उपसर्ग दो शब्दों ‘उप’ और ‘सर्ग’ से जुड़कर बना हुआ है। उपसर्ग का अर्थ है किसी शब्द के पास आ कर नया शब्द बनाना।
उपसर्ग किसी भी शब्द के आरंभ में लगाया जाता है, जिससे उस शब्द का अर्थ बदल जाता है और एक नया शब्द बनता है। उपसर्ग किसी शब्द के आरंभ में जुड़ने पर उसका अर्थ बदल देता है।
उपसर्ग का खुद का एक अर्थ होता है जो उस शब्द के अर्थ को बदल देता है।एक उपसर्ग का एक से अधिक अर्थ भी निकल सकता है। यह जुड़ने वाले शब्द पर निर्भर करता है कि वह किस तरह किसी बात को प्रस्तुत करता है।
उदाहरण – आ + हार = आहार
इस शब्द में ‘हार’ का अर्थ है ‘आभूषण’ लेकिन इसके आगे ‘आ’ उपसर्ग जोड़ने से इसका अर्थ खाने के भोजन में बदल जाता है। इस प्रकार उपसर्ग लगने से शब्द का अर्थ बदल जाता है।
अप + मान = अपमान
इस शब्द में ‘मन’ का अर्थ है ‘सम्मान’ लेकिन इसमें ‘अप’ उपसर्ग लगा हुआ है, जिससे यह ‘अपमान’ बन गया जिसका अर्थ है सम्मान न करना या बेइज्जती।
आ + दान = आदान
इस शब्द में ‘दान’ का अर्थ है किसी वस्तु को देना लेकिन ‘आ’ उपसर्ग को इसमें जोड़कर इसका अर्थ बदलकर किसी वस्तु को लेना बन गया है, जिससे इसका वास्तविक अर्थ बदल गया।
प्रति + वर्ष = प्रतिवर्ष
इस शब्द ‘वर्ष’ को ( कोई भी वर्ष ) विशेष वर्ष नहीं बताया गया है, लेकिन ‘प्रति’ उपसर्ग लगाकर प्रत्येक वर्ष ले रूप में अंकित कर दिया गया है। प्रति का अर्थ होता है प्रत्येक।
वि+ धायक = विधायक।
इस शब्द में ‘वि’ उपसर्ग धायक शब्द के साथ जोड़ा गया है जिससे एक नया शब्द और एक नया अर्थ निकलकर आ रहा है और पुराना अर्थ और पुराना शब्द लुप्त हो गया है।
उपसर्ग के तीन प्रकार होते हैं
1) संस्कृत उपसर्ग
जिनकी संख्या 22 है।
अति, अधि, अनु, अप, अभि, अव, आ, उत्, उप, दुर, नि, परा, परि, प्र, प्रति, वि, सम्, सु, निर्, दुस्, निस्, अपि।
2) हिंदी उपसर्ग
इनकी संख्या 10 है।
अ, अध, ऊन, औ, दु, नि, बिन, भर, कु, सु।
3) उर्दू उपसर्ग
इनकी संख्या 19 है।
अल, ऐन, कम, खुश, गैर, दर, ना, फ़िल्, ब, बद, बर, बा, बिल, बिला।
1)संस्कृत उपसर्ग
अति, अधि, अनु, अप, अभि, अव, आ, उत्, उप, दुर, नि, परा, परि, प्र, प्रति, वि, सम्, सु, निर्, दुस्, निस्, अपि ।
अति – अतिशय, ( अति का अर्थ अधिक होता है)
अधि – अधिपति, अध्यक्ष ,अध्यापन
अनु – अनुक्रम, अनुताप, अनुज; अनुकरण, अनुमोदन.
अप – अपकर्ष, अपमान; अपकार, अपजय.
अपि – अपिधान
अभि – अभिनंदन, अभिलाप अभिमुख, अभिनय
अव – अवगणना, अवतरण;अवगुण.
आ – आगमन, आदान; आकलन.
उत् – उत्कर्ष, उत्तीर्ण,
उप – उपाध्यक्ष, उपदिशा; उपग्रह, उपनेत्र
दुर्, दुस् – दुराशा, दुरुक्ति,
नि – निमग्न, निबंध निकामी,
निर् – निरंजन, निराषा
निस् –निष्फळ, निश्चल,
परा (परा का अर्थ कमी होता है) – पराजय,
परि – परिपूर्ण,परिश्रम, परिवार
प्र – प्रकोप, प्रबल
प्रति – प्रतिकूल, प्रतिच्छाया, प्रतिदिन, प्रतिवर्ष, प्रत्येक ( प्रति का अर्थ प्रत्येक या हर एक होता है।)
वि – विख्यात, विवाद, विफल, विसंगति (वि का अर्थ अधिक होता है।)
सम् – संस्कृत, संस्कार, संगीत, संयम, संयोग, संकीर्ण.
