores have sharp teeth and strong jaws for tearing and chewing meat.
  3. Digestive system: Herbivores have longer intestines and complex gut flora to help break down plant material, while carnivores have a shorter intestines and simple gut flora to process animal flesh quickly.
  4. Adaptations for obtaining food: Herbivores have adaptations for obtaining and digesting plants, such as long necks for reaching high branches or large incisors for cutting tough vegetation, while carnivores have adaptations for hunting and killing prey, such as sharp claws and strong jaws.
  5. Role in the ecosystem: Herbivores play an important role in maintaining the balance of ecosystems by consuming plants and spreading their seeds, while carnivores control the populations of other species and maintain the balance of the food chain.

These differences reflect the adaptations that herbivores and carnivores have developed to obtain the nutrients they need from their respective food sources.

Conclusion 

Herbivores and carnivores are two types of organisms that differ in their dietary habits and adaptations. Herbivores are a type of animal that feeds mainly on plants and plant-based materials. Carnivores have adaptations in their anatomy and behavior that allow them to hunt and feed on other animals effectively. These differences reflect the adaptations that herbivores and carnivores have developed to obtain the nutrients they need from their respective food sources.

 

Frequently Asked Questions 

1. What do you mean by omnivores?

An omnivore is an organism that eats both plant and animal matter, including both organic and inorganic substances. Omnivores have a diverse diet and are able to adapt to a range of food sources

2. What is the relationship between carnivores and herbivores?

Herbivores play a crucial role in the food chain by serving as the primary consumers, converting plant matter into energy and nutrients that can be used by other organisms. They provide a source of food for carnivores and omnivores higher up the food chain and also help to maintain the balance of ecosystems by consuming and spreading the seeds of plants, contributing to their growth and diversity.

3. What do you understand about carnivorous plants?

Carnivorous plants are a group of plants that have evolved to capture and digest insects and other small animals as a source of nitrogen and other nutrients, due to their growth in nutrient-poor soil. Some of the most well-known carnivorous plants include Venus flytrap, pitcher plants, and sundews.

 

विराम

 विराम का अर्थ है “रुकना या ठहरना” किसी भी वाक्य को लिखते या बोलते समय बीच में कुछ पल का ठहराव आता है यही ठहराव या रुकना उस वाक्य को स्पष्ट, अर्थवान, भावपूर्ण बनाती है। लिखित भाषा में वाक्य प्रयोग के समय कुछ चिन्हों का प्रयोग किया जाता है वाक्य में कुछ पल के ठहराव के लिए प्रयुक्त होने वाले चिन्ह को विराम चिन्ह  कहा जाता है।

विराम चिन्ह को सरल भाषा में “रुकना या ठहरना” कहते हैं ,जो चिन्ह लिखते, बोलते या पढ़ते समय रुकने का संकेत देते हैं या ठहराव के लिए प्रयोग किये जाते हैं उन्हें “विराम चिन्ह” कहा जाता है। विराम चिन्ह को अंग्रेजी में punctuation marks कहा जाता है।

यदि विराम चिन्ह का प्रयोग न किया जाए तो अर्थ का अनर्थ हो जाता है। उदहारण के रूप में नीचे दिए गए वाक्य के विराम चिन्ह के स्थान से अलग लगाने पर वाक्य का अर्थ अलग निकल कर आता है ; जैसे –

  1. रोको मत जाने दो। (इस वाक्य में अर्थ स्पष्ट नहीं है )
  2. रोको, मत जाने दो। (इस वाक्य में अर्थ स्पष्ट है इसमें “रोको” के बाद अल्पविराम का प्रयोग किया गया है जिसमे रोकने के लिए कहा गया है।)
  3. रोको मत ,जाने दो। (इस “रोको मत” के बाद अल्पविराम लगाने से किसी को न रोक कर जाने के लिए कहा गया है। )

इस प्रकार से विराम चिन्ह के प्रयोग से दूसरे तथा तीसरे वाक्य का अर्थ अच्छे से स्पष्ट होता है किन्तु पहले वाक्य का अर्थ स्पष्ट उतने अच्छे से नहीं हो पाता है।

हिन्दी के विराम चिन्ह और उनके संकेत

विराम चिन्ह चार्ट
                                                                   viram chinh chart

1. पूर्ण विराम या विराम  [ । ]

हिंदी भाषा में पूर्ण विराम ऐसा चिन्ह है जिसका प्रयोग अधिकतर किया जाता है। पूर्ण विराम चिन्ह हिंदी का सबसे प्राचीन चिन्ह है।पूर्ण विराम को अंग्रेजी में full stop कहा जाता है। इसे (।) चिन्ह से दर्शाया जाता है ;पूर्ण विराम वाक्य के पूर्ण रूप से आशय प्रकट हो जाने के बाद लगता है।

 इस चिन्ह का प्रयोग प्रश्नवाचक तथा विस्मयादिबोधक वाक्यों को छोड़कर अन्य सभी सरल ,संयुक्त ,मिश्र वाक्यों के अंत में होता है जैसे –

  1. वह घर जा रहा है।
  2. वह स्कूल जाने वाला है।
  3. लड़का छत से नीचे गिर गया।
  4. मेने पढ़ा लिया है।

दोहा, श्लोक, चौपाई आदि की पहली पंक्ति के अंत में इसका प्रयोग होता है और दूसरी पंक्ति में दो पूर्ण विराम लगाए जाते हैं; जैसे –

रहिमन पानी रखिए बिन पानी सब सून।

पानी गए न उबरे मोती,मानुस,चून।।

किसी व्यक्ति ,वस्तु का सजीव वर्णन करते समय वाक्य के अंत में; जैसे –

  1. हट्टा कट्टा शरीर।
  2. सुन्दर काया।

2. अर्द्धविराम [ ; ]

