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विज्ञापन के प्रभाव

              विज्ञापन के प्रभाव

विज्ञापन

किसी वस्तु के बारे में जानकारी देना और लोगों को प्रभावित कर वस्तु के मूल्य को बढ़ाना विज्ञापन कहलाता है।विज्ञापन के द्वारा लोगों को बाजार की वस्तुओं से अवगत कराया जाता है। विज्ञापन के प्रभाव उस वस्तु को प्रसिद्धि से दिखाई देते है।

विज्ञापन के प्रभाव

विज्ञापन के प्रभाव

आधुनिकता के दौर में हम अपने चारों ओर से किसी न किसी वस्तु या चीज से घिरे हुए है। किसी भी कार्य को आसान या जल्दी करने के लिए अनेक उपकरणों का निर्माण किया जाता है। जिससे इंसान को अधिक मेहनत भी नही करनी पड़ती और उसका समय भी बच जाता है। 

इन उपकरणों और वस्तुओं को आम आदमी तक पहुँचाने के लिए विज्ञापनों का सहारा लिया जाता है। विज्ञापन के द्वारा ही इंसान किसी वस्तु के बारे में जानकारी प्राप्त करता है।

विज्ञापनों का मानव जीवन, समाज और बाज़ार पर बहुत प्रभाव पड़ता है। जिससे वस्तुओं और कम्पनियों में भी इनका प्रभाव देखने को मिलता है।

  1. बाजार में प्रतिस्पर्धा।
  2. लोगों को आकर्षित करना।
  3. वस्तुओं के मूल्य में वृद्धि।
  4. वस्तुओं की जानकारी देना।
  5. लोगों तक वस्तु को पहुँचाना।

1)बाजार में प्रतिस्पर्धा

आज अनेक प्रकार की वस्तुओं का चलन है। बाजार में अनेक वस्तुएँ खरीदी और बेची जाती है। प्रत्येक वस्तु को बेचने और खरीदने का ढंग अलग-अलग होता है। सभी अपनी वस्तुओं को बेचना चाहते है। जिससे वे अपनी वस्तुओं का विज्ञापन दूसरे वस्तुओं के विज्ञापन से प्रभावशाली बनाते है। एक दूसरे से अधिक समान बेचने की होड़ बाजार में लगी रहती है और दुकानदारों के बीच भी प्रतिस्पर्धा का माहौल रहता है।

2) लोगों को आकर्षित करना 

वस्तुओं और समान को बेचने में विज्ञापन एक अहम भूमिका निभाते है। विज्ञापनों को अधिक प्रभावशाली बनाकर वह अपनी वस्तुओं के प्रति लोगों को आकर्षित करते है। जिससे लोग वस्तुओं को खरीदने के लिए उत्साहित होते हैं।

3) वस्तुओं के मूल्य में वृद्धि

किसी भी वस्तु और समान के प्रभावशाली विज्ञापन से आकर्षित होकर लोग उस वस्तु को खरीदते है। जिससे उस समान की माँग बाजार में बढ़ जाती है। वस्तु की माँग बढ़ने के साथ साथ उस वस्तु के मूल्य में भी वृद्धि होती है।

4) वस्तुओं की जानकारी देना 

जब भी कोई नया समान बाजार में आता है और लोगों को उस समान के बारे में जानकारी नहीं होती है तो विज्ञापन के द्वारा लोगों को उस वस्तु की जानकारी मिलती है।

5) लोगों तक वस्तुओं को पहुँचाना

विज्ञापन के द्वारा लोगों को वस्तुओं के बारे में जानकारी मिलती है। जिनमें कुछ लोग ऐसे भी होते है जो नई नई वस्तुओं को खरीदने के शौकीन होते है। विज्ञापन को देखकर वे वस्तुओं को खरीदते है, जिससे नई वस्तुएं भी लोगों तक पहुँचती है।

जिस प्रकार विज्ञापन के द्वारा वस्तुओं की जानकारी दी जाती है, जोकि लोगों के लिए लाभदायक है। लेकिन विज्ञापन के अन्य भी प्रभाव पर पड़ते है जोकि नुकसानदायक है। 

1.वस्तुओं की कमियों को छिपाना।

2.चकाचौंध को बढ़ावा देना।

3.वस्तु की बिक्री को बढ़ावा देना।

1)वस्तुओं की कमियों को छिपाना

 किसी भी वस्तु के विज्ञापन में केवल उस वस्तु की अच्छाइयों को बताया जाता है। उस वस्तु में क्या क्या कमियां है, इस बात पर कोई भी बात विज्ञापन में नहीं की जाती है। केवल एक पहलू अच्छाई पर ही बात की जाती है। जिससे उसकी कमियां बाद में उपभोक्ता के सामने आती है।

2)चकाचौंध को बढ़ावा देना

 विज्ञापन को इतना सजाया जाता है की उसकी खूबसूरती देखकर भी उपभक्ता प्रभावित हो जाते हैं। उसकी चमक दमक के सामने उपभोक्ता उस वस्तु को खरीद लेता है फिर चाहे उसे उसकी जरूरत हो या न हो।

3)वस्तु की बिक्री को बढ़ावा देना 

किसी भी वस्तु के विज्ञापन का उद्देश्य केवल उस वस्तु की बिक्री को बढ़ावा देना होता है। जिसके कारण कई बार वे वस्तु की गुणवत्ता के साथ समझौता कर लेते है।

यदि किसी चीज की अच्छाई होती है उसी प्रकार उसकी बुराइयाँ भी होती है। इसी प्रकार यदि विज्ञापन के अच्छे प्रभाव है तो विज्ञापन के बुरे प्रभाव भी होते हैं। एक मध्यम वर्ग के उपभोक्ता के लिए केवल वही वस्तु या समान जरूरी है जो उसकी दिनचर्या में इस्तेमाल किए जाते हैं या जो उसके लिए आवश्यक है और उन वस्तुओं के बारे में उसे जानकारी होती है। उसे किसी विज्ञापन की आवश्यकता नहीं होती है।अन्य किसी दिखावे की वस्तु से उसको कोई सरोकार नहीं होता है। विज्ञापन केवल उच्च वर्ग के लोगों और संपन्न लोगों के लिए ही कारगर होते हैं।

अधिकतर पूछे गए प्रश्न

1.विज्ञापन से आप क्या समझते है?

उत्तर: किसी वस्तु के बारे में जानकारी देना और लोगों को प्रभावित कर वस्तु के मूल्य को बढ़ाना विज्ञापन कहलाता है। विज्ञापन के द्वारा लोगों को बाजार की वस्तुओं से अवगत कराया जाता है। विज्ञापन के प्रभाव उस वस्तु को प्रसिद्धि से दिखाई देते है।

2.विज्ञापन का प्रभाव व्यक्तियों पर किस प्रकार पड़ता है?

उत्तर: आधुनिकता के दौर में हम अपने चारों ओर से किसी न किसी वस्तु या चीज से घिरे हुए है। किसी भी कार्य को आसान या जल्दी करने के लिए अनेक उपकरणों का निर्माण किया जाता है। जिससे इंसान को अधिक मेहनत भी नही करनी पड़ती और उसका समय भी बच जाता है। 

इन उपकरणों और वस्तुओं को आम आदमी तक पहुँचाने के लिए विज्ञापनों का सहारा लिया जाता है। विज्ञापन के द्वारा ही इंसान किसी वस्तु के बारे में जानकारी प्राप्त करता है।

3.विज्ञापन का कितने प्रकार से बाजार और लोगों पर प्रभाव पड़ता है?

उत्तर:विज्ञापनों का मानव जीवन, समाज और बाजार पर बहुत प्रभाव पड़ता है। जिससे वस्तुओं और कंपनियों में भी इनका प्रभाव देखने को मिलता है।

बाजार में प्रतिस्पर्धा।

लोगों को आकर्षित करना।

वस्तुओं के मूल्य में वृद्धि।

वस्तुओं की जानकारी देना।

लोगों तक वस्तु को पहुंचाना।

4. विज्ञापन लोगों को किस प्रकार आकर्षित करते हैं?

उत्तर:वस्तुओं और समान को बेचने में विज्ञापन एक अहम भूमिका निभाते है। विज्ञापनों को अधिक प्रभावशाली बनाकर वह अपनी वस्तुओं के प्रति लोगों को आकर्षित करते है। जिससे लोग वस्तुओं को खरीदने के लिए उत्साहित होते हैं।

5.विज्ञापन वस्तुओं के मूल्य में वृद्धि में किस प्रकार सहायक है?

उत्तर:किसी भी वस्तु और समान के प्रभावशाली विज्ञापन से आकर्षित होकर लोग उस वस्तु को खरीदते है। जिससे उस समान की माँग बाजार में बढ़ जाती है। वस्तु की माँग बढ़ने के साथ साथ उस वस्तु के मूल्य में भी वृद्धि होती है।

राजकीय प्रतीक

राष्ट्रीय चिह्न एक प्रतीक या मुहर है जिसे किसी राष्ट्र या बहु-राष्ट्रीय राज्य द्वारा अपने प्रतीक के रूप में उपयोग के लिए आरक्षित किया जाता है। कई देशों में राष्ट्रीय प्रतीक है। हालांकि राष्ट्रीय प्रतीक होना जरूरी नहीं है, इसका झंडा किसी देश की पहचान भी कर सकता है। राष्ट्रीय चिन्ह कुछ भी हो सकता है। कुछ पंजीकृत प्रतीक फूल , जानवर, पक्षी आदि है। इस चिह्न का प्रयोग सरकारी कागजों- दस्तावेजों, अभिलेखों, प्रपत्रों, मुद्रा आदि पर किया जाता है।

राजकीय प्रतीक

राष्ट्रीय प्रतीकों का हर राष्ट्र के लिए बड़ा ही महत्त्व होता है; क्योंकि इन्हीं के माध्यम से वह राष्ट्र विश्व में माना जाता है । उसके अस्तित्व की पहचान इन्हीं प्रतीकों से होती है । जब कोई राष्ट्र गुलाम होता है, तो यही चिन्ह उसकी राष्ट्रीयता का प्रतीक बनकर उसके संघर्ष को एक गति देता है । राष्ट्र के इन प्रतीकों के प्रति वहां के निवासियों में एक गर्व भरा रोमांच होता है ।राष्ट्रीय महोत्सवों के अवसर पर यह प्रतीक समूचे देश को एकता के सूत्र में बांधते हैं । भारत जैसे विविध धर्मावलम्बी राष्ट्र के लिए उसे भावात्मक एकता के साथ बांधने में राष्ट्रीय प्रतीकों की भूमिका महत्त्वपूर्ण है। 

स्वतन्त्र एवं लोकतन्त्रात्मक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र भारत के विभिन्न राष्ट्रीय प्रतीकों में राष्ट्रध्वज का सर्वाधिक महत्त्व है । भारत का राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा है । यह हाथ से काते हुए सूत और हाथ से बने हुए खादी के कपड़े का बना होता है, जो सूती या रेशमी हो सकता है । झंडे की आकृति आयताकार होती है, जिसकी लम्बाई-चौड़ाई का अनुपात 3:2 होता है ।

इसमें केसरिया, सफेद और हरे रंग की तीन समानान्तर पट्टियां होती हैं । बीच की श्वेत पट्टी पर नीले रंग का चक्र अंकित होता है, जिसमें चौबीस तीलियां होती हैं, जो अशोक स्तम्भ के शीर्ष भाग पर अंकित अन्तिम चक्र की अनुकृति है।यह चक्र मौर्य सम्राट अशोक द्वारा सारनाथ में स्थापित सिंह शीर्ष स्तम्भ से लिया गया है । राष्ट्रीय ध्वज का प्रारूप संविधान निर्मात्री सभा द्वारा 22 जुलाई, 1947 को अपनाया गया और 14 अगस्त, 1947 को प्रस्तुत किया गया ।

भारत का राष्ट्रीय प्रतीक सारनाथ, उत्तर प्रदेश में स्थित अशोक स्तंभ के ऊपर वर्णित तीन सिंह (शेर) का एक रूपांतर है, और इसे राष्ट्रीय आदर्श वाक्य सत्यमेव जयते के साथ जोड़ा गया है।इस प्रतीक को 26 जनवरी, 1950 को भारत के राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में अपनाया गया था। यह भारत के नए अधिग्रहीत गणराज्य की स्थिति की घोषणा थी। राष्ट्रीय प्रतीक का उपयोग केवल आधिकारिक उद्देश्यों के लिए किया जाता है और भारत के नागरिकों से ईमानदारी से सम्मान की मांग करता है। यह सभी राष्ट्रीय और राज्य सरकार के कार्यालयों के लिए आधिकारिक मुहर के रूप में काम करता है और सरकार द्वारा उपयोग किए जाने वाले किसी भी लेटर हेड का  एक जरूरी हिस्सा है।यह सभी मुद्रा नोटों के साथ-साथ भारत गणराज्य द्वारा जारी किए गए पासपोर्ट जैसे राजनयिक पहचान दस्तावेजों पर प्रमुखता से प्रदर्शित होता है। राष्ट्रीय प्रतीक भारत की संप्रभुता का प्रतीक है। 

भारत का राज्य चिन्ह मौर्य सम्राट अशोक द्वारा सारनाथ में स्थापित सिंह स्तम्भ से लिया गया है। सारनाथ स्थित अशोक स्तंभ में 4 शेर की मूर्ति है जिसमे से 3 ही शेर दिखाई देते हैं, इसके सामने अशोक चक्र बाईं ओर सरपट दौड़ता हुआ घोड़ा और दाईं ओर बैल दिखाई देता है। अशोक चक्र वास्तव में बौद्ध धर्म चक्र का एक रूप है। तीनों शेर लंबे खड़े हैं और शांति, न्याय और सहिष्णुता के प्रति देश की प्रतिबद्धता की घोषणा करते हैं।इसकी संरचना में प्रतीक इस तथ्य पर जोर देता है कि भारत संस्कृतियों का संगम है, इसकी विरासत वेदों से दार्शनिक सिद्धांतों के लिए गहरी प्रशंसा के साथ बौद्ध धर्म के आध्यात्मिक आध्यात्मिक सिद्धांतों में छिपी हुई है।वास्तविक लायन कैपिटल एक उल्टे कमल पर बैठता है जिसे राष्ट्रीय प्रतीक प्रतिनिधित्व में शामिल नहीं किया गया है। इसके बजाय, लायन कैपिटल के प्रतिनिधित्व के नीचे, सत्यमेव जयते शब्द देवनागरी लिपि में लिखा गया है, जो भारत का राष्ट्रीय आदर्श वाक्य भी है। यह शब्द मुंडक उपनिषद के एक उद्धरण हैं, जो चार वेदों में सबसे अंतिम और सबसे दार्शनिक है और इसका अर्थ है; ‘केवल सत्य की जीत’। 

 

अधिकतर पूछे जाने वाले प्रश्न

प्रश्न 1. राष्ट्रीय प्रतीक का अर्थ क्या होता हैं? 