सु – सुभाषित, सुकृत, सुग्रास; सुगम, सुकर, स्वल्प;
सु – (अधिक) सुबोधित, सुशिक्षित।
एक उपसर्ग के एक से अधिक अर्थ भी होते है। यह नियम उसके साथ जुड़ने वाले शब्द पर निर्भर करता है कि वह किस अर्थ के रूप में उस से जुड़ रहा है।
ये सभी उपसर्ग है जो शब्द के आरंभ में लगाए गए है। इनके प्रयोग से शब्द का वास्तविक अर्थ बदल गया है और एक नया अर्थ उत्पन्न हुआ है।
2)हिंदी उपसर्ग–:
अ, अध, ऊन, औ, दु, नि, बिन, भर, कु, सु।
अ – अनेक
ऊन – उन्नति
अध – अधूरा, अधम
दु – दुश्मन, दुष्प्रभाव
नि – निर्भय, निराला
भर– भरपूर, भरा ( भर का अर्थ पूरा या भरा हुआ होता है)
कु – कुकर्म, कुशलता (कुकर्म में कु उपसर्ग गलत अर्थ हो दर्शाता है जबकि कुशलता अर्थ में कु उपसर्ग अच्छी और निपुणता को दर्शाता है)
सु – सुस्वागत, सुइच्छा ( सु का अर्थ अच्छा होता है)
इस प्रकार शब्द के आरंभ में हिंदी के उपसर्ग को लगाया जाता है। यह उपसर्ग लगाने के बाद शब्द के मूल अर्थ में परिवर्तन आ जाता है।
3)उर्दू-फारसी के उपसर्ग –:
अल, ऐन, कम, खुश, गैर, दर, ना, फ़िल्, ब, बद, बर, बा, बिल, बिला।
अल – अलविदा, अलबत्ता
कम – कमसिन, कमअक्ल, कमज़ोर
खुश – खुशबू, खुशनसीब, खुशकिस्मत, खुशदिल, खुशहाल, खुशमिजाज
ग़ैर ( गैर का अर्थ किसी चीज की मनाही होता है)- ग़ैरहाज़िर ग़ैरकानूनी ग़ैरवाजिब ग़ैरमुमकिन ग़ैरसरकारी, ग़ैरमुनासिब
दर – दरअसल दरहकीकत
ना – (अभाव) – नामुमकिन नामुराद नाकामयाब नापसन्द नासमझ नालायक नाचीज़ नापाक नाकाम
फ़ी – फ़ीसदी फ़ीआदमी
ब – बनाम, बदस्तूर , बमुश्किल , बतकल्लुफ़
बद – (बुरा)- बदनाम , बदमाश, बदकिस्मत,बददिमाग, बदहवास, बददुआ,
बर – (पर,ऊपर, बाहर) – बरकरार, बरअक्स ,बरजमां
बा – ( बा का अर्थ सहित होता है) – बाकायदा, बाकलम, बाइज्जत, बाइन्साफ, बामुलाहिजा
बिला -(बिला का अर्थ बिना होता है)- बिलावज़ह, बिलालिहाज़
बे – (बे का अर्थ बिना/ नहीं होता है) – बेबुनियाद , बेईमान , बेवक्त , बेरहम बेतरह बेइज्जत , बेअक्ल , बेकसूर, बेमानी, बेशक
ला -( ला का अर्थ बिना, नहीं होता है) – लापता , लाजबाब, लावारिस लापरवाह।
इस प्रकार उर्दू के उपसर्गों को शब्दों के आरंभ में जोड़कर एक नया शब्द बनाया जाता है। जिससे पुराने शब्द का अर्थ बदल जाता है।
प्रत्यय – परिभाषा, भेद और उदाहरण
अधिकतर पूछें गए प्रश्न–:
1.उपसर्ग का प्रयोग कहाँ होता है?
उत्तर: उपसर्ग का प्रयोग शब्द के आरंभ में किया जाता है। जिसमें उपसर्ग के प्रयोग से वास्तविक शब्द का अर्थ बदल जाता है।
2.हिंदी में उपसर्ग के कितने भेद है?
उत्तर: व्याकरण में उपसर्ग को तीन भागों में बाँटा गया है, जिसमें हिंदी में उपसर्ग के 10 भेद है।
अ, अध, ऊन, औ, दु, नि, बिन, भर, कु, सु।
3. ‘पराक्रम’ में कौन-सा उपसर्ग है?
उत्तर: ‘पराक्रम’ में ‘परा’ उपसर्ग लगाया गया है। इसमें ‘क्रम’ शब्द का अर्थ है ‘अंक’ लेकिन पराकर्म का अर्थ है शक्तिशाली। इसमें उपसर्ग लगाकर वास्तविक अर्थ को बदल दिया गया है।
4.संस्कृत में उपसर्ग के कितने भेद है?
उत्तर: व्याकरण में उपसर्ग के तीन भेद है जिसमे से संस्कृत में उपसर्ग के 22 भेद है।
अति, अधि, अनु, अप, अभि, अव, आ, उत्, उप, दुर, नि, परा, परि, प्र, प्रति, वि, सम्, सु, निर्, दुस्, निस्, अपि।
5. अनुग्रह में कौन सा उपसर्ग है?
उत्तर: अनुग्रह में अनु उपसर्ग है। इसमें उपसर्ग लगाकर वास्तविक शब्द ग्रह का ही अर्थ बदल दिया है। उपसर्ग शब्द के आरंभ में लगाए जाते हैं।
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