अर्द्धविराम को अंग्रेजी में semicolon कहा जाता है। अर्द्धविराम का अर्थ है आधा विराम यानि पूर्ण विराम से थोड़ा कम विराम का समय जिस वाक्यों में लगता है वहां इस चिन्ह का प्रयोग होता है। अल्पविराम से अधिक रुकने और पूर्ण विराम से थोड़ा कम रुकने वाले वाक्य में इस चिन्ह का प्रयोग किया जाता है। आम तौर पर अर्ध विराम दो उपवाक्यों को जोड़ने का काम करता है ऐसे वाक्य जिन्हें “और” से नहीं जोड़ा जा सकता वहां अर्द्धविराम का प्रयोग किया जाता है; जैसे –

  1. फलों में आम को सर्वश्रेष्ठ फल मन गया है ;किन्तु श्रीनगर में और भी किस्म के फल विशेष रूप से पैदा होते हैं।
  2. उसने अपने बालक को बचाने के कई प्रयास किये; किन्तु सफल न हो सका

3. अल्पविराम  [ , ]

अर्द्धविराम से कम देर तक जिन वाक्यों में ठहराव होता है या जिनमे अर्द्धविराम की अपेक्षा थोड़ी देर ही रुकना पड़ता है उन वाक्यों में इस चिन्ह का प्रयोग होता है। इस चिन्ह को अंग्रेजी में comma कहा जाता है और इसे ( , ) चिन्ह के रूप में दर्शाया जाता है।

एक ही प्रकार के कई शब्दों का प्रयोग होने पर प्रत्येक शब्द के बाद में इस चिन्ह का प्रयोग होता है किन्तु अंतिम शब्द से पहले “और” का प्रयोग किया जाता है।

उदहारण -1. सीमा अपने घर ,परिवार और बच्चों को खो चुकी है।

‘हाँ’ ,’नहीं’, अतः, ‘वस्तुतः’ ,अच्छा ,जैसे शब्दों से शुरू होने वाले वाक्यों में इन शब्दों के उपरांत ;जैसे –

उदहारण -1. नहीं ,मैं नहीं आ सकता।

2. हाँ , तुम जाना चाहते हो तो जाओ।

उपाधियों  के लिए ;जैसे :

बी.ए , एम.ए., पी.एच. डी. ,बी.एस.सी।

सम्बोधन सूचक शब्दों में भी कभी कभी अल्पविराम चिन्ह का प्रयोग होता है ;जैसे –

उदाहरण -1. आशा ,तुम वहां जाओ।

युग्म शब्दों में अलगाव दर्शाने के लिए ;जैसे –

उदाहरण -1. सच और झूठ , कल और आज ,पाप और पुण्य।

पत्र सम्बोधन के उपरान्त ;जैसे

उदहारण -1. मान्यवर ,महोदय ,पूज्य पिताजी ,आदरणीय माताजी

कभी भी पत्र के अंत में भवदीय,आज्ञाकारी आदि के बाद अल्पविराम नहीं लगाया जाता है। 

किन्तु, परन्तु, क्योंकि आदि समुच्यबोधक शब्दों से पूर्व अल्पविराम लगाया जाता है ;जैसे –

उदाहरण – मैं आज खाना नहीं खाऊंगा ,क्योंकि मेरा मन नहीं है।

मैंने बहुत परिश्रम किया ,किन्तु सफल न हो पाया।

तारीख के साथ महीने का नाम लिखने के बाद तथा सन्, सम्वंत के पहले अल्पविराम का प्रयोग होता है ;जैसे –

उदाहरण– 15 अगस्त ,सन् 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ।

4.प्रश्नवाचक चिन्ह [ ? ]

प्रश्नवाचक चिन्ह को अंग्रेजी में MARK OF INTERROGATION कहा जाता है तथा इसे (?) चिन्ह से दर्शाया जाता है; वे सभी वाक्य जिनमे सवाल किये जा रहे हों या कुछ पूछा जा रहा हो प्रश्नवाचक चिन्ह का प्रयोग किया जाता है।

(a) ऐसे वाक्यों के अंत में प्रश्नवाचक चिन्ह का प्रयोग होता है; जैसे –

उदहारण –1. तुम कौन हो ?

2. तुम कहाँ जा रहे हो ?

3. तुम कल क्यों नहीं आये ?

 इस चिन्ह का प्रयोग संदेह प्रकट करने के लिए भी उपयोग में लाया जाता है ;जैसे–

क्या कहा वह ईमानदार ?है।

5. विस्मयादिबोधक चिन्ह [ ! ]

विस्मयादिबोधक चिन्ह को अंग्रेजी में mark of exclamation कहा जाता है और इसे (!)चिन्ह से दर्शाया जाता है।

 वाक्य में हर्ष, विवाद, विस्मय, घृणा, आश्रर्य, करुणा, भय आदि भावनाओं का बोध करने के लिए इस चिह्न का प्रयोग किया जाता है ;जैसे –

उदाहरण– 1. हे भगवान ! ऐसा कैसे हो गया।

2. छी:छी ! कितनी बदसूरत औरत है।

3 .आह ! कितना अच्छा मौसम है।

4 . वाह! आप कैसे पधारे।

 संबोधनसूचक शब्दों के बाद इसका प्रयोग किया जाता है ;जैसे –

उदाहरण -1. मित्रों !आज की सभा में आप सभी स्वागत है।

2. मेरे भाइयों बहनो ! आज में यहाँ आप सभी के सामने उपस्थित हूँ।

6. उद्धरण चिन्ह  [ ” ” ] [ ‘ ‘ ]

उद्धरण चिन्ह जिसे अंग्रेजी में inverted commas कहा जाता है इसे (” “) चिन्ह से दर्शाया जाता है। किसी महान व्यक्ति की उक्ति या किसी और के वाक्य या शब्दों को ज्यों का त्यों रखने में तथा खास शब्द पर जोर डालने के लिए अवतरण चिह्न ,उद्धरण चिन्ह (” ”) का प्रयोग किया जाता है ;जैसे :

तुलसीदास जी ने कहा –

“रघुकुल रीत सदा चली आई। प्राण जाए पर वचन न जाई।।”