उत्तर- राष्ट्रीय चिह्न एक प्रतीक या मुहर है जिसे किसी राष्ट्र या बहु-राष्ट्रीय राज्य द्वारा अपने प्रतीक के रूप में उपयोग के लिए आरक्षित किया जाता है।

प्रश्न 2. भारत का राष्ट्रपति क्या है? 

उत्तर- भारत का राष्ट्रीय प्रतीक सारनाथ, उत्तर प्रदेश में स्थित अशोक स्तंभ के ऊपर वर्णित तीन सिंह (शेर) का एक रूपांतर है,

प्रश्न 3. भारत के राज्य प्रतीक को राजकीय प्रतीक के रूप में कब अपनाया गया था? 

उत्तर-इस प्रतीक को 26 जनवरी, 1950 को भारत के राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में अपनाया गया था।

प्रश्न 4. राज्य चिन्ह क्या क्या हैं? 

उत्तर- राज्य चिन्ह : राष्ट्र ध्वज, राष्ट्र गान, राष्ट्र खेल, राष्ट्र फूल आदि है। 

प्रश्न 5. भारत की राष्ट्रीय प्रतीक के बारे में बताइए। 

उत्तर. भारत का राज्य चिन्ह मौर्य सम्राट अशोक द्वारा सारनाथ में स्थापित सिंह स्तम्भ से लिया गया है। सारनाथ स्थित अशोक स्तंभ में 4 शेर की मूर्ति है जिसमे से 3 ही शेर दिखाई देते हैं, इसके सामने अशोक चक्र बाईं ओर सरपट दौड़ता हुआ घोड़ा और दाईं ओर बैल दिखाई देता है। अशोक चक्र वास्तव में बौद्ध धर्म चक्र का एक रूप है। तीनों शेर लंबे खड़े हैं और शांति, न्याय और सहिष्णुता के प्रति देश की प्रतिबद्धता की घोषणा करते हैं।इसकी संरचना में प्रतीक इस तथ्य पर जोर देता है कि भारत संस्कृतियों का संगम है, इसकी विरासत वेदों से दार्शनिक सिद्धांतों के लिए गहरी प्रशंसा के साथ बौद्ध धर्म के आध्यात्मिक आध्यात्मिक सिद्धांतों में छिपी हुई है।

राष्ट्रीय पशु

राष्ट्रीय पशु का अर्थ होता  हैं- एक जानवर  जो किसी देश का प्रतीक है। भारत का राष्ट्रीय पशु बाघ हैं। बाघ एक जंगली जानवर है, जिसे भारत में भारतीय सरकार के द्वारा राष्ट्रीय पशु घोषित किया गया है। राजसी बाघ, तेंदुआ टाइग्रिस धारीदार जानवर है। इसकी मोटी पीली लोमचर्म का कोट होता है जिस पर गहरी धारीदार पट्टियाँ  होती हैं। लावण्‍यता, ताकत, फुर्तीलापन और अपार शक्ति के कारण बाघ को भारत के राष्‍ट्रीय जानवर के रूप में गौरवान्वित किया है। बाघ राष्ट्रीय पशु है, जो बिल्ली के परिवार के अन्तर्गत आता है।

राष्ट्रीय पशु

इसका वैज्ञानिक नाम पैंथेरा टाइग्रिस है। यह बिल्ली के परिवार के सबसे बड़े जानवर के रुप में जाना जाता है। यह विभिन्न रंगों; जैसे – शरीर पर अलग-अलग काली धारियों के साथ नारंगी, सफेद, और नीला रंग का पाया जाता है। वे ऊपरी तौर पर अलग हो सकते हैं, पर उनके नीचे का पेट वाला भाग एक ही तरह सफेद रंग का होता है। वे प्रजातियों, उपजातियों और स्थानों के आधार पर अलग-अलग आकार और वजन के पाए जाते हैं।इसके चार दाँत (दो ऊपर के जबड़े में दो नीचे के जबड़े में) बहुत ही नुकीले, तेज और मजबूत होते हैं, जो भोजन की आवश्यकता को पूरा करने के उद्देश्य से शिकार करने के लिए प्रयोग किए जाते हैं। बाघ की लम्बाई और ऊँचाई क्रमशः 8 से 10 फिट और 3 से 4 फिट होती है।

नर बाघ जन्म के 4-5 साल बाद परिपक्व होते हैं, जबकि मादा 3-4 साल की आयु में परिपक्व हो जाती हैं। संभोग के लिए कोई निश्चित मौसम नहीं होता है। गर्भावस्था अवधि 95-112 दिन की होती है और एक बार में 1-5 बच्चों को जन्म दे सकते है। युवा पुरुष अपनी मां के क्षेत्र को छोड़ देते हैं जबकि महिला बाघ उसके करीब क्षेत्र में ही रहती हैं। भारतीय संस्कृति में बाघ हमेशा प्रमुख स्थान पर रहा है। राष्ट्रीय पशु के रूप में एक उचित महत्व प्रदान करने के लिए रॉयल बंगाल बाघ को भारतीय मुद्रा नोटों के साथ-साथ डाक टिकटों में भी चित्रित किया गया है।

यह एक मांसाहारी पशु है और खून और मांस का बहुत ही शौकीन होता है। यह कभी-कभी जंगल से किसी पशु यहाँ तक कि, मनुष्य को भी भोजन के रुप में खाने के लिए गाँवों की ओर जाते हैं। यह अपने शिकार (जैसे – हिरन, जेबरा और अन्य जानवरों) पर अपनी बहुत मजबूत पकड़ रखता है और उन पर मजबूत जबड़ों और तेज पंजों के माध्यम से अचानक आक्रमण करता है। आमतौर पर, यह दिन के दौरान सोता है और रात के समय शिकार करता है। जंगली जानवरों को भोजन की आवश्यकता और जरूरत के बिना मारना इसकी प्रकृति और शौक है, जो इसकी अन्य जानवरों के सामने ताकत और शक्ति प्रदर्शित करती है। यही कारण है कि, यह बहुत ही क्रूर और निर्दयी पशु के रुप में जाना जाता है

ज्ञात आठ किस्‍मों की प्रजाति में से शाही बंगाल टाइगर (बाघ) उत्‍तर पूर्वी क्षेत्रों को छोड़कर देश भर में पाया जाता है और पड़ोसी देशों में भी पाया जाता है, जैसे नेपाल, भूटान और बांग्‍लादेश। भारत में बाघ आमतौर पर सुन्दर वन (असम, पश्चिमी बंगाल, त्रिपुरा, मध्य भारत आदि) में पाए जाते हैं। अधिक बड़े चीते अफ्रीकी जंगलों में पाए जाते हैं हालांकि, सभी में रॉयल बंगाल टाइगर सबसे अधिक सुन्दर लगते हैं। बाघों को मारना, उस समय से पूरे देश में निषेध है, जब उनकी संख्या में बहुत तेजी से गिरावट हो रही थी।

बाघ को जंगल का राजा कहा जाता है और यह हमारे देश  के समृद्ध वन्य जीवन को दर्शाता है। शक्ति और फुर्ती बाघ के बुनियादी पहलू हैं। भारत में बाघों को बचाने के लिए प्रोजेक्ट टाइगर शुरु किया गया। सन् 1973 में बंगाल टाइगर को राष्ट्रीय पशु घोषित किया गया। इससे पहले शेर भारत का राष्ट्रीय पशु था। साल 1969 में वन्यजीव बोर्ड ने शेर को राष्ट्रीय पशु घोषित किया था। लेकिन साल 1973 में राष्ट्रीय पशु का दर्जा शेर को हटा कर बाघ को दिया गया।

भारतीय संस्कृति में बाघ हमेशा प्रमुख स्थान पर रहा है। राष्ट्रीय पशु के रूप में एक उचित महत्व प्रदान करने के लिए रॉयल बंगाल बाघ को भारतीय मुद्रा नोटों के साथ-साथ डाक टिकटों में भी चित्रित किया गया है। राष्ट्रीय पशु के रूप में एक उचित महत्व प्रदान करने के लिए रॉयल बंगाल बाघ को भारतीय मुद्रा नोटों के साथ-साथ डाक टिकटों में भी चित्रित किया गया है।बाघ को जंगल का भगवान कहा जाता है, क्योंकि इन्हें देश में जंगली जीवन में धन का प्रतीक माना गया है। बाघ ताकत, आकर्षक, बहुत अधिक शक्ति और चपलता का मिश्रण होता है, जो इसके आदर और सम्मान का बहुत बड़ा कारण है। यह अनुमान लगाया गया है कि, कुल बाघों की संख्या का आधा भाग भारत में रहता है। यद्यपि, पिछले कुछ दशकों में, भारत में बाघों की संख्या में निरंतर बड़े स्तर पर कमी आई है।

भारत की सरकार द्वारा “प्रोजेक्ट टाइगर” को 1973 में, देश में शाही पशु के अस्तित्व को बचाने के लिए शुरु किया गया था।भारत में बाघों की घटती जनसंख्‍या की जांच करने के लिए अप्रैल 1973 में प्रोजेक्‍ट टाइगर (बाघ परियोजना) शुरू की गई। अब तक इस परियोजना के अधीन 27 बाघ के आरक्षित क्षेत्रों की स्‍थापना की गई है जिनमें 37, 761 वर्ग कि.मी. क्षेत्र शामिल है।साइबेरियन टाइगर को सबसे बड़ा बाघ माना जाता है। मादा बाघ, नर बाघ से थोड़ी छोटी होती है। कुछ दशक पहले, बाघों की प्रजाति निरंतर खतरे में थी हालांकि, भारत में “प्रोजेक्ट टाइगर” के कारण स्थिति नियंत्रण में है। पहले मनुष्यों द्वारा उनका शिकार बहुत से उद्देश्यों; जैसे – खेल, परंपरा, चिकित्सक दवाइयाँ आदि के लिए भारी मात्रामें किया जाता था। “प्रोजेक्ट टाइगर” की पहल भारत सरकार के द्वारा अप्रैल 1973 में बाघों की संख्या को नियंत्रित करने के लिए की गई थी।

प्रोजेक्ट टाइगर अभियान को शुरु करने के कुछ वर्ष बाद ही, भारत में बाघों की संख्या में बहुत अधिक वृद्धि हुई है। 1993 की बाघों की जनगणना के अनुसार, देश में बाघों की कुल संख्या लगभग 3,750 थी। प्रोजेक्ट टाइगर के अन्तर्गत लगभग पूरे देश में 23 संरक्षण केन्द्रों (33,406 वर्ग किलो.मी. के क्षेत्र में) की स्थापना की गई थी।

अधिकतर पूछे जाने वाले प्रश्न 

प्रश्न 1. राष्ट्रीय पशु कैसे चुने जाते हैं? 

उत्तर- राष्ट्रीय पशु का चयन कई मानदंडों के आधार पर किया जाता है। पहला यह है कि यह कितनी अच्छी तरह से उन कुछ विशेषताओं को दर्शाता है जिनके साथ एक राष्ट्र पहचाना जाना चाहता है। राष्ट्र की विरासत और संस्कृति के हिस्से के रूप में राष्ट्रीय पशु का एक समृद्ध इतिहास होना चाहिए। राष्ट्रीय पशु को देश के भीतर अच्छी तरह से वितरित किया जाना चाहिए।

प्रश्न 2.  हमारा राष्ट्रीय पशु क्या है? 