“साहित्य राजनीती से आगे चलने वाली मशाल है। “

7. योजक [ – ]

योजक चिन्ह जिसे अंग्रेजी में hyphen कहा जाता है इसका प्रयोग दो शब्दों को जोड़ने के लिए किया जाता है जिन दो शब्दों को जोड़ने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है।

–:इसका प्रयोग सामासिक पदों या पुनरुक्ति ,युग्म शब्दों के मध्य में किया जाता है; जैसे

  1. माता -पिता
  2. जय-पराजय
  3. लाभ -हानि
  4. राष्ट्र-भक्ति।

–:तुलनवाचक ‘सा’, ‘सी ‘, ‘से’ के पहले इस चिन्ह का प्रयोग किया जाता है; जैसे –

  1. चाँद -सा मुखड़ा ,
  2. फूल-सी मुस्कान
  3. मोरनी-सी चाल

–:एक अर्थ वाले सहचर शब्दों के बीच में इस चिन्ह का प्रयोग होता है ;जैसे –

  1. मान- मर्यादा
  2. कपडा-लत्ता

–:सार्थक-निरर्थक शब्द युग्मो के बीच ;जैसे–

  1. काम -वाम
  2. खाना-वाना

8. निर्देशक  [ — ]

यह निर्देशक जिसे अंग्रेजी में dash कहा जाता है इसको (—) चिन्ह से दर्शाया जाता है। यह योजक चिन्ह से थोड़ा बड़ा होता है। इस चिन्ह का प्रयोग संवादों को लिखने के लिए ,कहना ,लिखना बोलना बताना शब्दों के बाद इसका प्रयोग होता है और किसी भी प्रकार की सूची से पहले इसका प्रयोग होता है।

–: संवादों को लिखने के लिए ;जैसे –

महेश — तुम यहाँ कब आये ?

सीमा — मैं कल सुबह यहाँ आ गयी थी।

–:कहना ,बोलना ,लिखना बताना इन शब्दों के बाद ;जैसे –

सुभाष चंद्र बॉस ने कहा —”तुम मुझे खून दो में तुम्हें आज़ादी दूंगा।”

गाँधी जी ने कहा— हिंसा मत करो।

–: किसी भी प्रकार की सूची से पहले इस चिन्ह का प्रयोग होता है ;जैसे –

आज की परीक्षा में शामिल होने वाले छात्रों के नाम निम्नलिखित है—प्रतिभा ,अर्चना ,स्वाति ,महिमा।

9. कोष्ठक  [ ( ) ]

कोष्ठक को अंग्रेजी में brackets कहा जाता है और इसे [( )] से दर्शाया जाता है। कोष्ठक के भीतर उस सामग्री को रखा जाता है जो मुख्य वाक्य का अंग होते हुए भी पृथक किया जा सके।

–: किसी कठिन शब्द को स्पष्ट करने के लिए इस चिन्ह का प्रयोग किया जाता है ;जैसे –

आपका सामर्थ्य (शक्ति) हर कोई जानता है।

–: नाटक में अभिनय करने वालों के निर्देशों को कोष्ठक में रखा जाता है ;जैसे –

सीता —(आगे बढ़ते हुए) हे धरती माँ मुझे अपनी गोद में समा ले।

10. हंसपद (त्रुटिबोधक)  [ ^ ]

हंसपद (त्रुटिबोधक) को अंग्रेजी में caret कहा जाता है और इसे (^ )चिन्ह से है ,इसका नाम हंसपद इसलिए है क्योंकि इस चिन्ह की आकृति हंस के पैर के सामान दिखाई देती है। जब किसी वाक्यॉंश या वाक्य में कोई शब्द या अक्षर लिखते समय छूट जाता है तो उस शब्द या अक्षर को लिखने के लिए वाक्य के जिस स्थान में वह शब्द छूटा था वहाँ से इस लगाकर वह शब्द या अक्षर लिखा जाता है छूटे हुए वाक्य के नीचे हंसपद चिन्ह का प्रयोग करके छूटे शब्द या अक्षर को ऊपर लिख दिया जाता है; जैसे –

उदहारण – तुम मुझे ^ दो मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा।यहाँ पर तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा होना था। आप जिस स्थान पर छूटे हुए शब्द को डालना चाहते हैं वहां पर हंसपद का प्रयोग करके उस शब्द को चिन्ह के ऊपर लिख देंगे ।

11. रेखांकन [ ____ ]

रेखांकन को अंग्रेजी में underline कहा जा जाता है इसको ( ___)चिन्ह से दर्शाया जाता है। वाक्य में महत्वपूर्ण शब्द या पद ,वाक्य को रेखांकित कर दिया जाता है ; जैसे –

हम सभी दिवाली पर माँ लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा करते हैं।

प्रेमचंद्र द्वारा लिखा गया उपन्यास गोदान सर्वश्रेष्ठ कृति है।

12. लाघव चिन्ह  [ ० ]

लाघव चिन्ह को अंग्रेजी में sign of abbreviation कहा जाता है इसको (० ) चिन्ह से दर्शाया जाता है। किसी भी शब्द या वाक्य को छोटे रूप में लिखने के लिए इस चिन्ह को प्रयोग में लाया जाता है ;जैसे –

  1. कृ० प० उ० जो की कृपया पृष्ठ उलटिये का संक्षिप्त रूप है।
  2. उ० न० नि० = उत्तराखंड नगर निगम
  3. उ० पा० का० लि० =उत्तराखंड पावर कारपोरेशन लिमिटेड

13. लोप चिन्ह  [ ….. ]

जब वाक्य में कुछ अंश को छोड़ना हो या उस अंश को छोड़कर वाक्य को लिखना हो तो लोप चिन्ह का किया जाता है। इसको डॉट-डॉट से दर्शाया जाता है। जैसे -महात्मा गाँधी ने कहा ,”परीक्षा की घडी आए चुकी है ……..हम करेंगे या मरेंगे”।

अधिकतर पूछे गए प्रश्न–

1. लाघव चिन्ह का प्रयोग किस लिए किया जाता है?