उत्तर- भारत का राष्ट्रीय पशु बाघ हैं। सन् 1973 में बंगाल टाइगर को राष्ट्रीय पशु घोषित किया गया। इससे पहले शेर भारत का राष्ट्रीय पशु था। साल 1969 में वन्यजीव बोर्ड ने शेर को राष्ट्रीय पशु घोषित किया था। लेकिन साल 1973 में राष्ट्रीय पशु का दर्जा शेर को हटा कर बाघ को दिया गया।

प्रश्न 3. प्रोजेक्ट टाइगर क्या है? 

उत्तर- भारत की सरकार द्वारा “प्रोजेक्ट टाइगर” को 1973 में, देश में शाही पशु के अस्तित्व को बचाने के लिए शुरु किया गया था।भारत में बाघों की घटती जनसंख्‍या की जांच करने के लिए अप्रैल 1973 में प्रोजेक्‍ट टाइगर (बाघ परियोजना) शुरू की गई। अब तक इस परियोजना के अधीन 27 बाघ के आरक्षित क्षेत्रों की स्‍थापना की गई है जिनमें 37, 761 वर्ग कि.मी. क्षेत्र शामिल है। साइबेरियन टाइगर को सबसे बड़ा बाघ माना जाता है। मादा बाघ, नर बाघ से थोड़ी छोटी होती है। कुछ दशक पहले, बाघों की प्रजाति निरंतर खतरे में थी हालाँकि, भारत में “प्रोजेक्ट टाइगर” के कारण स्थिति नियंत्रण में है। पहले मनुष्यों द्वारा उनका शिकार बहुत से उद्देश्यों; जैसे – खेल, परंपरा, चिकित्सक दवाइयाँ आदि के लिए भारी मात्रामें किया जाता था। “प्रोजेक्ट टाइगर” की पहल भारत सरकार के द्वारा अप्रैल 1973 में बाघों की संख्या को नियंत्रित करने के लिए की गई थी।

प्रश्न 4.बाघ के प्रजातियों के बारे में बताइए। 

उत्तर- बाघ के 8 प्रजातियाँ होती है। आठ किस्‍मों की प्रजाति में से शाही बंगाल टाइगर (बाघ) उत्‍तर पूर्वी क्षेत्रों को छोड़कर देश भर में पाया जाता है और पड़ोसी देशों में भी पाया जाता है, जैसे नेपाल, भूटान और बांग्‍लादेश। भारत में बाघ आमतौर पर सुन्दर वन (असम, पश्चिमी बंगाल, त्रिपुरा, मध्य भारत आदि) में पाए जाते हैं। अधिक बड़े चीते अफ्रीकी जंगलों में पाए जाते हैं हालांकि, सभी में रॉयल बंगाल टाइगर सबसे अधिक सुन्दर लगते हैं।

प्रश्न 5. प्रोजेक्ट टाइगर का क्या असर हुआ? 

उत्तर- प्रोजेक्ट टाइगर अभियान को शुरु करने के कुछ वर्ष बाद ही, भारत में बाघों की संख्या में बहुत अधिक वृद्धि हुई है। 1993 की बाघों की जनगणना के अनुसार, देश में बाघों की कुल संख्या लगभग 3,750 थी। प्रोजेक्ट टाइगर के अन्तर्गत लगभग पूरे देश में 23 संरक्षण केन्द्रों (33,406 वर्ग किलो.मी. के क्षेत्र में) की स्थापना की गई थी।

मन के हारे हार है मन के जीते जीत

जीवन में हार जीत तो लगी रहती है। हम यदि कोई भी कार्य कर रहे तो उसका एक ही परिणाम होगा या तो जी या तो हार। हमें कोई भी कार्य बिना उसका परिणाम सूची करना चाहिए। परिणाम कुछ भी हो पर हमें हमेशा अच्छा ही सोचना चाहिए। कहा जाता है मन के हारे हार है मन के जीते जीत जिसका अर्थ यह होता है कि यदि अगर हम मन से ही हार जाएंगे तो हम कभी भी अपने कार्य में सफलता प्राप्त नहीं कर पाएँगे और यदि हमारे मन में यह दृढ़ता रहेगी कि हमें जीतना है तो हम हार कर भी जीत जाएँगे।

मन के हारे हार है मन के जीते जीत

हमारे द्रुढ मन की शक्ति हमें कुछ भी करवा सकती है। यदि हम निश्चय कर ले तो हम पहाड़ पर भी विजय प्राप्त कर सकते हैं l कभी कभी हमें छोटी सी राई भी पहाड़ की तरह मालूम होती है। हम हारने से पहले ही अपनी हार मान लेते हैं। जिस व्यक्ति ने रणभूमि में शत्रु को देख हार मान ली वह व्यक्ति कभी युद्ध नहीं जीत सकता। हर क्षेत्र में जीत हासिल करने के लिए हमें कुशल ज्ञान के साथ-साथ खुद पर आत्मविश्वास का होना जरूरी है। यदि हम हार का अनुभव करेंगे तो हम निश्चित ही हारेंगे। यदि हम जीत का अनुभव करते हैं तो हमारे जीतने के अवसर बढ़ जाएँगे।हार और जीत किसी के हाथों में नहीं होती पर हमें हार से पहले ही हार नहीं माननी चाहिए। जिससे खुद पर भरोसा हो वह हार को जीत में बदल सकता है। विजय का मुख्य कारण मेहनत के साथ उत्साह तथा द्रुढ निश्चय होता है। जीवन में लक्ष्य प्राप्त करने के लिए द्रुढ निश्चय होना जरूरी है। यदि हमारा मन कमजोर पड़ जाए तो निराशा हम पर हावी हो जाती है।

हमारे दुख सुख सारे हमारे मन पर निर्भर करते हैं। यदि हमारे मन पर नियंत्रण हो तो हम बड़े से बड़ा दुख मुस्कुराकर सहन कर जाते हैं। इसीलिए तो कहते हैं मन के हारे हार और मन के जीते जीत। यदि कोई मनुष्य अपने मन में अपनी हार नीचे समझता है तो इस धरती पर उस व्यक्ति को कोई नहीं जिता सकता। यदि हमें सांसारिक बंधनों से छुटकारा पाना है तो अपने मन पर नियंत्रण करना जरूरी है। यदि हमारे मन पर संयम ना हो तो इसके हमें विपरीत परिणाम मिलते हैं। इसलिए हमें सकारात्मक विचार रखना चाहिए। हमें अपने चंचल मन को स्थिर बनाना चाहिए। ताकि हम जीत के और अपने लक्ष्य के करीब जा सके। यदि हमारा मन चंचल है तो लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करना कठिन हो जाता है। मनुष्य के विचारों का परिणाम उसके कार्य पर पड़ता है। इसीलिए हमें अपने विचार सकारात्मक रखनी चाहिए। ताकि हमारे हर कार्य का परिणाम भी सकारात्मक आ सके।

संस्कृत की एक कहावत है–’मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः’ अर्थात् मन ही मनुष्य के बन्धन और मोक्ष का कारण है। तात्पर्य यह है कि मन ही मनुष्य को सांसारिक बन्धनों में बाँधता है और मन ही बन्धनों से छुटकारा दिलाता है। यदि मन न चाहे तो व्यक्ति बड़े–से–बड़े बन्धनों की भी उपेक्षा कर सकता है। शंकराचार्य ने कहा है कि “जिसने मन को जीत लिया, उसने जगत् को जीत लिया।” मन ही मनुष्य को स्वर्ग या नरक में बिठा देता है। स्वर्ग या नरक में जाने की कुंजी भगवान् ने हमारे हाथों में ही दे रखी है।

मन के हारे हार है, मन के जीते जीत॥ अर्थात् दुःख और सुख तो सभी पर पड़ा करते हैं, इसलिए अपना पौरुष मत छोड़ो; क्योंकि हार और जीत तो केवल मन के मानने अथवा न मानने पर ही निर्भर है, अर्थात् मन के द्वारा हार स्वीकार किए जाने पर व्यक्ति की हार सुनिश्चित है। इसके विपरीत यदि व्यक्ति का मन हार स्वीकार नहीं करता तो विपरीत परिस्थितियों में भी विजयश्री उसके चरण चूमती है। जय–पराजय, हानि–लाभ, यश–अपयश और दुःख–सुख सब मन के ही कारण हैं; इसलिए व्यक्ति जैसा अनुभव करेगा वैसा ही वह बनेगा।मन की दृढ़ता के कुछ उदाहरण हमारे सामने ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जिनमें मन की संकल्प–शक्ति के द्वारा व्यक्तियों ने अपनी हार को विजयश्री में परिवर्तित कर दिया। महाभारत के युद्ध में पाण्डवों की जीत का कारण यही था कि श्रीकृष्ण ने उनके मनोबल को दृढ़ कर दिया था। नचिकेता ने न केवल मृत्यु को पराजित किया, अपितु यमराज से अपनी इच्छानुसार वरदान भी प्राप्त किए। सावित्री के मन ने यमराज के सामने भी हार नहीं मानी और अन्त में अपने पति को मृत्यु के मुख से निकाल लाने में सफलता प्राप्त की।

अल्प साधनोंवाले महाराणा प्रताप ने अपने मन में दृढ़–संकल्प करके मुगल सम्राट अकबर से युद्ध किया। शिवाजी ने बहुत थोड़ी सेना लेकर ही औरंगजेब के दाँत खट्टे कर दिए। द्वितीय विश्वयुद्ध में अमेरिका द्वारा किए गए अणुबम के विस्फोट ने जापान को पूरी तरह बरबाद कर दिया था, किन्तु अपने मनोबल की दृढ़ता के कारण आज वही जापान विश्व के गिने–चुने शक्तिसम्पन्न देशों में से एक है। दुबले–पतले गांधीजी ने अपने दृढ़ संकल्प से ब्रिटिश साम्राज्य की नींव को हिला दिया था। इस प्रकार के कितने ही उदाहरण प्रस्तुत किए जा सकते हैं, जिनसे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि हार–जीत मन की दृढ़ता पर ही निर्भर है।

देखा गया है कि जिस काम के प्रति व्यक्ति का रुझान अधिक होता है, उस कार्य को वह कष्ट सहन करते हुए भी पूरा करता है। जैसे ही किसी कार्य के प्रति मन की आसक्ति कम हो जाती है, वैसे–वैसे ही उसे सम्पन्न करने के प्रयत्न भी शिथिल हो जाते हैं। हिमाच्छादित पर्वतों पर चढ़ाई करनेवाले पर्वतारोहियों के मन में अपने कर्म के प्रति आसक्ति रहती है। आसक्ति की यह भावना उन्हें निरन्तर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती रहती है।

मन सफलता की कूँजी है। जब तक न में किसी कार्य को करने की तीव्र इच्छा रहेगी, तब तक असफल होते हुए भी उस काम को करने की आशा बनी रहेगी। एक प्रसिद्ध कहानी है कि एक राजा ने कई बार अपने शत्रु से युद्ध किया और पराजित हुआ। पराजित होने पर वह एकान्त कक्ष में बैठ गया। वहाँ उसने एक मकड़ी को ऊपर चढ़ते देखा। मकड़ी कई बार ऊपर चढ़ी, किन्तु वह बार–बार गिरती रही। अन्तत: वह ऊपर चढ़ ही गई। इससे राजा को अपार प्रेरणा मिली। उसने पुनः शक्ति का संचय किया और अपने शत्रु को पराजित करके अपना राज्य वापस ले लिया। इस छोटी–सी कथा में यही सार निहित है कि मन के न हारने पर एक–न–एक दिन सफलता मिल ही जाती है।

मन को शक्तिसम्पन्न बनाने के लिए सबसे पहले उसे अपने वश में रखना होगा।अर्थात् जिसने अपने मन को वश में कर लिया, उसने संसार को वश में कर लिया, किन्तु जो मनुष्य मन को न जीतकर स्वयं उसके वश में हो जाता है, उसने मानो सारे संसार की अधीनता स्वीकार कर ली।मन को शक्तिसम्पन्न बनाने के लिए हीनता की भावना को दूर करना भी आवश्यक है। जब व्यक्ति यह सोचता है कि मैं अशक्त हूँ, दीन–हीन हूँ, शक्ति और साधनों से रहित हूँ तो उसका मन कमजोर हो जाता है। इसीलिए इस हीनता की भावना से मुक्ति प्राप्त करने के लिए मन को शक्तिसम्पन्न बनाना आवश्यक है।

मन परम शक्तिसम्पन्न है। यह अनन्त शक्ति का स्रोत है। मन की इसी शक्ति को पहचानकर ऋग्वेद में यह संकल्प अनेक बार दुहराया गया है–”अहमिन्द्रो न पराजिग्ये” अर्थात मैं शक्ति का केन्द्र हैं और जीवनपर्यन्त मेरी पराजय नहीं हो सकती है। यदि मन की इस अपरिमित शक्ति को भूलकर हमने उसे दुर्बल बना लिया तो सबकुछ होते हुए भी हम अपने को असन्तुष्ट और पराजित ही अनुभव करेंगे और यदि मन को शक्तिसम्पन्न बनाकर रखेंगे तो जीवन में पराजय और असफलता का अनुभव कभी न होगा।

अधिकतर पूछे जाने वाले प्रश्न 

प्रश्न 1.”मन के हारे हार है, मन के जीते जीत” किसकी पंक्ति है? 

उत्तर- “मन के हारे हार है, मन के जीते जीत। कहे कबीर हरि पाइए मन ही की परतीत।।” अर्थात- जीवन में जय और पराजय केवल मन के भाव हैं। यानी जब हम किसी कार्य के शुरू में ही हार मान लेते हैं कि हम सचमुच में ही हार जाते हैं।

प्रश्न 2.”मन के हारे हार है,मन के जीते जीत” है इस पंक्ति का तात्पर्य क्या है? 

उत्तर- इसका तात्पर्य यह है कि मन ही मनुष्य को सांसारिक बन्धनों में बाँधता है और मन ही बन्धनों से छुटकारा दिलाता है। यदि मन न चाहे तो व्यक्ति बड़े–से–बड़े बन्धनों की भी उपेक्षा कर सकता है। शंकराचार्य ने कहा है कि “जिसने मन को जीत लिया, उसने जगत् को जीत लिया।” मन ही मनुष्य को स्वर्ग या नरक में बिठा देता है। स्वर्ग या नरक में जाने की कुंजी भगवान् ने हमारे हाथों में ही दे रखी है।

प्रश्न 3.”मन के हारे हार है, मन के जीते जीत” भाव पल्लवन कीजिए। 

उत्तर-मन के हारे हार है, मन के जीते जीत॥ अर्थात् दुःख और सुख तो सभी पर पड़ा करते हैं, इसलिए अपना पौरुष मत छोड़ो; क्योंकि हार और जीत तो केवल मन के मानने अथवा न मानने पर ही निर्भर है, अर्थात् मन के द्वारा हार स्वीकार किए जाने पर व्यक्ति की हार सुनिश्चित है।

प्रश्न 4.हारने से क्या होता है?

उत्तर- मन से हारने का अर्थ होता है _ कि आपको किसी वस्तु या चीज से दूर रहना है, पर आप अपने आपको उसे प्राप्त करने से रोक नही पाते। जैसे आपको मीठा खाना मना है, क्योकि वजन कम करना है। पर जैसे ही गरमा गर्म गुलाब जामुन कोई आपके पास लाता है या आप कही देखते है तो उसे खाने से रोक नही पाते ।

प्रश्न 5.जो वाक्यांश अपने सामान्य अर्थ को छोड़कर किसी विशेष अर्थ को प्रकट करता है वह _____ कहलाता है?

उत्तर- जो वाक्यांश अपने सामान्य अर्थ को छोड़कर किसी विशेष अर्थ को प्रकट करता है, वह मुहावरा कहलाता है। हिंदी भाषा में मुहावरों का प्रयोग भाषा को सुंदर, प्रभावशाली, संक्षिप्त तथा सरल बनाने के लिए किया जाता है। वे वाक्यांश होते हैं। इनका प्रयोग करते समय इनका शाब्दिक अर्थ न लेकर विशेष अर्थ लिया जाता है। 

दहेज नारी शक्ति का अपमान है

महाकवि कालिदास ने अपनी विश्वप्रसिद्ध रचना ‘अभिज्ञान शाकुन्तलम्’ में महर्षि कण्व से कहलवाया है–

“अर्थो हि कन्या परकीय एव।” 

अर्थात् कन्या पराया धन है, न्यास है, धरोहर है।

न्यास और धरोहर की सावधानी से सुरक्षा करना तो सही है, किन्तु उसके पाणिग्रहण को दान कहकर वर–पक्ष को सौदेबाजी का अवसर प्रदान करना तो कन्या–रत्न के साथ घोर अन्याय है।

दहेज नारी शक्ति का अपमान है

दहेज़ प्रथा का अर्थ है शादी के समय दुल्हन के परिवार द्वारा दूल्हे के परिवार को दी गयी रुपये (नकदी), आभूषण, फर्नीचर, सम्पति और अन्य कीमती वस्तुएँ आदि। इस सिस्टम (प्रणाली) को दहेज़ प्रणाली कहा जाता है। परन्तु ये तो आप जानते ही होंगे कि दहेज़ लेना और दहेज़ देना अपराध है।आज दहेज समस्या कन्या के जन्म के साथ ही, जन्म लेने वाली विकट समस्या बन चुकी है। आज कन्या एक ऋण–पत्र है, ‘प्रॉमिज़री नोट’ है और पुत्र विधाता के बैंक से जारी एक ‘गिफ्ट चैक’ बन गया है।दहेज की परम्परा आज ही जन्मी हो, ऐसा नहीं है, दहेज तो हजारों वर्षों से इस देश में चला आ रहा है। प्राचीन ग्रन्थों में भी इसका उल्लेख मिलता है।प्राचीन समय में दहेज नव–दम्पत्ती को नवजीवन आरम्भ करने के उपकरण देने का और सद्भावना का चिह्न था। उस समय दहेज कन्या पक्ष की कृतज्ञता का रूप था। कन्या के लिए दिया जाने वाला धन, स्त्री–धन था, किन्तु आज वह कन्या का पति बनने का शुल्क बन चुका है।आज दहेज अपने निकृष्टतम रूप को प्राप्त कर चुका है। अपने परिवार के भविष्य को दाँव पर लगाकर समाज के सामान्य व्यक्ति भी इस मूर्खतापूर्ण होड़ में सम्मिलित हो जाते हैं।

माता-पिता अपनी बेटी को दहेज़ देकर ससुराल में उसका जीवन सुखमई बनाने की कोशिश करते है दहेज़ प्रथा से कई औरतें खुले तरीके से रह पाती है क्योंकि दहेज़ में मिली नकदी, संपत्ति, फर्नीचर, कार और अन्य प्रॉपर्टी उनके लिए एक वित्तीय सहायता की तरह काम करती है। इससे दूल्हा और दुल्हन अपना जीवन की अच्छी शुरुआत कर सकते है लेकिन क्या यह एक वैलिड रीज़न है? यदि ऐसा ही है तो दुल्हन के परिवार पर पूरा भोज डालने के बजाय दोनों परिवार को उनके करियर बनाने के लिए इन्वेस्ट करना चाहिए।

इस स्थिति का कारण सांस्कृतिक रूढ़िवादिता भी है। प्राचीनकाल में कन्या को वर चुनने की स्वतंत्रता थी। किन्तु जब से माता–पिता ने उसको किसी के गले बाँधने का पुण्य कार्य अपने हाथों में ले लिया है तब से कन्या अकारण ही हीनता की पात्र बन गई है। वर पक्ष से कन्या पक्ष को हीन समझा जाने लगा है।इस भावना का अनुचित लाभ वर–पक्ष पूरा–पूरा उठाता है। घर में चाहे साइकिल भी न हो, परन्तु बाइक पाए बिना तोरण स्पर्श न करेंगे। बाइक की माँग तो पुरानी हो चुकी अब तो कार की मांग उठने लगी है। बेटी का बाप होना जैसे पूर्व जन्म और वर्तमान जीवन का भीषण पाप हो गया है।

दहेज के दानव ने भारतीयों की मनोवृत्तियों को इस हद तक दूषित किया है कि कन्या और कन्या के पिता का सम्मान–सहित जीना कठिन हो गया है। इस प्रथा की बलिवेदी पर न जाने कितने कन्या–कुसुम बलिदान हो चुके हैं। लाखों पारिवारिक जीवन की शान्ति को नष्ट करने और मानव की सच्चरित्रता को मिटाने का अपराध इस प्रथा ने किया है।तथाकथित बड़ों को धूमधाम से विवाह करते देख–छोटों का मन भी ललचाता है और फिर कर्ज लिए जाते हैं, मकान गिरवी रखे जाते हैं। घूस, रिश्वत, चोरबाजारी और उचित–अनुचित आदि सभी उपायों से धन–संग्रह की घृणित लालसा जागती है। सामाजिक जीवन अपराधी भावना और चारित्रिक पतन से भर जाता है। एक बार ऋण के दुश्चक्र में फंसा हुआ गृहस्थ अपना और अपनी सन्तान का भविष्य नष्ट कर बैठता है।यह समस्या इसके मूल कारणों पर प्रहार किये बिना नहीं समाप्त हो सकती। शासन कानूनों का दृढ़ता से पालन कराये, यदि आवश्यक हो तो विवाह–कर भी लगाये ताकि धूमधाम और प्रदर्शन समाप्त हो। स्वयं समाज को भी सच्चाई से इस दिशा में सक्रिय होना पड़ेगा। दहेज–लोभियों का सामाजिक बहिष्कार करना होगा। कन्याओं को स्वावलम्बी और स्वाभिमानी बनना होगा।

सरकार ने दहेज़ प्रथा को रोकने के लिए साल 1975 में कानून बनाया था। कानून के अनुसार दहेज़ लेना और दहेज़ देना क़ानूनी अपराध है। सरकार द्वारा दहेज़ विरोधी कानून को और एफ्फेक्टेड बनाने के लिए संसदीय कमीटी बनाने का गठन किया है। साल 1983 में दहेज़ से सम्बंधित नए कानून सबके सामने लाये गए। जिसके अनुसार यदि कोई दहेज़ के लालच में किसी भी महिला को आत्महत्या करने पर मजबूर करेंगे उसे व उसके परिवार को दण्डित किया जायेगा। इसी के साथ दहेज़ प्रथा के कारण नारी पर हो रहे अत्याचार को रोकने के लिए उपाय करने होंगे। बता देते है यदि कोई व्यक्ति दहेज़ लेता है तो उसे एक्ट 1961 के तहत दहेज़ लेने के लिए 3 साल की सजा हो सकती है।

ये तो सभी जानते है कि दहेज़ प्रथा इतनी जल्दी पूरी तरह से खत्म नहीं हो सकती लेकिन हमे ये प्रयास करना होगा कि हम इसे सबसे पहले अपने से शुरू करना होगा जिसके बाद ही यह धीरे-धीरे खत्म हो सकेगा अन्यथा हमारी आने वाली पीड़ी के लिए यह प्रथा और भी खतरनाक हो जाएगी और ऐसी ही कई महिलाओं के साथ दहेज़ प्रथा के कारण अत्याचार होता रहेगा।

 

अधिकतर पूछे जाने वाले प्रश्न 

प्रश्न 1. दहेज प्रथा कब शुरू हुआ? 

उत्तर-अथर्ववेद के अनुसार, दहेज़ प्रथा ”वहतु” के रूप में उत्तर वैदिक काल में शुरू हुयी थी। उस समय लड़की का पिता उसे ससुराल विदा करते समय कुछ तोहफे देता था, जिसे वहतु कहते थे। यह सिर्फ अपनी ख़ुशी से दिए हुए तोहफे होते थे।

प्रश्न 2. दहेज की शुरुआत किसने की?

उत्तर-भारत में, मध्यकाल में इसकी जड़ें हैं जब शादी के बाद अपनी स्वतंत्रता बनाए रखने के लिए दुल्हन को उसके परिवार द्वारा नकद या वस्तु के रूप में उपहार दिया जाता था। औपनिवेशिक काल के दौरान, यह शादी करने का एकमात्र कानूनी तरीका बन गया, जब अंग्रेजों ने दहेज प्रथा को अनिवार्य कर दिया।

प्रश्न 3.भारत में दहेज प्रथा के क्या कारण है?

उत्तर-लैंगिक भेदभाव और अशिक्षा दहेज़ प्रथा का प्रमुख कारन है। दहेज प्रथा के कारण कई बार यह देखा गया है कि महिलाओं को एक दायित्व के रूप में देखा जाता है और उन्हें अक्सर अधीनता हेतु विवश किया जाता है तथा उन्हें शिक्षा या अन्य सुविधाओं के संबंध में दोयम दर्जे की सुविधाएँ दी जाती हैं।

प्रश्न 4. दहेज क्यों दिया जाता था?

उत्तर-मूल रूप से, दहेज दुल्हन या दुल्हन के परिवार को दिया जाता था, इसके विपरीत नहीं! दहेज का मूल उद्देश्य दुल्हन के परिवार को उसके श्रम और उसकी प्रजनन क्षमता के नुकसान के लिए क्षतिपूर्ति करना था।

प्रश्न 5. भारत में दहेज प्रथा को किसने रोका?

उत्तर- भारत की संसद द्वारा अनुमोदित दहेज निषेध अधिनियम 1961 और बाद में भारतीय दंड संहिता की धारा 304बी और 498ए सहित विशिष्ट भारतीय कानूनों के तहत दहेज का भुगतान लंबे समय से प्रतिबंधित है।

मानसिक सुख और संतोष

जब आवै संतोष धन सब धन धुरि समान

संतोषी सदा सुखी

गौधन गजधन वाजिधन और रतन धन खानि

जब आवै संतोष धन सब धन धुरि समान

आज भले ही संतोषी स्वभाव वाले व्यक्ति को मुर्ख और कायर कहकर हंसी उड़ाई जाय लेकिन संतोष ऐसा गुण हैं जो आज भी सामाजिक सुख शांति का आधार बन सकता हैं।असंतोष और लालसा ने श्रेष्ठ मानवीय मूल्यों को उपेक्षित कर दिया हैं. चारों ओर इर्ष्या, द्वेष और अस्वस्थ होड़ का बोलबाला हैं. परिणामस्वरूप मानव जीवन की सुख शान्ति नष्ट हो गयी हैं.