उत्तर: अक्षरों को छोटे रूप में लिखने के लिए लाघव चिन्ह का प्रयोग किया जाता है।

2. विराम का अर्थ क्या है?

उत्तर: विराम का अर्थ रुकना या ठहरना है। वाक्य में कुछ समय का ठहराव आता है।

3.तुम कहाँ जा रहे हो वाक्य में विराम चिन्ह लगाओ।

उत्तर: तुम कहाँ जा थे हो? वाक्य में प्रश्नवाचक चिन्ह आयेगा क्योंकि इसमें प्रश्न पूछा गया है।

4. हिन्दी में विराम चिन्ह के कितने भेद है?

उत्तर: हिंदी में विराम चिन्ह के 13 भेद है। जिनका प्रयोग वाक्य में किया जाता है।

5. विराम चिन्ह (punctuation) में कौन-सा विराम चिन्ह है?

उत्तर: इसमें कोष्ठक विराम चिन्ह का प्रयोग किया गया है क्योंकि ()के अंदर मुख्य वाक्य का अंग है।

सर्वनामसंज्ञा
प्रत्ययअलंकार
वर्तनीपद परिचय
वाक्य विचारसमास
लिंगसंधि
विराम चिन्हशब्द विचार
अव्ययकाल

लिंग

जिससे शब्द की जाति का बोध होता है तथा उनका अलग अलग वर्गीकरण किया जाता है, उसे लिंग कहते है। 

हिंदी में दो लिंग होते है– 

स्त्रीलिंग और पुल्लिंग।

1.स्त्रीलिंग- 

स्त्री और लिंग दो शब्दों से मिलकर बना हुआ है, इसलिए जो शब्द स्त्री जाति का बोध कराते हैं, उन्हें स्त्रीलिंग कहा जाता है। 

जैसे- राधा, पुत्री, लड़की, शेरनी, चिड़िया।

दिए गए शब्दों से स्त्री जाति का बोध होता है,इन्हें पुरुष जाति के शब्दों से अलग रखा है।

2. पुल्लिंग- 

पुल्लिंग पुरुष और लिंग दो शब्दों से मिलकर बना है, इसलिए स्त्रीलिंग के विपरीत जो शब्द पुरुष जाति का बोध कराते हैं, उन्हें पुल्लिंग कहते है।

जैसे– कृष्ण, शेर, लड़का।

दिए गए शब्दों से पुरुष जाति का बोध होता है, इन्हें स्त्री जाति के शब्दों से अलग रखा जाता है।

कुछ शब्द जो स्त्रीलिंग होते हैं–

1. ईकारांत शब्द– चिट्ठी, पत्री, बोली, गोली।

(ईकारांत शब्दों में अंत में ई की मात्रा लगाई जाती है।)

2.नदियों के नाम– गंगा, यमुना।

3.राशियों, तिथियों और नक्षत्रों के नाम– मेष, तुला, अश्विन, रोहिणी।

4.धातुओं के नाम– चांदी, मिट्टी।

5.संस्कृत के स्त्रीलिंग और नपुंसक लिंग– आशा, माता

संस्कृत भाषा में तीन लिंग (नपुंसक लिंग) होते है। लेकिन हिंदी भाषा में दो ही लिंग होते है।

6. समुदाय वाचक संख्याएँ – सेना, टीम, सभा फोज

जिसमें अनेक मनुष्य मिलकर एक चीज का बोध करवाते हैं, उसे समुदाय वाचक संख्या कहते है।

7.अनाज दालें – अरहर, मकई।

8.कुछ प्राणिवाचक शब्द– गाय, कोयल, मैना, बिल्ली।

कुछ शब्द जो पुल्लिंग होते हैं–

1.पर्वतों के नाम– हिमालय, शिवालिक।

2. भावनावाचक संज्ञाएँ – जिनके अंत में आव, पन, पा, त्व हो – बहाव, बचपन, बुढ़ापा।

3. महीने और दिनों के नाम– मंगलवार, चैत्र।

4. ग्रहों के नाम– बुध, राहु।

5.संस्कृत में नपुंसक लिंग– दही, मधु।

6. पेड़, अनाज, संबंधी शब्द– पीपल, आम, गेहूँ।

7.द्रव्यवाचक शब्द– सोना, तांबा।

पुल्लिंग से स्त्रीलिंग बनाने के नियम

1. अकारांत(अकारांत शब्द वे होते है जिन शब्दों के अंत में अ की ध्वनि आती है) और आकारांत शब्दों के अंत में ‘ई’ जोड़ देने से स्त्रीलिंग बन जाता है–

नाना– नानी

दादा–दादी

पुत्र–पुत्री

देव– देवी

कबूतर– कबूतरी

लड़का– लड़की

2.कुछ अकारांत शब्दों के अंत में ‘आ’ हटाकर ‘इया’ जोड़ दिया जाता है–

डिब्बा– डिबिया

बेटा–बिटिया

बूढ़ा –बुढ़िया

चूहा– चुहिया

3.कुछ व्यापार सूचक शब्दों के पीछे ‘इन ’ प्रत्यय लगाया जाता है।

जुलाहा– जुलाहीन

धोबी– धोबिन

ग्वाला– ग्वालिन

ठेठेरा– ठठेरिन

4.कुछ प्राणिवाचक शब्दों के पीछे ‘नी’ या ‘इनी’ लगाया जाता है।

हंस–हंसिनी

शेर–शेरनी

हाथी– हथिनी

5.कुछ प्राणिवाचक शब्दों के पीछे ‘आनी’ प्रत्यय लगाया जाता है।

नौकर– नौकरानी

देवर–देवरानी

जेठ– जेठानी

सेठ– सेठानी

6.कुछ अकारांत शब्दों के पीछे ‘आ’ प्रत्यय लगाया जाता है।(अकारांत शब्द वे होते है जिन शब्दों में पीछे आ की ध्वनि आती है)