मानसिक सुख और संतोष

दुनिया में धन का हमेशा महत्त्व रहा है। धन से सब कुछ खरीदा जाता है। धन को सुख का साधन माना गया है। आज मनुष्य का सारा जीवन धन कमाने में ही बीतता है। इसके लिए वह उचित–अनुचित सब उपाय अपनाता है। आर्थिक मनोकामनाएँ निरंतर पूरी होते रहने पर भी मनुष्य असन्तुष्ट रहता है।

आध्यात्मिक धन–असंतोष मानव जीवन का अभिशाप है और संतोष मानव जीवन का वरदान है। इस सम्बन्ध में भारत के अनेक कवियों की काव्य–पंक्तियों को उद्धृत किया जा सकता है।

साईं इतना दीजियो जामें कुटुंब समाय।

मैं भी भूखा ना रहूँ, साधु न भूखा जाय।

कबीर मीत न नीत गलीत है जो धरिये धन जोर।

खाए खरचे जो बचै तौ जोरिये करोर। – बिहारी

उपर्युक्त सभी कवियों ने एक ही बात पर जोर दिया है कि संसार में संतोषरूपी धन ही सबसे बड़ा धन है और जब यह प्राप्त हो जाता है तो संसार में किसी धन की आवश्यकता नहीं रह जाती।

आज सारा संसार पूँजीवादी व्यवस्था को अपनाकर अधिक–से–अधिक धन कमाने की होड़ में लगा हुआ है। उसकी मान्यता है कि कैसे भी कमाया जाय अधिक धन कमाना चाहिए। धनोपार्जन के लिए मनुष्य किसी भी सीमा तक गिर सकता है। अनुचित साधनों द्वारा अर्जित काला धन ही लोगों की उज्ज्वलता का माध्यम बन गया है। अत: संसार की सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था दूषित हो गई है।अधिक–से–अधिक धन बटोरने की होड़ मची है। अमीर और अमीर बन रहा है। गरीब और गरीब होता जा रहा है। गरीब मजबूर है, आत्महत्या करने को विवश है। मानव–जाति आज जिस स्थिति में पहुंच गई है, उसका कारण कहीं बाहर नहीं है स्वयं मनुष्य के विचारों में ही है। आज का मानव इतना स्वार्थी हो गया है कि उसे केवल अपना सुख ही दिखाई देता है। वह स्वयं अधिक से अधिक धन कमाकर संसार का सबसे अमीर व्यक्ति बनना चाहता है। यही असंतोष का कारण है।

सम्पूर्ण मानव जाति आज जिस स्थिति में पहुच गई हैं. इसका कारण कहीं बाहर नहीं हैं, स्वयं मनुष्य के मन में ही हैं. आज का मानव इतना स्वार्थी हो गया हैं कि उसे केवल अपना सुख ही दिखाई देता हैं।वह स्वयं अधिक से अधिक धन कमाकर संसार का सबसे अमीर व्यक्ति बनना चाहता हैं. फोबर्स नामक पत्रिका ने इस स्पर्द्धा को और बढ़ा दिया हैं. इस पत्रिका में विश्व के धनपतियों की सम्पूर्ण सम्पति का ब्यौरा होता हैं। तथा उसी के अनुसार उन्हें श्रेणी प्रदान की जाती है. अतः सबसे ऊपर नाम लिखाने की होड़ में धनपतियों में आपाधापी मची हुई हैं. यह सम्पति असंतोष का कारण बनी हुई हैं. इसके अतिरिक्त घोर भौतिकवादी दृष्टिकोण भी असंतोष का कारण बना हुआ हैं। खाओ पियो मौज करो यही आज का जीवन दर्शन बन गया हैं। इसी कारण सारी नीति और मर्यादाएं भूलकर आदमी अधिक से अधिक धन और सुख सुविधाएं बटोरने में लगा हुआ हैं. कवि प्रकाश जैन के शब्दों में

“हर ओर धोखा झूठ फरेब, हर आदमी टटोलता है दूसरे की जेब”

प्राचीनकाल से आज तक अनेक महापुरुषों ने इस विषय में अपने विचार व्यक्त किये हैं तथा निष् रूप में यही कहा है कि “धन केवल साधन है साध्य नहीं”। अत: संतोष धन प्राप्त करने में नहीं है। उपनिषद, है–”तेन त्यक्तेन भुंजीथा” जो त्याग करने में समर्थ है उसे ही भोगने का अधिकार है। अत: संतोष में हो सुख है। किन्तु यः उपदेश केवल गरीबों के लिए है और इकतरफा है।

इच्छाओं का अंत नहीं, तृष्णा कभी शांत नहीं होती, असंतुष्टि की दौड़ कभी खत्म नहीं होती, जो धन असहज रूप से आता हैं।वह कभी सुख शान्ति नहीं दे सकता, झूठ बोलकर, तनाव झेलकर अपराध भावना का बोझ ढोते हुए, न्याय, नीति, धर्म से विमुख होकर जो धन कमाया जाएगा, उससे चिंताएं, आशंकाए और भय ही मिलेगा सुख नहीं. इस सारे जंजाल से छुटकारा पाने का एक ही उपाय हैं संतोष की भावना।

आज नहीं तो कल धन के दीवानेपन को अक्ल आएगी. धन समस्याओं को हल कर सकता हैं भौतिक सुख सुविधाओ को दिला सकता हैं,किन्तु मन की शान्ति तथा चिंताओं और शंकाओं से रहित जीवन धन से नहीं संतोष से ही प्राप्त हो सकता हैं. संतोषी सदा सुखी यह कथन आज भी प्रासंगिक हैं. असंतोषी तो सिर धुनता हैं तब संतोषी सुख की नीद सोता हैं.निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि संतोष का उपदेश देना ही काफी नहीं है। उत्पादन के साधनों का समान वितरण भी जरूरी है। जब समाज में असमानता नहीं होगी, अमीरी–गरीबी के दो ऊँचे–नीचे पर्वत नहीं बने होंगे तो असंतोष स्वयं ही नष्ट हो जायेगा।

प्रश्न/उत्तर

प्रश्न 1. संतोष क्या होता हैं? 

उत्तर: संतोष का अर्थ है तृप्ति! यह एक अवधारणा है‌। अगर कोई मनुष्य अपने मन-मस्तिष्क में इसे धारण कर पाता है, तो वह सुखी हो जाता है। संतोष से संतुष्टि मिलती है और संतुष्टि संतुष्ट होने का भाव है, तृप्त होने का भाव है।

प्रश्न 2.मानसिक सुख का अर्थ क्या है?

हम मानसिक सुखों को मानसिक घटनाओं के लिए आत्मा की प्रतिक्रिया का प्रतिनिधित्व करते हैं (हालांकि एक स्तर पर, यहां तक ​​कि मानसिक या मानसिक घटनाओं को विशुद्ध रूप से भौतिक शब्दों में समझाया जा सकता है, परमाणुओं की गति के रूप में)।

प्रश्न 3.जीवन में सुख से क्या अभिप्राय है?

उत्तर: जीवन में ‘सुख’ का अभिप्राय केवल उपभोग-सुख नहीं है। परन्तु आजकल लोग केवल उपभोग के साधनों को भोगने को ही ‘सुख’ कहने लगे है। विभिन्न प्रकार के मानसिक, शारीरिक तथा सूक्ष्म आराम भी ‘सुख’ कहलाते। 

प्रश्न 4.मस्तिष्क में सुख कहां होता है?

उत्तर: मस्तिष्क का आनंद केंद्र तंत्रिका कोशिकाओं के माध्यम से आगे बढ़ने के लिए जाना जाता है जो न्यूरोकेमिकल डोपामिन का उपयोग करके संकेत करता है और आम तौर पर वीटीए में स्थित होता है । डोपामिनर्जिक न्यूरॉन्स आनंद संकेतों को पारित करने के लिए एक “उल्लेखनीय क्षमता” प्रदर्शित करते हैं।

प्रश्न 5.जीवन में सुख किस कारण से होता है?

उत्तर: एंडोर्फिन – खुशी के हार्मोन – जो आकर्षण महसूस करने से जुड़े हैं। डोपामाइन, जो तब उत्पन्न होता है जब हम संतुष्ट महसूस करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप हम खुश, उत्साहित और उत्तेजित महसूस करते हैं। ऑक्सीटोसिन, जो रिश्तों से जुड़ा हुआ है और हमें अन्य मनुष्यों के साथ संबंध बनाने में मदद करता है।

पढ़े बेटियाँ, बढ़े बेटियाँ

कहा जाता है कि एक सुघड़, सुशील और सुशिक्षित स्त्री दो कुलों का उद्धार करती है। विवाह से पहले वह अपने मातृकुल को सुधारती है और विवाह के बाद अपने पतिकुल को। उनके इस महत्त्व को प्रत्येक देश–काल में स्वीकार किया जाता रहा है, किन्तु यह विडम्बना ही है कि उनके अस्तित्व और शिक्षा पर सदैव से संकट छाया रहा है।

बीते कुछ दशकों में यह संकट और अधिक गहरा हुआ है, जिसका परिणाम यह हुआ कि देश में बालक–बालिका लिंगानुपात सन् 1971 ई० की जनगणना के अनुसार प्रति एक हजार बालकों पर 930 बालिका था, जो सन् 1991 ई० में घटकर 927 हो गया। सन् 2011 ई० की जनगणना में यह बढ़कर 943 हो गया। मगर इसे सन्तोषजनक नहीं कहा जा सकता। जब तक बालक–बालिका लिंगानुपात बराबर नहीं हो जाता, तब तक किसी भी प्रगतिशील बुद्धिवादी समाज को विकसित या प्रगतिशील समाज की संज्ञा नहीं दी जा सकती। महिला सशक्तीकरण की बात करना भी तब तक बेमानी ही है।

माननीय प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदीजी ने इस तथ्य के मर्म को जाना–समझा और सरकारी स्तर पर एक योजना चलाने की रूपरेखा तैयार की। इसके लिए उन्होंने 22 जनवरी, 2015 को हरियाणा राज्य से ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ योजना की शुरूआत की। योजना के महत्त्व और महान् उद्देश्य को दृष्टिगत रखते हुए ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ योजना की शुरूआत भारत सरकार के बाल विकास मन्त्रालय, स्वास्थ्य मन्त्रालय, परिवार कल्याण मन्त्रालय और मानव संसाधन विकास मन्त्रालय की संयुक्त पहल से की गई। इस योजना के दोहरे लक्ष्य के अन्तर्गत न केवल लिंगानुपात की असमानता की दर में सन्तुलन लाना है, बल्कि कन्याओं को शिक्षा दिलाकर देश के विकास में उनकी भागेदारी को सुनिश्चित करना है। सौ करोड़ रुपयों की शुरूआती राशि के साथ इस योजना के माध्यम से महिलाओं के लिए कल्याणकारी सेवाओं के प्रति जागरूकता फैलाने का कार्य किया जा रहा है। सरकार द्वारा लिंग समानता के कार्य को मुख्यधारा से जोड़ने के अलावा स्कूली पाठ्यक्रमों में भी लिंग समानता से जुड़ा एक अध्याय रखा जाएगा। इसके आधार पर विद्यार्थी, अध्यापक और समुदाय कन्या शिशु और महिलाओं की आवश्यकताओं के लिए अधिक संवेदनशील बनेंगे और समाज का सौहार्दपूर्ण विकास होगा।

पढ़े बेटियाँ, बढ़े बेटियाँ

बेटियों को आगे बढ़ाने के उपाय

हमारी बेटियाँ आगे बढ़ें और देश के विकास में अपना योगदान करें, इसके लिए अनेक उपाय किए जा सकते हैं, जिनमें से कुछ मुख्य उपाय इस प्रकार हैं-

(क) पढ़ें बेटियाँ–बेटियों को आगे बढ़ाने के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण और मुख्य उपाय यही है कि हमारी बेटियाँ बिना किसी बाधा और सामाजिक बन्धनों के उच्च शिक्षा प्राप्त करें तथा स्वयं अपने भविष्य का निर्माण करने में सक्षम हों। अभी तक देश में बालिकाओं की शिक्षा की स्थिति सन्तोषजनक नहीं है। शहरी क्षेत्रों में तो बालिकाओं की स्थिति कुछ ठीक भी है, किन्तु ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति बड़ी दयनीय है। बालिकाओं की अशिक्षा के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा यह है कि लोग उन्हें ‘पराया धन’ मानते हैं।उनकी सोच है कि विवाहोपरान्त उसे दूसरे के घर जाकर घर–गृहस्थी का कार्य सँभालना है, इसलिए पढ़ने–लिखने के स्थान पर उसका घरेलू कार्यों में निपुण होना अनिवार्य है। उनकी यही सोच बेटियों के स्कूल जाने के मार्ग बन्द करके घर की चहारदीवारी में उन्हें कैद कर देती है। बेटियों को आगे बढ़ाने के लिए सबसे पहले समाज की इसी निकृष्ट सोच को परिवर्तित करना होगा।

(ख) सामाजिक सुरक्षा–बेटियाँ पढ़–लिखकर आत्मनिर्भर बनें और देश के विकास में अपना योगदान दें, इसके लिए सबसे आवश्यक यह है कि हम समाज में ऐसे वातावरण का निर्माण करें, जिससे घर से बाहर निकलनेवाली प्रत्येक बेटी और उसके माता–पिता का मन उनकी सुरक्षा को लेकर सशंकित न हो। आज बेटियाँ घर से बाहर जाकर सुरक्षित रहें और शाम को बिना किसी भय अथवा तनाव के घर वापस लौटें, यही सबसे बड़ी आवश्यकता है।आज घर से बाहर बेटियाँ असुरक्षा का अनुभव करती हैं, वे शाम को जब तक सही–सलामत घर वापस नहीं आ जाती, उनके माता–पिता की साँसें गले में अटकी रहती हैं। उनकी यही चिन्ता बेटी को घर के भीतर कैद रखने की अवधारणा को बल प्रदान करती है। जो माता–पिता किसी प्रकार अपने दिल पर पत्थर रखकर अपनी बेटियों को पढ़ा–लिखाकर योग्य बना भी देते हैं, वे भी उन्हें रोजगार के लिए घर से दूर इसलिए नहीं भेजते कि ‘जमाना ठीक नहीं है।’ अतः बेटियों को आगे बढ़ाने के लिए इस जमाने को ठीक करना आवश्यक है अर्थात् हमें बेटियों को आगे बढ़ाने के लिए उन्हें सामाजिक सुरक्षा की गारण्टी देनी होगी।

(ग) रोजगार के समान अवसरों की उपलब्धता–अनेक प्रयासों के बाद भी बहुत–से सरकारी एवं गैर–सरकारी क्षेत्र ऐसे हैं, जिनको महिलाओं के लिए उपयुक्त नहीं माना गया है। सैन्य–सेवा एक ऐसा ही महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है, जिसमें महिलाओं को पुरुषों के समान रोजगार के अवसर उपलब्ध नहीं हैं। यान्त्रिक अर्थात् टेक्नीकल क्षेत्र विशेषकर फील्ड वर्क को भी महिलाओं की सेवा के योग्य नहीं माना जाता है इसलिए इन क्षेत्रों में सेवा के लिए पुरुषों को वरीयता दी जाती है।

यदि हमें बेटियों को आगे बढ़ाना है तो उनके लिए सभी क्षेत्रों में रोजगार के समान अवसर उपलब्ध कराने होंगे। यह सन्तोष का विषय है कि अब सैन्य और यान्त्रिक आदि सभी क्षेत्रों में महिलाएँ रोजगार के लिए आगे आ रही हैं और उन्हें सेवा का अवसर प्रदानकर उन्हें आगे आने के लिए प्रोत्साहित भी किया जा रहा है।

बेटियाँ पढ़ें और आगे बढ़ें, इसका दायित्व केवल सरकार पर नहीं है। समाज के प्रत्येक व्यक्ति पर इस बात का दायित्व है कि वह अपने स्तर पर वह हर सम्भव प्रयास करे, जिससे बेटियों को पढ़ने और आगे बढ़ने का प्रोत्साहन मिले। हम यह सुनिश्चित करें कि जब हम घर से बाहर हों तो किसी भी बेटी की सुरक्षा पर हमारे रहते कोई आँच नहीं आनी चाहिए।

यदि कोई उनके मान–सम्मान को ठेस पहुँचाने की तनिक भी चेष्टा करे तो आगे बढ़कर उसे सुरक्षा प्रदान करनी होगी और उनके मान–सम्मान से खिलवाड़ करनेवालों को विधिसम्मत दण्ड दिलाकर अपने कर्तव्यों का निर्वाह करना होगा, जिससे हमारी बेटियाँ उन्मुक्त गगन में पंख पसारे नित नई ऊँचाइयों को प्राप्त कर सकें।

अधिकतर पूछे जाने वाले प्रश्न 

प्रश्न 1. “पढ़े बेटियाँ, बढ़े बेटियाँ” से क्या मतलब है? 

उत्तर- “पढ़े बेटियाँ, बढ़े बेटियाँ” से तात्पर्य यह है कि जब तक हम लड़कियों की शिक्षा पर ध्यान नहीं देंगे तब तक लड़कियाँ बढ़ेंगी नहीं। एक समाज को अच्छा बनाने के लिए सिर्फ लड़कों का ही नहीं लड़कियों के लिए भी शिक्षा बहुत अनिवार्य है।

प्रश्न 2. बेटी पर कौन-सा स्लोगन सही है?

उत्तर-बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, देश को प्रगति के पथ पर लाओ। जब उन्हें बचाएंगे और पढ़ाएँगे तभी हम विश्वगुरु बन पाएँगे। अगर बेटा एक अभिमान है, तो बेटियाँ भी वरदान हैं। जीवन, शिक्षा एवं प्यार, बेटियों का भी है अधिकार।

प्रश्न 3.बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान का मुख्य उद्देश्य क्या है?

उत्तर-बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का उद्देश्य: ऐसे में बेटियों के प्रति समाज की इस नकारात्मक सोच में बदलाव लाने और उन्हें शिक्षा के माध्यम से आत्मनिर्भर बनने में सहयोग देने के लिए सरकार बालिका के माता-पिता को उसके भविष्य के लिए बचत करने की सुविधा प्रदान कर उन्हें आर्थिक सहयोग प्रदान करती है।

प्रश्न 4.बेटियाँ अपने पिता से ज्यादा प्यार क्यों करती हैं?

उत्तर-बेटियाँ स्वाभाविक रूप से अपने पिता के साथ संबंध बनाने की लालसा रखती हैं, और वे विशेष रूप से अपने पिता से भावनात्मक और शारीरिक स्नेह को संजोती हैं। वास्तव में, मेग मीकर के शोध के अनुसार, जब लड़कियों और पिताओं के बीच एक मजबूत संबंध होता है, तो बेटियां जीवन में कई अलग-अलग स्तरों पर बेहतर करती हैं।

प्रश्न 5.बेटी का क्या महत्व है?

उत्तर-विवाह के बाद नये रिश्तों को तन-मन से स्वीकारती है बेटी। बेटी को शिक्षित करना, पूरे परिवार को शिक्षित करना है, बेटी बड़ी होकर पत्नी -माँ बन परिवार को संजोती है। वो जन्मदात्री ही नहीं चरित्र निर्मात्री भी है। एक शिक्षित बेटी पूरे परिवार को नई दिशा, रोशनी व नया परिवेश देती है।

राष्ट्र निर्माण में युवाओं का योगदान

राष्ट्र को विकसित बनाने में युवाओं की सर्वाधिक महत्वपूर्ण भागीदारी हो सकती है। आगामी 25 वर्षो में भारत को विकसित देशों की श्रेणी में शामिल करने के लिए युवाओं को आगे आना होगा। प्रधानमंत्री का भाषण आजादी के अमृत काल में युवाओं के लिए पथ-प्रदर्शक का कार्य करेगा।

जिस तरह से इंजन को चालू करने के लिए इंधन जिम्मेदार होता है; ठीक उसी तरह युवा राष्ट्र के लिए है। यह राष्ट्र की प्रेरक शक्ति के रूप में कार्य करता है।किसी भी राष्ट्र को प्रौद्योगिकियों, शोध, विज्ञान, चिकित्सा, यानी आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक के संदर्भ में प्रगति और विकास के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है। जब युवा अपने प्रयासों के साथ ईमानदारी से यही काम करता हैं, तो इसे चिह्नित किया जाता है। भारत में युवाओं की सबसे बड़ी संख्या है, जिन्हें यदि बेहतर तरह से पोषित किया जाये और अगर ये अपना प्रयास सही दिशा में लगाते हैं, तो यह देश पूरी दुनिया में सबसे उत्कृष्ट बन जायेगा।

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नेल्सन मंडेला की एक ख़ूबसूरत कहावत है कि, “आज के युवा कल के नेता हैं” जो हर एक पहलू में सही लागू होता है। युवा राष्ट्र के किसी भी विकास की नींव रखता है। युवा एक व्यक्ति के जीवन में वह मंच है, जो सीखने की कई क्षमताओं और प्रदर्शन के साथ भरा हुआ है।

युवाओं की शक्ति राष्ट्र का सर्वांगीण विकास और भविष्य, वहां रहने वाले लोगों की शक्ति और क्षमता पर निर्भर करता है और इसमें प्रमुख योगदान उस राष्ट्र के युवाओं का है।युवा राष्ट्र का संरचनात्मक और कार्यात्मक ढांचा है। हर राष्ट्र की सफलता का आधार उसकी युवा पीढ़ी और उनकी उपलब्धियाँ होती हैं। राष्ट्र का भविष्य युवाओं के सर्वांगीण विकास में निहित है। इसलिए युवा राष्ट्र निर्माण में सर्वोच्च भूमिका निभाते हैं।

Contribution of youth in nation building

हमारे ऐतिहासिक समय से यह देखा जा सकता है कि हमारे राष्ट्र के लिए कई परिवर्तन, विकास, समृद्धि और सम्मान लाने में युवा सक्रिय रूप से शामिल हुए हैं। इस सबका मुख्य उद्देश्य उन्हें एक सकारात्मक दिशा में प्रशिक्षित करना है। युवा पीढ़ी के उत्थान के लिए कई संगठन काम कर रहे हैं क्योंकि वे बड़े होकर राष्ट्र निर्माण में सहायक बनेंगे। गरीब और विकासशील देश अभी भी युवाओं के समुचित विकास और शिक्षण में पिछड़े हुए हैं।

एक बच्चे के रूप में प्रत्येक व्यक्ति, अपने जीवन में कुछ बनने का सपने देखता है, दूसरे शब्दों में, हम कह सकते हैं कि कुछ उद्देश्य होना चाहिए। बच्चा अपनी शिक्षा पूरी करता है और कुछ हासिल करने के लिए कुछ कौशल प्राप्त करता है। इसलिए यह राष्ट्र की प्रगति के प्रति उस व्यक्ति का सकारात्मक दृष्टिकोण है।

किसी भी राष्ट्र के निर्माण में युवा वर्ग एक अहम भूमिका निभाता है। युवा वर्ग शारीरिक और मानसिक रूप से किसी भी कार्य को कुशलता पूर्वक करने में सक्षम होता है। हर व्यक्ति जीवन के इस दौर से गुजरता है। युवाओं को उच्च स्तर की शिक्षा प्राप्त करनी चाहिए और विभिन्न क्षेत्रो में अपना योगदान देना चाहिए।किसी भी राष्ट्र में कुल जनसंख्या का 20-30 प्रतिशत हिस्सा युवा होते हैं। किसी भी राष्ट्र को विकसित राष्ट्र बनाने में युवा वर्ग का सर्वाधिक योगदान रहा है। राष्ट्र की प्रगति विज्ञान, प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य, प्रबंधन और अन्यक्षेत्रों में विकासपर निर्भर होती है।। इन सभी मानदंडों को पूरा करने के लिए सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक आधार पर युवाका सशक्तीकरण आवश्यक है।युवा राष्ट्र का संरचनात्मक और कार्यात्मक ढांचा है। हर राष्ट्र की सफलता का आधार उसकी युवा पीढ़ी और उनकी उपलब्धियाँ होती हैं। राष्ट्र का भविष्य युवाओं के सर्वांगीण विकास में निहित है। इसलिए युवा राष्ट्र निर्माण में सर्वोच्च भूमिका निभाते हैं। आज इस विषय पर अलग अलग शब्द सीमा में हम आपके लिए कुछ निबंध लेकर आये हैं जिनके माध्यम से आप इस विषय को बेहतर ढंग से समझ पायेंगे।

एक युवा मन प्रतिभा और रचनात्मकता से भरा हुआ है। यदि वे किसी मुद्दे पर अपनी आवाज उठाते हैं, तो परिवर्तन लाने में सफल होते हैं।

युवाओं को राष्ट्र की आवाज माना जाता है। युवा राष्ट्र के लिए कच्चे माल या संसाधन की तरह होते हैं। जिस तरह के आकार में वे हैं, उनके उसी तरीके से उभरने की संभावना होती है।

राष्ट्र द्वारा विभिन्न अवसरों और सशक्त युवा प्रक्रियाओं को अपनाया जाना चाहिए, जो युवाओं को विभिन्न धाराओं और क्षेत्रों में करियर बनाने में सक्षम बनाएगा।

युवा लक्ष्यहीन, भ्रमित और दिशाहीन होते हैं और इसलिए वे मार्गदर्शन और समर्थन के अधीन होते हैं, ताकि वे सफल होने के लिए अपना सही मार्ग प्रशस्त कर सकें।

युवा हमेशा अपने जीवन में कई असफलताओं का सामना करते हैं और हर बार ऐसा प्रतीत होता है जैसे कि एक पूर्ण अंत है, लेकिन वो फिर से कुछ नए लक्ष्य के साथ खोज करने के लिए एक नए दृष्टिकोण के साथ उठता है।

अतः युवा पीढ़ी के जहाँ समाज के प्रति दायित्व हैं, वहीँ अपने जीवन निर्माण के प्रति उसे कुछ सावधानी बरतना अपेक्षित हैं. 