शिव–शिव

सुत – सुता

बाल–बाला

शुद्र– शुद्रा

प्रिय– प्रिया

7. कुछ शब्दों के अंत में ‘वती’ या ‘मती’ लगाया जाता है

गुणवान– गुणवती

बुद्धिमान– बुद्धिमती

रूपवान–रूपवती

भगवान– भगवती

धनवान– धनवती

श्रीमान– श्रीमती

8.कुछ उपनाम संबंधी शब्दों के अंत में आइन प्रत्यय लगाया जाता है

लाला– ललाइन 

ठाकुर–ठकुराइन

पंडित– पंडिताइन

दुबे– दुबाइन

बाबू– बबुआइन

9.कुछ शब्दों के अंत में अक आता है उन्हें  स्त्रीलिंग बनाने के लिए ‘अक’ प्रत्यय का ‘इका’ कर लिया जाता है।

अध्यापक– अध्यापिका

नायक–नायिका

बालक–बालिका

लेखक– लेखिका

प्रेषक– प्रेषिका

सेवक– सेविका

10.कुछ शब्दों के अंत में ‘त्रि’ लगाया जाता है-

कवि–कवयित्री

कर्ता– कत्री

11.कुछ इकारांत शब्दों के अंत में ‘ई ’ प्रत्यय को ‘इ’ लगाकर ‘णी’ लगाया जाता है।

परोपकार– परोपकारिणी

अधिकार–अधिकारिणी

कल्याण–कल्याणकारिणी

सहधर्म– सहधर्मिणी

12.कुछ पुल्लिंगो के स्त्रीलिंग सर्वथा भिन्न होते हैं

वर –वधू

माता–पिता

राजा–रानी

विद्वान– विदुषी

अधिकतर पूछे गए प्रश्न

1. हिंदी में लिंग कितने प्रकार के होते?

उत्तर: हिंदी में लिंग दो प्रकार के होते है। जिससे किसी शब्द की जाति का बोध कराया जाता है।

पुल्लिंग और स्त्रीलिंग

2. ‘मैम’ का पुल्लिंग क्या होगा?

उत्तर:’मैम’ का पुल्लिंग ‘सर’ होगा क्योंकि इन शब्दों के लिंग सर्वथा भिन्न होते है। इनमें कोई नियम नहीं लगता है।

3.महीनों और दिनों के नामों को कौन से लिंग में रखा गया है?

उत्तर: महीनों और दिनों के नामों को पुल्लिंग में रखा गया है। इनसे पुरुष जाति का बोध होता है।

4.चाचा’ का स्त्रीलिंग क्या होता है?

उत्तर: चाचा का स्त्रीलिंग चाची होता है क्योंकि अकारांत और आकारांत शब्दों के अंत में ‘ई’ जोड़ दिया जाता है।

5.संस्कृत में कितने प्रकार के लिंग होते है?

उत्तर: संस्कृत में तीन प्रकार के लिंग होते है।

स्त्रीलिंग, पुल्लिंग, नपुंसक लिंग।

सर्वनामसंज्ञा
प्रत्ययअलंकार
वर्तनीपद परिचय
वाक्य विचारसमास
लिंगसंधि
विराम चिन्हशब्द विचार
अव्ययकाल

संधि

सन्धि (सम् + धि) शब्द का अर्थ है ‘मेल’ या जोड़। दो निकटवर्ती वर्णों के परस्पर मेल से जो विकार (परिवर्तन) होता है वह संधि कहलाता है।संस्कृत, हिन्दी एवं अन्य भाषाओं में परस्पर स्वरो या वर्णों के मेल से उत्पन्न विकार को सन्धि कहते हैं। 

जैसे– सम् + तोष = संतोष 

         देव + इंद्र = देवेंद्र

         भानु + उदय = भानूदय

संधि के भेद

sandhi ke bhed
lead magnet

1. स्वर संधि 

दो स्वरों के मेल से होने वाले विकार (परिवर्तन) को स्वर-संधि कहते हैं।

जैसे- विद्या + आलय = विद्यालय

स्वर-संधि पाँच प्रकार की होती हैं 

1.दीर्घ संधि

2.गुण संधि

  1. व्यंजन संधि  
  2. विसर्ग संधि

3.वृद्धि संधि

4.यण संधि

5.अयादि संधि

1. दीर्घ संधि

ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ के बाद यदि ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ आ जाएँ तो दोनों मिलकर दीर्घ आ, ई और ऊ हो जाते हैं। 

जैसे –

(क) अ/आ + अ/आ = आ

 धर्म + अर्थ = धर्मार्थ 

 हिम + आलय = हिमालय 

पुस्तक + आलय = पुस्तकालय

विद्या + अर्थी = विद्यार्थी 

विद्या + आलय = विद्यालय

(ख) इ और ई की संधि

रवि + इंद्र = रवींद्र 

मुनि + इंद्र = मुनींद्र

गिरि + ईश = गिरीश 

मुनि + ईश = मुनीश

मही + इंद्र = महींद्र 

नारी + इंदु = नारींदु

नदी + ईश = नदीश 

मही + ईश = महीश .

(ग) उ और ऊ की संधि

भानु + उदय = भानूदय 

 विधु + उदय = विधूदय

लघु + ऊर्मि = लघूर्मि 

 सिधु + ऊर्मि = सिंधूर्मि

 वधू + उत्सव = वधूत्सव

वधू + उल्लेख = वधूल्लेख

भू + ऊर्ध्व = भूर्ध्व 

 वधू + ऊर्जा = वधूर्जा 

2. गुण संधि

इसमें अ, आ के आगे इ, ई हो तो ए ; उ, ऊ हो तो ओ तथा ऋ हो तो अर् हो जाता है। इसे गुण-संधि कहते हैं। जैसे –

(क) अ + इ = ए ; नर + इंद्र = नरेंद्र

अ + ई = ए ; नर + ईश= नरेश

आ + इ = ए ; महा + इंद्र = महेंद्र

आ + ई = ए महा + ईश = महेश

(ख) अ + उ = ओ– ज्ञान + उपदेश = ज्ञानोपदेश 

आ + उ = ओ महा + उत्सव = महोत्सव

अ + ऊ = ओ जल + ऊर्मि = जलोर्मि ;

आ + ऊ = ओ महा + ऊर्मि = महोर्मि।

(ग) अ + ऋ = अर् देव + ऋषि = देवर्षि

(घ) आ + ऋ = अर् महा + ऋषि = महर्षि

3.वृद्धि संधि

अ, आ का ए, ऐ से मेल होने पर ऐ तथा अ, आ का ओ, औ से मेल होने पर औ हो जाता है। इसे वृद्धि संधि कहते हैं। जैसे –

(क) अ + ए = ऐ ; एक + एक = एकैक ;

अ + ऐ = ऐ मत + ऐक्य = मतैक्य

आ + ए = ऐ ; सदा + एव = सदैव

आ + ऐ = ऐ ; महा + ऐश्वर्य = महैश्वर्य

(ख) अ + ओ = औ वन + औषधि = वनौषधि ; आ + ओ = औ महा + औषधि = महौषधि ;

अ + औ = औ परम + औषध = परमौषध ; आ + औ = औ महा + औषध = महौषध

4. यण संधि

(क) इ, ई के आगे कोई असमान स्वर होने पर इ ई को ‘य्’ हो जाता है।

(ख) उ, ऊ के आगे किसी असमान स्वर के आने पर उ ऊ को ‘व्’ हो जाता है।

(ग) ‘ऋ’ के आगे किसी विजातीय स्वर के आने पर ऋ को ‘र्’ हो जाता है। इन्हें यण-संधि कहते हैं।

इ + अ = य् + अ ; यदि + अपि = यद्यपि

ई + आ = य् + आ ; इति + आदि = इत्यादि।

ई + अ = य् + अ ; नदी + अर्पण = नद्यर्पण

ई + आ = य् + आ  देवी + आगमन = देव्यागमन

उ + अ = व् + अ ; अनु + अय = अन्वय

उ + आ = व् + आ ; सु + आगत = स्वागत

उ + ए = व् + ए ; अनु + एषण = अन्वेषण

ऋ + अ = र् + आ ; पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा

5.अयादि संधि

ए, ऐ और ओ औ से परे किसी भी स्वर के होने पर क्रमशः अय्, आय्, अव् और आव् हो जाता है,इसे अयादि संधि कहते हैं।

(क) ए + अ = अय् + अ ; ने + अन = नयन

(ख) ऐ + अ = आय् + अ ; गै + अक = गायक

(ग) ओ + अ = अव् + अ ; पो + अन = पवन

(घ) औ + अ = आव् + अ ; पौ + अक = पावक

औ + इ = आव् + इ ; नौ + इक = नाविक

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2.व्यंजन संधि

व्यंजन का व्यंजन से अथवा किसी स्वर से मेल होने पर जो परिवर्तन होता है, उसे व्यंजन संधि कहते हैं। 

जैसे-शरत् + चंद्र = शरच्चंद्र

(क) किसी वर्ग के पहले वर्ण क्, च्, ट्, त्, प् का मेल किसी वर्ग के तीसरे अथवा चौथे वर्ण या य्, र्, ल्, व्, ह या किसी स्वर से हो जाए तो क् को ग् च् को ज्, ट् को ड् और प् को ब् हो जाता है। 

जैसे –क् + ग = ग्ग ,दिक् + गज = दिग्गज

 क् + ई = गी ,वाक + ईश = वागीश

च् + अ = ज् ,अच् + अंत = अजंत 

ट् + आ = डा,षट् + आनन = षडानन

प + ज + ब्ज ,अप् + ज = अब्ज

(ख) यदि किसी वर्ग के पहले वर्ण (क्, च्, ट्, त्, प्) का मेल न् या म् वर्ण से हो तो उसके स्थान पर उसी वर्ग का पाँचवाँ वर्ण हो जाता है। 

जैसे –क् + म = ं ,वाक + मय = वाङ्मय 

च् + न = ं ,अच् + नाश = अंनाश

ट् + म = ण् ,षट् + मास = षण्मास 

त् + न = न् ,उत् + नयन = उन्नयन

प् + म् = म् ,अप् + मय = अम्मय

(ग) त् का मेल ग, घ, द, ध, ब, भ, य, र, व या किसी स्वर से हो जाए तो द् हो जाता है।

 जैसे –त् + भ = द्भ ,सत् + भावना = सद्भावना 

त् + ई = दी ,जगत् + ईश = जगदीश

त् + भ = द्भ ,भगवत् + भक्ति = भगवद्भक्ति

 त् + र = द्र ,तत् + रूप = तद्रूप

त् + ध = द्ध ,सत् + धर्म = सद्धर्म

(घ) त् से परे च् या छ् होने पर च, ज् या झ् होने पर ज्, ट् या ठ् होने पर ट्, ड् या ढ् होने पर ड् और ल होने पर ल् हो जाता है। 