पहले युवक युवती स्वयं को सुधारें, स्वयं को शिक्षित करे, स्वयं को जिम्मेदार नागरिक बनें और स्वयं को चरित्रवान बनाएं. तभी वे समाज की प्रगति में सहायक हो सकते हैं.समाज में शान्ति और व्यवस्था बनाए रखना उनका दायित्व हैं. समाज विरोधी तत्वों की रोकथाम युवकों के सहयोग से ही संभव हैं.वे हड़ताल, आगजनी, तोड़ फोड़ आदि को रोके, ताकि सामाजिक वातावरण बिगड़े नहीं, समाज में धर्म व नीति की मर्यादाओं को बनाये रखना भी उनका कर्तव्य हैं. अच्छे चरित्र के अभाव में समाज को सुखमय नहीं बनाया जा सकता हैं.छात्र जीवन में उन्हें चाहिए कि वे निष्ठापूर्वक अध्ययन करे, गलत साहित्य न पढ़े. संभव हो तो गलत साहित्य के प्रकाशन को भी रोके. समाज में बेईमानी और भ्रष्टाचार करने वालों के विरुद्ध संगठित होकर कार्य करें.इसी भांति युवकों को चाहिए कि वे थोड़े से स्वार्थ के लिए राजनीति के कुचक्रो में न फसे, पश्चिमी भौतिकवाद के प्रभाव से स्वयं को बचाकर रखे.

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उक्त सभी पक्षों को व्यावहारिक रूप देकर ही युवा पीढ़ी समाज के प्रति अपने दायित्वों को पूरा कर सकती हैं. इसी दशा में समाज सुखमय बन सकता हैं.नवयुवक भारत की भावी आशाएं हैं, उन्हें यथासम्भव समाज की अपेक्षाओं को पूरा करने का प्रयत्न करना चाहिए.

प्रश्न/उत्तर

प्रश्न 1 भारत के युवा से आप क्या समझते हैं? 

उत्तर: युवा किसी राष्ट्र के विकास के आधार हैं। वे राष्ट्र के सबसे ऊर्जावान भाग हैं और इसलिए उनसे बहुत उम्मीदें हैं। सही मानसिकता और क्षमता के साथ युवा राष्ट्र के विकास में योगदान कर सकते हैं और इसे आगे बढ़ा सकते हैं। युवा ऊर्जा से भरी नदी की तरह है, जिसके प्रवाह को एक सही दिशा की आवश्यकता है।

 प्रश्न 2. युवा हमाराभविष्य कैसे बदल सकता है? 

उत्तर: युवा शक्ति देश और समाज की रीढ़ होती है। युवा देश और समाज को नए शिखर पर ले जाते हैं। युवा देश का वर्तमान हैं, तो भूतकाल और भविष्य के सेतु भी हैं। युवा गहन ऊर्जा और उच्च महत्वाकांक्षाओं से भरे हुए होते हैं। उनकी आंखों में भविष्य के इंद्रधनुषी स्वप्न होते हैं। समाज को बेहतर बनाने और राष्ट्र के निर्माण में सर्वाधिक योगदान युवाओं का ही होता है। युवा बेहतर भविष्य के लिए मतदान के माध्यम से ईमानदार और विकासपरक सोच वाले प्रतिनिधि को चुनने और भ्रष्ट लोगों का सामाजिक दुत्कार को पहली सीढ़ी मानते हैं। समाज में तेजी से आ रहे बदलाव के प्रति बड़ी संख्या में युवाओं का नजरिया शार्टकट की बजाय कर्म और श्रम के माध्यम से सफलता प्राप्त करने की ओर होना जरूरी है।

प्रश्न 3. युवा समाज में कैसे योगदान दे सकते हैं?

उत्तर: जब युवा लोग अपनी संपत्ति को सहायक संसाधनों और दूसरों के साथ बातचीत करने के अवसरों के साथ जोड़ते हैं, तो वे अपने समुदायों में सकारात्मक योगदान देते हैं। युवा स्वयंसेवा और आउटरीच के माध्यम से अपने समुदायों में लोगों के विविध समूहों से जुड़ सकते हैं।

प्रश्न 4.युवा विकास के उदाहरण क्या हैं?

उत्तर: इसमें युवाओं की अभिव्यक्ति, सामुदायिक सेवा में युवाओं की भागीदारी और सरकार के विभिन्न स्तरों पर युवाओं के लिए निर्णय लेने के अवसर पैदा करना शामिल हो सकता है। इसमें ऐसे कार्यक्रम भी शामिल हो सकते हैं जो युवा योगदान के लिए संरचना प्रदान करते हैं।

प्रश्न 5.सकारात्मक युवा विकास के 5 सी क्या हैं?

उत्तर: लर्नर (2009) ने PYD को एक ऐसी प्रक्रिया के रूप में वर्णित किया है जो “5Cs” को बढ़ावा देती है: क्षमता, आत्मविश्वास, कनेक्शन, चरित्र और देखभाल । लर्नर (2009) ने संपन्न युवा लोगों को ऐसे व्यक्तियों के रूप में वर्णित किया जो सक्रिय रूप से सकारात्मक गुणों का पोषण, खेती और विकास करते हैं।

सच्चा धर्म

धर्म शब्द संस्कृत भाषा के ‘धृ’ से बना है जिसका अर्थ है किसी वस्तु को धारण करना अथवा उस वस्तु के अस्तित्व को बनाये रखना। धर्म का सामान्य अर्थ कर्तव्य है। इसीलिए व्यक्ति के जीवन से संबंधित अनेक आचरणों की एक संहिता है जो उसके कर्तव्यों और व्यवहारों को नियंत्रित और निर्देशित करती है। 

डेविस के अनुसार धर्म महाराज समाज का एहसास सर्वव्यापी स्थाई और सास्वत तत्व है जिसे बिना समझे समाज के रूप को बिल्कुल ही नहीं समझा जा सकता है।

टायलर के अनुसार धर्म का अर्थ किसी आध्यात्मिक शक्ति में विश्वास करना है।

धर्मा मानवोपरी शक्तियों के प्रति अभिवृत्तियां हैं, धर्म पवित्र वस्तुओं से संबंधित विश्वासों और आचरणों की समग्रता है जो इन पर विश्वास करने वाले को एक नैतिक समुदाय के रूप में संयुक्त करती है। धर्म के समाजशास्त्रीय क्षेत्र के अंतर्गत एक समूह में अलौकिक से संबंधित उद्देश्य पूर्ण विश्वास तथा इन विश्वासों से संबंधित बाहरी व्यवहार, भौतिक वस्तुएं और प्रतीत आते हैं।धर्म एक ऐसा संयोजक बल है जो मानव संगठन के प्रत्येक पहलू को एकीकृत कर सकता है और सच्चे धर्म के बिना कोई मानव संतोषजनक जीवन नहीं जी सकता है, सच्चा धर्म खुद के शांतिपूर्ण स्थापित करने में सहायक होता है, हिंदू धर्म कर्तव्यों का सार है।दूसरों के साथ ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए जिससे वह दर्दनाक हो, जैन धर्म के अनुसार हमें सुख और शांति के लिए सभी जीवो का सम्मान करना चाहिए। सभी धर्मों के उत्पत्ति मानव समाज की आवश्यकता के अनुसार हुई है, ताकि सभी लोग एक-दूसरे के साथ संगठित हो सके तथा अपने रीति-रिवाजों के बेड़ियों को तोड़कर उनसे छुटकारा पा सके, धर्म का मुख्य उद्देश्य सत्य को सामने लाना था।

मानवता ही सच्चा धर्म है, प्रत्येक मानव चाहे वह किसी भी धर्म का हो, किसी भी जाति का हो, किसी भी स्थान पर रहने वाला हो, सभी का एक मात्र उद्देश्य होना चाहिए मानव एकता, सच्चा धर्म मानव को एक दूसरे के प्रति सहयोग का भावना रखना ही होता है, हमें एक दूसरे का सहयोग करना चाहिए और प्रत्येक व्यक्ति को एक समान मानना चाहिए, यही सच्चा धर्म होता है।

सच्चा धर्म मानवता है, धर्म में किसी भी प्रकार की बैर भावना नहीं होती, धर्म हमें किसी भी प्रकार का बैर नहीं सिखाता है, धर्म एकता की शिक्षा देता है क्योंकि सभी मनुष्य ईश्वर की संतान है , सभी धर्मों के लोगों में किसी भी प्रकार की असमानताएं नहीं होती है, सच्चा धर्म मित्रता की शिक्षा देता है, शत्रुता की नहीं। हम सभी मानव जाति को एक सच्चे धर्म का पालन करना चाहिए और अपने जीवन में मित्रता की शिक्षा को अपनाना चाहिए, तथा किसी से भी शत्रुता नहीं करनी चाहिए। हमारे भारत देश की महानता उसके विशाल जनसंख्या अर्थात भू- क्षेत्र के कारण नहीं है ,बल्कि उसके भव्य और अनुकरणीय उदार परंपराओं के कारण है। हमारे भारत देश में मानवीय एकता का आदर्श उपस्थित है, हमारे भारत भूमि में अनेक प्रकार के भाषाएं, वेशभूषा तथा विचार, चिंतन और राष्ट्रीयता के सूत्र हैजिनमें मानव के एकता का आदर्श उपस्थित है।

हर धर्म में बहुत तरह की प्रक्रिया की जाती हैं, पूजा पाठ, कर्मकांड, आरती प्रार्थना, नमाज, यज्ञ, हवन आदि। धार्मिक क्रियाओं में पवित्र पदार्थों का उपयोग किया जाता है, सभी धर्मों में अनुष्ठान और कर्मकांड पाए जाते हैं। सभी धर्म में अलौकिक शक्ति को प्रसन्न करने और उसके क्रोध से बचने के लिए प्रार्थना पूजा और आराधना किया जाता है।

धर्म मे तर्क का अभाव पाया जाता है, यह भावना और विश्वास पर आधारित होता है। धर्म से संबंधित सभी वस्तुओं, पुस्तकों और क्रिया आदि को पवित्र माना जाता है। धर्म का संबंध हमारी भावनाओं एवं श्रमिकों से अलौकिक शक्ति में विश्वास, श्रद्धा, भक्ति, प्रेम, आदर आदि की भावनाएं और संवेग से संबंधित होता है।संसार में अनेक धर्म प्रचलित हैं, प्रत्येक देश का अपना धर्म है, सभी धर्म ने मानव को भाईचारे और इंसानियत के प्रति जागरूक किया है, सभी धर्मों का उद्देश्य मानव से प्यार करना, सभी के प्रति अच्छा आचरण करना, सहनशील बनना, जीवन के प्रति उदार बनना, सभी प्राणियों के प्रति दया भाव रखना, आदि भाव को धर्म सिखाता है।

हमारे सबसे पुराने धर्मों में से हिंदू धर्म सबसे पुराना धर्म है, हिंदू धर्म के बाद इस्लाम और ईसाई धर्म का जन्म हुआ। हमारे भारत देश में जितने धर्म है उतने विश्व में कहीं भी नहीं है, जिन लोगों ने हिंदू धर्म के जटिलताओं को स्वीकार नहीं किया उन्होंने अपना धर्म अलग से ही बना लिया, तथा लोगों में अपने अपने धर्म के प्रति रुचि पैदा करने की कोशिश की जाने लगी, इन सभी धर्मों में जैन और बौद्ध धर्म प्रमुख हैं।

बौद्ध धर्म तथा जैन धर्म का विकास हिंदू धर्म के अंतर्गत हुआ, पारसी धर्म मैदान में कन्फ्यूशियस धर्म चीन में प्रचलित है, तथा इस्लाम धर्म भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, ईरान तथा अरब देशों के अतिरिक्त संसार के लगभग सभी देशों में प्रचलित है।

सच्चा धर्म हम सभी को जीवन में एक दूसरे का सहयोग करने का सीख देता है, हमें सदैव एक दूसरे का सहयोग करना चाहिए और मानव के प्रति द्वेष भावना को नहीं रखना चाहिए, तथा जीवन मेंक्रोध का त्याग करना चाहिए, सच्चा धर्म हमारे जीवन के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है, सच्चा धर्म हमें जीवन जीने का सही मार्ग दिखाता है और सच्चा धर्म ही मानवता की सर्वश्रेष्ठ धर्म है। हमें प्रत्येक धर्म मानवता का पाठ पढ़ाता है उदारता के महत्व के बारे में बताता है, हम सभी मानव जाति को सदैव सच्चाई के मार्ग पर चलना चाहिए और अपने जीवन में एक दूसरे के प्रति सहयोग की भावना रखना चाहिए तथा दूसरों को भी सहयोग की भावना के लिए जागरूक करना चाहिए।

 

अधिकतर पूछे जाने वाले प्रश्न 

प्रश्न 1. सच्चा धर्म क्या होता हैं? 

उत्तर- सच्चा धर्म मानवता है, धर्म में किसी भी प्रकार की बैर भावना नहीं होती, धर्म हमें किसी भी प्रकार का बैर नहीं सिखाता है, धर्म एकता की शिक्षा देता है क्योंकि सभी मनुष्य ईश्वर की संतान है । 

प्रश्न 2. धर्म का शाब्दिक अर्थ क्या हैं? 