जैसे –त् + च = च्च, उत् + चारण = उच्चारण 

त् + ज = ज्ज ,सत् + जन = सज्जन

त् + झ = ज्झ, उत् + झटिका = उज्झटिका 

त् + ट = ट्ट ,तत् + टीका = तट्टीका

त् + ड = ड्ड, उत् + डयन = उड्डयन 

त् + ल = ल्ल, उत् + लास = उल्लास

(ङ) त् का मेल यदि श् से हो तो त् को च् और श् का छ् बन जाता है।

 जैसे –त् + श् = च्छ ,उत् + श्वास = उच्छ्वास 

त् + श = च्छ, उत् + शिष्ट = उच्छिष्ट

त् + श = च्छ, सत् + शास्त्र = सच्छास्त्र

(च) त् का मेल यदि ह् से हो तो त् का द् और ह् का ध् हो जाता है। 

जैसे –त् + ह = द्ध, उत् + हार = उद्धार 

त् + ह = द्ध, उत् + हरण = उद्धरण

त् + ह = द्ध ,तत् + हित = तद्धित

(छ) स्वर के बाद यदि छ् वर्ण आ जाए तो छ् से पहले च् वर्ण बढ़ा दिया जाता है। 

जैसे –अ + छ = अच्छ, स्व + छंद = स्वच्छंद 

आ + छ = आच्छ ,आ + छादन = आच्छादन

इ + छ = इच्छ ,संधि + छेद = संधिच्छेद

 उ + छ = उच्छ ,अनु + छेद = अनुच्छेद

(ज) यदि म् के बाद क् से म् तक कोई व्यंजन हो तो म् अनुस्वार में बदल जाता है।

जैसे –म् + च् = ं ,किम् + चित = किंचित 

म् + क = ं, किम् + कर = किंकर

म् + क = ं, सम् + कल्प = संकल्प 

म् + च = ं ,सम् + चय = संचय

म् + त = ं ,सम् + तोष = संतोष 

म् + ब = ं ,सम् + बंध = संबंध

म् + प = ं, सम् + पूर्ण = संपूर्ण

(झ) म् के बाद म का द्वित्व हो जाता है।

जैसे –म् + म = म्म, सम् + मति = सम्मति

 म् + म = म्म ,सम् + मान = सम्मान

(ञ) म् के बाद य्, र्, ल्, व्, श्, ष्, स्, ह् में से कोई व्यंजन होने पर म् का अनुस्वार हो जाता है।

जैसे –म् + य = ं ,सम् + योग = संयोग

म् + र = ं ,सम् + रक्षण = संरक्षण

म् + व = ं ,सम् + विधान = संविधान 

म् + व = ं ,सम् + वाद = संवाद

म् + श = ं ,सम् + शय = संशय 

म् + ल = ं, सम् + लग्न = संलग्न

म् + स = ं, सम् + सार = संसार

(ट) ऋ, र्, ष् से परे न् का ण् हो जाता है। परन्तु चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग, श और स का व्यवधान हो जाने पर न् का ण् नहीं होता।

 जैसे –र् + न = ण ,परि + नाम = परिणाम

 र् + म = ण ,प्र + मान = प्रमाण

(ठ) स् से पहले अ, आ से भिन्न कोई स्वर आ जाए तो स् को ष हो जाता है।

जैसे –भ् + स् = ष ,अभि + सेक = अभिषेक 

नि + सिद्ध = निषिद्ध ,वि + सम + विषम

3.विसर्ग संधि

विसर्ग (:) के बाद स्वर या व्यंजन आने पर विसर्ग में जो विकार होता है उसे विसर्ग-संधि कहते हैं। 

जैसे- मनः + अनुकूल = मनोनुकूल

(क) विसर्ग के पहले यदि ‘अ’ और बाद में भी ‘अ’ अथवा वर्गों के तीसरे, चौथे पाँचवें वर्ण, अथवा य, र, ल, व हो तो विसर्ग का ओ हो जाता है। 

जैसे -मनः + अनुकूल = मनोनुकूल

अधः + गति = अधोगति 

मनः + बल = मनोबल

(ख) विसर्ग से पहले अ, आ को छोड़कर कोई स्वर हो और बाद में कोई स्वर हो, वर्ग के तीसरे, चौथे, पाँचवें वर्ण अथवा य्, र, ल, व, ह में से कोई हो तो विसर्ग का र या र् हो जाता है।

 जैसे -निः + आहार = निराहार 

 निः + आशा = निराशा 

निः + धन = निर्धन

(ग) विसर्ग से पहले कोई स्वर हो और बाद में च, छ या श हो तो विसर्ग का श हो जाता है।

 जैसे -निः + चल = निश्चल 

 निः + छल = निश्छल 

दुः + शासन = दुश्शासन

(घ) विसर्ग के बाद यदि त या स हो तो विसर्ग स् बन जाता है। 

जैसे -नमः + ते = नमस्ते 

 निः + संतान = निस्संतान 

 दुः + साहस = दुस्साहस

ङ) विसर्ग से पहले इ, उ और बाद में क, ख, ट, ठ, प, फ में से कोई वर्ण हो तो विसर्ग का ष हो जाता है। 

जैसे –निः + कलंक = निष्कलंक 

 चतुः + पाद = चतुष्पाद 

निः + फल = निष्फल

(च) विसर्ग से पहले अ, आ हो और बाद में कोई भिन्न स्वर हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है।

 जैसे -निः + रोग = नीरोग 

        निः + रस = नीरस

(छ) विसर्ग के बाद क, ख अथवा प, फ होने पर विसर्ग में कोई परिवर्तन नहीं होता। 

जैसे -अंतः + करण = अंतःकरण

अधिकतर पूछें गए प्रश्न–:

1. ‘परमाणु’ शब्द का संधि विच्छेद करें।

उत्तर: परम+अणु=परमाणु

यहाँ पर दो स्वर मिलकर ‘अ+ अ=आ’ बना रहे है।

2. ‘सदैव’ में कौन– सी संधि है?

उत्तर: ‘सदैव’ में दीर्घ संधि है,क्योंकि इसमें आ+ए=ऐ बन रहे हैं।

3. संधि के कितने भेद है?

उत्तर: संधि के तीन भेद है–

1.स्वर संधि 2.व्यंजन संधि  3.विसर्ग संधि

4. ‘निष्कपट’ में कौन सी संधि है?

उत्तर: नि:+कपट=निष्कपट

इसमें विसर्ग संधि है, क्योंकि इसमें विसर्ग (:)+क= ष् बनते हैं।

सर्वनामसंज्ञा
प्रत्ययअलंकार
वर्तनीपद परिचय
वाक्य विचारसमास
लिंगसंधि
विराम चिन्हशब्द विचार
अव्ययकाल

Harappan Civilization

Introduction

Indian history alluded to the time span between both the Stone Age to the back In the ancient era as the “Dark Age.” But the unearthing of the Harappan Civilization, the earliest Bronze Age settlement of Southern Asia, in the early 20th century catapulted the chronology of civilised Indian life backward by 2,000 years all at once. The finding of the world-famous “Harappan Civilization” was presumably initially described as the first illumination on a bygone Civilization.

The first agrarian settlements in this area built a perfect socioeconomic system that was centred on agricultural methods, cutting-edge technology, flows of capital, artisan pursuits, and ceremonial rites.The area includes a wealth of artefacts that shed information on the development and evolution of early shepherd and village settlements into the historical buildings of the earliest urbanised civilization across age.

Urbanisation in india

The mechanism through which rural villages develop into metropolis, or urban centres, and, therefore, the emergence and spread of such cities, is known as urbanisation. The first recorded settlement in the upstream of Saraswati valley dates to just before the Holocene epoch. Early agricultural groups developed sedentary lifestyles thanks in large part to the natural circumstances of the upper Saraswati region, which eventually resulted in the establishment of the first urbanised civilisation called the Harappan Civilization.

The Harappans are widely thought to be a mosaic of several ethnic groupings.Numerous craft hubs and minor village communities that practised agribusiness sustained this civilization’s urban and intercontinental commercial economies.The territory was a key source of many different categories of minerals, metals, and stones (obtained from the Siwalik and Aravalli hills), and it would have offered crucially critical functional supply lines, permitting the easy movement of goods from one point towards another.

Harappan culture’s History and Development

It is no longer true to say that the Mesopotamian culture, which blossomed at the meeting point of the Tigris and Euphrates in Iraq, was substantially accountable for the development of the Harappan Civilization. The explorations at the Mehrgarh location near the Bolan Pass in Balochistan province in the 1970s and 1980s yielded enough evidence to show that the provenance is native to the Indian subcontinent. Since the commencement of established life at Mehrgarh in 7000 BC, there has been a progressive expansion, which inevitably resulted in the creation of the Harappan. There are seven evolutionary stages at Mehrgarh, and it is clear that certain Harappan components were introduced on every level.

The emergence of the Harappan civilisation was facilitated by advantageous climatic circumstances, a robust agricultural foundation in  the Indus, Ghaggar,  Saurashtra,and Hakra basins, as well as a wealth of mineral wealth along the seashore and in the arid. Additionally, society was preparing for such an upheaval. There is no wonder that people arrived in quest of both rich mineral deposits and agriculturally productive land. Since they needed rich alluvial plains deposition and waters for irrigation systems, the majority of these communities are situated close to lakes and rivers. It is important to remember that all of the original farming villages in the upper Saraswati valley are long-term habitations since this area has given them everything they need.

As a result, the inhabitants of these early farming settlements successfully established themselves here for good and over time developed into sophisticated village civilizations.

Harappan Civilization’s Decline

Commencing in the second millennium BC, there was a breach in the coherence, unification, and growth of urban civilization. The rich urbanized era (the mature Harappan period) was characterized by a number of subsystems, all of which appear to have deteriorated.

About 2000 BC, the Harappan civilization started to fall. Based on human skeleton remains found in Mohenjodaro’s upper tiers, Wheeler had proposed in the 1960s that the Aryan deity Indra had exterminated the Harappans. Recent studies on this topic showed that the most crucial cause in the downfall of the Harappan Civilization was the climate. Data on rainfall patterns collected from all across the world made it abundantly evident that the weather had changed significantly, which had an impact on their agribusiness. The Harappan civilization collapsed after its decline and split into several minor regional cultures. Up to 1500 BC, they carried on the Harappan heritage. The Harappans were on the verge of moving out from the main area and toward the outskirts. The Harappan artifacts serve as the foundation for modern farm machinery. This demonstrates that even though the Harappan civilization has vanished, its heritage has persisted.

Summary

The upper Saraswati valley region contributed significantly to the creation and growth of the ancient farming households by offering a suitable area for faster economic growth in agricultural output and the necessary utilities for irrigation. The early agricultural community laid the groundwork for several novel concepts and contributed to the development of the ideal political and economic system. A change and the growth of complexity in sophisticated village civilization became apparent throughout time. The sophistication developed as a result of cross country connections and trades, labour division within the community, the complication of the subsistence economy, the growth of religious practises and traditions, as well as the emergence of craft specialiaztion. Notwithstanding of how modern historians interpret these texts or symbols, they clearly indicate a common philosophy and worldview that was diffused across a very wide region and was unquestionably a major contributor to the melding of urban and rural people dispersed across many geographical contexts.

Frequently Asked Questions

1. In which age urbanization commenced and what disadvantages, characteristics, positive impacts of urbanization?

Ans. In the Uruk Period, ancient Mesopotamia saw the birth of urbanization 4300-3200 BCE.

  • Disadvantages of urbanization-The increased population densities and expectations of urban areas worsen quality of the air, a lack of water supply, waste-disposal issues, and excessive energy use.
  • Characteristics of urbanization-The features of urbanisation include class contrasts, socioeconomic complexity, separateness, systems of contact, and mobility. They also include planned amenities, residential neighborhoods, job centres, communications infrastructure, and civic amenities.
  • Positive impacts of urbanization-The turnaround of land, establishment of employment hubs, treatment centers, etc. results from this urbanization.

2. How did India’s first urbanization decline? 

Ans. The most significant river for the Harappans, the Ghaggar/Hakra, dried up, forcing the people of Harapp to leave the riverbanks and settle inland. The ocean level dropped significantly, rendering the majority of the Harappan harbors worthless and drastically harming its commerce with the Persian Gulf and  Mesopotamia. Together, these elements caused the collapse of the Harappan Civilization.

3. What are the problems of urbanization in India?

Ans. Increasing population density, poor infrastructure, a lack of cheap housing, floods, contamination, the development of slums, crime, traffic congestion, and impoverishment are the issues connected to urbaniaztion. The issue of high density of populations is brought on by the rapid rural to urban migration.