उत्तर- धर्म शब्द संस्कृत भाषा के ‘धृ’ से बना है जिसका अर्थ है किसी वस्तु को धारण करना अथवा उस वस्तु के अस्तित्व को बनाये रखना। धर्म का सामान्य अर्थ कर्तव्य है। इसीलिए व्यक्ति के जीवन से संबंधित अनेक आचरणों की एक संहिता है जो उसके कर्तव्यों और व्यवहारों को नियंत्रित और निर्देशित करती है। 

प्रश्न 3. सबसे पुराना धर्म कौन सा हैं? 

उत्तर- हमारे सबसे पुराने धर्मों में से हिंदू धर्म सबसे पुराना धर्म है, हिंदू धर्म के बाद इस्लाम और ईसाई धर्म का जन्म हुआ। हमारे भारत देश में जितने धर्म है उतने विश्व में कहीं भी नहीं है, जिन लोगों ने हिंदू धर्म के जटिलताओं को स्वीकार नहीं किया उन्होंने अपना धर्म अलग से ही बना लिया, तथा लोगों में अपने अपने धर्म के प्रति रुचि पैदा करने की कोशिश की जाने लगी, इन सभी धर्मों में जैन और बौद्ध धर्म प्रमुख हैं।

प्रश्न 4. सच्चा धर्म क्या सीख देता हैं? 

उत्तर- सच्चा धर्म हम सभी को जीवन में एक दूसरे का सहयोग करने का सीख देता है, हमें सदैव एक दूसरे का सहयोग करना चाहिए और मानव के प्रति द्वेष भावना को नहीं रखना चाहिए, तथा जीवन मेंक्रोध का त्याग करना चाहिए, सच्चा धर्म हमारे जीवन के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है, सच्चा धर्म हमें जीवन जीने का सही मार्ग दिखाता है और सच्चा धर्म ही मानवता की सर्वश्रेष्ठ धर्म है।

प्रश्न 5. मानवता सबसे बड़ा धर्म क्यों है? 

उत्तर- मानवता ही सर्वश्रेष्ठ धर्म है। हमें प्रत्येक धर्म मानवता का पाठ पढ़ाता है उदारता के महत्व के बारे में बताता है, हम सभी मानव जाति को सदैव सच्चाई के मार्ग पर चलना चाहिए और अपने जीवन में एक दूसरे के प्रति सहयोग की भावना रखना चाहिए तथा दूसरों को भी सहयोग की भावना के लिए जागरूक करना चाहिए।

राष्ट्रीय पक्षी

राष्ट्रीय पक्षी का अर्थ है एक ऐसा पक्षी जो हमारे देश का प्रतीक है। भारत में कई सारे सुंदर-सुंदर पक्षी पाए जाते हैं। भारत में तक़रीबन 1,200 से अधिक पक्षियों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं। बात सिर्फ राष्ट्र पक्षी की करें तो भारत का राष्ट्रीय पक्षी मोर को माना जाता है। 26 जनवरी 1963 को भारत का राष्‍ट्रीय पक्षी घोषित कर दिया गया क्‍योंकि यह शिष्टता और सुंदरता का प्रतीक है। मोर केवल एक सुंदर पक्षी ही नहीं बल्कि इसे हिंदू धर्म की कथाओं में भी ऊँचा दर्जा दिया गया है।

मोर दिखने में बहुत ही सुन्दर पक्षी है। सभी पक्षियों में सबसे बड़ा मोर पक्षी ही है। मोर भारत के हर जगह में पाए जाते हैं। मोर में लगभग सभी रंगों का समावेश होता हैं। मोर की पंखो का रंग हरा होता है और मोर की पंखों में चाँद जैसी कई आकृतियाँ बनी हुई है जिसमें कई रंग सुसज्जित हैं।ये हमेशा ऊँचे स्थानों पर ही बैठना पसंद करते हैं। हमें मोर पीपल, नीम और बरगद के पेड़ों पर देखने के लिए आसानी से मिल जायेंगे। मोर के मुँह और गले का रंग बैंगनी होता है।

मोर के पंख मखमल के कपड़े जैसे कोमल और बहुत सुन्दर होते हैं। मोर की आंखों का आकार छोटा होता है। मोर के पैरों का रंग पूरा सफ़ेद तो नहीं होता है, लेकिन सफ़ेद में थोडा मैला सा होता है। मोर हमारा राष्ट्रिय पक्षी है, हमें इसकी सुरक्षा करनी चाहिए।

मोर की सुन्दरता को देखकर ही कवि रविन्द्रनाथ ने कहा था– “हे मोर तू इस मृत्युलोक को स्वर्ग के समान बनाने के लिए आया है।”

मोर एक शर्मीला पक्षी है, जो लोगों से दूर रहना पसंद करता है। मोर की आवाज कर्करी होती है जो दो किलोमीटर दूर से भी सुनाई दे सकती है। मोर पेड़ की डालियों पर रहना बहुत पसंद करते हैं। भारत में लगभग सभी जगहों पर मोर पाए जाते हैं। इसमें मुख्य स्थान राजस्थान, उतरप्रदेश और मध्यप्रदेश है। इनके के पंख लम्बे और बड़े होते हैं। इसी कारण मोर ज्यादा ऊँचा उड़ नहीं पाते। मोर जमीन पर चलना पसंद करते हैं। मोर की पंखों में छोटी छोटी पंखुडियाँ होती हैं। पंख के अंतिम छोर पर चाँद जैसी बैंगनी रंग की आकृतियाँ होती है, जो दिखने में बहुत ही सुन्दर होती हैं। इनके पंख अन्दर से खोखले होते हैं। मोर बारिश होती है तब बहुत ही खुश होते हैं और ये अपनी ख़ुशी पंख फैलाकर और नाचकर व्यक्त करते हैं। जब मोर पंख फैलाते हैं तो इसकी आकृति आधे चाँद के सम्मान होती है जो हर किसी को पसंद आती है। मोर को प्राकृतिक आपदा का पहले से ही आभास हो जाता है और ये पहले ही हमें संकेत दे देते हैं। जब भी कोई प्राकृतिक आपदा आने वाली होती है तो ये जोर जोर से आवाज करने लगते हैं।

जब बरसात का मौसम होता है तो काले बादलों के नीचे मोर अपने पंख फैलाकर नाचना बहुत पसंद करते हैं। मोर सभी पक्षियों का राजा होने कारण भगवान ने भी इसके सिर पर एक मुकुट के रूप में कलगी लगाईं है। भारत के धार्मिक ग्रंथों में मोर को पवित्र पक्षी माना जाता है। मोर सभी के लिए आकर्षण का केंद्र है।मोर का वजन ज्यादा होने और पंखों का आकर बड़ा होने के कारण ये ज्यादा उड़ नहीं पाते। इसलिए मोर ज्यादातर जमीन पर चलना पसंद करते हैं। इसकी गर्दन लम्बी होती है और इसका रंग नीला होता है। मोर ज्यादातर चमकीले नील और हरे रंग के होते हैं। मोर की पंखों पर चाँद के समान आकृति बनी होती है जो दिखने में बहुत ही खूबसूरत होती है। मोर के पैर लम्बे होते हैं।

इनकी की चोंच भूरे रंग की होती है। पैरों का रंग पूरी तरह से सफ़ेद नहीं होता मैला सा होता है। मोर के सभी अंग दिखने में सुंदर होते हैं। लेकिन मोर के पैर दिखने में सुन्दर नहीं होते हैं। मोर के पैर बहुत मजबूत होते हैं और इन पर कांटा बना होता है जो मोर की लड़ाई करते समय बहुत मदद करता है।मोर जितना खूबसूरत होता है उतनी मोरनी खुबसूरत नहीं होती है। मोरनी दिखने में भी इतनी आकर्षक नहीं होती जितना मोर होता है। ये मोर से आकार में छोटी होती है। मोर और मोरनी में ज्यादा तो अंतर नहीं होता लेकिन इनको आसानी से पहचाना जा सकता है।

मोरनी के शरीर की लम्बाई लगभग 85 सेंटीमीटर तक हो सकती है। मोर के जैसी इसके सर पर भी एक छोटी सी कलगी होती है। मोरनी के शरीर का निचला भाग बादामी रंग और हल्का सफ़ेद होता है। मोर के पंखों की लम्बाई लगभग 1 मीटर तक होती है और मोर की उम्र 20 से 25 वर्ष तक होती है। मोर खाने में सभी प्रकार का भोजन लेता है। इसी कारण ये सर्वाहारी है। मोर फल और सब्जियों को खाने के साथ साथ यह चना, गेहूँ, बाजरा और मकई भी लेता है और मोर खेतों में हानिकारक कीड़ों, चूहों, दीमक, छिपकली और साँपों को भी अपना भोजन बनाता है। खेतों में हानिकारक कीड़ों को खाने के कारण ये किसानों का सच्चा मित्र होता है। मोर ज्यादातर जंगलों में ही रहते हैं। लेकिन कभी कभी ये अपने भोजन की तलाश करते हुए आबादी में भी आ जाते हैं।एक नर मोर दो से पाँच मादा मोर के साथ सम्बन्ध बनाता है। इनमें से प्रत्येक मादा मोर 6 से 7 अंडे देती है। मादा मोर अपने अंडे जमीन में गड्डा करके जमीन के अन्दर देती है। मादा मोर साल में दो बार अंडे देती है। अण्डों से बच्चों को निकलने में 25 से 30 दिन का समय लगता है। इनमें से कुछ बच्चे ही बड़े हो पाते हैं। क्योंकि कुछ जब छोटे होते हैं तो जंगली जानवरों का शिकार बन जाते हैं।

पूरे संसार में मोर की तीन प्रजातियाँ पाई जाती हैं। जिसमें भारत में पाई जाने वाली प्रजाति सबसे सुन्दर प्रजाति है। इस प्रजाति के मोर ज्यादातर भारत में ही पाए जाते हैं।मोर को विश्व का सबसे सुंदर पक्षी भी कहा जा सकता है। जैसी मोर की सुन्दरता होती है किसी और पक्षी की नहीं हो सकती है। मोर जितना सुंदर होता है उतना ही सुंदर नृत्य भी करता है।

 

अधिकतर पूछे जाने वाले प्रश्न

प्रश्न 1. मोर को राष्ट्रीय पक्षी क्यों माना गया है? 

उत्तर- राष्ट्रीय पक्षी मोर को माना जाता है। 26 जनवरी 1963 को भारत का राष्‍ट्रीय पक्षी घोषित कर दिया गया क्‍योंकि यह शिष्टता और सुंदरता का प्रतीक है। मोर केवल एक सुंदर पक्षी ही नहीं बल्कि इसे हिंदू धर्म की कथाओं में भी ऊंचा दर्जा दिया गया है।मोर दिखने में बहुत ही सुन्दर पक्षी है। सभी पक्षियों में सबसे बड़ा मोर पक्षी ही है। मोर भारत के हर जगह में पाएं जाते हैं।

प्रश्न 2.  मोर की कितनी प्रजातियां होती है? 

उत्तर- पूरे संसार में मोर की तीन प्रजातियाँ पाई जाती हैं। जिसमें भारत में पाई जाने वाली प्रजाति सबसे सुन्दर प्रजाति है। इस प्रजाति के मोर ज्यादातर भारत में ही पाए जाते हैं।

प्रश्न 3.मोर के संरक्षण का क्या कानून बना है? 

उत्तर- मोर के पंखों की कीमत ज्यादा होने के कारण लोग इसका शिकार करने लगे और इसके पंखों को बाजार में बेचने लगे। धीरे-धीरे मोरों की संख्या में कमी आने लगी। तब भारत सरकार ने वन्य अधिनियम 1972 के तहत मोर के शिकार (Peacock Matter) पर रोक लगा दी। रोक लगाने के बाद भी यदि कोई मोर का शिकार करता है तो उसको जुर्माने के साथ सजा दी जाती है। ये कानून मोरों की संख्या में वृद्धि करने के लिए बहुत ही जरूरी है। इस कानून के बाद भारत में मोरों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है।

प्रश्न 4.मोर भोजन में क्या खाते हैं? 

उत्तर- खाने के रूप में मोर सर्वाहारी है। मोर अपने खाने में फल और सब्जियों को खाता है। मोर इसके अलावा भी कीड़े-मकोड़े, छिपकली, चूहों और साँपों को खाता है। मादा मोर साँप का शिकार नहीं कर सकती है। मोर खेतों में हानिकारक कीड़ो को खाता है। इस कारण इसे किसानों का सच्चा मित्र भी कहा जाता है। मोर की वजह से कई सारी फ़सलें हानिकारक कीड़ों से बच जाती है।

प्रश्न 5.भारत का राष्ट्रीय पक्षी मोर से पहले कौन था?

उत्तर- तमिलनाडु के ऊटी में भारत के राष्ट्रीय पक्षी घोषित करने सम्बंधी आयोजित बैठक में मोर के साथ साथ सारस क्रैन, ब्राह्मि‍णी काइट, बस्‍टार्ड, और हंस के नामों पर भी चर्चा की गयी एवं अंतत: मोर को 26 जनवरी 1963 को भारत का राष्ट्रीय पक्षी घोषित किया गया ।